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श्रीमुनिचन्द्रसूरिविरचित तीर्थमालास्तवः ॥
- विजयशीलचन्द्रसूरि
प्राकृतभाषानिबद्ध, १११ गाथाप्रमाण, आ तीर्थमालास्तव, तेनी अन्तिम गाथामां जणाववामां आव्या प्रमाणे, आ. मुनिचन्द्रसूरिनी रचना होवानु जणाय छे. ते गाथामांनां ४ पदो सम्भवत: विशेषनामपरक छे, जे कर्तानी गुरुपरम्परा वर्णवे छे : महेन्द्रसूरि, भुवनचन्द्र (के भुवनेन्द्र) सूरि, चन्द्रसूरि अने मुनिचन्द्रसूरि - आ ४ नामो होवानुं समजाय छे. वस्तुपालकृत आबुतीर्थना जिनालयनी नोंध आ स्तवमां (गा. ९३) होवाने कारणे, आनो रचनासमय चौदमी सदी होवार्नु मानी शकाय. स्तवकारनी गुरु-गच्छपरम्परा जाणवा माटे पट्टावलीओमां तपास करवानी रहे छे. जोके आ रचना विशे 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' (मो.द. देशाई)मां कोई नोंध जोवा मळती नथी.
'तीर्थमाला' प्रकारनी रचनाओमां, भारतवर्षमां तथा समग्र ब्रह्माण्डमां ज्यां पण जिनप्रतिमा होय तथा जैन चैत्य होय; जिन- तीर्थंकरना जीवननी 'कल्याणक'नी के अन्य विशिष्ट घटना कोई स्थानमां घटी होय; अथवा कोई विशिष्ट कारणे कोई खास स्थलने 'तीर्थ' तरीके स्वीकारवामां आव्युं होय; ते सर्वने संभारवापूर्वक तेमनुं स्तवन तथा भाववन्दन करवानुं प्रयोजन, मुख्यपणे होय छे. तीर्थस्वरूप पदार्थो तथा क्षेत्रोनुं स्मरण करवू, ए जैन संघमां एक उत्तम पुण्यकर्म अने भावयात्रारूप कर्तव्य मनायुं छे. केटलीक वार, कोई साधुमुनिराज, कोईएक मोटा शहेरमां अथवा तो पोते पादविहार द्वारा विचर्या होय ते विभाग / परगणामां आवेल जिनालयोनुं वर्णन करती काव्यरचना पण करे छे, जे 'चैत्यपरिपाटी' अथवा 'तीर्थमाला'ना नामे ओळखाय छे. मध्यकालमां अनेक कविओए आवी रचनाओ करी छे, जे पैकी घणी प्रकाशित पण छे. परन्तु ते रचनाओ महदंशे गुजराती भाषामां होय छे. प्रस्तुत रचना 'प्राकृत'मां छे, ए तेनी विशेषता छे.
प्रथम पांच गाथामां अरिहंत-वन्दनारूप मंगलाचरण कर्या बाद कवि, पोताने अरिहंत सांपड्या होवा बदल पोतानी धन्यता प्रगट करे छे. १०-११
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अनुसन्धान ३६
गाथामा पोते जिन-स्तुति आरंभता होवानो निर्देश तेओ आपे छे. त्यार पछी १२ थी १५ ए गाथाओमां अतीतमां थयेल २४ तीर्थंकरोनां नामो, १६-१८मां वर्तमानकालमां थयेल २४ तीर्थंकरनां नामो, तथा १९-२२मां भविष्यमा थनारा २४ तीर्थंकरोनां नामो दर्शावीने तेमनी स्तुति कविए करी छे.
जैन शास्त्रो-अनुसार, मनुष्यलोकमां अने तदुपरांत देवलोकमां घणी बधी जिनप्रतिमाओ 'शाश्वत' होय छे. ते चैत्यो तथा ते प्रतिमाओ सदाकाळ 'होय' ज छे. २२-२६ गाथाओमां पृथ्वी परनां विभिन्न स्थानोमा रहेल ते शाश्वत चैत्य/प्रतिमाओवें स्मरण थयुं छे; अने २७-३२ गाथाओमा चार प्रकारना देवलोकमांनां चैत्यो/प्रतिमाओनुं विवरण थयुं छे. ३३मी गाथामां कवि चोखवट करे छे के आ सर्व शाश्वत प्रतिमाओ 'ऋषभ, चन्द्रानन, वर्धमान, वारिषेण' आ चार नामोथी ज ओळखाय छे.
वर्तमान समयमां, भरतखण्ड(क्षेत्र)ना तेमज अन्य क्षेत्रोना अमुक विभागमा वर्तता तीर्थंकरोने 'विहरमाण जिन' तरीके ओळखवामां आवे छे. वर्तमाने तेवा २० जिन छे. तेमनुं नाम - वर्णन ३४-३९ गाथाओमां थयुं छे. ४१मा पद्यमां जैनोमां मान्य ७ प्रमुख तीर्थोनो नामनिर्देश करीने पछीथी ते पैकी एकेक तीर्थ- वर्णन कवि विस्तारे छे. ४२-४५मां अष्टापदतीर्थy, ४६-४८मां उज्जयन्ततीर्थy, ४९-५५मां गजाग्रपद तीर्थy, ५६-५८ मां तक्षशिलागत धर्मचक्रतीर्थ, ५९-६३मां पार्श्वनाथना अहिछत्रातीर्थy, ६४-६६मां वज्रस्वामीना रथावर्त तथा कुंजरावर्त तीर्थ, अने ६७-६८मां सुंसुमारपुरगत चमरोत्पात तीर्थनुं वर्णन थयुं छे.
आ पछी अन्य विविध जिनतीर्थोनुं वर्णन चालु थाय छे. ७०-७१मां समेतशिखरगिरिनी स्तवना छे. ७३-७५मा विमलगिरि-अपरनाम-शत्रुजयतीर्थनी स्तुति छे. आमां ७४ मी गाथामां आवता 'कहमन्नह तेवीसं जिणपयजुयलाण पडिबिंबा?' ए वाक्यथी एक ऐतिहासिक तथ्य ए जडे छे के, कर्ताना समयमां शत्रुजय तीर्थ परना जिनचैत्यमा २३ तीर्थंकरो (नेमिनाथ सिवायना)नां चरणचिह्नो (पादुका) कोरेलो कोई पादुकापट्ट होवो जोईए. आ तीर्थ पर २३ जिन आवेला अने १ मात्र नेमिनाथ नहि आवेला, एवी जैन संघनी परम्परागत मान्यतानो आवा पट्ट द्वारा पडघो पडतो होवान कर्ता सूचववा मागे छे.
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७६मी गाथामां मथुराना सुपार्श्वस्तूप-तीर्थनी वात छे. ७७-८०मां भृगुकच्छ-भरुचना अश्वावबोधतीर्थ तथा समळीविहारनी विगत छे. गाथा ७९ प्रमाणे, कर्ताना वखतमा भरुचना जिनालयमा जितशत्रुराजा, अश्व, समडी, सुदर्शना- आ बधांनां शिल्पो पण होवानो संकेत सांपडे छे. अने मुनिसुव्रतजिननी प्रतिमा 'जीवंतस्वामी' तरीके ओळखाती हशे तेम पण (८०) जाणवा मळे छे. गा. ८१मां स्थंभनपुर (आजनुं थामणा)ना पार्श्वनाथतीर्थनी तेमज पावकगिरि (पावागढ)ना वीर-तीर्थनी नोंध छे. पावागढ वास्तवमां जैन श्वेताम्बर संघर्नु तीर्थ हतुं, तथा वस्तुपाल-तेजपाले पण त्यां देरां करावेलां ते एक ऐतिहासिक तथ्य तो छ ज : आ गाथा तेने पुष्टि आपे छे.
८२ मी गाथामा एक नवं ज तथ्य उजागर थाय छे. शंखेश्वर-नजीकना पाडला गाममां नेमिनाथनी प्राचीन मूर्ति हती ए ऐतिहासिक वात छे. ते प्रतिमा त्यां कनोज-कान्यकुब्जना राजाए स्थापी होवानो निर्देश आ गाथा द्वारा मळे छे. दन्तकथा तथा प्रबन्धकथा एवी छे के आ. बप्पभट्टिसूरिना भक्त, कान्यकुब्जनरेश 'आम' राजा माटे अम्बिकादेवीए नेमिनाथनी मूर्ति आणी हती, ते मूर्ति हाल खम्भातमा होवानी अनुश्रुति छे. परन्तु आ गाथा ते अनुश्रुतिने बदलवानी फरज पाडे छे. जोके हवे तो पाडलागाममां ते मन्दिर तथा प्रतिमा रह्यां नथी. पण ते मूर्तिने 'अइचिरमुत्ति' अर्थात् अतिप्राचीन मूर्ति तरीके कविए ओळखावी छे. निःशंक, कविना वखतमां ते प्रतिमा त्यां विद्यमान हशे.
गा. ८३मां पारकर देशगत गड्डरगिरिना ऋषभदेवनी तथा गा. ८४ मां बाहडमेर अने राडरहनां चैत्योनी वात आवे छे. गा. ८५-८६ मां सत्यपुर (साचौर)नुं वर्णन थयुं छे. त्यां पण कान्यकुब्ज-नरेशे करावेल काष्ठ-प्रतिमानो उल्लेख छे. ८५ मी गाथामां 'पनरसवच्छरसइए' ए पदनो अर्थ स्फुट थवो जोईए; कां तो पाठभूल होय एम पण बने. ८७ मी गाथा, ८६ नी जेमज, त्रुटित छे. तेमां ‘यक्षवसति' गत वीरजिन- वर्णन छे. आ यक्षवसति एटले 'यक्ष' (मल्लवादी-भ्राता) साधुनी वसति ? 'यक्ष' नामना श्रावकनी बनावेल वसति ? के 'यक्ष' देव नामा देवजाति-विशेषनी वसति ? हाले कच्छमां 'जखदेव'नुं थानक एक प्रख्यात तीर्थ छे तो खलं. जो ८७-८८ ए बे गाथाओ ने संयुक्त राखीने तपासीए तो, कोई एक तीर्थक्षेत्रनी ज ए वात लागे छे : यक्षवसतिमां
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अनुसन्धान ३६ वीरजिन: द्वितीय, चिर- प्राचीन चैत्यमां चन्द्रप्रभजिन अने तृतीय, कुमारविहारमां पार्श्वजिन; आम त्रण चैत्यनी वात होवानुं कल्पी शकाय खरुं. कदाच, आ पाटणनी ज वात होय तो बनवाजोग छे.
गा. ८९ मां बंभेवि (ब्राह्मणवाडा ? ), पल्लि (पाली ? के जीरापल्ली ? ), नाणय ( नाणा), देवाणंद (दीयाणा) आ चार तीर्थगत वीरजिननां स्तूप चैत्यनुं कीर्तन छे. गा. ९०मां मेवाडना 'नंदिसमसेस' नामना (?) कोई गाममां शकटालमन्त्रीए करावेल वीर - चैत्यनी नोंध हेरत पमाडनारी लागे छे. इतिहासमां आवी केटलीये वातो दटायेली पडी होय छे, जे आजे अज्ञातप्राय हशे . सुकोशलमुनि ए जैन इतिहासनुं प्रसिद्ध - विशिष्ट पात्र छे. तेमना जीवननी खास घटना चित्तोडना मुग्गिलगिरि ( मुगलपर्वत ?) पर बनी हशे तेनो इशारो ९१मी गाथा आपी जाय छे. ९२ - ९६ गाथाओमां अर्बुदाचलनो महिमा व्यक्त थयो छे. गा. ९२मां विमलमन्त्रीना दश परिवारजनो गजारूढ होवानो उल्लेख इतिहासनी दृष्टिए विशिष्ट गणाय तेवो छे.
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गा. ९७मां आबूपर्वतना मूळ प्रदेशस्थित 'मुण्डस्थल 'मां नन्दिवृक्षतळे श्रीवीरप्रभु पोताना छद्मस्थ-विहारकाळमां कायोत्सर्गध्याने रहेला ते पारम्परिक अनुश्रुतिनो तथा गा. ९८ मां, ते स्थळे, पुन्यराज नामे गृहस्थे, प्रभुभक्तिथी प्रेराईने, वीरप्रभुनी प्रतिमा स्थापी हती, अने ते वर्ष वीरप्रभुना जन्मथी ३७मुं वर्ष हतुं, तेनो स्पष्ट उल्लेख कर्ता आपे छे. भगवान महावीरनी ३७ वर्षनी उंमरे तथा दीक्षा लीधाना सातमा वर्षे राजस्थानमां तेमनी प्रतिमा बन्यानो आ साहित्यिक उल्लेख, कर्ता समक्ष कोई प्राचीन सशक्त श्रुतिपरम्परा होवानो ख्याल आपी जाय छे. अने तेथीज, गा. ९९ मां कर्ता उमेरे छे के, आजे (कर्ताना समये) आ तीर्थने किञ्चित् न्यून एवा १८०० वर्ष थयां छे. आ उपरथी कर्तानो समय पण निश्चित थई शके : अत्यारे वीर संवत् २५३२ चाले छे. तेमां वीरप्रभुना आयुष्यनां ७२ वर्षो पैकी ३७ वर्ष छोडी देतां वधेलां ३५ वर्ष उमेरवाथी २५६७ थाय. तेमांथी १८०० बाद करीए तो ७६७ रहे. तेमांथी पण 'किञ्चित् न्यून' एटले पांच-दस वर्ष ओछां करीए तो पण १३ मा शतकनो छेडो आरामथी आवी जाय.
वधु स्पष्ट करीए तो, विक्रम संवत् पूर्वेना वीर निर्वाण संवतना ४७०
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वर्ष; तेमां वि.सं.ना १३०० वर्ष उमेरतां १७७० वर्ष थाय. तेमां वीर-जीवनना ७२ वर्ष पैकी ३७ वर्ष बाद करीने शेष रहेता ३५ वर्ष उमेरीए तो १८०५ वर्ष थाय. अहीं कर्ताए ९९ मी गाथामां "किंचूणा अट्ठारस-वाससया एयपवरतित्थस्स' अर्थात् 'वर्तमानमां आ प्रवर तीर्थने किञ्चित् न्यून १८०० वर्ष थयां छे' एवो निर्देश आपेल छे तेने लक्ष्यमां लईए तो, कर्ताने १८०५ करतां दसेक वर्ष वहेला (आ स्तवना रचनाकार तरीके) लई जवा पड़े, तो १७९५ वर्षों (आ तीर्थना निर्माणने, कर्ताना समयमां) थयां होवानो अंदाज मांडी शकाय. आ समय विक्रम तेरमा शतकनी अन्तिम पच्चीसीनो समय थयो गणाय. ए रीते कर्तानो सत्तासमय तथा आ कृतिनी रचनानो समय पण तेरमा सैकानो उत्तर भाग होवानुं आपोआप निश्चित थई जाय छे.
गा. १०० मां तारणगिरि (तारंगा), कुमारपाल, अजितनाथ- स्मरण थयुं छे. गा. १०१मां वायटनगरस्थित मुनिसुव्रतजिननी जीवंतस्वामीरूप प्रतिमानो तेमज १७०० वर्ष (ते काळे) पुराणी वीरजिन-प्रतिमानो उल्लेख नोंधपात्र छे. जे प्रतिमा चमत्कारिक होय तेने जीवंतस्वामी तरीके ओळखवानी प्रथा हशे? गा. १०२मा श्रीमाल, आरासण, ब्रह्माण (वरमाण), आनन्दपुर, सिद्धपुर, कासद्रह, अज्जाहर (अजारा) वगेरे ऐतिहासिक स्थळोनो उल्लेख थयो छे.
गा. १०३-०४मां गुर्जर, मालव, कोंकण, महाराष्ट्र, कच्छ, पांचाल, मरुदेश, सांभर (शाकम्भरी), मथुरा, हस्तिनापुर, सौरीपुर, त्रिभुवनगिरि, गोपगिरि, काशी, अवंती, मेवाड आदि देशोमां वर्ततां दृष्ट-अदृष्ट तथा श्रुत-अश्रुत जिनबिम्बोनी स्तुति करी छे. त्यार पछीनी १०५-१११ गाथाओमां शास्त्रोमां वर्णित विभिन्न क्षेत्रो । प्रदेशोमां विद्यमान विविध प्रकारनी जिनप्रतिमाओनी, त्रिकालभावी तीर्थंकरोनी, शाश्वत-अशाश्वत सघळां तीर्थोनी, जिनवरोनां कल्याणकोनी भूमिओनी वन्दना करवापूर्वक पोतानुं नाम वर्णवीने कविए रचना समाप्त करी छे.
भावनगरनी जैन आत्मनन्दसभाना ह.लि. ग्रन्थसंग्रहगत एक प्रतिनी झेरोक्स नकलना आधारे आ रचनानुं सम्पादन थयुं छे. आनी अन्य प्रति जो मळी आवे तो जे पाठ त्रूटे छे ते मेळववानुं सुगम थई शके. प्रतिनी झेरोक्स आपवा बदल ते सभाना कार्यवाहकोनो आभारी छु.
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तीर्थमालास्तवः ॥
श्री जिनाय नमः ॥
अरिहंतं भगवंतं सव्वन्नं सव्वदंसि तित्थयरं । सिद्धं बुद्धं निच्चं परमपयत्थं जिणं थुणिमो ॥१॥ जय जय तिहुअणमंगल ! भट्टारय ! सामिसाल ! भयवंतो । देवाहिदेव ! जगगुरु ! परमेसर ! परमकारुणिअ ! ||२|| जय जय जगिक्कबंधव ! भवजलहीदीव ! तिहुअणपईव ! | जय जय जगचिंतामणि ! तिहुअणचूडामणि ! जिणिंद ! ||३|| जय जय सिवपहसंदण ! असरणजणसरण ! दीणउद्धरण ! । जय जय भवभयभंजण ! जणरंजण ! च्छिन्नजरमरण ! ॥४॥ जय कम्मजलहितारण- तरंड ! गुणरयणधारणकरंड ! | जय विसमबाणवारण - वरंड ! मुणिसुमणवणसंड ! ॥५॥ धन्नोहं पुण्णोहं सहलो मह एस माणुसो जम्मो । जं जिण ! तुह पयपंकय- पसायपासायमभिरूढो ||६|| धन्नो एसो दिवसो जाम- मुहुत्तो वि एस सुपवित्तो । जम्मि तुमं तिजगगुरू भवमरुपहसुरतरू पत्तो ||७|| अज्जं मह चिंतामणि- सुरतरु-सुरगावि- भद्दकुंभाई । सयलं सुलहं जं पहु ! अलद्धपुव्वो तुमं लद्धो ॥८॥ नरयभव- तिरिअ -नर- सुर-वरसमुदयनमिअचलणकमलदुगं । तिहुअणजणसुरतरुसम महनिसमवि नमह तिजगपहुं ॥ ९ ॥ अट्ठदसदोसरहिए सहिए चउतीस अइसयवरेहिं । हयको कयसोहे अट्ठमहापाडिहेरेहिं ॥ १० ॥ जिअरागे जिअदोसे जिअमोहे अट्टकम्मनिम्महणे सिवपुर हसत्थो गयबाहे थोमि जिणनाहे ॥ ११॥ भरहम्मि तीअकाले पढमं वंदामि केवलि जिणिदं । निव्वाणिजिणं सायर महाजसं चेव विमलजिणं ||१२|| सव्वाणुभु(भू)इ सिरिहर, दत्तं दामोअरं सुतेअं च । सामिजिणं मुणिसुव्वय सुमहं सिवगइ तहत्थाहं ॥ १३ ॥
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अनुसन्धान ३६
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नमिमो नमीसरजिणं अनिलं च जसोहरं कयग्धं च । धम्मीसर सुद्धमई सिवकरजिण संवा द?)ण जिणिदं ॥१४॥ संपइनामं वंदे चउवीसइमं जिणं सिवं पत्तं । अहुणा उ वट्टमाणे कमेण थुणिमो जिणवरिंदे ॥१५॥ नमिमो रिसहजिणिदं, अजिअजिणं संभवं च तित्थयरं । अभिनंदणजिणचंद, सुमई पउमप्यह-सुपासं ॥१६।। चंदप्पहं च सुविहिं सीअलनामं जिणं च सेअंसं । वसुपुज्जं विमलं तह अणंत-धम्मं जिणं संति ॥१७॥ कंजिणं अरनाहं मल्लिं मुणिसुव्वयं च नमिनाहं । नेमि पासं वंदे चउवीसइमं जिणं वीरं ॥१८॥ सिरिपउमनाहनाहं वंदामी सूरदेवतित्थयरं । तइअं सुपासनामं सयंपहजिणं तहा तुरिअं ॥१९॥ सव्वाणुभूइदेवं देवसुअं उदयसामि-पेढालं । पुट्टिल-सयकित्तिजिणं मुणिसुव्वय-अममसामि च ॥२०॥ पणमामि निक्कसायं निप्पुलायं च निम्ममं तं च । सिरिचित्तगुत्तसामि समाहिजिण-संवरजिणिदं ॥२१॥ जसहर-विजयं मल्लं देवच्चायं अणंतविरिअं च । चउवीसइमं भइं इअ भाविजिणे नमसामि ।।२२।। वंदे वेअड्डेसुं सासयजिणचेइआण सतरसयं । तीसं वासहरेसुं वीसं गयदंतसेलेसु ।।२३।। दस कुरु-तरुसिहरेसुं तेसिं परिहीवणेसु तह असिई । वक्खारगिरिसु असिई पणसीई मेरुपणगम्मि ॥२४|| इसुआरगिरिसु चउरो चत्तारि नमामि मणुअसेलम्मि । नंदीसरम्मि वीसं कुंडल-रुअगेसु चउचउरो ॥२५॥ एवं गिरिकूडेसुं गिरिणइतरुसुं तरूण कूडेसु । इक्कारअहिअपणसय-सासयजिणभवण महिवलए ॥२६॥ बावत्तरिलक्खाहिअ-कोडी सत्तेव भवणभवणेसु । जिणभवणे उ असंखे, वंतरनगरेसु पणमामि ॥२७||
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अनुसन्धान ३६
वणचेइअ संखगुणे जोईसिएसुं तओ विमाणेसु । तेवीसाहिअ सहसा, सगनवई लक्ख चुलसीई ॥२८॥ सुरठाणेसु अ सवर्हि, सभपणगे सट्टि होइ पडिमाणं । चेइअमज्झेऽट्ठसयं, चेइअदारेसु बारसगं ।।२९।। मिलिअं सयं असीअं चउवीससयं तु नंदिसरदीवे । पइचेइअ सेसेसु वीससयं पडिम तिरिलोए ॥३०॥ भवणवईभवणेसुं कप्पाइविमाण तह महीवलए । सासयपडिमा पनरस कोडिसय बिचत्त कोडीओ ॥३१॥ पणपन्न लक्ख पणवीस सहसा पंच सया उ चालीसा । तह वण-जोइ सुरेसु सासयपडिमा 'पुण असंखा ॥३२॥ उसभा चंदाणण-वद्धमाण तहय सिरिवारिसेणा य । सव्वा सासयपडिमा पुण पुणरवि एअ चउनामा ॥३३॥ जंबू धायइ पुक्खर-दीवे विजयाण सत्तरिसयम्मि । भविए भुवि बोहंते विहरते जुगवमरिहते ॥३४॥ नमिमो उक्कोसपए सतरिसय तह जहन्नओ वीसं । कणग-कलहोअ-विद्दुम-मरगय-घण-रिट्ठरयणनिहे ॥३५।। जंबुद्दीवे धायइ-संडे तह चेव पुक्खरद्धे अ । सीमंधर जुगमंधर-बाहु सुबाहू सुजाओ अ ॥३६|| छट्ठो सयंपहपहु उसभाणण तह अणंतविरिओ अ । सूरप्पहो विसालो वज्जधरो तह य गारसमो ।।३७।। चंदाणणो स सिरिचंदबाहुदेवो भुजंग ईसरओ । नेमिपह वीरसेणो महभद्दो देवजससामी ॥३८।। सिरिअजिअवीरिअजिणो इअ एए संपयं विहरमाणे । वंदे वीस जिणिंदे तिहुअणवंदे सुकयकंदे ॥३९॥ इअ तीअमणागयवट्टमाणया सासया य विहरंता । थुणिआ जिणिदचंदा पयपंकयपणयमाहिंदा ॥४०॥ अट्ठावयमुज्जिते गयअंग्गपए अ धम्मचक्के अ । पॉस रहावत्तर्णयं चमरूँप्पायं च वंदामि ॥४१॥
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अट्ठावयगिरिराए पणमेमि थुणेमि तह य झाएमि । धम्मधुर धरणउसभं उसभं पणमंतसुरवसभं ॥४२॥ अजिआइणो वि सेसे वरअइसेसे जिणे उ तेवीसं । तह सासयचउनामा सोलस पडिमाउ थूभेसुं ॥४३॥ उसभस्स समोसरणा पयपंकयअंकणा उ सिवगमणा । तवलद्धीरोहगसिद्धीउ अ अट्ठावयम्मि थुणे ॥४४॥ सुर-असुर-खयर-नरवर-सुरिंदवंदिज्जमाणजिणभवणं । अट्ठावयगिरितित्थं नंदउ जा वीरजिणतित्थं ॥४५॥ जायवकुलसिरितिलओ नेमी वयगहण-नाण-निव्वाणे । जउ (जहिं ?) पत्तो सो नंदउ, उज्जंतो तिगुणमिह तित्थं ॥४६।। तं रेवयगिरितित्थं तिलोअसारं तिलोअजणमहि । ठाणे तिलोअतिलए तिलोअपहु नेमि जह पत्तो ॥४७॥ रेवयगिरिम्मि भवजलहि-पोअभूअम्मि नेमिनिज्जामो । दुहिअं दुत्थिअवग्गं सग्गपवग्गं लहुं नेइ ॥४८॥ सेले दसण्णकूडे दसण्णभद्दस्स गव्वहरणट्ठा । सक्को देवाहिवर्ह निअइड्ढेि दसए एवं ॥४९॥ चउसट्ठिकरिसहस्सा.... चउसट्ठि अट्ठमुहजुत्ता । पइमुह दंता अट्ठय पइदंतं अट्ठ वावीओ ॥५०॥ पइवावि अट्ठ कमला, पइकमलं लक्खपत्त पइपत्तं । बत्तीसविहं नाड़य, पइकण्णिअ रयणपासाओ ॥५१॥ पइपासायं अट्ठ उ, भद्दासणगाई रयणचित्ताई । सिंहासणमेगेगं सपायपीढं रयणमयचित्तं ॥५२।। पइसिंहासणमिंदो पइभद्दासणगमग्गमहिसीओ । इअ तिपयाहिणपुव्वं गयअग्गपयाणि भुवि दो वि ।।५३।। पडिबिंबिअट्ठो सक्को वंदइ वीरं तओ दसनभद्दो । विम्हिअमणसो हरिचु(थु)यणेण विलईउ पव्वइओ ॥५४॥ . तो सुरवइ मुणिचलणे खामिअ उववूहिउं दिवं पत्तो । गयअग्गपओ एवं जाओ तह थुणह वीरजिणं ॥५५॥
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अनुसन्धान ३६
तक्खसिलाए उसभो विआलि आगम्म पडिम उज्जाणे । जा बाहुबलि प्पभाए एई ता विहरिओ भयवं ॥५६।। तो तहिअं सो कारइ जिणपयठाणम्मि रयणमयपीढं । तदुवरि जोअणमाणं मणिरयणविणिम्मिअं पवरचक्कं । तं धम्मचक्क तित्थं भवजलनिहिपवरबोहित्थं ॥५८॥ सिवनयरि कुसम्मवणे पासो पडिमट्टिओ अ धरणिंदो । उवरि तिरत्तं छत्तं धरिंसु [पउमावई देवी (?)]||५९॥ ता हेउं सा नयरी अहिछत्ता नामओ जणे जाया । तहिअं नमिमो पासं विग्यविणासं गुणावासं ॥६०॥ पडिमाए ठिअं पासं कमठो हरि-करि-पिसायपमुहेहिं । उवसग्गिअ तो वरिसइ अखंडजलमुसलधाराहि ॥६१॥ उदगं जिणनासग्गं पत्तं तो लहु करेइ धरणिंदो । जिणउवरि फणाच्छत्तं सो ..... देहबहिपरिहिं ॥६२|| चलणाहो गुरुनालं कमलं तो कमठ खामिउं नट्ठो । धरणो गओ सठाणं जिओवसग्गं नमह पासं ॥६३।। सिरिवयरसामिपढमारुहिए सेलम्मि तेसि खुड्डेण । पढमं कयमाराहण ..... तओ चउरो ॥६४॥ रहरूढो पायाहिण काउं महिमं करिंसु खुड्डस्स । [सक्काईया (?)] रहआवत्तं तित्थं [च] तं नमिमो ॥६५|| सिरिवइरसामिराहण-गरिम्मि सक्को रहेण अह करिणा । पायाहिणंतो सो विअ रहावत्तो कुंजरावत्तो ॥६६॥ जत्थ य वज्जपलाणो चमरो वीरप्पयंतरि निलुक्को । हरिणा मुक्को तत्तो जिणपुरओ दंसए नढें ॥६७।। तो तहि तित्थं जायं चमरुप्यायं च सुंसुमारपुरे । से ... वीरं तिहुअणजणवच्छलं नमिमो ||६८॥ इअ बहुविह अच्छेरय-निहीसु अट्ठावयाइठाणेसु । पणमह जिणवरचंदे सुभत्तिभरनमिरमाहिंदे ॥६९।। मासं पाओवगया वग्धारिअपाणिणो जिणा वीसं । सिद्धिगया जत्थ तहिं नमिमो संमेअगिरिसिहरं ॥७०।।
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June-2006
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जं संमेए संघा अजिअजिणिंदा परं पि आइंसु । तेण य सो महितित्थं तिलोअजणतारणसमत्थं ॥७१।। जत्थ य पढमं सिद्धो पुंडरिओऽणेगमुणिसहस्सजुओ । तकाला जा जंबू असंखकोडीउ ता सिद्धा ॥७२|| जत्थ य सिद्धा पंडव-पज्जुन्न-संबाइ जायवा बहवे । तं विमलं विमलगिरि थुणिमो अइविमलपयहेउं ॥७३॥ जत्थ य नेमि मुत्तुं नूणं उसभाइणो जिणा रहिआ । कहमन्नह तेवीसं जिणपयजुअलाण पडिबिंबा ? ॥७४॥ तहि सिरिसेत्तुंजे सुरवरपुज्जे अणेगवरचुज्जे । पणमह जिणवरवसभं वसभंकं वसभसुमिणं च ॥७५॥ तच्चण्णिआण वाए सेअपडागा निसाइ जहि जाया । खवगपभावा तं थुणि महुराइ सुपासजिणथूभं ॥७६।। भरुअच्छे कोरंटग-सुव्वय-जिअसत्तु-तुरग-जाइसरो । अणसण-सुर-आगंतुं जिणमहिममकासि तो तहि अ ॥७७।। अस्सावबोहतित्थं जायं तन्नाम पुणवि बीअमिणं । सिरिसमलिआविहारो सिंहलिधुअकारिउद्धारो ॥७८|| जिअसत्तु-आस-समली-पास-सुपासा सुदंसणा देवी । निअनिअमुत्तिहि अज्जवि सेवंति अ सुव्वयं तहिअं ॥७९॥ इक्कारलक्ख छुलसीइ सहस किंचूण वरिस जस्स तर्हि । जीवंतसामितित्थे भरुअच्छे सुव्वयं नमिमो ॥८०॥ सन्निहिअपाडिहरं पासं वंदामि थंभणपुरम्मि । पावयगिरिवरसिहरे दुहदवनीरं थुणे वीरं ।।८१|| कन्नउज्ज निवनिवेसिअ-वरजिणगेहम्मि पाडलागामे । अइचिरमुति नेमि थुणि तह संखेसरे पासं ॥८२।। पारकरदेसमंडणभूए गड्डुरगिरिम्मि उसभजिणो । नंदउ तिलोअतिलओ अवलोअणमत्तदिनफलो ॥८३।। सूरा चंदे दुन्नि अ दुन्नि अछे वट्टणम्मि जिणभवणे । चउरो बाहडमेरे पासं च थुणामि राडदहे ।।८४||
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सिरिकन्नउज्जनरवइ - कारिअ लवणम्मि कीर दारुमए । पनरस वच्छरसइए (?) वीरजिणो जयउ सच्चउरे ||८५ || अइबहुअच्छरिअनिही रहो अ पडहो अ ..... । वीरजिणभवणे ॥ ८६॥
[ सच्चउ] रे
नवनवइलक्ख धणवइ
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थुणि वीरं जक्खवसहीए ॥ ८७ ॥ तह चिरभवणे बिइए वंदे चंदप्पहं तओ तइए । पणयजणपूरिआसं कुमरविहारम्मि सिरिपासं ॥८८॥ बंभेवि - पल्लि - नाणय- देवाणंदेसु वीरनाहस्स । पयपउमजुअअलंकिअ थूभकु( क ) ए चेइए वंदे ॥ ८९ ॥ मेवाडदेसगामे थुणेमि भत्तीइ नंदिसमसेसे (?) 1 सगडालमंतिकारिअ जिणभवणे नायकुलतिलयं ॥ ९० ॥ सुक्कोसलमुणिसुचरिअ - पवित्तसिहरम्मि मुग्गिलगिरिम्मि । संपइ चित्तउडक्खे चिरतरबहुचेइए थुणिमो ॥९१॥ अब्बु अगिरिवरसिहरे जिणभवणं विमलठाविअं विमलं । विमल परिएहिं दसहिं गइंदरूढेहिं कयमहिमं ॥ ९२ ॥ अइम्ममइविसालं महड्डिअं सुरकयं व पडिहाइ । वरजिणभवणं बीअं पिवित्थ सिरिवत्थुपालकयं ॥९३॥ धोअकलधो अनिम्मिअ-पयंडधयदंडमंडिअं उभयं । वरसायकुंभगयदंभ-कुंभसोभंतभग्गं ॥ ९४ ॥ पढमजिणभवण जलणिहि- गब्भे चिंतामणि थुणे उसभं । अवरवरभवणसुरगिरि-तडि अमरतरुव्व नेमिजिणं ||१५|| नयणदुगं व सुतारं सिरिघरजुअलं व रयणपडिपुण्णं । tes जिणभवणदुर्ग अब्बु अगिरिवरनरिंदस्स ॥९६॥ अब्बु अगिरिवरमूले मुंडथले नंदिरुक्ख अहभागे । छउमत्थकालि वीरो अचलसरीरो ठिओ पडिमं ॥९७॥ तो पुन्नरायनामा कोइ महप्पा जिणस्स भत्तीए । कारइ पडिमं वरिसे सगतीसे वीरजम्माओ ||१८||
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अनुसन्धान ३६
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________________ June-2006 13 किंचूणा अट्ठारस- वाससया एअपवरतित्थस्स / तो मिच्छघणसमीरं थुणेमि मुंडत्थले वीरं // 99 // महइमहालयअइसय-निम्मलअच्छेरभूअवरमुत्ती / अजिअजिणो तारणगिरि-कुमारनिवठाविओ जयउ / / 100 / वायडनयरे मुणिसुव्वयस्स जीवंतसामिपडिममहं / वंदे तह वीरजिणं सतरसंवच्छरसया जस्स // 101 / / तह सिरिमालारासण-बंभाणाणंदसिद्धिपुरपमुहे / कासद्दह-अज्जाहर-पुरेसु चिरचेइए थुणिमो // 102 / / मरु-संभरि-महुराउरि-हत्थिणपुरि-सोरिअपुराई // 103 / / तिहुअणगिरि-गोवगिरी-कासि-अवंती-मिवाडमाईसु / देसेसु जिणे थुणिमो दिट्ठ-अदितु सुए असुए // 104 / / तह जंबुदीव-धायइ-पुक्खरदीवड्ड-विजयसतरिसए / जे केई गामागर-नग-नगराई अ तहिअं तु // 105 / / जाणि गिहचेइआणि अ जाणि अ जिणभवण तेसु जा पडिमा / गुरुआ जा पणधणुसयं लहुआ अंगुट्ठपव्वसमा ||106 / / सुर-नरकय मणि-कंचण-रीरी-रुप्याइ जाव लिप्पमया / छउमत्थेहिं अम(मु)णिअसंखाउ नमामि ता सव्वा // 107|| जे अइआ तित्थयरा जे उ भविस्सा अणागए काले / जे आवि वट्टमाणा ते सव्वे भावओ नमिमो // 108 / / सुरकय-मणुअकयं वा भुवणतिगे सासयं च जं तित्थं / तं सयलमिह ठिओ वि हु मण-वयण-तणूहि पणमामि // 109|| जत्थ जिणाणं जम्मो दिक्खा नाणं च निसिहिआ आसि / जइअं च समोसरणं ताओ भूमीउ वंदामि // 110 // एवमसासय-सासय-पडिमा थुणिआ जिणिंद चंदाणं / सिरिमं महिंद-भुवणिंद-चंद-मुणिचंद थुअमहिआ // 111 // इति श्रीतीर्थमालास्तवनम् // सुश्राविका कुंअरि पठनार्थम् //