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________________ करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा बिजनेश इन्डिया (Business India) में प्रकाशित एक विशिष्ट आलेख में आश्चर्यपूर्ण रूप से प्रस्तुति है कि भारत में प्रतिवर्ष मिठाई एवं च्यवनप्राश आदि औषधियों में चाँदी के बरख के रूप में २७५ टन अर्थात् २७५००० किलोग्राम चाँदी खाई जाती है। आजके बाजार भाव से उसका मूल्य १६५ करोड रूपये अथवा ४० करोड डॉलर है। चाँदी का बरख कैसे बनता है ? किन कारणों से उसे बनाने की प्रक्रिया एवं उसका उपयोग पापस्वरूप है ? यद्यपि बरख स्वयं प्राणिज द्रव्य नहीं है-परंतु बरख बनाने में जिन पदार्थो का उपयोग होता है वह गाय-बैल की आंतों को काटकर बनाया जाने वाला प्राणिज द्रव्य है। ये द्रव्य गाय-बैल की उन आंतों से जो कत्ल-कारखाने से प्राप्त की जाती हैं। अहमदाबाद एवं उसके आसपास के शहरों व गाँवों में गंदी गलियों में गाय-बैल की आंतके टुकडो में चाँदी के छोटे-छोटे टुकडे रखकर चांदी का बरख बनाने के लिए कारीगर उसे दिन रात कूटते रहते हैं। कत्लखानों में ही कसाई द्वारा किए गये गाय-बैल की ये आंते रक्त और माँस के साथ ही खींच लेते हैं। और इस प्रकार के उपयोग हेतु बेच देते हैं । यह एक उल्लेखनीय बात है कि ये आंते कत्लखाने की उपपैदावार नहीं हैं, परंतु जिस प्रकार माँस-चमड़ा एवं हड्डियाँ वजन करके बेची जाती हैं, उसी तरह ये आंते भी बेची जाती हैं। इन्हें ही काटकर, साफ करके बरख बनाने में प्रयुक्त किया जाता है। एक गाय-बैल की यह आंत तकरीबन ५४० ईंच लंबी और ३ ईंच गोलाई वाली होती है। उसे काटने पर ५४०" x १०” का चमड़ा बनता है। उसके ९" x १०” के कुल ६० टुकडे बनते हैं। ऐसे १७१ टुकड़ों की एक किताब (बरख रखने के पट) बनाई जाती है। पुनश्च इन आंतों की चमडी के बीच चांदी के छोटे-छोटे टुकड़े रखकर उस पुस्तिका को चमड़े से बाँधी जाती है। यहाँ पुनः उसे बाँधने में गाय-बैल के चमड़े का ही उपयोग होता है। इसके बाद कारीगर इस पुस्तिका को पूरे दिन निरंतर बडे-छोटे हथोडों से पीटते रहते है तब ३" x ५” के एकदम पतले बरख तैयार होते हैं। चमड़ा एवं गाय-बैल की आंतों की चमडी अत्यंत नरम होने से निरंतर पूरे दिन ८ घंटों तक हथोडों से जब तक वह अपेक्षित प्रमाण में बरख में रूपांतरित नहीं हो जाती तब तक पीटते रहते हैं और जब बरख तैयार हो 50 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
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