________________
१९६
धर्मामृत (अनगार ) इत्याशाधरदब्धायां धर्मामतपञ्जिकायां ज्ञानदीपिकापरसंज्ञायां द्वितीयोऽध्यायः ।। अत्राध्याय ग्रन्थप्रमाणं पञ्चविंशति अष्टौ शतानि । अंकतः श्लोकाः ८२५।।
पठनीय हैं। तभी तो तपके द्वारा मोक्ष प्राप्त किया जाता है। बिना तपके तीन कालमें मोक्ष नहीं हो सकता । किन्तु कोरे तपसे भी मोक्ष प्राप्त नहीं है। आत्मश्रद्धान ज्ञानमूलक तप ही यथार्थ तप है ॥११४॥
इस प्रकार पं. आशाधररचित धर्मामृतके अन्तर्गत अनगारधर्मकी भव्यकुमुदचन्द्रिका नामक टीका तथा ज्ञानदीपिका नामक पंजिकाकी अनुसारिणी हिन्दी टीकामें सम्यक्त्वका
उत्पादनादिक्रम नामक द्वितीय अध्याय समाप्त हुआ ॥२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org