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________________ करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा का उपयोग करें या न करें फिर भी बूढापे में उसकी हड्डियां पतली और कमजोर हो ही जाती हैं। वे वृद्ध लोग जो प्राणिज्य (डेयरी की) उत्पादन एवं माँस का उपयोग करते हैं उनमें यह रोग अधिक प्रमाण में होता है इसका कारण जैसा कि ऊपर बताया गया है तदानुसार अधिक प्राणिज्य प्रोटीन के कारण हड्डियों में घटते हुए कैल्सियम के कारण हैं । स्त्रीयों में मेनोपोज की पूर्वावस्था में ओस्टीयो पोरोसीस नामक रोग होने की संभावना अधिक होती है। वृद्धावस्था में दूध घी हड्डियों के रक्षण करने में समर्थ नहीं होता। संक्षिप्त में शाकाहारी हरी सब्जियों एवं अन्य शाकाहारी पदार्थों में से आवश्यक प्रमाण में कैल्सियम और प्रोटीन प्राप्त करते हैं। जिससे प्राकृतिक रूप से उनका वजन बना रहता है। ऐसे लोगों को प्रोटीन और कैल्सियम के कारण उत्पन्न ओस्टीयो पोरोसीसस नामक रोग तथा किडनी का काम बंद करने संबंधी रोगों की सम्भावना अत्यंत कम मात्रा में होती है। कॉलेस्टेरोल (संतृप्त चर्बी) प्राणी और मनुष्य के यकृत (Liver) ही कॉलेस्टेरोल उत्पन्न कर सकते हैं अर्थात् कॉलेस्टेरोल मात्र प्राणिज्य पदार्थ जैसे कि माँस, दूध, पनीर और अन्य डेयरी उत्पादनों में ही प्राप्त होते हैं । शुद्ध शाकाहारी फल, शाकभाजी, अनाज और दलहन में कॉलेस्टेरोल बिलकुल नहीं होते। कॉलेस्टेरोल मोम जैसा पदार्थ है जो हमारे शरीर में होर्मोन्स एवं अन्य तत्व तैयार करता है सामान्यतः अपना यकृत (Liver) ही आवश्यक्तानुसार स्वयं कॉलेस्टेरोल उत्पन्न कर लेता है लेकिन मनुष्य जब डेयरी के उत्पादन और माँसाहार का उपयोग करता है तब उसमें कॉलेस्टेरोल भी शरीर में आते हैं इससे शरीर में अधिक रूप में कॉलेस्टेरोल प्रवेश करते हैं जो नुकसानकारक हैं क्यों कि वे हमारी रक्तवाहिनी (धमनी और शिरा) में इकट्टे होते हैं, अंत में धमनी में गांठी के रूप में फैल जाते हैं परिणामतः हृदयरोग का आक्रमण होता है। जो सम्पूर्ण शुद्ध शाकाहारी (Vegan) हैं उनका यकृत (Liver) आवश्यक्ता से अधिक कॉलेस्टेरोल उत्पन्न नहीं करता है। इससे उनमें कॉलेस्टेरोल का प्रमाण ऊँचा नहीं रहता। संतृप्त और असंतृप्त चर्बीः संतृप्त चर्बी शरीर की सामान्य आवश्यक्ता से अधिक कॉलेस्टेरोल उत्पन्न करने के लिए हमारे यकृत (Liver) को प्रेरित करती है। इससे हमारा यकृत आवश्यक्ता से अधिक कॉलेस्टेरोल उत्पन्न करता है और वह हमारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
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