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हम इन पाण्डुलिपियों की रक्षा कैसे करें ?
१. जब पाण्डुलिपि प्राप्त करें तो उसे संग्रहित पोथियों के साथ न रखें । क्योंकि अगर उसमे फफूँद या कीड़े होंगे, तो यह आपके संग्रह में फैल जायेंगे । ऐसी नई पाण्डुलिपि को ब्रुश से साफ कर, कीट रहित करें और एक महीने बाद फिर जाँच करके ही संग्रह में रखें ।
२. काठ के पट्ठों के सूक्ष्म छेदों से बुरादा निकलना काक्रमण का प्रतीक है । ऐसे पट्टों को कीट रहित करें अथवा बदल दें ।
३. ऐसे न बाधें ।
४. पत्रों को पठ्ठों के बीच सुतली से कसकर सामान दाब देकर बाँधें ।
५. पाण्डुलिपियों को अनुशासित रूप से बंद अलमारी या बक्से मे रखें ।
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६. पाण्डुलिपि को मोटे सूती कपड़े में लपेटकर रखें ।
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७. महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों को छोटे, सबल बक्सों में रखें जिन्हें आपातकालीन स्थिति उभरने पर पूर्वनिश्चित सुरक्षित स्थान पर आसानी से ले जाया जा सके ।
८.
पत्रों को पढ़ते समय ध्यानपूर्वक पलटें ।
९. पत्रों पर कलम से निशान न डालें ।
१०. संग्रहित पाण्डुलिपियों का प्रलेखन तथा प्रकाशन होना चाहिए । पढ़ने के लिए पाठकों को मौलिक पाण्डुलिपियों के बदले उसकी प्रतिलिपि अथवा माईक्रोफिल्म देनी चाहिए। पाण्डुलिपियों की अवस्था विवरणी संरक्षण विशेषज्ञों द्वारा तैयार करवानी चाहिए ।
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११. क्योंकि अधिक क्षति भण्डारघर में होती है, इसलिए नियमित निरीक्षण कर अधिकारियों को हुए नुकसान से अवगत कराना चाहिए, ताकि वह उपयुक्त कार्यवाही कर सकें।
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१२. किसी एक पर पाण्डुलिपियों के देखभाल की जिम्मेदारी सौंपें ।