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________________ १२ धर्मामृत ( अनगार) सगरस्तुरगेणकः किल दूरं हृतोऽटवीम् । खेटे: पुण्यात् प्रभूकृत्य तिलकेशों व्यवाह्यत ॥५१॥ ३ हृतः-नीतः। खेटे:-सहस्रनयनादिविद्याधरैः ॥५१॥ कोणे पूर्णाघने सहस्रनयनेनान्वीर्यमाणोऽजितं सर्वज्ञं शरणं गतः सह महाविद्यां श्रिया राक्षसीम् । दत्वा प्राग्भवपुत्रवत्सलतया भीमेन रक्षोन्वय प्राज्योऽरच्यत मेघवाहनखगः पुण्यं क्य जाति न ॥५२॥ कीर्णे-हते । पूर्णघने-सुलोचनघातिनि स्वजनके । सहस्रनयनेन–सुलोचनपुत्रेण । आनीयमाणः ९ ( अन्वीर्यमाणः ) तबलरनुद्रूयमाणः । श्रिया-नवग्रहाख्यहारलंकाऽलङ्कारोदराख्यपुरद्वयकामगाख्यविमानप्रभृतिसम्पदा सह । भीमेन-भीमनाम्ना राक्षसेन्द्रेण । रक्षोऽन्वयप्राज्य:-राक्षसवंशस्यादिपुरुषः । अरच्यत-कृतः ॥५२॥ राज्यश्रीविमुखीकृतोऽनुजहतैः कालं हरंस्त्वक्फलैः संयोगं प्रियया यशास्यहतया स्वप्नेऽप्यसंभावयन् । क्लिष्टः शोकविषाचिषा हनुमता तद्वातंयोज्जीवितो ___ रामः कोशबलेन यत्तमवधीत् तत्पुण्यविस्फूजितम् ॥५३॥ रायज्श्रीविमुखीकृतः-राज्यलक्ष्म्याः पित्रा दशरथराजेन निवर्तितः । अनुजहृतः-लक्ष्मणानीतैः । कीशबलेन-वानरसैन्येन ॥५३॥ १८ अथ धर्मस्य नरकेऽपि धोरोपसर्गनिवर्तकत्वं प्रकाशयति आगममें ऐसा सुना जाता है कि एक घोड़ा अकेले राजा सगरको हरकर दूर अटवीमें ले गया। वहाँ पुण्यके प्रभावसे सहस्रनयन आदि विद्याधरोंने उसे अपना स्वामी बनाया और विद्याधर-कन्या तिलकेशीके साथ उसका विवाह हो गया ॥५१॥ विशेषार्थ-यह कथा और आगेकी कथा पद्मपुराणके पाँचवें पर्व में आयी है। सहस्रनयनके द्वारा पूर्णघनके मारे जानेपर सहस्रनयनकी सेना पूर्णघनके पुत्र मेघवाहनके पीछे लग गयी। तब मेघवाहनने भगवान् अजितनाथ तीर्थकरके समवसरणमें शरण ली। वहाँ राक्षसराज भीमने पूर्वजन्मके पुत्र प्रेमवश नवग्रह नामक हार, लंका और अलंकारोदय नामक दो नगर और कामग नामक विमानके साथ राक्षसी महाविद्या देकर मेघवाहन विद्याधरको राक्षसवंशका आदि पुरुष बनाया । ठीक ही है पूर्वकृत पुण्य सुख देने और दुःख को मेटने रूप अपने कार्यमें कहाँ नहीं जागता, अर्थात् सर्वत्र अपना कार्य करनेमें तत्पर रहता है ॥५२॥ श्रीरामको उनके पिता दशरथने राजसिंहासनसे वंचित करके वनवास दे दिया था। वहाँ वह अपने लघुभ्राता लक्ष्मणके द्वारा लाये गये वनके फलों और वल्कलोंसे काल बिताते थे । रावणने उनकी प्रियपत्नी सीताको हर लिया था और उन्हें स्वप्नमें भी उसके साथ संयोगकी सम्भावना नहीं थी। शोकरूपी विषकी ज्वालासे सन्तप्त थे। किन्तु हनुमान्ने सीताका संवाद लाकर उन्हें उज्जीवित किया। और रामने बानर सैन्यकी सहायतासे रावणका वध किया, यह सब पुण्यका ही माहात्म्य है ॥५३॥ आगे कहते हैं कि धर्म नरकमें भी घोर उपसर्गका निवारण करता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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