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द्वितीय अध्याय
योsर्धाङ्गे शूलपाणिः कलयति दयितां माता योऽत्ति मांस, पुंख्यातीक्षाबलाद्यो भजति भवरसं ब्रह्मवित्तत्परो यः । यश्च स्वर्गादिकामः स्यति पशुमकृपो भ्रातृजायाविभाजः, कानीनाद्याश्च सिद्धा य इह तदवधिप्रेक्षया ते हयुपेक्ष्याः ||२२|| शूलस्त्रीयोगाद् द्वेषरागसंप्रत्ययेन शम्भोराप्तत्वनिषेधः । मातृहा इत्यादि - प्रसूतिकाले निजजननीजठरविदारणात्सुगतस्याति निर्दयत्वम् ।
'मांसस्य मरणं नास्ति नास्ति मांसस्य वेदना । वेदनामरणाभावात् को दोषो मांसभक्षणे ॥' [
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इति युक्तिबलाच्च मांसभोजनेन रागः सिद्धयन्नाप्ततां व्याहन्ति । पुमित्यादि – पुमान्– पुरुषः, ख्यातिः - प्रकृतिः, तयोरीक्षा - ज्ञानं तदवष्टम्भाद्विषयसुखसेविनः सांख्यस्य सुतरामा [मना - ] तत्वम् । तथा च तन्मतम् —
तथा -
'हंस पि लस खाद त्वं विषयानुपजीव मा कृथाः शङ्काम् । यदि विदितं कपिलमतं प्राप्स्यसि सौख्यं च मोक्षं च ॥' [
'पञ्चविंशतितत्त्वज्ञो यत्र तत्राश्रमे रतः । शिखी मुण्डी जटी वापि मुच्यते नात्र संशयः ॥' [
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जो महादेव अपने शरीरके आधे भागमें अपनी पत्नी पार्वतीको और हाथमें त्रिशूल धारण करते हैं, जो बुद्ध मांस खाता है और जिसने जन्मसमय अपनी माताका घात किया, जो सांख्य प्रकृति और पुरुषके ज्ञानके बलसे विषयसुखका सेवन करता है, जो वेदान्ती ब्रह्मको जानते हुए विषयसुखमें मग्न रहता है, जो याज्ञिक स्वर्ग आदिकी इच्छासे निर्दय होकर पशुघात करता है, तथा जो व्यास वगैरह भाईकी पत्नी आदिका सेवन करनेवाले प्रसिद्ध हैं उन सबके शास्त्रोंको पढ़कर तथा उनका विचार करके उनकी उपेक्षा करनी चाहिए, अर्थात् न उनसे राग करना चाहिए और न द्वेष करना चाहिए ॥२२॥
विशेषार्थ - महादेव त्रिशूल और पार्वतीको धारण करते हैं अतः द्वेष और रागसे सम्बद्ध होने के कारण उनके आप्त होनेका निषेध किया है । बुद्धने माताकी योनिसे जन्म नहीं लिया था क्योंकि योनि गन्दी होती है अतः माताका उदर विदारण करके जन्मे थे इसलिए बुद्ध अतिनिर्दय प्रमाणित होते हैं । तथा उनका कहना है—
मांसका न तो मरण होता है और न मांसको सुख-दुःखका अनुभव होता है । अतः वेदना और मरणके अभाव में मांस भक्षण में कोई दोष नहीं है ।
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इस युक्ति बलसे उनका स्वयं मरे पशुका मांस भोजनमें राग सिद्ध होता है अतः वे भी आप्त नहीं हो सकते । सांख्यका मत है
१. इस पिब लल मोद नित्यं विषयानुपभुञ्ज कुरु च मा शङ्काम् ।
यदि विदितं ते कपिलमतं तत्प्राप्स्यसे मोक्षसौख्यं च ॥ - सां. का. माठर. पू ५३ । २. तथा च उक्तं पञ्चशिखेन प्रमाणवाक्यम् – पञ्चविंशतितत्त्वज्ञो...। तत्त्ववा०, पु. ६१
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'हँस, खा, पी, नाच- कूद, विषयोंको भोग । किसी प्रकारकी शंका मत कर । यदि तू कपिलके मतको जानता है तो तुझे मोक्ष और सुख प्राप्त अवश्य होगा ।'
तथा
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