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અજિત-શાંતિ-સ્તવ૦ ૨૩૫ "विशेषकेन श्रीअजित-शान्ति-स्तुतिमाह" छत्त-चामर-पडाग जूअ-जव-मंडिया, झयवर-मगर-तुरय-सिरिवच्छ सुलंछणा । दीव-समुद्द-मदर-दिसागय-सोहिया, सत्थिअ-वसह-सीह रह-चक्क-वरंकिया ॥३३॥ [३२]
-ललिययं ॥ सहाव-लट्ठा सम-प्पइट्ठा, अदोस-दुट्टा गुणेहिँ जिट्ठा । पसाय-सिट्ठा तवेण पुट्ठा, सिरिहिँ इट्टा रिसीहिँ जुट्टा ॥३४॥
[३३]
-वाणवासिआ ॥ ते तवेण धुय-सव्व-पावया, सव्वलोअ-हिय-मूल-पावया । संथुया अजिय-सति-पायया, हुन्तु मे सिव-सुहाण दायया ॥३५॥ [३४]
-अपरांतिआ ।। "द्वितीयविशेषकेनोपसंहरति" एवं तव-बल-विउलं, थुय मए अजिय-संति-जिण जुअलं । ववगय-कम्म रय-मलं, गई गयं सासयं विउलं* ॥३६॥
[३५]
-गाहा ॥ तं बहु-गुण प्पसायं, मुक्ख-सुहेण-परमेण अविसायं । नासेउ मे विसायं, कुणउ अपरिसाविअ-पसायं ॥३७॥
[३६]
-गाहा ॥ * विमलं 416.
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