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अभियान : विरासत बचे
ताड़पत्र पाण्डुलिपि बचायें
BEATER
TE6168
नुपम साह
डण्डियन काउन्सिल आफ कञ्जवेशन इस्टीट्यूट्स
। लखनऊ
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३
अभियान : विरासत बचायें
ताड़पत्र पाण्डुलिपि बचायें
अनुपम साह
ACHARYA SATKAILASSACESSIVA HMANDIR
Koma, Canan
2 000 Phone 7075) 23275252,03275804-0
इण्टैक
इण्डियन काउन्सिल ऑफ कजर्वेशन इंस्टीट्यूट्स
लखनऊ
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serving jinshasan
.२८२००९
138835 gyanmandir@kobatirth.org
सचा
अभियान : विरासत बचायें -३
ताड़पत्र पाण्डुलिपि बचायें
अनुपम साह
प्रकाशन : इण्टैक इण्डियन काउन्सिल ऑफ कञ्जर्वेशन इंस्टीट्यूट्स एच.आई.जी. - ४४, सेक्टर - ई, अलिगंज स्कीम् लखनऊ- २२६०२४, उत्तर प्रदेश, भारत फोन/फैक्स : ०५२२-३७७८१४, ३७६८५८ डिजाईन : सुधाकर बिस्वाल, जोन प्लेट् डिजाइन्स्
छायाचित्र : अनुपम साह, रामसागर प्रसाद, सुशान्त पट्टनायक छायाचित्र सौजन्य : इण्टैक आई.सी.आई. उड़िसा कला संरक्षण केन्द्र, उड़िसा राज्य संग्रहालय, नैश्नल लाईब्रेरी ऑफ इंडोनेशिया, श्रीनिमल लकसिंघे, जे. पी. दास, आकियो यासुए डिजिटल प्रोसेसिगं : सुदर्शन स्कैनर्स, कटक
© २००१
प्रथम संस्करण : २०००
प्रिन्टर्स : श्रीगुरु गौरंग प्रेस, भुवनेश्वर
E
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पुण्Y
OGASHANT
.
प्राक्कथन
CDS1003207
भारतवर्ष में कागज के आगमन के पूर्व, मुख्यतः तटवर्ती प्रदेशों में, ताड़ पत्र पर लिखाई की जाती थी। श्रीलंका, थाईलैण्ड, बर्मा, लाओ, इंडोनेशिया इत्यादि देशों में भी ताड़पत्र का प्रयोग करा जाता था । फलस्वरूप हमारे पास लाखों पाण्डुलिपियाँ विरासत के रूप में आज उपलब्ध हैं । इनको जीर्ण-शीर्ण होने से बचाना हमारा कर्तव्य है।
यदि हम कुछ सरल नियमों तथा पूर्वप्रबन्धों का पालन करें, तो ताड़पत्र पाण्डुलिपियों के संरक्षण के लक्ष्य की पूर्ति हो सकेगी।
अनुपम साह द्वारा लिखित इस पुस्तिका में ताड़पत्र पाण्डुलिपियों को जीर्ण-शीर्ण होने से बचाने के सिद्धान्त वर्णित हैं । हम आशा करते हैं कि भारतवर्ष में ही नहीं, अन्य देशों में भी यह पुस्तिका ताड़पत्र पाण्डुलिपियों का संरक्षण करने में सहायक सिद्ध होगी। हमे ताड़पत्र पाण्डुलिपि संरक्षण अभियान में नोराड (नार्वे), तथा जापान फाऊंडेशन एशिया सेंटर ने बहुत सहायता करी है। हम उनके आभारी हैं।
ओ. पी. अग्रवाल महानिदेशक इण्डियन काउन्सिल ऑफ कञ्जर्वेशन इंस्टीट्यूट्स लखनऊ
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• भूमिका
हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से ताड़पत्रों पर लिखाई करते आ रहे हैं। यह परम्परा आज भी जीवित है किन्तु केवल कलात्मक तथा सांस्करिक उद्येश्य के लिए।
रघुराजपुर, पुरी जिला का एक गाँव, जहाँ यह पारम्परिक शैली आज भी जीवित है।
भारत में ही नहीं, ताड़पत्र पाण्डुलिपियाँ दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भी पाई जाती हैं।
भारत
बर्मा
लाओ
-
थाईलैण्ड)
श्रीलंका
MOREA
- इंडोनेशिया
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इन देशों के संग्रहालयों, घरों, मठों, ग्रन्थागारों तथा विश्वविद्यालयों में लाखों ताड़पत्र पाण्डुलिपियाँ संग्रहित हैं ।
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हजारों वर्षों का एशियाई ज्ञान इन पाण्डुलिपियों में लिपिबद्ध है, जिनमे से अनेक पाण्डुलिपियाँ अति सुन्दरता से चित्रित हैं ।
ऊषाहरण, १८ शताब्दी, उड़िसा राज्य संग्रहालय ।
ज्योतिर्विज्ञान, गणित, आयुर्वेद, व्याकरण, वेद, पुराण, जैसे विषयों का हजारों वर्षों का ज्ञान इन पाण्डुलिपियों में संग्रहित हैं।
चित्रित ताड़पत्र पाण्डुलिपि। इंडोनेशिया राष्ट्रीय पुस्तकालय अभिलेखागार संग्रह।
भाबी MODEmमनी राजिम
नंदमारामारवानियतीयgall मायाकहकरशाtayindia
खानीजल होनूदायावसाला मार
MARोनीय सेवागधवासवावामा समान ASIकनका निभाना रूपांडकारच्यासापक बनी
यदि यह पाण्डुलिपियाँ नष्ट हो जाये तो मानव समाज की क्रमोन्नति की यह स्मृतियाँ सदैव के लिए लुप्त हो जायेंगी। अत: अतिआवश्यक है कि हम इन पाण्डुलिपियों का संरक्षण करना सीखें।
वामामधासचा Boar
इसके लिए पहला कदम है कि हम जानें कि ताड़पत्र पाण्डुलिपि की संरचना कैसे होती है।
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- ताड़पत्र पाण्डुलिपि की संरचना
ताड़वृक्ष की कोमल हरी पत्तियों को काट कर नियंत्रित विधि से सुखाया जाता है।
ताड़पत्र के भेद-विशेष
पत्रों को धूमन करना, उबालना, गीली मट्टी के नीचे रखना, लकड़ी पर घिसना, पत्रों को परिपक्व बनाने के लिए करा जाता
ताड़ वृक्ष के अनेक प्रकार हैं, किन्तु इनमें से कुछ ही हैं जिनके पत्रों पर लिखाई करी जाती है। यह हैं,
पाल्माएरा पाल्म व तालया
ताड़; तालिपॉट पाल्म व
उपयुक्त आकार में इन पत्रों को काटा जाता है तथा इनमे एक छेद करा जाता है, जिसमे पाण्डुलिपि को बाँधने के लिए सुतली पिरोई जाती है।
करलिका, श्रीतालम या
तालि; व कोराईफा
तालिएरा रॉकस्ब्।
ताड़पत्र को श्रीलंका में ओला तथा थाईलैण्ड में
लोहे की तीखी लेखनी से इन पत्रों पर खुदाई करके लेख तथा चित्र बनाए जाते हैं।
लान कहा जाता है।
-
ताकि खुद्रित लिखाई स्पष्ट रूप से देखी जा सके, काजल की स्याही पत्रपृष्ठ पर घिसी जाती है।
299TARANG
1010
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२६६Cine ଏସନ ମହାମେଣ୍ଟସ ସ୍ୱନାମରୁଣ ଅଚ୍ୟୁତି (କେସ୍କୋପ ଅଟେକା ମତ ବିଶ୍ୱରେ ଏ
६६०
ERB
5450566CCESS
चित्र तथा लेख ताड़पत्र पर तूलिका (ब्रुश ) से भी अंकित करे जाते हैं ।
तत्पश्चात्, पत्रों को माला की तरह पिरोया जाता है ।
बड़ा क्षेत्रफल पाने के लिए ताड़पत्रों को परस्पर सिला भी जा सकता है ।
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इन पत्रों को काठ के पट्टों के बीच दबा दिया जाता है, फिर पठ्ठों के ऊपर सुतली कसकर बाँध दी जाती है, ताकि पत्रों का आकार चपटा बना रहे ।
इन पट्टों को चित्रित कर
अनेक आकार भी दिए जाते हैं ।
६६
श्री कुम करनेदारना माइयाव गोदावाव वासवाव सेवागंधवा रविवारवित्रक
रूपोयुकाश्य
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पारम्परिक विधि से शंख को सिलबट्टे पर घिस कर सफेद रंग बनाते हुए एक चित्रकार महिला 1
7
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ताड़पत्र क्यों तथा कैसे नष्ट होते हैं ?
8
BEDIORAT
दीमक, सिल्वर फिश,
तिलचट्टे, बुक लाईस जैसे कीड़े इन पत्रों को खा जाते हैं ।
कीटाक्रमण, तेल इत्यादि से चीपके हुए पत्र ।
धूप में अनियंत्रित तरीके से सुखाने तथा काठ के पठ्ठों के बीच कसकर न रखने के कारण वक्र हुए पत्र ।
138835
पत्र के किनारों के टूट जाने के कारण हैं, कीटाक्रमण, पाठकों के द्वारा अपव्यवहार तथा काठपठ्ठों का आकार पत्रों से छोटा होना ।
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सूखे वातावरण में पत्र अपनी नमी खो देते हैं और टूट जाते हैं । प्रदर्शन पेटिका के अन्दर जले हुए बल्ब यह क्षति पहुँचाते हैं ।
ऊषाहरण, १८ शताब्दी, उड़िसा राज्य संग्रहालय ।
पाठकों तथा अधिकारियों की लापरवाही से पत्र पर निशान व दाग पड़ जाते हैं ।
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पत्रों को अनियंत्रित रूप से बारम्बार हिलाने से सुतली वाले छेदों का आकार नष्ट हो जाता है।
son
हजारों पाण्डुलिपियाँ मात्र कुछ घण्टों में आग से ध्वंस हो सकती हैं।
SOFERO DAAN
चित्रित पाण्डुलिपि अगर ढीली बँधी हो, तो पत्रों के परस्पर रगड़ खाने से अंकित चित्रों के रंग झड़ने लगते हैं।
उँची आर्द्रता, अंधकार तथा बासी वातावरण में फफूंद उग जाता है । 'एयर कण्डीशनर' का बार-बार चलाने तथा रोकने से तापमान तथा आर्द्रता का उतार-चढ़ाव होता है जिससे पाण्डुलिपियाँ र्दुबल होकर नष्ट हो जाती हैं।
पत्र चिर जाते हैं।
វង់ពព្អក សានុវ៖
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मनुष्य द्वारा क्षति : जानबूझ कर कलाकृति को नष्ट करने वाले लोग, चोर, दायित्वहीन पाठक, असावधान कर्मचारी, उदासीन जनसाधारण एवं अधिकारीगण- यह सब इस सांस्कृतिक धरोहर को विध्वंस की ओर ले जाते हैं ।
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हम इन पाण्डुलिपियों की रक्षा कैसे करें ?
१. जब पाण्डुलिपि प्राप्त करें तो उसे संग्रहित पोथियों के साथ न रखें । क्योंकि अगर उसमे फफूँद या कीड़े होंगे, तो यह आपके संग्रह में फैल जायेंगे । ऐसी नई पाण्डुलिपि को ब्रुश से साफ कर, कीट रहित करें और एक महीने बाद फिर जाँच करके ही संग्रह में रखें ।
२. काठ के पट्ठों के सूक्ष्म छेदों से बुरादा निकलना काक्रमण का प्रतीक है । ऐसे पट्टों को कीट रहित करें अथवा बदल दें ।
३. ऐसे न बाधें ।
४. पत्रों को पठ्ठों के बीच सुतली से कसकर सामान दाब देकर बाँधें ।
५. पाण्डुलिपियों को अनुशासित रूप से बंद अलमारी या बक्से मे रखें ।
10
६. पाण्डुलिपि को मोटे सूती कपड़े में लपेटकर रखें ।
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७. महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों को छोटे, सबल बक्सों में रखें जिन्हें आपातकालीन स्थिति उभरने पर पूर्वनिश्चित सुरक्षित स्थान पर आसानी से ले जाया जा सके ।
८.
पत्रों को पढ़ते समय ध्यानपूर्वक पलटें ।
९. पत्रों पर कलम से निशान न डालें ।
१०. संग्रहित पाण्डुलिपियों का प्रलेखन तथा प्रकाशन होना चाहिए । पढ़ने के लिए पाठकों को मौलिक पाण्डुलिपियों के बदले उसकी प्रतिलिपि अथवा माईक्रोफिल्म देनी चाहिए। पाण्डुलिपियों की अवस्था विवरणी संरक्षण विशेषज्ञों द्वारा तैयार करवानी चाहिए ।
ik Shahatan...
११. क्योंकि अधिक क्षति भण्डारघर में होती है, इसलिए नियमित निरीक्षण कर अधिकारियों को हुए नुकसान से अवगत कराना चाहिए, ताकि वह उपयुक्त कार्यवाही कर सकें।
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१२. किसी एक पर पाण्डुलिपियों के देखभाल की जिम्मेदारी सौंपें ।
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- धूल तथा प्रदूषण से पाण्डुलिपियों को कैसे बचायें ?
१. संग्रह को धूल भरे तथा प्रदूषित स्थान में स्थित न करें ।
परिवेश को धूल रहित करने के लिए, भवन के चारों ओर घास
तथा वृक्ष लगायें। ३. महत्वपूर्ण संग्रह भवन के अन्दूनी कक्षों में स्थित करें।
४. खिड़कियाँ बन्द रखें ।
५. जूतों से मट्टी निकालने के लिए द्वार पर पायदान रखें जिन्हें
नियमित साफ भी करा जाय । ६. पाण्डुलिपियों को अलमारी अथवा बक्सों में रखें । ७. कमरे तथा ‘फर्नीचर' को वैक्यूम क्लीनर' अथवा थोड़े से
गीले कपड़े से साफ करें। सावधान। वैक्यूम क्लीनर' से कहीं पाण्डुलिपियाँ को गलती
से नष्ट न कर दें। ९. झाडू लगाएँ, तो सावधानी से, तथा धीरे से ताकि धूल न उड़े। १०. दर्शक तथा प्रदर्शित पाण्डुलिपियों के बीच कुछ दूरी रखें । ११. द्वार पर 'एयर कर्टेन' भी लगा सकते हैं। १२. 'एयर कंडीशनर' में हवा के प्रवेश का स्थान ऊँचाई तथा भवन के सबसे कम प्रदूषित हिस्से में स्थित
होना चाहिए। १३. ताकि यह हवा धूल तथा 'सल्फर डाइआक्साईड'
रहित प्रवेश करे, ए०सी० में प्रवेश करती हवा को पानी के फव्वारे से धो दें।
१४. जब पाण्डुलिपियाँ पढ़ी
या प्रदर्शित नहीं करी जा रही हों, तो उन्हें कपड़े से ढक दें।
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- पाण्डुलिपियों को प्रकाश से कैसे बचायें ?
१. प्रदर्शन पेटिका के अन्दर स्थित बल्ब, पेटिका के वायुमण्डल
को शुष्क करके, प्रदर्शित पत्रों को भंगुर कर देते हैं । इन बल्बों को निकाल दीजिए।
सेसर
२. पांडुलिपियों को प्रकाश के ४० 'लक्स' से कम प्रखर्ता में
प्रदर्शित करें तथा इस प्रखर्ता को नापने के लिए 'लक्स मीटर' का प्रयोग करें।
रीडिंग
रीडिंग
स्विच
स्कल
३. यदि प्रकाश की प्रखर्ता ४० 'लक्स' से अधिक हो, तो अतिरिक्त
बत्तियाँ बुझा दें या 'डिम्मर स्विच' से हल्की कर दें।
लक्स मीटर
४. प्रदर्शित पाण्डुलिपि एवं प्रकाश के स्रोत के बीच की दूरी बड़ाने
से भी प्रकाश की प्रखर्ता कम हो जाती है।
लक्स मीटर का प्रयोग
५. सूर्य प्रकाश एवं 'ट्यूबलाईट' की 'अल्ट्रावायोलिट' किरणें
पत्रों को नष्ट कर देती हैं । इसलिए पत्रों को ढक दें तथा खिडकियों में पर्दे लगाएँ।
लक्स मीटर का स्विच ऑन करें।
स्केल को समायोजित करें।
६. इन हानिकारक किरणों को रोकने के लिये खिड़की के शीशों ___ एवं 'ट्यूबलाईट' पर 'अल्ट्रावायोलिट फिल्टर' लगा दें ।
सेंसर को प्रकाश स्रोत के तरफ न दर्शाएँ। सेंसर को प्रदर्शित वस्तु के समान्तर रखें।
७. कमरे की दीवालों को 'अल्ट्रावायोलिट' किरणों को सोखने
वाले 'जिंक आक्साईड' या 'टाइटेनियम डाईआक्साईड' से रंग करें।
ध्यान दें कि सेंसर पर आपके शरीर की छाया न पड़े।
८. जब दर्शक न हों, तब प्रदर्शित ताड़पत्रों को कपड़े से ढक दें या
फिर बत्तियाँ बुझा दें।
रीडिंग नोट करें।
मीटर का स्विच ऑफ करें।
ORGAMACOR
TIPARLICA
४०० (a
)
राममति
AGan
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- पाण्डुलिपियों को कीड़ों से कैसे बचायें ?
१. पाण्डुलिपियों को बन्द बक्सों अथवा अलमारी में रखें।
२. पाण्डुलिपियों के साथ कीट विकर्षक तत्व रखें ।
३. प्राप्त पाण्डुलिपियों में कीड़े के अण्डे अथवा डिम्भ (लार्वा) हो सकते हैं, जो संग्रह के अन्य पाण्डुलिपियों में फैल कर उनको भी नष्ट कर सकते हैं। अत: कीटग्रस्त एवं हाल मे प्राप्त पाण्डुलिपियों को अपने संग्रह से दूर रखें, और उनकी जाँच करें।
लकड़ी के पठे, जिनके बीच में ताड़पत्रों को रखा जाता है, उनमें भी कीड़े विद्यमान हो सकते हैं । सावधान रहें।
५. भण्डारकक्ष तथा प्रदर्शन कक्ष में भोजन न करें क्योंकि खाद्य पदार्थों से कीड़े मकौडे एवं चूहे आकर्षित
होते हैं।
६. कपड़े में पाण्डुलिपि को लपेटने से पहले, कपड़े को अच्छी तरह धोकर उसका माँड़ निकाल दें
अन्यथा कीड़े आकर्षित हो जाएँगे।
७. संग्रह का नियमित निरीक्षण करें । कहीं लकड़ी का बुरादा दिखे, जो कीटाक्रमण का प्रतीक है, तो
तुरन्त अधिकारीगण को बताएँ, कीटग्रस्त पाण्डुलिपि को संग्रह से अलग करें तथा उसका उपचार करायें।
८. संग्रह के साथ कीटनाशक कागज रखें।
९. खिड़की में जाली लगायें।
१०. परिवेश स्वच्छ रखें।
११. पेटिका एवं अलमारी को दीवाल से अलग रखें, तथा जमीन पर कीटनाशक पदार्थ रखें ।
१२. रासायनिक धूमन करने से कीड़े मर जाते हैं, परन्तु अगर सावधानी न बर्ते, तो पाण्डुलिपियों में
कीटाक्रमण पुनः हो जाएगा।
१३. भवन निर्माण के समय ही भवन को दीमक अभेद्य बनायें।
१४. अपनी परेशानियों की दूसरी संस्थाओं एवं विशेषज्ञों से चर्चा करें ।
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- पाण्डुलिपियों को
आपेक्षिक आर्द्रता एवं तापमान से कैसे बचायें।
१. तापमान एवं आपेक्षिक आर्द्रता के उतार-चढ़ाव से पांडुलिपियाँ नष्ट हो जाती हैं । पाण्डुलिपियों
को माँड रहित मोटे सूती कपड़े में लपेटें एवं अन्दूनी कक्ष में रखें । मोटे सूती कपड़े (बफर) आर्द्रता को धीरे धीरे सोखते तथा छोड़ते हैं, जिससे अनियंत्रित उतार-चढ़ाव के हानिकारक प्रभाव कम हो जाते हैं।
२. 'एयर कंडीशनर' अगर प्रयोग करें, तो उसे लगातर दिन के २४ घण्टे तथा वर्ष के ३६५ दिन चालू
रखें । अगर यह सम्भव नहीं, तो इस यंत्र को संग्रह कक्ष या भंडारकक्ष मे स्थापित न करें । एयर कंडीशनर' को बार बार ऑन तथा ऑफ करने से तापमान तथा आर्द्रता में तीर्व उतार-चढ़ाव होता है, जिससे संग्रहित पाण्डुलिपियाँ बहुत शीघ्र ही नष्ट हो जाती हैं ।
३. प्रतिदिन तापमान तथा आपेक्षिक आर्द्रता को ड्राई एण्ड वेट थर्मोमीटर' से नापा तथा 'थर्मोहाईग्रोग्राफ'
से रिकॉर्ड करा जा सकता है । कम से कम एक वर्ष तक के ऐसे रिकार्ड, उतार-चढ़ाव की गति को समझने तथा सुधारात्मक कदम लेने के लिए सहायक होते हैं ।
४. प्रदर्शन पेटिका मे सिलिका जेल रखने से उच्च आपेक्षिक आर्द्रता की मात्रा को कम कर सकते हैं ।
५. यदि आपेक्षिक आर्द्रता का स्तर ४५% से कम हो, तो पाण्डुलिपियों के शुष्क तथा भंगुर हो जाने
का भय है।
६. पाण्डुलिपि संग्रह कक्ष में अच्छा वायुसंचार अनिवार्य है । अधिक आर्द्रता, अंधकार एवं स्थिर हवा
में फफूंद का जन्म होता है।
७. चित्रित पाण्डुलिपि के पत्रों के बीच ‘टिशू पेपर' रखें ।
८. दर्शकों के गमनागमन को नियंत्रित करें ।
९. संग्रह के आसपास पानी को जमा न होने दें ।
१०. यदि पाण्डुलिपि गीली हो जाए, तो धूप में न सुखाएँ ।
कमरे में, पंखे की हल्की पवन में सुखाएँ ।
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• पाण्डुलिपियों का उपयुक्त
भंडारण एवं प्रदर्शन
१. संग्रह कक्ष स्वच्छ, प्रकाशित तथा हवादार होना चाहिए । २. पाण्डुलिपियों को बक्सो में सुव्यवस्थित ढंग से रखें । ३. अलमारी का सबसे निचला तख्ता भूमि से ६-८ इंच उपर होना नैश्नल लाईब्रेरी ऑफ चाहिए।
इंडोनेशिया के पाण्डुलिपि
अभिलेखागार के मूल भंडारण ४. दीवाल तथा अलमारी के बीच खाली स्थान छोड़ें ।
का दृश्य । ५. पाण्डुलिपियों को नित्यप्रतिः पवन दें तथा उनकी जांच करें । ६. भंडार में पाण्डुलिपियों को आसानी से ढूंढने के लिए, कौन सी
पाण्डुलिपि किस स्थान पर रखी है, इसको लिख कर के रखें। ७. अग्निशामक यंत्र एवं 'लाईट स्विच' तथा 'फ्यूज बॉक्स' को पाण्डुलिपि
संग्रह कक्ष के बाहर स्थापित करना चाहिए । ८. दर्शकों के गमनागमन पर नियंत्रण रखें। ९. पाण्डुलिपियों के साथ रंग, रासायनिक पदार्थ एवं कोई ज्वलनशील
वस्तु न रखें। १०. संग्रह कक्ष में धूम्रपान वर्जित करें ।
वही पाण्डुलिपियों को
सुव्यवस्थित ढंग से बक्सों में | ११. पाण्डुलिपियों के लिए ऐसी पेटिका का निर्माण करें जिसमे भंडारण
रखने के बाद का दृश्य । तथा प्रदर्शन एक साथ हो सके। १२. पाण्डुलिपि को समतल पृष्ठ का सहारा देकर प्रदर्शित करना चाहिए।
१३. प्रकाश, धूल, तापमान तथा आपेक्षिक आर्द्रता के नियंत्रण के लिए पूर्वोल्लेखित कार्यविधियों का पालन करें। १४. भंडारकक्ष एवं प्रदर्शन कक्ष में रखी पाण्डुलिपियों
को नियमित भाव से परस्पर अदला बदली करें।
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. उपसहार
हम अपनी पाण्डुलिपियों के विषय में यदि थोड़ा सा चिन्तन करें, तो शायद हम इनकी ज्यादा अच्छी देखभाल कर सकेंगे । अपने घरों मे पाण्डुलिपियों की अवस्था ज्यादा अच्छी होती है क्योंकि उनको व्यक्तिगत यत्न से रखा जाता है। संस्थाएँ जो हजारों की संख्या में पाण्डुलिपियों का संग्रह करती हैं। उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि उनका निरंतर देख रेख भी करें । ऐसी संस्थाओं को सहारा देना हम सब का
कर्तव्य है।
यदि आपके पास कोई पाण्डुलिपि संरक्षण सम्बन्धित प्रश्न या सुझाव हो, तो कृपया हमे इस पते पर अवश्य लिखें।
इण्टैक इण्डियन कञ्जर्वेशन इंस्टीट्यूट उड़ीसा कला संरक्षण केन्द्र उड़ीसा राज्य संग्रहालय परिसर भूवनेश्वर : ७५१०१४, उड़ीसा दूरसंचार : (०६७४) ४३२६३८ फैक्स : (०६७४) ४३२६३८, ५३०५९९ ई-मेल :
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Centres:
सहायता के लिए आई०सी०सी०आई० के निम्नलिखित केन्द्रों से आप संपर्क कर सकते हैं।
1. INTACH Indian Conservation Institute, B-42, Nirala Nagar,
Lucknow - 226020. (U.P.)
Phone/Fax: 0522-787159, 377814, 376858 e-mail:
4.
Indian Council of Conservation Institutes, HIG-44, Sector-E, Aliganj Scheme, Lucknow - 226024, (U.P.) Tel/Fax: 0522-377814, 376858, 787159 e-mail: iccins@sancharnet.in
2. ICI - Mehrangarh Art Conservation Centre Mehrangarh Fort,
Jodhpur-342001. Rajasthan
Phone: 0291-548790, 548992 Fax: 548992
www.kobatirth.org
3. INTACH ICI - Orissa Art Conservation Centre State Museum Premises Bhubaneswar-751014. Orissa
Phone/Fax: 0674-432638 e-mail:
INTACH Art Conservation Centre, 71, Lodhi Estate,
New Delhi-110003
Phone: 011-4641304, 4692774 Fax: 4611290 e-mail:
5. INTACH Chitrakala Parishat Art Conservation Centre (ICKPAC) Kumara Krupa Road, Bangalore-560001. Karnataka
Phone: 080-2250418 Fax: 080-2263424 e-mail:
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
6. ICI Art Conservation Centre Rampur Raza Library
Rampur 244901 (U.P.)
Phone: 0595-325045 Fax: 0595-340548
7. Mural Painting Conservation Research and Training Centre,
9.
Archaeological Museum Premises Chernbukkavu,
Thrissur -20 (Kerala)
Phone: 0487-321633 Fax: 0487-320800 e-mail:
8. Manuscripts Conservation Project. HIG-44; Sector E, Aliganj Scheme Lucknow -226024, (U.P.)
Tel/Fax (0522) 376858; 377814
Shri Mahavir Digamber Jain Pandulipi Sanrakshan Kendra
Bhattarak Ji Ki Nasyan,
Sawai Ramsingh Road, Jaipur - 302 004 Rajasthan.
10. Charles Wallace Institute for
Conservation Research & Training B-42 Nirala Nagar
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