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________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा अनुसंधान कर लिया। ऐसा ही एक मानव कोकीची मीकी मोटो (Kokichi Miki Moto) ने छीपमें मोती उत्पन्न करने के प्रयोग वर्षों तक किए । ई.ल, १९०० के प्रारंभ में उसे इसका समाधान प्राप्त हुआ और उसने जापान में व्यावसायिक ढंग से कल्चर मोती बनाने की एक पद्धति का संशोधन किया और इसतरह द्वीप के दर्दनाक जीवन का प्रारंभ हुआ। मीकी मोटो ने कालु प्रकार की छोटी छीपो द्वारा मोती उत्पन्न करने की पद्धति का पेटन्ट प्राप्त कर लिया। इस प्रक्रिया में प्रारंभ में गोताखोरों द्वारा समुद्र तल में कालु प्रकार की छीपों को खोजा जाता है। फिर कारीगर ताजे जल की छोटी छीप में से निर्मित गोल गरेय लेता है ये गोल गुरिये मोती हेतु केन्द्रक (Nucleus) कहलाते हैं जिन्हें कालु प्रकार की छीप में आगत बाह्य कण के रूप में स्थापित किया जाता है। बाद में उस जीवित द्वीप का टुकड़ा काटकर दूसरी खीप में आरोपित या स्थापित किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया जीवित द्वीप को बेहोश किए बिना ही किया जाता है । यह टुकड़ा कण वर्षो तक छीप को चुभता है और पीडित करता है। यह पीड़ा कण पर आवरण चढाने हेतु प्रवाही उत्पन्न (Nacre ) करता है जो कण के आस-पास लिपट कर अनेक परतें बनाकर मोती बनाता है। ऐसे बीजवाले कल्चर मोती संपूर्ण गोल एवं अधिक चमकीले होते हैं । विशेष बात तो यह है कि मनुष्य की गलत आदतें (लत) एवं लोभ के कारण ऐसे मोती विपुल प्रमाण में उत्पादित किए जाते हैं । वर्षों तक, जब तक उस छीप को खोलकर उसमें से मोती न निकाल लिया जाये तब तक उसे चोट व पीड़ा का दुःख सहन करना पड़ता है। कभी कभी में से कुछ भी प्राप्त नहीं होता और उसके जीवन का अंत हो जाता है। सच्चे और कल्चर मोती की दर्दनाक प्रक्रिया को जानने के बात यह बात गलत सिद्ध होती है कि मोती की प्राप्ति में कोई हिंसा नहीं होती । बहुत से लोगों की मान्यता है कि कल्चर मोती मनुष्य द्वारा बनाये जाते हैं वे बनावटी या खोटे होते हैं या मशीन द्वारा बनाये जाते हैं। पर वास्तविकता अलग ही है । कल्चर मोती भी छीप में ही तैयार किए जाते हैं जो प्रतिवर्ष लाखों छीपों को मारकर दयाहीन होकर प्राप्त किए जाते हैं । तो 62 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
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