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उर्दू भाषाबद्ध त्रण कृतिओ
संपा. मुनि भुवनचन्द्र
जैन भक्तिसाहित्य सागर जेवुं विशाल छे । छंद, स्तोत्र, स्तुति, स्तवन वगेरे प्रकारोनी अगणित कृतिओ विविध भाषामां रचायेली मळे छे । मुस्लिम राज्यकाल दरम्यान पर्शियन तथा अरबी भाषाओ भारतमा प्रसार पामी अने हिंदी भाषा साथेना तेमना मिश्रणमांथी उर्दू भाषा जन्मी । ए उर्दू भाषामां रचना करवामां पण जैन श्रमणोए संकोच नथी राख्यो । वस्तुतः लोकप्रिय अने लोकप्रचलित होय एवा कोई पण माध्यमनो धर्मना क्षेत्रे उपयोग श्रमण संघमां प्राचीन कालथी थतो आव्यो छे ।
उर्दू भाषामा रचायेल स्तवननां त्रण प्रकीर्ण पत्र शामलानी पोल अमदावादना पार्श्वचन्द्रगच्छना ह.लि. ज्ञानभंडारमां थी प्राप्त थया छे । आ रचनाओने यथामति संकलित करी अहीं रजू करी छे ।
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प्रथम बे कृतिओना रचयिता यति मोहनविजय छे, जे 'चंदराजानो रास' आदि कृतिओना कर्ता तरीके सुप्रसिद्ध छे ते ज होवा संभव छे । बने स्तवनोमां रचनासाम्य जणाइ आवे छे। बने स्तवन साथै बालावबोधनीं ढबे गुजरातीमां अर्थ अपायो छे । स्तवनना शब्दोने संकेतचिह्नो वडे छुटा पाडी दर्शाव्या छे । बीजी कृतिना अंते 'पारसीमध्ये' एम लख्युं छे । अहीं पारसी एटले फारसी - पर्शियन एम समजवानुं छे । बने पानां अलग हाथे लखायेलां छे । लेखनवर्ष कोईमां ये नथी । बने पत्र दोढसो वर्ष जूनां होवानुं अनुमान थई शके छे ।
त्रीजा स्तवनना रचयिता नयप्रमोद छे । खरतरगच्छना आ कविनी सं. १७१३ नो कृति जै. गु. क. मां नोंधाई छे ।
प्रथम बे कृतिओ उर्दूभाषामां निबद्ध छे, ज्यारे त्रीजी कृतिमां उर्दू भाषाना शब्दोनो उपयोग मात्र थयो छे । उर्दूभाषानो पर्याप्त परिचय न होवा छतां, शब्दकोशनी सहायथी यथाशक्य पाठशुद्धि करी छे, बाकी जेम वंचायुं तेम उतार्यु छे (अमुक स्थलो हजी अस्पष्ट अशुद्ध रहे छे । विद्वानो विशेष परिमार्जन करे एवी अपेक्षा छे ।
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उर्दू शब्दोना अर्थ त्रणे कृतिओमां प्रयुक्त उर्दू शब्दोमांथी जेटला स्पष्ट समजाया तेटला शब्दोना अर्थ तथा वर्तमान उच्चार अहीं नोंध्या छ । प्रचलित अथवा शुद्ध उच्चार कौंसमां आप्या छ ।
मन - हुं, मारु कादर (कादिर) - सर्व शक्तिमान् फरजन (फर्जन्द) - पुत्र दर् - मां, अंदर तोसफ् (तौसिफ ?) गुणगान लोत्फ् (लुत्फ्) कृपा सबोरोज (शब-ओ-रोज)- रातदिवस मु(गो)- जो के, यद्यपि चस्म (चश्म)-चक्षु यायद् (जायज् ?) - उचित तल्ब (तलब) - इच्छा रायब-राहब (राहिब) - साधु गेति (गेती) - दुनिया गिरीयम (गिरियां) - रुदन रुई (रू -रूए) - मुख, आकृति इनायत - भेट, कृपादृष्टि बिंदगी (बंदगी) -- भक्ति तलबीदम (तलब-ए-दम ?) - अंतरनी इच्छा बुद (बुत) – देव, मूर्ति खुदावत (खुदाबंद) - मालिक तसरिक (तशरीफ) - पधरामणी दामन् - छेडो अकबर - महान अलाही (इलाही) - ईश्वर
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बुजरक (बुजुर्ग) - वृद्ध, वडील फजर् (फज्र) - प्रभात नेकबखत (नेकबख्त) - भाग्यवान खुसबो (खुश्बू) - सुगंध इलम (इल्म) ज्ञान, शास्त्र सईद - भाग्यवान खजमतिगार (खिजमतगार) - सेवक मादर- माता पिदर - पिता बिन् - पुत्र बिना - आधार खलक (खल्क) लोको, जगत बंदा - भक्त, सेवक चस्मरोसन् (चश्म रोशन) - आंखोने आनंददायक पेस (पेश) - आगल कसे - कोई अलेला (अलील) - बीमार बक्स (बख्श) - क्षमा करवी गैर - खोटं, अयोग्य दरगह (दरगाह) - दरबार, समाधिस्थान
किसके आगे मैं जाउं, हे परमेश्वर । पेस करो मन चरयम कादर । चरण तुम्हारा छोडीने पाय तोरा बुगजारि बे जारि बे; दुर्गतिना जोर मटाडें एक सासमां - तुमे एहवा छो दुरगत जोर हरें दम कुरद कोइ गुनें हुं तो भर्यो छु.
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________________ [2] गोरी हम जाहेरी हम जाहेरी (बे) 1 / ते माटे अरजे आव्यो छु. अरजि आहिबो आहिबो हे गोडि पास / गरीब निवाज ! गोडि पास गरीबनिवाज ! जगत के आधार जुगदाईहारा बो ईहारा बो; हमकु दरसन दिया दिदम् दे हम रोज वामाना पुत्र ! अरजी सुणो में कहता हूं / फरजन वामेरा वामेरा, गो० टेक / हाजर हूं में तेरी बंदगी मे, पार कर परवरदिगार ! हाजर हम् दर् बंदगी तोसफ् केइ रातदिन जाता है, उस वास्ते केहता हूं के सबोरोज गुदस्ती बे गुदस्ती बे; महेरबानी कर नीजरभर देषो, अछि तरें सें, लोत्फ कुन् चस्म मून् यायद् (जायज् ?) तेरेसें मेरा दिल मस्त हुवा है देष कर, दिल मन् हस्तम्, अस्ति बे अस्ति बे, अ० गो० 2 मेरि मतलब, में पात्र एता मागता हूं, तीस वास्तद् मेरि मतलब ब्याबम् तल्ब (उ?) न् मूदम् मेरो मन हजारो दम् षेच नांहि (?) अब में न पडषु (?) मन हस्त अल्य कसेदम् बे कसेदम् बे; इसी दुनीयां बहोली बेबफा हे जो सोद् दूनीयां बा (ब ?) होरी बफोई तू दे दस्त रसीदम् बे रसीदम् बे अ० गो० 3 गुनि जीनके ए तरणी हैं गुनागुन् माबूदन्
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________________ [B] साहिब मुष, दिषवानि दिदार, नामने भरुसें आव्यो छु दिदम् षातर नाम बे नाम बे, तु षावन हे, बंदे के अंतरका इसक तीसका षावन् तू हे तुं हि बे सांइयां बंद अंतर इसकम् जब तेरी सरत आइ उनसे बचे बचें सरत आमदे [बे] आमदे [बे] अ० गो० 4 एक बालका मेरे जोषम नही हैं एक बालकी जलेल नाही तेरा दावन पकडया हें, तीस वास्ते दावन् (दामन् ?) साथ गु रक्ति बे रक्ती बे बंदा मोहन कहेता हे, हे परमेसर ! रायब मोहन गोयद् साहिब ! उसके तांइ नरकदूषे न होवे उसकु दोजष् रक्ती बे रक्ती बे, अ० गो० 5 वाराही / जेवितहेपंतषील / (लषीतं पं. हेतविजें) माला किहां छै रे - ए देशी / गोडी पार्श्व गरीबनो पालणहार फकीर गौरी पास गरीबनिवाज गदा यारा, दीर्छ मुख आकुनै (?) दिवसै दीकरा, वामाराणीना दिर्दै रूइ अम रोज फर्जन वामारा / टेक / पहेलां कोई आगलि मै जोउं परमेश्वर / पेश कसे मन् बुरवम् कादर पग ताहरा न छोड़े पाय तोरा न बुग्जारि बे / संसारमा मोटी जाइगा छोडीने प्रभुनै घडी घडी करूं छु दर गेति जो चुनम् हरदम करदै
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________________ [4] आजीजी गिरीअम् हुं जाहर वींनती परमेश्वरनै जारी अरज षुदाही बे / अ० 1 तुम हजूर आव्यो छु सेवानै अर्थे प्रभु मोटा छो हाजर आमद बिंदगी मुशफक् शी रीतै दिवस जाइ कैसें रोज गुदस्तें बे / महैरबानी करीनै नेक निजरै कृपा करवी लुत्फ ब-कुन चस्म इनायत् चित माहरूं तुमसुं बांध्यु छइ दील मन् अज-तो बस्ते (बे)। अ० 2 माहरी इच्छा मननी बीजी वांछना नथी राषतो मा तलबीदम तलब न मुदम् चाकरी हजुर करीई तो नफो थाइ महनत् अलफ् कसीदे बे। . जोयुं संसारमा घणो तुझथी नफो होइ चुस्ते दुनियां बहर बफाए तुं वेगलो छे हाथ शी रीते पोहचै तुं दुर (दूर ?) दस्त रसीदे [ बे] / अ० 3 जुदा जुदा मैं देव दीठा गोंनागोंन आ बुदम् दि बैं चित्तमा न आव्या अम्मां षातर नामदें बे। तुं परमेश्वर आजथी इसक छे तु ही षुदावत आ तर इसकां बीजी (?) सुरति नावै बाजे (?) सुरति नामदै (बे)। 18 अ०
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________________ [3] एक वार जो दीदार देषु एक बेर जूं तसरिफ पाउं छेहडो निर्मल साहूं दामन् साफ गिरफ्ते बे यती मोहन नामनो कहै छै प्रभुनै राहब मोहन गोयद् साहिब आज थकी मुझनै नरक थकी निवार अज मत् दोझए रक्तै [बे] पू. अ० इति श्री पार्श्वनाथस्तवनं पारसीमध्ये / सरस वदन सुखकारं सारं मुक्तावलि उरि हारं ; त्रिभुवनतारण-तरण अतारं सो गायिजइ पासकुमारं / / 1 / / पास संखेश्वर परता पूरै, समर्या धरणिंद होइ हजूरे; धण मणि-कंचण-कूर-कपूरं, नामे पाम(स) उग्गइ सूरं // 2 // छंद मोतीदाम / भो उग्गंत सूरं नाम नूरं पास समरण पत्थियं लष लाल मोल कल्याण कुंडल लोल लहें कन इत्थियं; चमकंति चंपकवर्ण रामा कुवरि नाग नागेश्वर, नव निद्धि आवें चडति दावे सामि नामि संखेश्वरं // 3 // महकंत महमह वास छुट्टे सुरभि वाक सुगंधियं, लहकंत लहलह चीर पइकण कोर रयणे बंधियं; रणकंति रमझम पाय नपुर सरस वर युवति वाल्हेश्वरं नव निद्धि आवे चडति दावे सामि नामि संखेश्वरं // 4|| सुविनीत बाल रसाल वाणी देह कोमल सुंदरा, द्रव कोडि लष मीलहे मानव भत्ति वित्त सुमंदिरा; हीसंति हयवर मत्त गयवर सरस भोग भोगेश्वरं, नव० // 5 // व्याकरण वेद वखाण वामी विदुर जग सहू को कहे, विद्याविनोदी विविध हुन्नर पास समरण षिणे लहे,
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________________ [3] देही सनूरा साज पूरा परसिद्ध सउ राजेश्वरं, नव० // 6 / / तुं अजब अकब्बर अलाही बरवय कर्दन तुं सही, महबूब बुजरक् मर्द तो - सा बगुय जोहवि मही; जसु जाइ ध्यावि नाम पावे तुज्झ दावे सरें भरं, न० / / 7 / / दिलबुजां षुसीयाल् हाजर् फजर् पूजा जे रचे, . दीवान दुनिया श्री वत्स मद्दल सुद्ध नाटक नर नचे; चंपेल वेल जासूल माफीक्, नेफबषत् सेवेश्वरं, न० // 8 // हलुवा हालची सेव सक्कर खुब खर्दन ज्या मिले, जर्दे जि पाग सपेद वागा जई पट्का झलहले; खुसबो य अंगे सदो पहिने सबल तेज सुरेश्वरं न० // 9 // सो इलम कबूल कतेव काजी नाम तेरा जस रखा, मियां मुसाफर सईद काफर राहु-रयनी तुं सखा; हररोज खजमतिगार तेरा बखत वड तापेश्वरं, न० // 10 // तुं ही ज मादर पिदर मेरा बिन् बिनादर् तु धरा, अजीब बंदा षलक तेरा भाग मेरा अब् खरा; दीदार साहिब चसम-रोसन् नमति साहि दिलेश्वरं / न० // 11 // गुन् अलेला बक्स अदिलेजवां गैर ज कछु बक्या तर्दोजक् या तसमीन् कामन् पास दरगह में तक्या; कयुं बषन् दारिद् वफे तिसका ध्यावता ध्यावेश्वरं , न० // 12 // कलश / सामि नामि संपति कित्ति जसु वाधे सधर, सामि नामि संपति मति निर्मल मुख मधुर, सामि नामि संपति रति रामति लीला वर, सामि नामि संपत्ति फतिदरसन (?) समतर, वर रिद्धि राज साहब थापण सधर, सुरनर जिनसेवा अकल श्री पास आस, नय प्रमोद भणे पावे मन वंछित सफल || 13 इति श्री शंखेश्वरपार्श्वछंद /