Book Title: Vasudhara Dharni ane Vaso nu Vasudhara Mandir
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुधारा धारणी अने 'वसो'नुं वसुधारामंदिर -विजयशीलचन्द्रसूरि 'वसुधारा' ए हजारो वर्षो थया अत्यंत लोकप्रिय अने सर्वस्वीकृत एक बाबत छे. वैदिक, जैन अने बौद्ध ए त्रणे मूळ भारतीय धाराओ वसुधाराने एक के बीजा स्वरूपे स्वीकारे छे, बल्के दरेक धारा, ‘एर्नु उद्गमस्थान पोताने त्यां ज छे' एवं पण माने छे, अने ए ज आनी व्यापक लोकप्रियतानी निशानी छे. __ वैदिको आनां मूळ अथर्ववेदमां जुए छे. अथर्ववेद-प्रसिद्ध लक्ष्मी अने कुबेर ते ज वसुधारा अने तेनो (बौद्ध) सहचर 'जम्भल' छे. वेदमां तेना माटे 'वसुधानी' अने “वसुदा' जेवा शब्दो प्रयोजायेला जोवा मळे छे. यजुर्वेदमां सातमा--आठमा अध्यायमा, वृष्टि अने अन्नप्राप्ति माटे करवाना एक हवन, नाम 'वसुधारा' छे, एम पण जाणवा मळे छे, जे आजे पण थतुं होवानुं जोवा- जाणवामां आवे छे. उत्तराखण्डना कुमाऊ प्रदेशमां, कहे छे के, अत्यारे पण अमुक विधि-विधान-प्रसंगे वसुधारा प्रवाहित करवामां आवे छे.१ गढवालमां पण विवाहादि प्रसंगे वसुधारानुं वेदोक्त विधान प्रचलित छे. बौद्धौ-अनुसार रत्नसंभव बुद्ध के अक्षोभ्य बुद्ध थकी उद्भव पामेली देवी ते ज वसुधारा छे. वज्रयान संप्रदाय एनी उत्पत्ति पंचध्यानी बुद्धो थकी थयानुं माने छे. बौद्ध धर्मना साहित्यमां वसुधारा धारणी, आर्यश्री वसुधारा नाम अष्टोत्तर शतक, वसुंधरादेवी व्रत, सुचन्द्रावदान, वसुधारा धारणी कथा, आर्य वसुधारानाम धारणी, वसुधारा साधना, वसुधारा धारण्युपदेश, वसुधाराधारणीकल्प, वसुश्रीकल्प जेवी अनेक, के पछी अनेक नामे ओळखाती कोईएक- कृतिओ उपलब्ध छे, जे बौद्ध परंपरामां प्रचलित कर्मकांडमां आ धारणी, विशेष के खूब लोकप्रिय हशे तेवू सूचवी जाय छे. जैन परंपरामां कर्मकांडना प्रकार तरीके 'वसुधारा-धारणी' बहु पाछळना समयमा प्रवेशी होय तेम जणाय छे. जैन लेखको द्वारा लखाएली अने जैन भंडारोमा सचवाएली आ धारणीनी हस्तप्रतिओ १५मा शतक पूर्वनी Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104 July-2002 प्रायः प्राप्य नथी, तेथी लागे छे के १५मा शतक आसपास जैन कर्मकांडोमां आ वस्तुने प्रवेश मळ्यो होवो जोईए. अलबत्त, बौद्ध परंपरामां तो आ धारणीनो प्रचार विक्रमनी त्रीजी सदीमां हशे तेम लागे छे. जैनोए तेनुं ज अनुसरण कर्यु छे. परंतु 'वसुधारा'नी विभावना तो जैन धारामां पण बहु पुराणी छे. जैन तीर्थंकरो तथा विशिष्ट तपस्वी मुनिओ ज्यारे तपनां पारणे आहार ग्रहण करे, त्यारे ते गृहस्थना आंगणे पांच दिव्य प्रगटे छे, तेमां वसुधारा पण थती होवानी वात जैन आगमो वगेरेमां प्रसिद्ध छे. तीर्थंकरोना च्यवन (अवतरण) पछी तथा जन्म समये पण आवी वसुधारा थती होय तेनुं वर्णन पण मळे ज छे. भगवती-विवाहपन्नत्तीसूत्र नामे पांचमा अंग-आगमसूत्रना १५मा शतकमा 'वसुधारा वुढा' एवो; तो कल्पसूत्रमा 'वसुहारवासं च वासिंसु' एवो पाठ उपलब्ध छे. समवायांगसूत्र तथा सूत्रकृतांग अने ज्ञाताधर्मकथांग वगेरे सूत्रोमां पण आवा उल्लेखो मळी रहे छे. तो हरिभद्रसूरिनी 'समराइच्चकहा'मा 'न सव्वहा मंदपुण्णाणं गेहे वसुहाराओ पडंति' एवो पाठ जोवा मळे छे. आ तमाम उल्लेखोगत 'वसुधारा'नो संबंध तप वगेरेना प्रभावने कारणे दिव्य शक्तिओ द्वारा थती धननी वृष्टि साथे समजवानो छे. एवी कल्पना थाय के पहेलां तो तपश्चर्यानो तीव्र प्रभाव ज देवोने वसुधारा करवानी प्रेरणा आपतो हशे. पण कालांतरे-समयना वीतवा साथे तप करवानी वृत्ति तथा तेवा तपस्वीमां होवी जोईती निरीहतानो हास थतो गयो, अने 'मारी के मारा भक्तनी पासे धन होवु जरूरी छे' तेवी स्पृहा वधती गई, तेथी आवां मांत्रिक कर्मकांड अने ते माटेना पाठ तथा आम्नायोनुं सर्जन थयुं हणे. ए मंत्र तथा अनुष्ठानथी आकर्षाता देवो वसुधारा वरसावता हशे के भक्त- उपासकने धनसंपत्ति आपतां हशे. एक समय एवो हतो के वैदिक, बौद्ध, जैन ए त्रणे धाराओ भारत वर्षमां महदंशे सर्वत्र सहअस्तित्व धरावती हती; अने वळी ते धाराओ वच्चे मुठभेडो पण थया करती, तो आवी बाबतोर्नु आदान-प्रदान पण थतुं रहेतुं. आवा कोई मोके वसुधारा धारणीने जैनोए अपनावी होय तो बनवाजोग छे. जोके आनो कोई आधारपुरावो न मळे. डो. बनारसीदास जैने नोंध्यु छ के Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-२० 105 "जैनलोग वीतराग द्वारा प्रतिपादित निवृत्तिमार्ग पर चलनेवाले भिक्षुसमुदाय के उपासक है। ऐसी दशा में मंत्र, तंत्र, यंत्र आदि में उनको रुचि और श्रद्धा नहीं हो सकती । यूं तो प्राचीन जैन साहित्य में मंत्र-तंत्र के उल्लेख विद्यमान है, परंतु स्वार्थसिद्धि के लिये उनका प्रयोग निषिद्ध है। ऐसा प्रतीत होता है कि वैदिक और बौद्ध मंत्र से प्रभावित होकर जैनोंने भी इनको अपनाया और अपने मन्तव्योंका रंग देकर पद्मावती कल्प, नमस्कार कल्प, शक्रस्तव कल्प, सूरिमंत्र कल्प आदिकी रचना की । प्रतीत होता है कि जैन धर्म में धारणी-पूजाकी प्रवृत्ति करानेवाले यति लोग थे।"५ एटलुं तो स्पष्ट छे के 'वसुधारा धारणी' ए नामर्नु मांत्रिक अनुष्ठान, तेना पाठ साथे, बौद्धोमांथी जैनोए अपनावेलुं छे. हजी हमणां सुधी, क्यांक कांक तो अत्यारे पण, आ अनुष्ठान दीवाली वगेरे तहेवारोमां जैनो करतां रह्या छे-करे छे. तेनी विधिनी पद्धति-आम्नाय तथा मंत्र-यंत्र- पाठ वगेरे लिखित तथा मुद्रित स्वरूपमा उपलब्ध पण छे ज. वसुधारा-धारणीनी प्राप्त वाचनामां निर्देश्युं छे ते मुजब, गरीब थई गएला सुचन्द्र नामना श्रावकने भगवान बुद्धे आ धारणी आपेली, जेना प्रभावथी ते पुनः धनिक थयेलो. आनो अर्थ एके निर्धन जनो धनप्राप्ति माटे आ वसुधारानुं अनुष्ठान करता अने करे छे. बर्लिन युनिवर्सिटीना प्राध्यापक स्व. डॉ. चन्द्रभाल त्रिपाठीए एक प्रत्यक्ष वातचीतमां कहेलुं के वसुधारा धारणीनी त्रण वाचनाओ मळे छे. एक, मूळ बौद्ध वाचना, जे एकदम संक्षिप्त वाचना छे. बे, भारतीय वाचना, जे प्रथमनी तुलनामां विस्तृत, जेने जैन वाचना तरीके पण ओळखावी शकाय; केम के जैनोए ते वाचना स्वीकारी होवानु, जैन भंडारोमां मळती सेंकडो पोथीओ परथी सिद्ध थाय छे. त्रीजी नेपाली-नेपालप्रसिद्ध वाचना छे, जे घणी विस्तृत छे. डॉ. त्रिपाठी पासे आ त्रणे वाचनाओ हती, अने ते विषे तेओ संशोधन पण करी रह्या हता, तेम तेमणे ज कहेलु, तेटलुं प्रसंगोपात्त नोंधी दउं. बाकी बीजा नंबरनी वाचनानुं संपादन डॉ. पद्मनाभ जैनीए कर्यु छे, जे प्रकाशित पण छे. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106 July-2002 वसुधारा धारणी--विधान साथे संबंध धरावनारी एक ऐतिहासिक बाबत विशे पण अहीं विवरण करतुं छे. गुजरातमां चरोतर प्रदेशमां खेडा अने मातर नामना गामोनी समीपे वसो नामनु गाम छे. आ गाममा वसोधारा अथवा वसुंधरा मातानु मंदिर छे, तेमां वसुंधरा के वसो मातानी स्थापना होवाना उल्लेखो मळे छे. जो के तेनो संबंध वसुधारा जोडे होवा- कोईए नोंध्युं नथी. पहेलां आ अंगेना उपलब्ध आधारो जोईए : ___ 'चरोतर सर्व संग्रह' नामे, चरोत्तर-प्रदेशनो सामान्य परिचय आपतो एक ग्रंथ बे खंडोमां मुद्रित छे. तेमां छपायेली विगतो प्रमाणे- "संवत १२२४मां वाच्छा पटेले वसो गाम वसावेलुं. वहीवंचाना चोपडामां 'वाच्छा' ना नामे 'वसो' वस्यानी नोंध छे. ते वखते वसुंधरा मातानुं त्यां मंदिर हतुं, अने ते खेडाना राजा मोरध्वजनां कुलदेवी गणातां." ग्रंथमां विशेष नोंध आ शब्दोमां छे : "आ ज प्रमाणे 'वसंधरा' मातानं स्थान पण वसोनी मध्ये 'वसोधारा' माता तरीके आजे पण मोजुद छे. एटलं ज नहि, पण समस्त गामना कुळदेवी तरीके- तेनुं स्थान अने प्रतिष्ठा आजे पण सचवाई रह्यां छे." आम छतां आ वसुधरा के वसोधारा देवी कया छे, अथवा 'वसुधारा' साथे तेमने कोई संबंध छे के केम, ते विषे आ ग्रंथमां कोई निर्देश नथी मळतो. गुजरातना एक संशोधक श्रीहरिलाल गौदानी वसुंधरादेवीनो अर्थ भू एटले के पृथ्वी देवी करे छे. तेमना हिसाबे वच्छा पटेले वसो वसाव्युं ते पहेलो पण आ स्थळे वसुंधरा मातानुं मंदिर हतुं. बल्के वसोथीये पुराणुं नगर सिंहानगर, जे पांचमी सदीनुं होवानुं श्रीगौदानी जणावे छे, अने आजे सिंहोलडी नामे गामडारूपे अस्तित्व धरावे छे, त्यांना राजा मोरध्वजनां वसुंधरादेवी कुळदेवी हता तेम कहेवाय छे. श्रीगौदानी-अनुसार, हालतुं वसुंधरा माता मंदिर, पुरातन ध्वस्त मंदिरना स्थाने बांधवामां आवेलु ३०० वर्ष (आशरे) जूनुं छे, तेमज असल देवी प्रतिमानो का तो ध्वंस थयो होय, कां तो ते दटाई गई होय, पण अत्यारे ते स्थाने महिषासुरमर्दिनी देवीनी प्रतिमा स्थापित छे. श्री गौदानी 'वसुंधरा'नो पृथ्वी अर्थ करीने ज चाल्या Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - २० 107 छे, अने तेनी कोई स्वतंत्र प्रतिमा गुजरातमांथी हजी मळी नथी आवी, तेम नोंधीने, तेनुं वर्णन मानसार, विष्णुधर्मोत्तर वगेरे ग्रंथोमां होवानुं सूचन आपे 'छे. परंतु 'वसो'ने अने 'वसुंधरा'ने 'वसुधारा' साधे पण संबंध होई शके ते विशे तेओ अजाण ज लागे छे. हवे आ अंगेना नवा उपलब्ध संदर्भ विषे वात करुं. कविबहादुर पंडित श्रीदीपविजयजी नामक प्रसिद्ध जैन मुनि १९ - २०मा सैकामां थई गया. तेओ कवि हता, विद्वान हता. तेमणे रचेली गेय रचनाओ आजे पण जैन संघ होंशे होंशे गाय छे. आ कविए २०मा सैकानां आरंभिक वर्षोमां वसो - स्थित 'वसुधारा' मातानां दर्शन, त्यां आराधना, तेमज ते देवीनं चित्रांकनकरेल होघानुं तेओ पोते निर्देशे छे. ते उपरथी केटलाक निष्कर्षो निःसंदेह प्राप्त थाय छे : १. 'वसो'ना मंदिरना देवी वसोमाता, वसोधारा, वसुंधरा एवा गमे ते नामे ओळखातां होय तो पण ते वास्तवमां 'वसुधारा' देवी ज हतां. २. श्रीदीपविजयजीए ते देवीसन्मुख साधना करी छे तथा तेनुं चित्र पण आलेख्यं छे, तेथी तेओ त्यां गया ते समये त्यां महिषासुरमर्दिनी न होतां वसुंधरा / वसुधारानी ज प्रतिमा हती ते स्पष्ट थाय छे. ३. श्रीदीपविजयजीए " वसुधारा मंडल १, वसुधारादेवी चित्र २, वसुधाराविधान ३, एम ३ वानांनो उद्धार पोते कर्यानुं नोंध्युं छे, तेथी तेओ आना साधक हता तेवुं तेमज तेमना समयमां आ साधना खूब प्रचारमां हशे तेवुं फलित थाय छे. पण ते बधांथी वधु, एक अटकळ एवी करवी प्राप्त थाय छे के मध्यकालमा, के कदाच तेथीये जूना काळमां, वसो के सिंहानगर- ए बौद्ध परंपरानुं केन्द्र रह्युं हशे अने बौद्ध तांत्रिको द्वारा आ वसुधारा- मंदिर निर्माण पाम्युं हशे. पुरातत्त्व - गवेषको तथा इतिहासविदो आ विषयमां सूक्ष्म गवेषणा करे अने प्राचीन मंदिर तथा मूल देवी- प्रतिमानी शोध करवाना प्रयत्न करे, तो जरूर कांईक नवो प्रकाश सांपडे. श्रीदीपविजयजीए वसुधारा देवीनो चित्रपट आलेख्यो छे, ते आ अंकमां ज ( मुखपृष्ठ पर ) छापवामां आव्यो छे. ते चित्रमां तेमणे स्वहस्ते लखेली नोंध आम पंचाय छे : Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108 July-2002 ___ "संवत् 1902 वर्षे तपागच्छे भ. श्रीविजयधनेस्वरसृरीराज्ये पं. दीपविजयकविराजेन पूर्वपरंपरागत उद्धरित वसुधारा मंडल 1 वसुधारादेवी चित्र 2 वसुधाराविधान 3. श्रीगुजरातदेस चडोत्तर मध्यभागे / श्रीवसोग्रामे / भक्तजनकारापित महान देवल / तन्मध्यनिवासीनी सकल जनइच्छित पूरनी वसुधारादेवी चित्रं / श्रेयः / हिरण्यसुवर्णवृष्टिवरसनी सुचंद्रगृहपतीसंकटउद्धरनी देवी चित्रं / श्रेयः / मंडलविधान पुस्तकसे करना / " ___ आ प्रमाणभूत लखाण एटलुं स्पष्ट छ के वसुंधरा एटले पृथ्वी-एवी कल्पना निराधार ठर के. __ पादटीपो : 1. पूर्णिमा पाण्डे, वसुधारा: वेद से लोक तक की यात्रा. नवनीत (हिन्दी) डाइजेस्ट, जुलाई 19.85 ए ज. पद्मनाभ एस. जी. वसुधारा धारणी, श्री महावीर जैन विद्यालय गोल्डन ज्युबीली वॉल्युम. डा. बनारसीदास जैन, जनांमें धारणी - पूजा. श्रीजैनसत्यप्रकाश - वर्ष 10, अंक 8, पृ. 163.64. एज. महावीर जैन विद्यालय गोल्डन ज्युबीली वोल्युम, इंग्लिश सेक्शन, पृ. 37 'चरोतर सर्वसंग्रह' भाग 1-2 8. डो. हरिलाल आर. गौदानी, 'महागुजरातनां शिल्प अने स्थापत्य' अमदावाद, ई. 11.1.2. मां 'वसुधग मातानुं मंदिर' . लेख.