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सप्तम अध्याय
अथ सम्यकशब्दार्थकथनपुरस्सरं स्वाध्यायस्याद्यं वाचनाख्यं भेदमाह
शब्दार्थशुद्धता द्रुतविलम्बिताधूनता च सम्यक्त्वम् । शद्धग्रन्थार्थोभयदान पात्रेऽस्य वाचना भेदः ॥४३॥
द-द्रुतमपरिभाव्य झटित्युच्चरितम् । बिलम्बितमस्थाने विश्रम्य विश्रम्योच्चरितम् । आदिशब्देनाक्षरपदच्युतादिदोषास्तहीनत्वम् । वाचना-वाचनाख्यः ॥८३॥ अथ स्वाध्यायस्य प्रच्छनाख्यं द्वितीयं भेदं लक्षयति
प्रच्छनं संशयोच्छित्त्य निश्चितद्रढनाय वा।
प्रश्नोऽधीतिप्रवृत्त्यर्थत्वादधोतिरसावपि ॥८४॥ संशयोच्छित्त्यै-ग्रन्थेऽर्थे तदुभये वा किमिदमित्थमन्यथा वेति सन्देहमुच्छेत्तुम् । निश्चितदृढनाय- १ इदमित्यमेवेति निश्चितेऽर्थे बलमाधातुम् । अधीतीत्यादि-अध्ययनप्रवृत्तिनिमित्तत्वेन प्रश्नोऽप्यध्ययनमित्युच्यते, .. इति न सामान्यलक्षणस्याव्याप्तिरिति भावः ।।८४॥ अथवा मुख्य एव प्रश्ने स्वाध्यायव्यपदेश इत्याह
किमेतदेवं पाठयं किमेषोऽर्थोऽस्येति संशये।
निश्चितं वा द्रढयितुं पृच्छन् पठति नो न वा ॥८५॥ एतद्-अक्षरं पदं वाक्यादि । निश्चितं-पदमर्थं वा । पठति नो न—पठत्येवेत्यर्थः ।।८५॥
आगे 'सम्यक्' शब्द का अर्थ बतलाते हुए स्वाध्यायके प्रथम भेद वाचनाका स्वरूप ... . कहते हैं
शब्दकी शुद्धता, अर्थकी शुद्धता, विना विचारे न तो जल्दी-जल्दी पढ़ना और न अस्थानमें रुक-रुककर पढ़ना, तथा 'आदि' शब्दसे पढ़ते हुए अक्षर या पद न छोड़ना ये सब सम्यक्त्व या समीचीनता है । और विनय आदि गुणोंसे युक्त पात्रको शुद्ध ग्रन्थ, शुद्ध उसका अर्थ और शुद्ध ग्रन्थ तथा अर्थ प्रदान करना स्वाध्यायका भेद वाचना है॥८३॥
स्वाध्यायके दूसरे भेद प्रच्छनाका स्वरूप कहते हैं
ग्रन्थ, अर्थ और दोनोंके विषयमें 'क्या यह ऐसा है या अन्यथा है' इस सन्देहको दूर करनेके लिए अथवा 'यह ऐसा ही है' इस प्रकारसे निश्चितको भी दृढ़ करनेके लिए प्रश्न करना पृच्छना है । इसपर यह शंका हो सकती है कि स्वाध्यायका लक्षण तो अध्ययन कहा है । यह लक्षण प्रश्नमें कैसे घटित होता है। प्रश्न तो अध्ययन नहीं है ? इसके समाधानके लिए कहते हैं। प्रश्न अध्ययनकी प्रवृत्ति में निमित्त है। प्रश्नसे अध्ययनको बल मिलता है इसलिए वह भी स्वाध्याय है ।।८४॥
विशेषार्थ-बहुत-से लोग स्वाध्याय करते हैं किन्तु कोई शब्द या अर्थ या दोनों समझमें न आनेसे अटक जाते हैं। यदि कोई समझानेवाला न हुआ तो उनकी गाड़ी ही रुक जाती है और स्वाध्यायका आनन्द जाता रहता है। अतः प्रश्न करना स्वाध्यायका मुख्य अंग है। मगर उस प्रश्न करनेके दो ही उद्देश होने चाहिए, अपने सन्देहको दूर करना और अपने समझे हुएको दृढ़ करना। यदि वह केवल विवादके लिए या पाण्डित्य प्रदर्शनके लिए है तो वह स्वाध्यायका अंग नहीं है ।।८४॥
आगे कहते हैं कि प्रश्नका स्वाध्याय नाम औपचारिक नहीं है मुख्य है
क्या इसे ऐसे पढ़ना चाहिए ? क्या इस पदका यह अर्थ है ? इस प्रकारका संशय होनेपर या निश्चितको दृढ़ करने के लिए पूछने वाला क्या पढ़ता नहीं है ? पढ़ता ही है ॥८५।।
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