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२३४. श्री श्राद्ध-प्रतिम-सूत्र प्रणोपटी1-3 "द्वितीयकलापकेन श्रीशान्तिनाथ-स्तुतिमाह-" थुय-वंदियस्सा, रिसि-गण-देव-गणेहिं । तो देव-वहुहिं, पयओ पणमियअस्सा ॥२९॥
-(मांगलिका) ॥
जस्स जगुत्तम-सासणअस्सा, भत्ति-वसागय-पिंडियआहिं । देव-वरच्छरसा-बहुआहिं, सुर-वर-रइगुण-पंडियआहिं ॥३०॥ [३०]
-भासुरयं ॥
वंस-सद्द-तति-ताल-मेलिए तिउक्खराभिराम-सद्द-माँसए, कए' [अ] सुइ-समाणणे अ सुद्ध-सज्ज-गीय-पाय-जाल
घंटिआहिं
वलय-मेहला-कलाव-नेउराभिराम-सद्द-मीसए कए अ, देव-नट्टिआहिं हाव-भाव-बिब्भम-प्पगार एहिँ नच्चिऊण
अंगहारएहिँ ॥३१॥ -नारायओ (३) ॥
वंदिया य जस्स ते सुविक्कमा कमा, तयं तिलोय-सव्व[ सत्त]-संतिकारयं । पसंत-सव्व-पाव-दोसमेस हं, नमामि सतिमुत्तमं जिणं ॥३२॥ [.३१]
-(अद्ध) नारायओ (४) ।
१. क, ख, ग वगेरे प्रतियोमा कए पछी अ पा६ नथी. छन दृष्टिये ५१ ते
વધારે છે.
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