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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा
जाता है तब उसे बडी सावधानी से पतले कागज के टुकड़ों में रखकर मिठाईवालों को बेच दिया जाता है । १६० बरख का वजन लगभग १० ग्राम होता है जिसका मूल्य लगभग २०० /- रु. होता है।
१७१ टुकड़ों की पुस्तिका बनाने में तीन गाय-बैल की आंतों का उपयोग होता है और एक पुस्तक में १६० बरख तैयार होते हैं । अन्य बरख बराबर न होने से वे उपयोग में नहीं लिए जाते । इस प्रकार पूरे वर्ष में लगभग ३०० दिनों में एक पुस्तिका से ४८००० बरख तैयार होते हैं अर्थात् एक गाय-बैल की आंत से प्रतिवर्ष १६००० बरख तैयार होते हैं।
गाय-बैल की आंत की पुस्तिका पर जो चमड़ा लगाया जाता है वह गाय-बैल का या फिर बछड़े का होता है जिसमें तकरीबन २३२ चो. ईंच चमड़ों का उपयोग होता है। एक गाय-बैल का चमड़ा लगभग १८ चौ. फुट या २६०० चोईस होता है। अर्थात् एक गाय-बैल के चमड़े में से ऐसे १० पाउच तैयार होते हैं।
सामान्यतौर पर एक किलो मिठाई पर चाँदी के ४ बरख का उपयोग होता है एवं एक गाय-बैल की आंत से लगभग ४०० किलोग्राम मिठाई हेतु चाँदी के बरख तैयार होते हैं। सामान्य गणना से विदित हुआ है कि भारत के एक मध्यमवर्गीय ४ व्यक्ति के परिवार में एक वर्ष में अंदाज से १०० किलोग्राम मिठाई का उपयोग होता है।
इसप्रकार यदि औसतन ४ व्यक्तियों को मध्यमवर्गीय परिवार प्रतिवर्ष १०० किलोग्राम मिठाई का उपयोग ४० वर्षों तक करे तो बरख को बनाने में तीन गाय-बैल की आंतें एवं एक गाय-बैल के चमड़े का दसवों हिस्सा उपयोग में लिया जाता है ।
मात्र भारत में ही इस प्रकार से बरख बनाया जाता है ऐसा नहीं है । जर्मनी में छोटे-छोटे उद्योगकर्ता ऐसे ही सोने के बरख बनाते हैं जिसकी मोटाई १/१००० मिलि मीटर होती है जिसका उपयोग शोभा के लिए एवं यंत्रों में उपयुक्त इलेक्ट्रिक सरकीट के लेमीनेशन में होता है। यहूदी लोग भी सविशेष आहार में भारत की तरह ही सोने के बरख का उपयोग करते हैं ।
भारत में प्रतिवर्ष जो २७५ टन चाँदी के बरख का उपयोग होता है उसे तैयार करने हेतु प्रतिवर्ष ५१६०० गाय-बैलों की आंतों एवं १७२०० बछड़ों के चमड़े का उपयोग होता है।
हमें ऐसी वैकल्पिक पद्धति ढूँढनी चाहिए कि जिसमें गाय-बैल की आंतों जैसे हिंसक पदार्थ का उपयोग न करना पड़े और चाँदी का बरख भी
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