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प्रथम अध्याय
अथेदानीं धर्मस्य सुखसम्पादकत्वमभिधायेदानीं दुःखनिवर्तकत्वं तस्यैव पद्यश्चतुर्दशभिः प्रपञ्चयति । तत्र तावदुर्गदेशेषु धर्मस्योपकारं दर्शयति
कान्तारे पुरुपाकसत्त्वविगलत्सत्त्वेऽम्बुधौ बम्भ्रमत्
ताम्यन्नक्रपयस्युदचिषि मरुच्चक्रोच्चरच्छोचिषि । संग्रामे निरवग्रहद्विषदुपस्कारे गिरौ दुर्गम
___ ग्रावग्रन्थिलदिङ्मुखेऽप्यशरणं धर्मो नरं रक्षति ॥४९॥ कान्तारे--अरण्ये मार्गे च दुर्गमे । पाकसत्त्वा:-क्रूरजीवाः सिंहव्याघ्रादयः । सत्त्वं मनोगुणः । सत्त्वा वा प्राणिनः । उदचिषि-अग्नी । उपस्कार:-प्रतियत्नो वैकृतं वा। ग्रन्थिलानि-निम्नोन्नतत्वं नीतानि ॥४९॥ अथ धर्मो नानादुरवस्थाप्राप्तं नरमुद्धरतीत्याह
क्षुत्क्षामं तर्षतप्तं पवनपरिधुतं वर्षशीतातपातं
रोगाघ्रातं विषातं ग्रहरगुपहतं मर्मशल्योपतप्तम् । दूराध्वानप्रभग्नं प्रियविरहबृहद्भानुदूनं सपत्न
व्यापन्नं वा पुमांसं नयति सुविहितः प्रीतिमुत्य धर्मः ॥५०॥ ग्रहरुक्-ग्रहाणां शनैश्चरादीनां ब्रह्मराक्षसादीनां वा पीडा । दूराष्वानप्रभग्नं विप्रकृष्टमार्गे खिन्नम् । १५ अध्वानशब्दोऽपि मार्गार्थोऽस्ति । यल्लक्ष्यम्-'करितुरगमनुष्यं यत्र वाध्वानदीनम् ।' बृहद्भानु:अग्निः ॥५०॥
अथोक्तार्थसमर्थनार्थं त्रिभिः श्लोकः क्रमेण सगर-तोयदवाहन-रामभद्रान् दृष्टान्तत्वेनाचष्टे- १८ पर विराम ले लेती हैं। तथा पापके जाग्रत् रहने पर विपत्तियाँ पापीकी सेवाके लिए जाग्रत् रहती हैं और पापके विराममें विपत्तियाँ भी दूर रहती हैं ॥४८॥
इस प्रकार धर्म सुखका दाता है यह बतलाकर अब चौदह पद्योंसे उसी धर्मको दुःख का दूर करनेवाला बतलाते हैं। उनमेंसे सर्वप्रथम दुर्गम देशमें धर्मका उपकार कहते हैं
___ जहाँ व्याघ्र, सिंह आदि क्रूर प्राणियोंके द्वारा अन्य प्राणियोंका संहार प्रचुरतासे किया जाता है ऐसे बीहड़ वनमें, जिसके जलमें भीषण मगरमच्छ डोलते हैं ऐसे समुद्रमें, वायुमण्डलके कारण ज्वालाओंसे दीप्त अग्निमें, शत्रुओंके निरकुंश प्रतियत्नसे युक्त युद्ध में और दुर्गम पत्थरोंसे दिशामण्डलको दुरूह बनानेवाले पर्वतपर अशरण मनुष्यकी धर्म ही रक्षा करता है ।।४९॥
आगे कहते हैं कि धर्म अनेक दुरवस्थाओंसे घिरे हुए मनुष्यका उद्धार करता है
भूखसे पीड़ित, प्याससे व्याकुल, वायुसे अत्यन्त कम्पित, वर्षा शीत घामसे दुखी, रोगोंसे आक्रान्त, विषसे त्रस्त, शनीचर आदि ग्रहोंकी पीड़ासे सताये हुए, मर्मस्थानमें लगे हुए काँटे आदिसे अत्यन्त पीड़ा अनुभव करनेवाले, बहुत दूर मार्ग चलनेसे अत्यन्त थके हुए, स्त्री पत्र बन्ध मित्र आदि प्रियजनोंके वियोगसे आगकी तरह तपे हए तथा 3 विविध आपत्तियोंमें डाले हुए मनुष्यको निष्ठापूर्वक पालन किया गया धर्म कष्टोंसे निकाल कर आनन्द प्रदान करता है ॥५०॥
उक्त अर्थका समर्थन करनेके लिए तीन श्लोकोंके द्वारा क्रमसे सगर मेघवाहन और रामभद्रको दृष्टान्तरूपसे उपस्थित करते हैं
आत
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