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दी गई है कि इसी प्रकार से शेष दर्शनावरणीय आदि सात कर्मों के विषय में भी पदमीमांसा करना चाहिए (३-५)।
स्वामित्व अनुयोगद्वार में स्वामित्व के ये दो भेद निर्दिष्ट किये गये हैं--जघन्य पदविषयक और उत्कृष्ट पदविषयक । आगे पूछा गया है कि स्वामित्व की अपेक्षा उत्कृष्ट पद में ज्ञानावरणीय वेदना क्षेत्र की अपेक्षा उत्कृष्ट किसके होती है। उत्तर में कहा गया है कि एक हजार योजन विस्तारवाला जो मत्स्य स्वयम्भूरमण समुद्र के बाह्य तट पर स्थित है, वेदनासमुद्घात से समुद्घात को प्राप्त हुआ है, काकलेश्या-कौवे के समान वर्णवाले तीसरे तनुवातवलय-से संलग्न है, फिर भी मारणान्तिक समुद्घात को करते हुए काण्डक (वाण) के समान तीन बार ऋजुगति से चलकर दो बार मुड़ा है, ऐसा करके जो अनन्तर समय में नीचे सातवीं पृथिवी के नारकियों में उत्पन्न होनेवाला है, उसके क्षेत्र की अपेक्षा ज्ञानावरणीयवेदना उत्कृष्ट होती है (६-१२)। ___क्षेत्र की अपेक्षा उस उत्कृष्ट ज्ञानावरणीय वेदना से भिन्न अनुत्कृष्ट ज्ञानावरणीयक्षेत्रवेदना कही गई है (१३)।
आगे दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय इन तीन कर्मों की उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट वेदना के क्षेत्र की प्ररूपणा के विषय में यह सूचना कर दी गई है कि जिस प्रकार ज्ञानावरणीय की उत्कृष्ट-अनुत्कृष्टवेदना के क्षेत्र की प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार इन तीन कर्मों की भी उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट वेदना के क्षेत्र की प्ररूपणा करना चाहिए (१४)।
‘पश्चात् क्षेत्र की अपेक्षा उत्कृष्ट वेदनीयवेदना के स्वामी की प्ररूपणा करते हुए कहा गया है कि केवलिसमुद्घात से समुद्घात को प्राप्त होकर समस्त लोक को व्याप्त करनेवाले किसी भी केवली के वह क्षेत्र की अपेक्षा उत्कृष्ट वेदनीयवेदना होती है (१५)। ___इस उत्कष्ट वेदनीयवेदना से भिन्न क्षेत्र की अपेक्षा अनुत्कृष्ट वेदनीयवेदना निर्दिष्ट की गई है (१६-१७)। ___ आगे आयु, नाम और गोत्र इन तीन वेदनाओं के विषय में यह निर्देश कर दिया गया है कि जिस प्रकार यह वेदनीयवेदना के उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट क्षेत्र की प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार आयु, नाम और गोत्र वेदनाओं के भी उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट क्षेत्र की प्ररूपणा करना चाहिए, क्योंकि उससे इनके क्षेत्र में कुछ विशेषता नहीं है (१८)।
क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य ज्ञानावरणीय वेदना उस अन्यतर सूक्ष्मनिगोद जीव अपर्याप्तक के निर्दिष्ट की गई है जो तृतीय समयवर्ती आहारक और तृतीय समयवर्ती तद्भवस्थ होकर जघन्य योग से युक्त होता हुआ शरीर की सबसे जघन्य अवगाहना में वर्तमान है। इससे भिन्न क्षेत्र की अपेक्षा ज्ञानावरणीय वेदना अजघन्य है। इस प्रकार शेष सात कर्मवेदनाओं के भी जघन्यअजघन्य क्षेत्र की प्ररूपणा करना चाहिए, क्योंकि इनके क्षेत्र में ज्ञानावरणीय वेदना के उस जघन्य-अजघन्य क्षेत्र से कुछ विशेषता नहीं है (१६-२२) ।
अल्प-बहुत्व अनुयोगद्वार में जघन्य पद-विषयक, उत्कृष्ट पदविषयक और जघन्य-उत्कृष्ट पद विषयक इन अवान्तर अनुयोग द्वारों के आश्रय से उस वेदना विषयक क्षेत्र के अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा की गई है (२३.२६)।
आगे जिस अवगाहनादण्डक की प्ररूपणा की गई है उसकी उत्थानिका के रूप में धवलाकार ने कहा है कि यह अल्पबहुत्व सूत्र सब जीवसमासों का आश्रय लेकर नहीं कहा गया है,
८६/पटवण्डागम-परिशीलन
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