________________
अनुसंधान-२०
105 "जैनलोग वीतराग द्वारा प्रतिपादित निवृत्तिमार्ग पर चलनेवाले भिक्षुसमुदाय के उपासक है। ऐसी दशा में मंत्र, तंत्र, यंत्र आदि में उनको रुचि और श्रद्धा नहीं हो सकती । यूं तो प्राचीन जैन साहित्य में मंत्र-तंत्र के उल्लेख विद्यमान है, परंतु स्वार्थसिद्धि के लिये उनका प्रयोग निषिद्ध है। ऐसा प्रतीत होता है कि वैदिक और बौद्ध मंत्र से प्रभावित होकर जैनोंने भी इनको अपनाया और अपने मन्तव्योंका रंग देकर पद्मावती कल्प, नमस्कार कल्प, शक्रस्तव कल्प, सूरिमंत्र कल्प आदिकी रचना की । प्रतीत होता है कि जैन धर्म में धारणी-पूजाकी प्रवृत्ति करानेवाले यति लोग थे।"५
एटलुं तो स्पष्ट छे के 'वसुधारा धारणी' ए नामर्नु मांत्रिक अनुष्ठान, तेना पाठ साथे, बौद्धोमांथी जैनोए अपनावेलुं छे. हजी हमणां सुधी, क्यांक कांक तो अत्यारे पण, आ अनुष्ठान दीवाली वगेरे तहेवारोमां जैनो करतां रह्या छे-करे छे. तेनी विधिनी पद्धति-आम्नाय तथा मंत्र-यंत्र- पाठ वगेरे लिखित तथा मुद्रित स्वरूपमा उपलब्ध पण छे ज.
वसुधारा-धारणीनी प्राप्त वाचनामां निर्देश्युं छे ते मुजब, गरीब थई गएला सुचन्द्र नामना श्रावकने भगवान बुद्धे आ धारणी आपेली, जेना प्रभावथी ते पुनः धनिक थयेलो. आनो अर्थ एके निर्धन जनो धनप्राप्ति माटे आ वसुधारानुं अनुष्ठान करता अने करे छे.
बर्लिन युनिवर्सिटीना प्राध्यापक स्व. डॉ. चन्द्रभाल त्रिपाठीए एक प्रत्यक्ष वातचीतमां कहेलुं के वसुधारा धारणीनी त्रण वाचनाओ मळे छे. एक, मूळ बौद्ध वाचना, जे एकदम संक्षिप्त वाचना छे. बे, भारतीय वाचना, जे प्रथमनी तुलनामां विस्तृत, जेने जैन वाचना तरीके पण ओळखावी शकाय; केम के जैनोए ते वाचना स्वीकारी होवानु, जैन भंडारोमां मळती सेंकडो पोथीओ परथी सिद्ध थाय छे. त्रीजी नेपाली-नेपालप्रसिद्ध वाचना छे, जे घणी विस्तृत छे.
डॉ. त्रिपाठी पासे आ त्रणे वाचनाओ हती, अने ते विषे तेओ संशोधन पण करी रह्या हता, तेम तेमणे ज कहेलु, तेटलुं प्रसंगोपात्त नोंधी दउं. बाकी बीजा नंबरनी वाचनानुं संपादन डॉ. पद्मनाभ जैनीए कर्यु छे, जे प्रकाशित पण छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org