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नवेम्बर
तरङ्गवती कथा तथा पादलिप्तसूरिः जैन के अजैन ?
विजयशीलचन्द्रसूरि
तरङ्गवती-तरङ्गलोला-कथा ए प्राकृत भाषासाहित्य- एक अणमोल रत्न छे. श्रीपादलिप्तसूरि नामे जैनाचार्यनी आ रचना भारतीय साहित्यजगतमां तो सुख्यात हती ज, पण छेल्ला बे सैकामां ते विश्वख्यात पण बनी छे. तरङ्गवतीनी मूल सुविस्तृत कथा आ. पादलिप्तसूरिनी रचना छे, जेने विद्वानो इस्वीसननी आरम्भनी' सदीओमां थयेल सर्जन गणावे छे. पण वखत जतां ते मूल कथा लुप्तप्राय थई छे, अने तेनो, आ. नेमिचन्द्रसूरिकृत, 'संखित्ततरंगवईकहा'ना नामे संक्षेप उपलब्ध थाय छे. आ संक्षेप सम्भवतः १० मी सदीनो मनाय छे.२ आ बन्ने कथाओ विषे घणु लखाई चूक्युं छे; डॉ. हरिवल्लभ भायाणीए आना सानुवाद-सम्पादनमा घणां तारणो आप्यां छे, जे अधिकृत गणाय तेवां छे.
ताजेतरमा प्रा. नरोत्तम पलाणे पोताना एक लेखमां एवं प्रतिपादन करवानो प्रयास को छे के तरङ्गवती ए मूळे जैनेतर (चारणी?) परम्परानी कथा-रचना छे, ए रीते ते जैनेतर रचना छे, अने पाछळथी तेने कोई जैन साधुए जैन कथामां फेरवी नाखी छे.
'गुजरातनी प्रथम प्राकृतकथा अने कविता' शीर्षकना, प्रा. कानजी पटेल अभिनन्दन ग्रन्थ (सं. गौतम पटेल वगेरे, ई. २००५, अमदावाद) मां प्रकाशित, पोताना ए लेखमां श्रीपलाणे चर्चेला मुद्दा आ प्रकारना छ :
"मूळनी संख्याबंध लौकिक कथाओ धर्मप्रचारको द्वारा पोतपोताना धर्मनुं स्वरूप पामी छे. जैन... अने बौद्ध कथाकारो एमना धर्मसिद्धान्त मुजब शृङ्गार के वीरनो (युद्धनो) अनुभव धरावता न होय ते स्वाभाविक ज छे, आम छतांय जैनबौद्ध कथाओमां युद्धवर्णन अने शृङ्गारवर्णन आवेल छे ते मूळनी लौकिक कथाओ परिवर्तन पामी होवानुं सूचन करे छे. गुजरातमां सर्जायेली प्रथम प्राकृतकथा तरङ्गवती सन्दर्भे पण आम बन्यानुं अनुमान छे. पादलिप्त रचित मूळनी तरङ्गवती कथा हाल प्राप्त नथी, परन्तु तरङ्गवतीना आधारे कोई जैन आचार्य द्वारा सर्जन पामेली तरङ्गलोला नामनी कथा
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अनुसन्धान ३४
उपलब्ध छे. एम लागे छे के समये समये मूळनी कथामा सुधारावधारा थया कर्या हशे अने जैन कथाकारोना अति मानीता घटकतत्त्व एवा 'पुनर्जन्म'नी गूंथणी पण एमां थई गई हशे. कथामां ज नहि, लेखक-नाममां पण 'आचार्य' अने 'सूरिजी' वणाई आव्या हशे ! के. ह. ध्रुव जणावे छे के तरङ्गवतीनो कर्ता पालित किंवा श्रीपालित मारी समजमां जैनेतर ठरे छे, केमके ८मा शतकना हरिभद्रसूरिनी 'शिष्यहिता' नामे बृहद्दत्तिमां "इतरलोके निर्दिष्टवशाद् वासवदत्ता तरङ्गवती इत्यादि" मुजब आ कथानो समावेश जैनेतर साहित्यमां को छे. ... के.ह.ध्रुव प्रमाण आपतां नोंधे छे के नेमिचन्द्र गणिना यश नामना शिष्ये तरङ्गलोला एवं नाम राखी जैनी दीक्षा आपी.' (पद्यरचनानी ऐतिहासिक आलोचना' पृ. १७७)"
प्रा. पलाणनां अन्य विधानो पण आ ज लेखमां छे, ते जोई लईए : "वलभीभंग पूर्वे जे लौकिक कथा छ, वलभीभंग उत्तरे जैन कथा बने छे." "....जैन संस्करणनी उत्तर मर्यादा १५मी सदी सुधीनी आंकी शकाय छे." "...पादलिप्त अने नागार्जुननी कथाना अंशो पाछळनो उमेरो समजवो जोईए." "मूळनी कथानुं ई.स.नी ८मी सदी पछी जैन संस्करण थयुं हशे अने क्रमशः आजनुं स्वरूप बंधातां ५००-७०० वर्ष लाग्यां हशे."
प्रा. पलाणना उक्त लेखनां तारणो आटलां तारवी शकाय : पादलिप्त जैन कवि/सूरि नहोता; जैनेतर हता, तेमने पछीना जैन संक्षेपकारे जैन कवि बनावी दई तेमना नाम साथे आचार्य व. पदवाचक शब्दो
गोठवी दीधा छे. २. पोताना आ निरीक्षणमा तेमने के. ह. ध्रुवनो टेको मळे छे. ३. 'तरङ्गवती' ए जैन कथा नथी. मूलत: ते अजैन अथवा लौकिक कथा
छे. पाछळथी तेने जैन कथानुं रूप अपायुं छे, अने तेमां ५००-७०० वर्षोमां, सम्भवतः छेक १५मी सदी सुधीमां अनेक प्रक्षेपो थतां रह्या छे. जैन साधुओ विरागी-वीतरागी होई शृङ्गार अने वीररसनी वातोथी तेओ साव अनभिज्ञ ज होय, अॅथी तेनुं वर्णन के प्रतिपादन करवानी
४.
जन सा
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साहित्यिक क्षमता तेओ पासे न ज होय. प्रस्तुत कथामां तो ते बे रसोनुं वर्णन छे, ते परथी पण आ कथा जैनेतर होवानुं फलित थाय छे. आ. हरिभद्रे पण शिष्यहिता टीकामां आ कथाने इतर (जैनेतर) कथा तरीके वर्णवी छे.
६.
जैन पादलिप्त अने नागार्जुननो सम्बन्ध पण काल्पनिक लांगे छे.
१.
हवे आ तारणो तथा विधानो विषे विमर्श करीए :
३
पादलिप्स ए जैन आचार्य छे अने तरङ्गवती ए तेमनी रचना छे, एवं डॉ. भायाणीए पोताना 'अनुलेख' मां स्पष्ट प्रतिपादन कर्तुं छे. कवि जो अजैन होत, अथवा कथा जैनेतर के लौकिक रचना होवानुं लाग्यं होत, तो भायाणी जेवा विद्वाने प्रबन्धो के प्रबन्धकारोनी शेहमां तणाईने कर्ता तथा कथाने 'जैन' लेखे स्वीकारीने वात करी न होत. अने तेमनी वात, पूर्वधारणा के पूर्वग्रह विहोणी होईने जैनोए सहेजे स्वीकारी पण होत.
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२. तरङ्गवतीनो रचनाकाळ ई.स. नी आरम्भनी ४ सदीओ होवानुं पण भायाणीए स्थापी आप्युं छे.
३. तरङ्गवती ए जैनेतर रचना छे अने तेनो संक्षेप ते तेनुं जैन संस्करण छे, एवा विधाननी सामे डॉ. भायाणीनो आ फकरो वांची : ५
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संक्षेपकारे स्पष्ट कह्युं छे के तेणे पादलिप्तनी मूळगाथाओमांथी पोतानी दृष्टिओ गाथाओ वीणी लईने ते कथाने संक्षिप्त करी छे.... आनो अर्थ ए थयो के सं. तरं. मां जे गाथाओ आपेली छे ते घणुं खरुं तो शब्दश: मूळ तरङ्गवतीनी गाथाओ ज छे.... एटले सं. तरं नी घणी खरी गाथाओने आपणे पादलिप्सनी रचना तरीके लई शकीए.
"आ वस्तुनुं असन्दिग्ध समर्थन ए हकीकतथी थाय छे के भद्रेश्वरे 'कहावली' मां तरङ्गवतीनो जे ४२५ गाथा जेटलो संक्षेप आपेलो छे तेनी आशरे २५५ गाथाओ (६० टका) सं. तरं.नी गाथाओ साथे
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अनुसन्धान ३४ शब्दशः साम्य धरावे छे. अने भ.तरं.नी बाकीनी घणीखरी गाथाओ पण सं. तरं मां आंशिक साम्य साथे मळे छे.... विषय, सन्दर्भ वगेरे जोतां ए अंश भद्रेश्वरे करेलो उमेरो नहि, परंतु मूळ कृतिमाथी ज लीधेलो होवानुं दर्शावी शकाय तेम छे. आथी सं. तरं अने भ.तरं. वच्चे जेटली गाथाओ समान छे.... ते असन्दिग्धपणे पादलिप्तनी ज छे, अने ते उपरांत सं. तरं.नी बाकीनी पण मोटा भागनी गाथाओने पादलिप्तनी
रचना गणवामां कशो दोष जणातो नथी." ४. तरङ्गवती-संक्षेपना रचनाकार तथा तेना काळ अंगे भायाणीनी नोंध
जुओ : "अने जो अर्थ एवो घटावीए के संक्षेपनी आ प्रति वीरभद्रसूरिना शिष्य नेमिचन्द्रगणीने माटे जस नामना लहियाए लखी छे (एटले के आ गाथा पण लहियानी रचेली छे) तो ए अर्थघटन व्याकरण अने वाक्यरचना साथे सुसंगत छे. आ वात स्वीकार्य लागे तो सं.त.नो कर्ता अज्ञात होवानुं मानवें पडशे.
"सं.त.ना समय बाबत पण कशुं निश्चितपणे कही शकाय तेम नथी. अन्ते जेनो निर्देश छे ते नेमिचन्द्र अने धनपालकृत 'उसभपंचासिया' परनी अवचूरिना कर्ता नेमिचन्द्र ए बने जो एकज होय तो सं.त.ने दसमी शताब्दीना अन्त पहेलां मूकी शकाय. संक्षेप प्राकृतमां ज छे ते हकीकत पण मुकाबले तेना वहेला समयनी समर्थक छे... सं.तरं.नी हस्तप्रतमां ९ मा पत्रना पहेला पाने (गा. २३१)... इ वर्ण ११-१२मी शताब्दीनी देवनागरीनी जेम उपर बे मीडां अने नीचे नानी लकीरएवा रूपे लखायेलो छे ते पण सूचवे छे के ए प्रतिना आधार तरीके बारमी शताब्दी लगभगनी कोई प्रत होवी जोईए.''६
डो. भायाणीनी उपर उद्धरेली नोंधो परथी प्रा. पलाणनां विधानो आपोआप असंगत पुरवार थाय छे, ते हवे कहेवानुं न होय.
जैन साधु शृङ्गार/वीर रसना अनभिज्ञ होय, अने तेथी तेनुं वर्णन करवामां तेओ अक्षम होय, एवं प्रा. पलाण- तारण, जैन रचनाकारोना सम्पूर्ण जीवन-कवननी तेमनी अनभिज्ञता ज पुरवार करे छे. जैन साधुओ द्वारा थयेल आ बे रसोनुं उत्कृष्ट दिगण पौराणिक तेमज
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मध्यकालीन अनेक रचनाओमां उपलब्ध छे. रसोनुं निरूपण कर्या पछी तेनुं पर्यवसान वीतरागता मां-विरागमां लाववुं, ए जैन रचनाकारोनो विशेष जरूर छे. पण तेनो अर्थ तेओ आना निरूपणमां अक्षम छे एम करवो, अने तेटला मात्रथी ज पादलिप्तने जैनेतर मानवा ते तो हास्यास्पद कल्पना छे.
शिष्यहिता वृत्ति कया सूत्र परनी ? ते ध्रुवसाहेबे नोंध्युं नथी. सम्भवतः दशवैकालिकसूत्र परनी टीका तेमना मनमां (के समक्ष ) होवी जोईए. प्रथम तो तेमणे नोंधेल वाक्य आ टीकामां छे ज नहि. तेमणे अन्यत्र कशे वांच्युं पण होय तो पण ते वाक्य अधूरुं छे. दशवै० परनी शिष्यहिता वृत्तिमां तरङ्गवतीनो उल्लेख आ प्रमाणे
छे :
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" लोके रामायणादिषु वेदे यज्ञक्रियांदिषु, समये तरङ्गवत्यादिषु " || ( पत्र ११४).
मिश्रकथा ( धर्म-अर्थ-काम वनां मिश्रणवाळी कथा) ना वर्णनमां नियुक्तिकारे जे त्रण प्रकार पाडी आपेल छे, तेनां दृष्टान्त आपतां आ. हरिभद्रसूरि नोंधे छे के
लोक (लौकिक ) मां रामायण वगेरेमां; वेदोमां यज्ञक्रिया आदिमां; अने समय एटले जैनधर्म-परम्परामां तरङ्गवती वगेरेमां (मिश्रकथा ) जाणवी.
आज वात दशवै० परनी 'चूर्णिमां पण ए ज प्रमाणे वर्णवाई छे. याद रहे के चूर्णिकार हरिभद्रसूरिना पुरोगामी छे.
७. पादलिप्स तथा नागार्जुननो सम्बन्ध काल्पनिक होय तो पण ते वात जैन प्रबन्धो-प्रमाणे प्रचलित छे. प्रबन्धोमां इतिहास - अनुश्रुतिनुं सम्मिश्रण तो होय ज. परन्तु आ बन्ने पात्रो तो ऐतिहासिक छे, एमां शंका नथी. हवे बने वच्चे सम्बन्ध हतो के केम, अने सम्बन्धनी बात ऐतिहासिक छे के केम, ते नक्की करवानुं काम तो तज्ज्ञोनुं छे.
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________________ अनुसन्धान 34 सार ए के तरङ्गवती जैन मुनिनी ज रचना छे. पादलित ए एक जैनाचार्य- ज नाम छे. तेओ चारण ज्ञातिना नहोता, के तेमणे चारण कविओनी रचना पोताना नामे पण चडावी नहोती. फरी कहीश के चारण कविओ प्रत्येना पक्षपातथी दोराईने जैन कविओ तथा काव्योने खोटा ठराववां, ते कांई विद्वज्जनोचित न गणाय, अने एवी रीते कर्याथी चारण कविओनी महत्ता वधी जाय एम पण मनाय नहि. कविनी महत्ता तेनी रचनाथी ज पुरवार करी शकाय, ए वात हमेशा याद राखवी जोईए. पादटीप 1. संखित तरंगवई कहा, सं. डॉ. हरिवल्लभ भायाणी, L.D. Series 75, ई.स. 1979, अमदावाद, पृ. 279 2. ए ज, पृ. 285 3. ए ज, पृ. 275 4. ए ज, पृ. 279 ए ज, पृ. 179 6. ए ज, पृ. 285 7. दसकालियसुत्तं - णिज्जुति चुण्णिसंजुयं, सं. मुनि पुण्यविजयजी, PTS. ई. 1972, (रिप्रिन्ट: 2003), पृ. 58 ॐ 3