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४७. सकल-तीर्थ-वन्दना
(१) भूला
(चोपाई) सकल तीर्थ वंदूं कर जोड, जिनवर-नामे मंगल कोड । पहेले स्वर्गे लाख बत्रीश, जिनवर-चैत्य नमुं निशदिश ॥१॥ बीजे लाख अट्ठावीश कह्यां, बीजे बार लाख सद्दयां । चोथे स्वर्गे अड लक्ख धार, पांचमे वंदुं लाख ज चार ॥२॥ छठे स्वर्गे सहस पचास, सातमे चालीश सहस प्रासाद । आठमे स्वर्गे छ हजार, नव दशमे वंदुं शत चार ॥३॥ अग्यार-बारमे त्रणसें सार, नव ग्रैवेयके त्रणसें अढार । पांच अनुत्तर सर्वे मली, लाख चोराशी अधिकां वली ॥४॥ सहस सत्ताणुं त्रेवीश सार, जिनवर-भवन तणो अधिकार । लांबां सो जोजन विस्तार, पचास उंचां बहोतेर धार ॥५॥ एकसो एंशी बिंब प्रमाण, सभा-सहित एक चैत्ये जाण । सो कोड बावन कोड संभाल, लाख चोराणुं सहसचौंआल ॥६॥ सातसें उपर साठ विशाल, सवि बिंब प्रणमुं त्रण काल । सात कोड ने बहोंतेर लाख, भवनपतिमां देवल भाख ॥७॥ एकसो एंशी बिंब प्रमाण, एक एक चैत्ये संख्या जाण । तेरसें कोड नेव्यासी कोड, साठ लाख वंदुं कर जोड ॥८॥ बत्रीसें ने ओगणसाठ, तिर्खालोकमां चैत्यनो पाठ । त्रण लाख एकाणुं हजार, त्रणसें वीश ते बिंब जुहार ॥९॥ व्यन्तर ज्योतिषीमां वली जेह, शाश्वता जिन वं, तेह । ऋषभ चन्द्रानन वारिषेण, वर्द्धमान नामे गुण-सेण ॥१०॥
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