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धर्मामृत ( अनगार) 'पिहितं यत्सचित्तेन गुर्वचित्तेन वापि यत्।
तत् त्यक्त्वैव च यद्देयं बोद्धव्यं पिहितं हि तत् ॥ [ ] ॥२९॥ अथ म्रक्षितनिक्षिप्तदोषौ लक्षयति
म्रक्षितं स्निग्धहस्ताद्यैर्दत्तं निक्षिप्तमाहितम् ।
सचित्तक्ष्माग्निवाढेजहरितेषु त्रसेषु च ॥३०॥ हस्ताद्यैः-आद्यशब्दाद् भाजनं कडच्छुकश्च । दोषत्वं चात्र सम्मूर्छनादिसूक्ष्मदोषदर्शनात् । आहितंउपरिस्थापितम् । सचित्तानि-सजीवान्यप्रासुकयुक्तानि वा कायरूपाणि । उक्तं च
'सच्चित्त पुढविआऊ तेऊ हरिदं च वीयतसजीवा ।
जं तेसिमुवरि ठविदं णिक्खितं होदि छब्भेयं ॥ [ मूलाचार ४६५ गा. ] ॥३०॥ अथ छोटितदोषमाह
भुज्यते बहुपातं यत्करक्षेप्यथवा करात् ।
गलद्धित्वा करौ त्यक्त्वाऽनिष्टं वा छोटितं च तत् ॥३१॥ भुज्यत इत्यादि । यद्बहुपातं-प्रचुरमन्नं पातयित्वा अर्थादल्पं भुज्यते । यद्वा करक्षेऽपि-गलत्परिवेषकेण हस्ते प्रक्षिप्यमाणं तक्राद्यः परिस्रवद् भुज्यते । यद्वा कराद् गलत्-स्वहस्तात् तक्राद्यैः परिस्रवद् शंका होते हुए उसे ग्रहण करना भी शंकित दोष है। सचित्त या अचित्त किन्तु भारी वस्तुसे ढके हुए भोजनको ढकना दूर करके जो भोजन साधुको दिया जाता है वह पिहित दोषसे युक्त है ॥२९॥
म्रक्षित और निक्षिप्त दोषको कहते हैं
घी-तेल आदिसे लिप्त हाथसे या पात्रसे या करछुसे मुनिको दिया हुआ दान म्रक्षित दोषसे युक्त है । सचित्त पृथ्वी, सचित्त जल, सचित्त अग्नि, सचित्त बीज और हरितकाय या त्रसकाय जीवोंपर रखी वस्तु हो उसको मुनिको देना निक्षिप्त दोष है ॥३०॥
विशेषार्थ-इवे. पिण्डनियंक्ति में म्रक्षितके दो भेद हैं-सचित्त म्रक्षित, अचित्त म्रक्षित। सचित्त म्रक्षितके तीन भेद हैं-पृथिवीकाय प्रक्षित, अप्काय म्रक्षित, वनस्पतिकाय म्रक्षित | अचित्त म्रक्षितके दो भेद हैं-गर्हित और इतर । चर्बी आदिसे लिप्त गहित है और घृत आदिसे लिप्त इतर है । सचित्त पृथ्वीकायके दो भेद हैं-शुष्क और आई। जो देय, पात्र या हाथ सूखी चिकनी धूलसे और जो आर्द्र सचित्त पृथिवीकायसे म्रक्षित होता है वह सचित्त पृथिवीकाय म्रक्षित है । अप्काय म्रक्षितके चार भेद हैं-पुरःकर्म, पश्चात्कर्म, सस्निग्ध और जलाई। साधुको भोजनादि देनेसे पहले जो हस्त आदिका जलसे प्रक्षालन किया जाता है वह पुरःकर्म है । जो भोजनदानके पश्चात् किया जाता है वह पश्चात्कमें है। हा जल लगा रहे तो सस्निग्ध है और स्पष्ट रूपसे हो तो जलाद्र है। प्रत्येक वनस्पति आम्र फलादि, अनन्तकाय वनस्पति, कटहल आदिके तत्काल बनाये टुकड़ोंसे यदि हस्तादि लिप्त हो तो वनस्पति म्रक्षित है। शेष तीन अग्नि, वायु और त्रस इन तीनोंसे म्रक्षित नहीं माना है क्योंकि लोकमें इनसे म्रक्षित होनेपर भी म्रक्षित नहीं कहा जाता। इसी तरह निक्षिप्तके भी अनेक भेद-प्रभेदोंका कथन है ॥३०॥
छोटित दोषको कहते हैं
छोटित दोषके पाँच प्रकार हैं। संयमीके द्वारा बहुत-सा अन्न नीचे गिराते हुए थोड़ा खाना १, परोसनेवाले दाताके द्वारा हाथमें तक्र आदि देते हुए यदि गिरता हो तो ऐसी
मामूली
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