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अनुसन्धान ३४ शब्दशः साम्य धरावे छे. अने भ.तरं.नी बाकीनी घणीखरी गाथाओ पण सं. तरं मां आंशिक साम्य साथे मळे छे.... विषय, सन्दर्भ वगेरे जोतां ए अंश भद्रेश्वरे करेलो उमेरो नहि, परंतु मूळ कृतिमाथी ज लीधेलो होवानुं दर्शावी शकाय तेम छे. आथी सं. तरं अने भ.तरं. वच्चे जेटली गाथाओ समान छे.... ते असन्दिग्धपणे पादलिप्तनी ज छे, अने ते उपरांत सं. तरं.नी बाकीनी पण मोटा भागनी गाथाओने पादलिप्तनी
रचना गणवामां कशो दोष जणातो नथी." ४. तरङ्गवती-संक्षेपना रचनाकार तथा तेना काळ अंगे भायाणीनी नोंध
जुओ : "अने जो अर्थ एवो घटावीए के संक्षेपनी आ प्रति वीरभद्रसूरिना शिष्य नेमिचन्द्रगणीने माटे जस नामना लहियाए लखी छे (एटले के आ गाथा पण लहियानी रचेली छे) तो ए अर्थघटन व्याकरण अने वाक्यरचना साथे सुसंगत छे. आ वात स्वीकार्य लागे तो सं.त.नो कर्ता अज्ञात होवानुं मानवें पडशे.
"सं.त.ना समय बाबत पण कशुं निश्चितपणे कही शकाय तेम नथी. अन्ते जेनो निर्देश छे ते नेमिचन्द्र अने धनपालकृत 'उसभपंचासिया' परनी अवचूरिना कर्ता नेमिचन्द्र ए बने जो एकज होय तो सं.त.ने दसमी शताब्दीना अन्त पहेलां मूकी शकाय. संक्षेप प्राकृतमां ज छे ते हकीकत पण मुकाबले तेना वहेला समयनी समर्थक छे... सं.तरं.नी हस्तप्रतमां ९ मा पत्रना पहेला पाने (गा. २३१)... इ वर्ण ११-१२मी शताब्दीनी देवनागरीनी जेम उपर बे मीडां अने नीचे नानी लकीरएवा रूपे लखायेलो छे ते पण सूचवे छे के ए प्रतिना आधार तरीके बारमी शताब्दी लगभगनी कोई प्रत होवी जोईए.''६
डो. भायाणीनी उपर उद्धरेली नोंधो परथी प्रा. पलाणनां विधानो आपोआप असंगत पुरवार थाय छे, ते हवे कहेवानुं न होय.
जैन साधु शृङ्गार/वीर रसना अनभिज्ञ होय, अने तेथी तेनुं वर्णन करवामां तेओ अक्षम होय, एवं प्रा. पलाण- तारण, जैन रचनाकारोना सम्पूर्ण जीवन-कवननी तेमनी अनभिज्ञता ज पुरवार करे छे. जैन साधुओ द्वारा थयेल आ बे रसोनुं उत्कृष्ट दिगण पौराणिक तेमज
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