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૩૨. અઢાર પાપસ્થાનક સૂત્ર
(૧) મૂલપાઠ
पहेले प्राणातिपात,
बीजे मृषावाद,
त्रीजे अदत्तादान,
चोथे मैथुन,
पांचमे परिग्रह,
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छट्ठे क्रोध,
सातमे मान,
आठमे माया,
नवमे लोभ,
दसमे राग, अगियारमे द्वेष,
बारमे कलह,
तेरमे अभ्याख्यान,
चौदमे पैशुन्य,
पंदरमे रति- अरति,
सोलमे पर-परिवाद,
सत्तरमे मायामृषावाद, अढारमे मिथ्यात्व - शल्य |
ए अढार पापस्थानकमांही माहरे जीवे जे कोइ पाप सेव्युं होय, सेवराव्यं होय, सेवतां प्रत्ये अनुमोद्यं होय; ते सर्वे मन, वचन, कायाए
करी मिच्छा मि दुक्कडं ॥
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