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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा
यदि वे रेल के डिब्बे या ट्रकों से कूदते हैं तो उनके गप्तांगो को चोड पहुँचती
है।
कुछ तो रेल के डिब्बो या ट्रको में श्वास सैंधने से मर जाते हैं। हजारों गाय-भैंसो को अन्न-जल रहित अवैध जमीन पर छोड़ दिया जाता है। यदि कभी गाय-भैंस थकावट के कारण बैठ जाये या गिर पडे तो मालिक उसकी पूँछ मरोड-मरोड कर या उसकी आँखों में तम्बाकु या मिर्च का पावडर डालकर उसे आगे चलने को मजबूर करते हैं । ऐसे क्रूर व्यवहार के विरोध में आंदोलन करने हेतु अनेक विशिष्ट व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त होता है। दो सप्ताह पूर्व ही सन् २००० के दूसरे सप्ताह में ही अन्तर्राष्ट्रीय विरोध दिन के कार्यक्रम में मैंने एवं पाउल मेकोर्टनी (Paul MCartney), ब्राईट बार्डो (Brigitee Bardot), स्टीवन सेगल (Steven Seagal) एवं नीना हेगेन (Nina Hegen) ने अपनी वेदना व्यक्त करते हुए जाहिर किया था कि आज भारत में गाय माता और उसके बच्चों का जिस प्रकार से बहिष्कार हो रहा है, उन्हें मार्ग पर भटकने को छोड़ा जा रहा है, उसकी पीडा देखकर मेरा अंतर तिलमिला उठता है।
भारतीय चर्म निकास उद्योग १६ करोड डोलर के चमड़े की आपूर्ति करता है। गेप (Gap) एवं उसके उपकारक बनाना रिपब्लिक (Banana Republic) एवं ओल्ड नेवी (Old Navy) अपने वस्त्रों में भारतीय चमड़े का उपयोग करते हैं। ब्रिटिश कंपनी क्लार्कस (Clarks) ने गत सप्ताह ही घोषणा की थी कि वह भारतीय चर्म निर्मित वस्तुओं को खरीदने पर विचार करेगा। PETA की हिटलिस्ट (सर्वोच्च प्राथमिक्ता प्राप्त) में फ्लोरशेइम (Flor Sheim), नोर्ड स्ट्रोम (Nord Strom), केज्युअल कोर्नर (Casual Corner) एवं अन्य ग्राहकों की श्रृंखला है । PETA के भारतीय आंदोलन के संयोजक जासन बेकर कहते हैं- “भारतीय चर्म उद्योग को उत्तेजन देने हेतु - यह कहा जाता है कि यदि गाय-भैंस आदि पशुओं के प्रति आचरित निर्दयता को रोकने के लिए कोई तात्कालिक उपया नहीं किये गये तो चर्मउद्योग रहित एक भी स्थान शेष नहीं बचेगा ।"
भारतीय चर्म उद्योग के आगेवानों को यह चिंता है कि यह विरोध पश्चिमी देशों में हो रही चर्म निकास को ध्वस्त कर देगा । लगभग ४००० चमड़े कमाने (उपयोग योग्य बनाने) के कारखाने एवं चमड़े से निर्मित वस्तुओं के कारखानों के निकास पर निर्भर हैं । इस उद्योग से लगभग १७ लागख लोग रोजी-रोटी पाते हैं। इनमें तीसरे भाग की तो मात्र महिलायें ही
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