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30.श्रीश्राद्ध-प्रतिभ-सूत्रप्रमोघटी-3
इय सामाइय-उस्सग्गसुत्तमुच्चरिअ काउस्सग्ग-ठिओ । चिंतइ उज्जोअ-दुगं, चरित्त-अइआर-सुद्धि कए ॥ ११ ॥ विहिणा पारिय, सम्मत्त-सुद्धि-हेडं च पढइ उज्जोअं । तह सव्वलोअ अरिहंत-चेइआराहणोस्सग्गं ॥ १२ ॥ काउं उज्जोअगरं, चिंतिय पारेइ सुद्ध-सम्मत्तो । पुक्खरवरदीव, कड्डइ सुअ-सोहण-निमित्तं ॥ १३ ॥ पुण पणवीसुस्सासं, उस्सग्गं कुणइ पारए विहिणा । तो सयल-कुसल-किरिया-फलाण सिद्धाण पढइ थयं ॥ १४ ॥ अह सुअ-समिद्ध-हेउं सुअदेवीए करेइ उस्सग्गं । चिंतेइ नमोक्कारं, सुणइ व देई त तीइ थुइं ॥ १५ ॥ एवं खित्तसुरीए, उस्सग्गं कुणइ सुणइ देह थुइं । पढिऊण पंचमंगलमुवविसइ पमज्ज संडासे ॥ १६ ॥ पुव्वविहिणेव पेहिय पुतिं दाऊण वंदणं गुरुणो । 'इच्छामो अणुसर्द्धि'ति, भणिअ जाणूहितो ठाइ ॥ १७ ॥ गुरुथुइ गहणे थुइ तिण्णि वद्धमाणक्खर-स्सरो पढइ । सक्कत्थय-थवं पढिअ, कुणई पच्छित्त-उस्सग्गं ॥ १८ ॥ एवं ता देवसिअं, राइअमवि एवमेव नबरि तहिं । पढमं दाउं 'मिच्छा मि दुक्कडं' पढइ सक्कत्थयं ॥ १९ ॥ उट्ठिय करेइ विहिणा, उस्सग्गं चिंतए अ उज्जोअं । बीअं दंसण-सुद्धीए, चिंतए तत्थ एममेव ॥ २० ॥ तइए निसा अइआरं, जहक्कम चितिऊण पारेइ । सिद्धत्थयं पढित्ता, पमज्ज संडासमुवविसइ ॥ २१ ॥ पुव्वं व पुत्ति पेहण-वंदणमालोय सुत्तपढणं च । वंदण खामण-वंदण-गाहातिग-पढणतुमुग्गो ॥ २२ ॥ तत्थ य चिंतइ संजम-जोगाण न होइ जेण मे हाणी । तं पडिवज्जामि तवं, छम्मासं ता न काउमलं ॥ २३ ॥
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