SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा १०. मोती - प्रमोदा चित्रभानु प्राचीन काल में चमकदार एवं सुन्दर प्राकृतिक मोती धनिक मालिकों की सम्पत्ति एवं गौरव की निशानी हुआ करते थे। हम जबकि अतीत के महाराजा और महारानियों के तैलचित्र देखते हैं तो उनमें उनके गले में लंबे मोतियों के हार (Neck less) तथा कलाई में मोतीजेड कंकण (Bracelets) दिखाई देते हैं- जो पुनः पुनः उनकी अमरी के परिचायक हैं । , आज अलग बात है, हम देखते हैं कि विश्व का कोई एक कौना भी बाकी नहीं है जहाँ बेर विरोध या हिंसा का वातावरण न हो। यदि हम मोती की समस्त बातों को जान लें तो हम शायद ही उसे अपनी सम्पत्ति का गौरवशाली हिस्सा मानेंगे। इतना ही नहीं जिन्हें जीवन बहुमूल्य लगता है उनके लिए तो यह दुःख और पीड़ा की निशानी हैं। दंतकथायें और परीकथाओं में मोती संबंधी कडवी वास्तविकताओं को छिपाया जाता है । वस्तुतः गहरे समुद्र में स्थित छीपों के जीवों की पीड़ा में से मोती की प्राप्ति होती है । मोती जीवित छीपों का प्राकृतिक अंश नहीं है परंतु खीप के लिए नापसंद पीड़ा व नापसंदगी में तैयार की गयी वस्तु है। जब कोई रेती का कण, किसी कवच का छोटा टुकड़ा या किसी अप्रिय परोपजीवी जन्तु अचानक खुली छीप के कवच में आ जाते हैं तब उसमें से मोती तैयार होता है । जैसे किसी मनुष्य की आँख में रजकण गिर जाये और जब तक वह निकल न जाये तब तब पीड़ा देता है वैसी ही पीड़ा छीप को मोती तैयार करने में होती है। विशेष रूप से छीप इस नवागंतुक बाह्यकण को बाहर नहीं निकाल पाती । अतः वह इस नये कण द्वारा होने वाली वेदना को कम करने के लिए उसके आसपास चाँदी जैसा चमकता केल्शयम कार्बोनेट का प्रवाही फैला देती है । सामान्यतः छीप अपने अंदर के कवच की तह बनाने में इसका उपयोग करती है। कुछ वर्षों के पश्चात् पीड़ा दायक उस कण के आसपास का वह प्रवाही (Nacre) के स्तर द्वारा मोती बन जाता है जो छीप में निहित जीव को कम पीड़ा देता है। इस प्रकार काली छपी मेघधनुष के रंगों की झिलमिलाहट वाला सप्तरंगी मोती उत्पन्न करती है। ऐसी प्राकृतिक प्रक्रिया होने से मोती अत्यंत कम संख्या में प्राप्त होते हैं। पश्चात् मनुष्य की लोभवृत्तिने मोती प्राप्त करने के लिए अनेक कृत्रिम मार्ग और पद्धतियों का 61 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy