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________________ करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा ५. भारत के पवित्र प्राणियों (गायों) के प्रति निर्दयता The Asia New Article By Maseeh Rahnan, New Delhi- India. _____May 29, 2000 Vol. 156 No. 21 आन्तर्राष्ट्रीय प्राणिय अधिकार हमारे पवित्र प्राणियों के जंगलीपन से भरे स्थलान्तर एवं कत्ल को उजागर करने का कार्य करते हैं। (ये) भारत पर उसके पवित्र प्राणियों पर आचरित अतिनिंद्य, निर्दयता का इलजाम (दोष) लगाते हैं। महात्मा गांधीजी मानते थे कि कोई भी देश अपने प्राणियों के प्रति कैसा व्यवहार करता है उस पर से देश के विषय में अनुमान लगाया जाता है । यदि यह मापदंड उनके ही देश भारत पर लागू किया जाये तो वह पशु घर के योग्य माना जायेगा। हिन्दु, प्रभु के सृजन पशु-पक्षियों के प्रति पूज्य भाव रखते हैं एवं गाय-भैंस को विशेष श्रद्धा से पूजते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय प्राणि अधिकार संस्था People for the Ethical Treatment of Animals (PETA) के सदस्यों के एक विभाग ने अपने अभ्यास में- भारतीय गाय-भैंस का जिस प्रकार स्थनान्तरण किया जाता है,... गैर कानूनी ढंग से कत्लखाने भेजा जाता है उसमें जो भयंकर पीड़ाजनक रोंगटे खड़े कर दें ऐसी निर्दयता की पोल खोली है। रेल्वे या ट्रकों में ठसमठस भरकर पूरे मार्ग पर खडी रखकर लंबे सफर के बाद गाय-भैंस या तो मर जाती हैं या बुरी तरह घायल होकर निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचती हैं । PETA के अध्यक्ष इन्ग्रीड न्यूकीर्क (Ingrid New Krik) का कथन है- “यह सब उन गाय-भैंसों के लिए दान्तें का नरक है।" भारत का पशुधन विश्व का सर्वाधिक विशाल लगभग ५० करोड से भी अधिक है। उसमें आधे से अधिक संख्या गाय-भैंस व बैलों की है। यदि ये पशु आय कराना बंद कर देते हैं तो अधिकांशतः उसके मालिक, या इन पशुओं पर ही जीवन निर्वाह करने वाले किसान उन्हें कत्लखाने भेज देते हैं। गायभैंस की कत्ल को भारत में मात्र दो राज्यों में कानूनन मानी गई है वे राज्य है- (१) मार्क्सवादी शासित राज्य पूर्व में पश्चिम बंगाल और (२) दक्षिण में केराला । वास्तव में पशुओं को राज्य के बाहर कत्लखाने के लिए भेजना गैरकानूनी अपराध हैं, फिर भी व्यापारी रिश्वत देकर किसी भी मार्ग से गायभैंसो को रेल्वे या ट्रकों द्वारा बंगाल-केरल में भेजते हैं। ये प्राणी साथ के अन्य प्राणियों को (स्थानाभाव के कारण) सींग मार-मारकर घायल कर देते हैं। 40 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
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