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प्रस्तावना
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प्रधान के लिए किया गया यत्न फलवाला होता है अतः मोक्षमार्गका उपदेश करना चाहिए क्योंकि उसी से मोक्षकी प्राप्ति होती है ।
शंका---सर्वप्रथम मोक्षका उपदेश हो करना चाहिए, मार्गका नहीं क्योंकि सब पुरुषायोंमें मोक्ष प्रधान है वही परम कल्याणरूप है ?
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समाधान नहीं, क्योंकि मोक्षके इच्छुक जिज्ञासुने मागं ही पूछा है मोक्ष नहीं। अतः उसके प्रश्न के अनुरूप ही शास्त्रकारको उत्तर देना आवश्यक है ।
शंका - पूछनेवालेने मोक्षके सम्बन्धमें जिज्ञासा क्यों नहीं की, मार्गके सम्बन्धमें ही क्यों जिज्ञासा की ? समाधान क्योंकि सभी आस्तिक मोक्षके अस्तित्वमें आस्था रखते हैं किन्तु उसके कारणोंमें विवाद है। जैसे पाटलीपुत्र जानेके इच्छुक मनुष्योंमें पाटलीपुत्रको जानेवाले मार्ग में विवाद हो सकता है, पाटलीपुत्र के विषयमें नहीं उसी तरह सब आस्तिक मोक्षको स्वीकार करके भी उसके कारणोंमें विवाद करते हैं ।
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शंका- मोक्ष स्वरूपमें भी तो ऐकमस्य नहीं है, विवाद ही है। सब वादी मोक्षका स्वरूप भिन्नभिन्न मानते हैं ?
समाधान-सभी वादी जिस किसी अवस्थाको प्राप्त करके समस्त प्रकारके कर्मवन्धनसे छुटकारा पानेको ही मोक्ष मानते हैं और यह हमें भी इष्ट है अतः मोक्षकार्य में विवाद नहीं है ।
इसी तरह धर्मसे अमृतस्वकी प्राप्ति होती है अतः धर्म अमृत है इसमें कोई विवाद नहीं है। सभी धार्मिकों की ऐसी आस्था है तथा ऊपर जो धर्मके चार अर्थ कहे हैं वे चारों ही ऐसे हैं जिनको लेकर विचारशील पुरुष धर्मको बुरा नहीं कह सकते हैं। यदि वस्तु अपने स्वभावको छोड़ दे तो क्या वह रह सकती है। यदि आप अपना स्वभाव छोड़कर शीतल हो जाये तो क्या आग रह सकती है। जितने भी पदार्थ हैं वे यदि अपने अपने असाधारण स्वभावको छोड़ दें तो क्या वे पदार्थ अस्तित्वमें हैं । प्रत्येक पदार्थका अस्तित्व अपने अपने स्वभावके ही कारण बना है ।
इसी तरह लोक मर्यादामें माता, पिता, पुत्र, पति, पत्नी आदि तथा राजा, प्रजा, स्वामी, सेवक आदि अपने अपने कर्तव्यसे च्युत हो जायें तो क्या लोक मर्यादा कायम रह सकती है। यह प्रत्येकका धर्म या कर्तव्य ही है जो संसारकी व्यवस्थाको बनाये हुए हैं। उसके अभाव में तो सर्वत्र अव्यवस्था ही फैलेगी ।
हम जो मानव प्राणी हैं जिन्होंने मनुष्य जातिमें जन्म लिया है और अपनी आयु पूरी करके अवश्य ही विदा हो जायेंगे | हम क्या जड़से भी गये गुजरे हैं । हमारा जड़ शरीर तो आगमें राख होकर यहीं वर्तमान रहेगा । और उस जड़ शरीरमें रहने वाला चैतन्य क्या शून्य में विलीन हो जायेगा ? अनेक प्रकार के fararia आविष्कर्ता, समस्त जड़ तत्त्वोंको गति प्रदान करनेवाला, सूक्ष्म से सूक्ष्म विचारका प्रवर्तक क्या इतना तुच्छ है । यह गर्भद्वारा आने वाला और आकरके अपने बुद्धि वैभव और चातुर्य द्वारा विश्व में सनसनी पैदा करनेवाला मरनेके बाद क्या पुनर्जन्म लेकर हमारे मध्य में नहीं ही आता ऐसा क्या कुछ विचार किया श्रद्धान सम्यग्दर्शन, उसीका ज्ञान उसीके आचरण रूपमें दस धर्म
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है । धर्म भी उसीकी उपज है और असलमें उसीका धर्म धर्म है । उसीका सम्यग्ज्ञान और उसीका आचरण सम्यक्चारित्र है। वही सच्चा धर्म है आते हैं । वे दस धर्म हैं - उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य, उत्तम ब्रह्मचर्य । क्रोध मत करो, घमण्ड मत करो, मायाचार मत करो, लोभ लालच मत करो, सदा हित मित सत्य वचन बोलो, अपनी इन्द्रियोंको वशमें रखो, अपनी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाओ, अपनी और दूसरोंकी भलाई के लिये अपने द्रव्यका त्याग करो, संचय वृत्ति पर अंकुश लगाओ | यह सदा ध्यानमें रखो कि जिस परिवार के मध्य में रहते हो और चोरी बेईमानी करके जो धन उपार्जन करते हो वह सब तुम्हारा नहीं है, एक दिन तुम्हें यह सब छोड़कर मृत्युके मुखमें जाना होगा। अपनी
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यस्तु सत्
इसी तरह सकते
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