SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा डेयरी में बनी हुई केक, बिस्कीट एवं अन्य अनेक वस्तुओं का त्याग करना पडेगा। इस समय मुझे अपनी पुत्री शिल्पा जो कुछ दिन पूर्व ही पूर्ण शाकाहारी (Vege.) बनी थी उसके शब्दों का स्मरण होने लगाः “पापा ! गाय-भैंस का दूध उसके बछड़ों के लिए ही होता है- वह मनुष्यों के लिए नहीं है। अन्य कोई भी प्राणि अन्य प्राणियों के दूध का उपयोग नहीं करता। अन्य प्राणियों को कष्ट देकर या उनका शोषण करके उनके दूध का उपयोग करने का हमें कोई अधिकार नहीं है। तदुपरांत दूध और उससे बने पदार्थ हमारे जीवन की तंदुरूस्ती के लिए आवश्यक नहीं है।" अब यह कहना आवश्यक नहीं कि डेयरी फार्म की मुलाकात ने मुझे तात्कालिक संपूर्ण शाकाहारी बना दिया। भारतीय डेयरी: नवम्बर १९९५ में भारत में मुम्बई के पास एक डेयरी फार्म की मैंने मुलाकात ली । वहाँ एव वास्तविक्ता यह देखी कि औसतन सभी बातें अमरीकन डेयरी से भी अधिक खराब थीं। क्योंकि यहाँ नियंत्रण कानून बहुत ही कममात्रा में है। मैंने १९९७ तथा १९९८ में भारत की मुलाकात के दौरान भारतीय डेयरी प्रक्रिया की अधिक जानकारी प्राप्त की। भारत में अधिकांश डेयरियों के पास अपनी गाय-भैंस नहीं है। स्थानिक गोपालक, जिनके पास निजी गाय-भैंस हैं वे ही डेयरी को दूध की आपूर्ति करते हैं। स्थानिक गोपालकों के पास १० से ५० तक गाय-भैंस होती हैं। यद्यपि वे गाय-भैंस को दुहने में भी मशीन का उपयोग नहीं करते । परंतु ये स्थानिक गोपालक डेयरी को निरंतर दूध की आपूर्ति करते रहें- अतः गायभैंस को निरंतर सगर्भा रखते है। इससे गाय-भैंस प्रति वर्ष संतति को जन्म देती है। ये स्थानिक गोपालक भी प्रति वर्ष जन्म लेने वाले बछड़ो या पाड़ो का पालन नहीं करते है। वे ७० से ८० प्रतिशत इन शिशु पशुओं को माँस उद्योग वाले (कसाइयों) को बेच देते हैं। जहाँ तीन या चार वर्ष में ही उनको कत्ल कर दिया जाता है । गैरकानूनी चलने वाले कत्लखानों में तो छह महिनों में ही उनकी कत्ल कर दी जाती है। चार-पाँच प्रसूति के पश्चात गायभैंसो के स्थान पर नई गाय-भैंस ले आते हैं और इनको कसाईखाने में बेच देते है जहाँ सस्ते माँस हेतु उनका कत्ल कर दिया जाता है। मात्र पांच प्रतिशत गाय-भैंस ही पांजरापोल (पशुरक्षण केन्द्र) में भेजी जाती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy