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________________ वर्गणा अभ्यन्तर और बाह्य के भेद से दो प्रकार की है। इनमें बाह्य वर्गणा की प्ररूपणा आगे की जाने वाली है । अभ्यन्तर वर्गणा दो प्रकार की है-एकश्रेणि वर्गणा और नानाश्रेणि वर्गणा । इनमें से उपर्युक्त १६ अनुयोगद्वार एक श्रेणिवर्गणा में ज्ञातव्य हैं। अब उन सोलह अनुयोगद्वारों के आश्रय से क्रमशः वर्गणाओं का परिचय कराया जाता है वर्गणानिक्षेप-यह छह प्रकार का है-नामवर्गणा, स्थापनावर्मणा, द्रव्यवर्गणा, क्षेत्रवर्गणा, कालवी... और भाववर्गणा (७१)। वर्गणानयविभाषणता के अनुसार कौन नय किन वर्गणाओं को स्वीकार करते हैं, इसे स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि नैगम, संग्रह और व्यवहार ये तीन नय सब वर्गणाओं को स्वीकार करते हैं। ऋजुसूत्र नय स्थापना वर्गणा को स्वीकार नहीं करता। शब्दनय नामवर्गणा और भाववर्गणा को स्वीकार करता है (७२-७४) । पूर्व में वर्गणाविषयक ज्ञान कराने के लिए जिन वर्गणा और वर्गणाद्रव्य समुदाहार आदि आठ अनुयोगद्वारों का निर्देश किया गया है उनमें से प्रथम वर्गणा अनुयोगद्वार में निर्दिष्ट १६ अनुयोगद्वारों में से वर्गणानिक्षेप और वर्गणानयविभाषणता इन दो ही अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा करके पूर्वोक्त आठ अनुयोगद्वारों में से दूसरे वर्गणाद्रव्यसमुदाहार की प्ररूपणा करते हुए उसमें इन १४ अनुयोगद्वारों का निर्देश किया गया है___ वर्गणाप्ररूपणा, वर्गणानिरूपणा, वर्गणाध्र वाध्र वानुगम, वर्गणासान्तरनिरन्तरानुगम, वर्गणा-ओजयुग्मानुगम, वर्गणाक्षेत्रानुगम, वर्गणास्पर्शनानुगम, वर्गणाकालानुगम, वर्गणा-अन्तरानुगम, वर्गणाभावानुगम, वर्गणा-उपनयनानुगम, वर्गणापरिमाणानुगम, वर्गणाभागाभागानुगम और वर्गणा-अल्पबहुत्व (७५)। - इसकी व्याख्या के प्रसंग में धवला में यह शंका उठायी गई है कि १६ अनुयोगद्वारों से वर्गणाविषयक प्ररूपणा करने की प्रतिज्ञा करके उनमें केवल पूर्व के दो ही अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा की गई है, शेष १४ अनुयोगद्वारों के आश्रय से उस वर्गणाविषयक प्ररूपणा नहीं की गई है । इस प्रकार उनकी प्ररूपणा न करके वगंणाद्रव्यसमुदाहार की प्ररूपणा क्यों की जा रही है। इस शंका के समाधान में धवलाकार ने कहा है कि वर्गणाप्ररूपणा अनुयोगद्वार वर्गणाओं की एक श्रेणि का निरूपण करता है, परन्तु वर्गणाद्रव्यसमुदाहार वर्गणाओं की नाना और एक दोनों श्रेणियों का निरूपण करता है, इसलिए चूंकि वर्गणाद्रव्य समुदाहार प्ररूपणा वर्गणाप्ररूपणा की अविनाभाविनी है, इसीलिए वर्गणाविषयक उन चौदह अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा न करके वर्गणाद्रव्यसमुदाहार की प्ररूपणा को प्रारम्भ किया जा रहा है; अन्यथा पुनरुक्त दोष का होना अनिवार्य था। ___ आगे यथाक्रम से उस वर्गणाद्रव्य समुदाहार में निर्दिष्ट उन चौदह अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा की जा रही है १. वर्गणाप्ररूपणा- इस अनुयोगद्वार में (१) एकप्रदेशिक परमाणु-पुद्गलवर्गणा, द्विप्रदेशिक परमाणुपुद्गलवगंणा, इसी प्रकार त्रिप्रदेशिक, चतुःप्रदेशिक आदि (२) संख्यातप्रदेशिक, (३) असंख्यात प्रदेशिक, परीतप्रदेशिक, अपरीतप्रदेशिक, (४) अनन्तप्रदेशिक, अनन्तानन्त प्रदेशिक परमाणुपुद्गलवर्गणा, अनन्तानन्तप्रदेशिक वर्गणाओं के आगे, (५) आहारद्रव्यवर्गणा, (६) अग्रहण वर्गणा, (७) तैजसद्रव्यवर्गणा, (८) अग्रहणद्रव्यवर्गणा, (६) भाषावर्गणा, (१०) अग्रहणद्रव्य-वर्गणा, (११) मनोद्रव्यवर्गणा, (१२) अग्रहणद्रव्यवर्गणा, (१३) कार्मणद्रव्यवर्गणा, १२२ / षट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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