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सूत्रकार ने 'वेदना' इस रूप में प्रकृत अनुयोगद्वार का स्मरण कराते हुए उसमें इन सोलह अनुयोगद्वारों को ज्ञातव्य कहा है—१. वेदनानिक्षेप, २. वेदनानयविभाषणता, ३. वेदनानामविधान, ४. वेदनाद्रव्यविधान, ५. वेदनाक्षेत्रविधान, ६. वेदनाकालविधान, ७. वेदनाभावविधान, ८. वेदनाप्रत्ययविधान, ६. वेदनास्वामित्वविधान, १०. वेदनावेदन विधान, ११. वेदनागतिविधान, १२. वेदनाअनन्तरविधान, १३. वेदनासंनिकर्षविधान, १४. वेदनापरिमाणविधान, १५. वेदनाभागाभागविधान और १६. वेदनाअल्पबहुत्व (सूत्र १)।
इन १६ अनुयोगद्वारों के आश्रय से यहाँ यथाक्रम से 'वेदना' की प्ररूपणा इस प्रकार की गई है
१. वेदनानिक्षेप-~-इस अनुयोगद्वार में केवल दो सूत्र हैं। उनमें से प्रथम सूत्र के द्वारा 'वेदनानिक्षेप' अधिकार का स्मरण कराते हुए वह वेदनानिक्षेप चार प्रकार का है, यह सूचना की गई है तथा दूसरे सूत्र के द्वारा उसके उन चार भेदों का नामोल्लेख इस प्रकार किया गया है-नामवेदना, स्थापनावेदना, द्रव्यवेदना और भाववेदना।
२. वेदनानयविभाषणता --वेदनानिक्षेप में निर्दिष्ट वेदना के उन चार भेदों में कौन नय किन वेदनाओं को स्वीकार करता है, इसे स्पष्ट करते हुए यहाँ कहा गया है कि नंगम, व्यवहार और संग्रह ये तीन नय सब ही वेदनाओं को स्वीकार करते हैं। ऋजुसूत्रनय स्थापनावेदना को स्वीकार नहीं करता है, तथा शब्दनय नामवेदना और भाववेदना को स्वीकार करता है (सूत्र १-४)।
३. वेदनानाम-विधान-यहाँ बन्ध, उदय व सत्त्वस्वरूप नो आगमद्रव्य कर्मवेदना प्रकृत है। प्रकृतवेदना के और नाम के विधान की प्ररूपणा करना-इस अनुयोगद्वार का प्रयोजन है।
तदनुसार यहाँ प्रारम्भ में वेदनानाम विधान का स्मरण कराते हुए नैगम और व्यवहार नय की अपेक्षा उक्त वेदना के ये आठ भेद निर्दिष्ट किये गये हैं-ज्ञानावरणीयवेदना, दर्शनावरणीयवेदना, वेदनीयवेदना, मोहनीयवेदना, आयुवेदना, नामवेदना, गोत्रवेदना और अन्तरायवेदना (सूत्र)।
नामविधान को स्पष्ट करते हुए धवला में कहा गया है कि 'ज्ञानमावृणोतीति ज्ञानावरणीयम्' इस निरुक्ति के अनसार ज्ञान को आवृत करनेवाले कर्मद्रव्य का नाम ज्ञानावरणीय है । 'ज्ञानावरणीयवेदना' में धवलाकार के अभिप्रायानुसार 'ज्ञानावरणीयमेव वेदना ज्ञानावरणीयवेदना' ऐसा कर्मधारय समास करना चाहिए, न कि 'ज्ञानावरणीयस्य वेदना' इस प्रकार का तत्पुरुष समास; क्योंकि द्रव्यार्थिक नयों में भाव की प्रधानता नहीं होती। तदनुसार ज्ञानावरणीय रूप पुद्गल कर्मद्रव्य को ही ज्ञानावरणीयवेदना समझना चाहिए। इन दोनों नयों की अपेक्षा ज्ञानावरणीय की वेदना को ज्ञानावरणीयवेदना नहीं कहा जा सकता।
संग्रहनय की अपेक्षा आठों ही कर्मों की एक वेदना है (२)।
एक 'वेदना' शब्द से समस्त वेदनाभेदों की अविनाभाविनी एक वेदनाजाति उपलब्ध होती है, इसलिए इस नय की अपेक्षा आठों कर्मों की एक वेदना है ।
ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा न ज्ञानावरणीय वेदना है और न दर्शनावरणीय वेदना आदि भी हैं किन्तु इस नय की अपेक्षा एक वेदनीय ही वेदना है (३)।
लोकव्यवहार में सुख-दुःख को वेदना माना जाता है । ये सुख-दुःख वेदनीयरूप कर्मपुद्गलस्कन्ध को छोड़कर अन्य किसी कर्म से नहीं होते, इसीलिए इस नय की अपेक्षा अन्य कर्मों का
मूलग्रन्थगत विषय का परिचय | ७६
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