________________ अनुसन्धान 34 सार ए के तरङ्गवती जैन मुनिनी ज रचना छे. पादलित ए एक जैनाचार्य- ज नाम छे. तेओ चारण ज्ञातिना नहोता, के तेमणे चारण कविओनी रचना पोताना नामे पण चडावी नहोती. फरी कहीश के चारण कविओ प्रत्येना पक्षपातथी दोराईने जैन कविओ तथा काव्योने खोटा ठराववां, ते कांई विद्वज्जनोचित न गणाय, अने एवी रीते कर्याथी चारण कविओनी महत्ता वधी जाय एम पण मनाय नहि. कविनी महत्ता तेनी रचनाथी ज पुरवार करी शकाय, ए वात हमेशा याद राखवी जोईए. पादटीप 1. संखित तरंगवई कहा, सं. डॉ. हरिवल्लभ भायाणी, L.D. Series 75, ई.स. 1979, अमदावाद, पृ. 279 2. ए ज, पृ. 285 3. ए ज, पृ. 275 4. ए ज, पृ. 279 ए ज, पृ. 179 6. ए ज, पृ. 285 7. दसकालियसुत्तं - णिज्जुति चुण्णिसंजुयं, सं. मुनि पुण्यविजयजी, PTS. ई. 1972, (रिप्रिन्ट: 2003), पृ. 58 ॐ 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org