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धर्मामृत ( अनगार) अथ कामस्य दश वेगानाह
शुग्दिदृक्षायतोछ्वासज्वरदाहाशनारुचीः ।
समूझेन्मादमोहान्ताः कान्तामाप्नोत्यनाप्य ना ॥६६॥ स्पष्टम् । उक्तं च
'शोचति प्रथमे वेगे द्वितीये तां दिदृक्षते । तृतीये निश्वसित्युच्चैश्चतुर्थे ढौकते ज्वरः॥ पञ्चमे दह्यते गात्रं षष्ठे भक्तं न रोचते। प्रयाति सप्तमे मूछीं प्रोन्मत्तो जायतेऽष्टमे ॥ न वेत्ति नवमे किचिन्म्रियते दशमेऽवशः।
संकल्पस्य वशेनैव वेगास्तीवास्तथाऽन्यथा ॥' -[अमित भ. आरा. ९०७-९०९] लोके त्विमा कामस्य दशावस्था
'आदावभिलाषः स्याच्चिन्ता तदनन्तरं ततः स्मरणम् । तदनु च गुणसंकीर्तनमुद्वेगोऽथ प्रलापश्च ।। उन्मादस्तदनु ततो व्याधिजडता ततस्ततो मरणम् ।
इत्थमसंयुक्तानां रक्तानां दश दशा ज्ञेयाः ॥' [ काव्यालंकार १४।४-५ ] ॥६६॥ आगे कामके दस वेगोंको हेतु सहित कहते हैं
इच्छित स्त्रीके न मिलनेपर मनुष्यकी दस अवस्थाएँ होती हैं- १ शोक, २ देखनेकी इच्छा, ३ दीर्घ उच्छ्वास, ४ ज्वर, ५ शरीरमें दाह, ६ भोजनसे अरुचि, ७ मूर्छा, ८ उन्माद, ९ मोह और १० मरण ॥६६।।
विशेषार्थ-भगवती आराधना [८९३-८९५] में कामके दस वेग इस प्रकार कहे हैं'कामी पुरुष कामके प्रथम वेगमें शोक करता है । दूसरे वेगमें उसे देखनेकी इच्छा करता है। तीसरे वेगमें साँसें भरता है। चौथे वेगमें उसे ज्वर चढ़ता है। पाँचवें वेगमें शरीरमें दाह पड़ती है। छठे वेगमें खाना-पीना अच्छा नहीं लगता। सातवें वेगमें मूच्छित होता है । आठवें वेगमें उन्मत्त हो जाता है । नौवें वेगमें उसे कुछ भी ज्ञान नहीं रहता । दसवें वेगमें मर जाता है। इस प्रकार कामान्ध पुरुषके संकल्पके अनुसार वेग तीव्र या मन्द होते हैं अर्थात् जैसा संकल्प होता है उसीके अनुसार वेग होते हैं क्योंकि काम संकल्पसे पैदा होता है' ॥६६।।
१. 'ज्वरस्तुर्ये प्रवर्तते'। २. 'दशमे मुच्यतेऽसुभिः' । संकल्पतस्ततो वेगास्तीवा मन्दा भवन्ति हि।'-अमित भ. आ. ९०९। ३. 'पढमे सोयदि वेगे दटुं तं इच्छिदे विदियवेगे।
णिस्सदि तदिये वेगे आरोहदि जरो चउत्थम्मि ॥ डज्झदि पंचमवेगे अंगं छठे ण रोचदे भत्तं । मुच्छिज्जदि सत्तमए उम्मत्तो होई अट्ठमए । णवमे ण किंचि जाणदि दसमे पाणेहि मुच्चदि मदंधो। संकप्पवसेण पुणो वेगा तिव्वा व मंदा वा ।।
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