Book Title: Snatrapooja
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 88888888888888386686988888889 www.kobatirth.org 9১১৯১১১9968688888888888 श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिग्रंथमाळा-ग्रंथांक नं. ६७ शास्त्रविशारद जैनाचार्य योगनिष्ठ श्रीमद्बुद्धिसागरमहाराज सूरीश्वर विरचित. स्नात्रपूजा. प्रथम आवृत्ति गैर सं. २४५० विक्रम सं १९८० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छपी प्रसिद्ध करनार, श्री अध्यात्मज्ञानप्रसारक मंडल. हा. वकील मोहनलाल हिमचंद. For Private And Personal Use Only शक्र प्रत १८०० 08888888666666668388888.9666666666666666666 सने १९२४ किंमत रु०-२-० 9999999999993666666666 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - अमदावार पापुर बोलका आविला की मासिक अमदावाद-शाहपुर नवी पौळमां आवेला श्री प्रजाहितार्थ मुद्रालयमा पटेल रामामार दलपतरामे छोप्युं. For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना. सर्वातिशये शोभता, प्रभु महावीर जिनेश, शासननायकजगपति, प्रणमुं हुं विश्वेश. प्रभुस्नातनी भावना, करतां शांति थाय, रोग शोक दूरे टळे, स्नात्रपूजामहिमाय. (आचार्य श्री बुद्धिसागरजी) सर्वातिसये विभषित शासन नायक चरम जिनेश्वर शासनोद्धा. रक श्रीमद् महावीर प्रभुनु स्नात्र के जेना रचनार बालब्रह्मचारी कविराज अध्यात्मज्ञानप्रचारक भारतभूषण शास्त्रविशारदजैनाचार्य योगनिष्ठ श्रीमद् बुद्धिसागरजी सूरीश्वरजी छे. तेनो अत्यंत हर्षपूर्वक प्रकाश करवामां आवे छे. अगाउ पण केटलाक पंडितो अने मुनिवरोना स्नात्र सुप्रसिद्ध छे, परंतु जमा• नाने अनुसरीने आसन्नोपकारी शासनप्रभावक श्रीमद् महावीरमभुर्नु स्नात्र अत्यारसुधी कोइए बनावेलु नहोत, ते गुरुश्रीए केटलाक भतोना आग्रहथी रचीने समाजपर उपकार कयों छे, ज्यारे ज्यारे महान तीर्थकरोनो विश्वमां जन्म थाय छे त्यारे त्यारे इंद्रो भक्तिभावपूर्वक जन्मोत्सव करे छे. तेवी भावनाने धारीने अत्यारे पण जैनमंदिरोनी अंदर सिंहासनमां प्रभु अने सिद्धचक्रने पधारावीने अष्टप्रकारे स्नात्र नणावी पूजा (सेवा) भक्ति करवामां आवे छे. जैनधर्म स्याद्वाद शैलीथी भरपूर छे, अने तेमां एकांतवाद याने दुराग्रह कदाग्रह धारण न करवो ए वात स्पष्ट छे, छतां पण समाजमां हजु पण तेवा मनुष्यो छे के एकांत कदाग्रह करी साध्यने भूली जइ के साधनोना एकांत मोहमां शक्तिनो व्यय करे छे अने एकांत कदाग्रहमा समाजनेज रहेवा For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवानो यत्न करे छ. साधनो द्वारातो साध्यने लक्षमा राखीने जे भक्ति (पूजा) सेवा करवामां आवे छे तेथी अत्यंत लाभ थाय छे अने ते मार्गेज निष्कामभावे प्रवृत्ति करवी तेज योग्य छे. जेवी भक्तनी वि. चारणा अने भावना ते प्रमाणे भक्ति-पूजानुं फळ मळे छे. महावीर प्रभुनुं नाम विश्वमा ज्यां त्यां प्रसिद्धि पामी मनुष्यो तेमना विचारोने ग्रहण करतां थाय एम गुरुश्रीनी आंतरिक भावना छे. आ स्नात्र खरेखर विचारणीय अने मननीय छे एटलुंज नहि पण ते मुख पाठे करवा योग्य छे. गुजरातना घणा भागोमां प्लेगादि रोगो शरु थया हतां त्यारथी रोग शोक निवारणार्थे तथा शांति माटे हजु पण घणा गामोमां दररोज स्नात्र भवामां आवे छे. महावीर प्रभुनुं स्नात्र भ. णवानो विशेष प्रचार थाय अने तद्द्वारा आ स्नात्रनो सार ग्रही विश्वना मनुष्यो भक्ति करी तद्वारा महावीर प्रर्नु स्मरण निदिध्यासन करी भक्ति सेवा भावनावडे कर्मबंधनो तोडवा यथाशक्ति प्रति करे ते हेतुथी आ स्नात्र पूजा नामनो लघुग्रंथ श्री अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मंडळ तरफथी श्रीमद् बुद्धिसागर ग्रंथमाळामां ग्रंथांक नं ६८ मां तरीके गुंथी बहार पाडवामां आवे छे. अंतमां वाचको प्रत्ये थयेल भूलनी क्षमा इच्छी हंस चंचुवत् सार ग्रहण करी स्वोत्रतिमाटे प्रवृत्ति करशे एम इच्छी विरमुं छु. ॐ श्रीगुरु शांतिः ३ साणंद सं.१९८० ), लेखक. सद्गुरु चरणोपासक. माह सुद पंचमी. बसंतपंचमी ) आत्माराम.खेमचंद कापडीआ For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री अध्यात्मज्ञानप्रसारक मंडळ तरफथी श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजीग्रन्थमाळामां प्रगट थयेला ग्रन्थो. २४८ किंमत. ०-८-. ०-४-० ०-८-० ०-८-० ०-८-० ०-८-० ०-८-० ०-८-० ..१२.० ०.१२.० ०-४-० ०-१-० प्रयांक १ क. भजन संग्रह भाग १ लो. २०० * १ अध्यात्म व्याख्यानमाला. * २ भजनसंग्रह भाग २ जो. ३३६ * ३ भजनसंग्रह भाग ३ जो. २१५ * ४ समाधिशतकम्. ६१२ , ५ अनुभवपचिशी. ६ आत्मप्रदीप. * ७ भजनसंग्रह भाग ४ थो. ३०४ ८ परमात्मदर्शन. : ९ परमात्मज्योति. * १० तत्वबिंदु. २३० * ११ गुणानुराग. (आत्ति बीजी) २४ * १२-१३. भजनसंग्रह भाग ५ मो तथा ज्ञानदीपिका. * १४ तीर्थयात्रानु विमान ( आ. बीजी) ६४ * १५ अध्यात्मभजनसंग्रह १९० * १६ गुरुबोध. १७४ * १७ तत्वज्ञानदीपिका १२४ ३१५ नरक ५०० ०-६-० ०-२-० ०-६-० ०-४-० ०-६-० For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६ १८ गहूंली संग्रह भा. १ * १९ - २० श्रावकधर्मस्वरूप भाग १ - २ (आवृत्ति त्रीजी ) * २१ भजनपदसंग्रह भाग ६ ठो. २२ वचनामृत, २३. योगदीपक. २४ जैन अतिहासिक रासमाळा. * २५ आनन्दघनपद ( १०८ ) संग्रह भावार्थ सहित. • ३६ विजापुरवृत्तांत, ३७ साबरमतीकाव्य. ३८ प्रतिज्ञापालन. ३९-४०-४१ जैनगच्छमत प्रबंध, संघप्रगति, जैनगीता. ४२ जैनधातुप्रतिमा लेखसंग्रह भा. १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ * २६ अध्यात्मशान्ति ( आवृति बीजी ) * २७ काव्यसंग्रह भाग ७ मो. * २८ जैनधर्मनी प्राचीन अने अर्वाचीन स्थिति. ९६ * २९ कुमारपाल ( हिंदी ) २८७ ३० थी ४ - ३४ सुखसागर गुरुगीता ३०० ३५ पद्रव्यविचार. २४० For Private And Personal Use Only २०८ ८३० ३०८ ४०८ ८०८ ४०-४०-१-० ०.१२.० ०.१४-० ०१४-० ?-0-0 १३२ १५६ ९० १९६ ११० ३०४ ०-३-० -0-0 ०-३-० ०-८-० 0-2-0 ०-६-० 0-8-0 0-8-0 0-8-0 ०-६-० 0-4-0 १-०-० 0-0-8 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३ मित्रमैत्री. ४४ शिष्योपनिषद् . ४५ जैनोपनिषद्, www.kobatirth.org ४६-४७ धार्मिक गद्यसंग्रह तथा सदुपदेश भाग १ लो. ४८ भजनसंग्रह भा. ८ ४९ श्रीमद् देवचंद्र भा. १ ५० कर्मयोग. ५१ आत्मतत्त्वदर्शन ५२ भारत सहकारशिक्षण काव्य ५३ श्रीमद् देवचंद्र भा. २. ५९ देववंदन स्तुति स्तवन संग्रह. ६० पूजासंग्रह भा. १ लो. ६१ भजन पदसंग्रह भा. ९ ६२ भजन पदसंग्रह भा. १० ६३ पत्र सदुपदेश भा. २ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९७६ ९७६ ३-०-० १०२८ १०१२ ११२ १६८ १२०० ५४ गहुली संग्रह भा. २. १३० ५५ कर्मप्रकृतिटीकाभाषांतर ८०० ५६ गुरुगीत गुंहली संग्रह. १९० ५७-५८ आगमसार अने अध्यात्म गीता ४७० १७५ ४१६ ५८० २०० ५७५ नीचेना ग्रन्थो वे ऋण मासमां बहार पडशे. ६४ धातुप्रतिमालेख संग्रह भाग २ ૪૮ ४८ For Private And Personal Use Only 01110 0-2-0 0-2-0 ३-०-० १-०-० ३-०-० ०-१०.० ०-१०-० ३-८-० ह 0-8-0 ३-२-० ०.१२.० 0-5-0 0-8-0 १-०-० १-८-० १-०-० १-८-० Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६५ जैनदृष्टि ईशावास्योपनिषद् भावार्थविवेचन. ६६ पूनासंग्रह द्वितीयावृत्ति तथा अन्य पूजाओ सहित - भाग २ बीजो ६७ स्नात्रपूजा. नं. ६८ शुद्धोपयोग ६९ दयाग्रन्थ ७० श्रेणिक सुबोध ७१ कृष्णगीता संस्कृत ग्रन्थो. ७२ संघकर्तव्यग्रन्थ ७३ प्रजासमाजकर्तव्यग्रन्थ ७४ शोकविनाशक ७५ चेटकaaग्रन्थ ७६ सुदर्शनासुबोध. * आ निशानीवाळा ग्रंथो सीलकमां नथी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपरनां पुस्तको मळवानुं ठेकाणुं. ०-२-० वकील मोहनलाल हीमचंद. ( गुजरात ) पादरा. शा. आत्माराम खेमचन्द. साणंद. भांखरीया - मोहनलाल नगीनदास. मुंबाई कोटवजार गेट नं. १९२-९४ बुकसेलर, मेघजी हीरजी. पायधुनी - मुंबाई. For Private And Personal Use Only शेठ. नगीनदास रायचंद भांखरीया. मु. मेसाणा. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनाचार्य बुद्धिसागर सूरिकृत स्नात्रपूजा. स्नात्रविधि. प्रथम दुध, दहि, घी, केशर, फुल अने जळनुं पंचामृत करी बे कलश एक पाटली उपर चोखाना बे स्वस्तिक करी ते उपर मूकवा. कळशने महोडे नाडाछडी बांधवी. एक त्रण बाजोठy सिंहासन करी ते उपर प्रभुनी पधरामणीनुं सिंहासन मूकी तेमां एक रकेबीमा केशरना बे स्वस्तिक करी, त्रण नवकार गणी एक धातुनी पंचतीर्थी प्रतिमाजी तथा एक सिद्धचक्रजीनी प्रतिमाजी पधराववा. प्रतिमाजीनुं मुख उत्तर वा पूर्व तरफ राखी पधरावबां. प्रतिमाजी नीचे एक पैसो मूकवो. सिंहासनना वचला बाजोठ उपर चोखानो एक स्वस्तिक करी एक फळ मूकबु. प्रतिमाजी पधराववाना सिंहासनना एक छेडे नाडाछडी बांधवी. एक रोषी थोडां बूटां फुल तथा केशरवाला चोखा करी राखवा अने बामर, दर्पण, पंखो, घंट, विगरे सामान For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिंहासन पासे राखवो. ज्यां वस्त्र चडाववानां आवे त्यां नाडाछडीनो ककडो मूकवो, फूलनी अबत होय त्यां केशरवाळा चोखानो उपयोग करवो. स्नात्र जणाववावाळो माणस हाथमा फूल लइने उभो रहे अने विधिभणावनार माणस विधि शरु करे. कुसुमांजलि बोली ‘फूल चढावयूँ'विधि भणावनार माणत कुसुमांजलि चढाववानुं कहे त्यारे भगवान्ने कुसुमांजलि चढाववी. सात वखत कुसुमांजलि चढावी रह्या पछी स्नात्रीयो हाथ जोडीने ऊभो रहे अने विधि नणावनार विधि बोल्ये जाय, ज्यारे 'शुभ लग्ने जन्म्या प्रभु' ए दुहो पूरो थाय त्यारे स्नात्रियो त्रण खमासमण देइ चैत्यवंदननी विधि प्रमाणे चैत्यवंदनं करे ने जयवीयरायनो पाठ ‘आभव मखंडा' सुधो कही हायमां कळश लेइने उभो रहे ने विधि नणावनार ज्यारे 'सौधर्मेन्द्रे पंच रूप करी ए पद पूलं बोली रहे त्यारे जळनो प्रभुने अनिषेक करे. पछी ते ढाळ पूरी थया पछी भगवान ने सिंहासनमांथी बहार लइ चोखा पाणीथी न्हवण करावी अंगलूहणां त्रण करी चन्दन प्रजा करे. पछी आरति मंगल दीयो करवो. For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ विधि सामान्य प्रकारे लखी छे. परंतु ज्यां नाडाछडी लखी छे त्यां उत्तम वस्त्रोनो उपयोग करे वा उत्तम उत्तम द्रव्यनो उपयोग शक्ति प्रमाणे करे तो ते उत्तम छे. " अथ जैनाचार्य बुद्धिसागर सूरिकृत " अथ स्नात्रपूजा प्रारंभः दुहा. सर्वातिशये शोभता, प्रभु महावीर जिनेश, शासन नायक जगपति, प्रणमुं हुं विश्वेश. ॥१॥ प्रभु स्नात्रनी नावना-, करतां शान्ति थाय; रोग शोक दूरे टले, स्नात्रपूजा महिमाय. ॥ २॥ कुसुमांजलि ढाळ. ऋषभदेव पूजा. आठजाति कलशे न्हवरावे, इन्द्रो मनमा आनन्द पावे; प्रनु पूजा समकित प्रगटावे, प्रभु जाणी प्रभुने दिल लावे; कुसुमांजलिथी ऋषभ पूजीजे, ग्रहो प्रभुगुण मन रीझोजे. ॥ १ ॥ (फूल चढावq.) For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शान्तिजिनपूजा. दुहो. क्षायिकनवलब्धि प्रभु, शान्तिनाथ जगदेव; द्रव्यभावथी शान्तिने, पामो करीने सेव ॥ १ ॥ ढाळ, सहजानन्दस्वनावे शान्ति, केवलज्ञाननी शोभे कान्ति; टाळे सर्वजीवांनी ज्रान्ति, आपे तन्मय यातां क्षान्ति; चोस इन्द्रो सारे सेवा, पूजुं प्रणमुं शान्ति देवा ॥ २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( फूल चढाव. ४ ) नेमिनाथ पूजा. दुद्दा. केवलज्ञानमां नासतुं, अणुसम विश्व सदाय, ते नेमि प्रभुपूजीए, भावब्रह्म प्रगटाय. ॥ १ ॥ ढाल. बाल्यथकी जे ब्रह्मव्रतधारी, अनन्तशक्तिमय अवतारी, केवलज्ञानथी जगहितकारी; मोहशत्रु हणी ए मोहारि, नेमिजिनेश्वरने पूजीजे, प्रभुस्वरूप थै प्रभु प्रणमीजे ॥ २ ॥ ( फूल चढावं ३ ) For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वनाथ पूजा. दुहा, पार्श्वप्रभु प्रणमुं सदा, त्रेविसमा जिनराय; वन्दे पूजे भावथी, सिद्धे वांछित काज, ॥ १ ॥ ढाल. पार्श्वप्रभु जगमा जयकारी, परब्रह्म जगने सुखकारी; चोत्रिश अतिशयथी अवतारी, पांत्रिशवाणी गुणना धारी, पार्श्व पूजीजे ध्याने रहीजे, आत्मिक गुण प्रगटावी लीजे ॥ २॥ कुसुमांजलिए पूजा कीजे, प्रभुस्वरूप थावा दील कीजे. ॥ २ ॥ (फूल चढावबु. ४) वीरप्रभु पूजा. दुहा. शासननायक जगधण), परब्रह्म महावीर, सर्व. देवना देव जे, सर्वधीरमां धीर. ॥१॥ ढाळ. प्रभुमहावीरदेव समरीजे, आविर्भावे आतम For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६ कोजे, वीर बनी महावीरने जजोए, कायरता दुर्गु णने तजीए, प्रभुचरणे कुसुमाजलि धरीए, धीर वीरता वेगे वरी: देहाध्यास तजी वीर था. ते माटे वीर गातुं ध्यावुं ॥ २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( फूल चढाव ५ ) ॥ अथ सर्वजिनपूजा ॥ सकल जिनेश्वर प्रेमे पूजो, अशुभकर्मथी भविजन धूजो; कुसुमांजलि जिन चरणे धरीए, सहज स्वभावे शिवपुर वरीए ॥ २ ॥ कुसुमांजलि पूजो सर्व जिनन्दा, तुज चरणकमल सेवे चोसव इंदा. ( फूल चढाव. ६ ) इति चोवीश जिनपूजा, ॥ सर्व जिनपूजा ॥ ढाळ. पन्नरक्षेत्रे अतीतकालमां, वर्तमानमां वर्त्तेजी, भाविकाले थाशे जे जिन; वीतरागगुण शर्तेजी, एकसो ने सित्तेरतीर्थकर, उत्कृष्टा जे कालेजी. फूजुं For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वांडे गावं ध्यावं, आतम जे अजवाले जी ॥१॥ जन्मोत्सव कल्याणक उजवे, इन्द्रादिक बहुभावे जी; जन्मकाले तीर्थकर सहुने, मेरुपर लेइ जावेजी; सर्वजातिकलशा अभिषेके, प्रेमे प्रभु न्हवररावेजी. एवा अरिहंत त्रण कालना, पूजीजे एकभावेजो ॥२॥ (फूल चढावq ) आतम भक्ति मल्या केइ देवा. ए राग, त्रीजेनव तीर्थकरकर्मने, बांध्यु वीरे भावे, द्रव्यभाववरथानकतपथी, प्रशस्यरागनादावे, सर्वजीवोने धर्मी बनावं, सर्वविश्व उद्धालं, रहे न जगमां कोई दुःखी, सर्वजीवोने तार. ॥१॥ शुभ उत्कृष्टा हर्षोल्लासे, जिनवरनामने बांधे, अनन्त पुण्य ग्रहीने प्रभुजी, सकल जीव हित साधे, मानव आयुः पूर्ण करीने, दशमास्वर्गमां जावे, पुष्पोत्तर वैमानिक सुरवर, स्वर्गतणां सुख पावे. ॥२॥ त्यांथो चवीने दक्षिणतरते, क्षत्रिकुंडपुरमाहे, त्रिशलाराणी कुखमां आव्या, ज्ञातकुले उत्साहे, त्रिशलामाता स्वप्नो देखी, आनंद अतिशय पावे, नारतने उद्धरवा प्रगट्या, प्रचुजो शक्ति प्रत्नावे ॥३॥ हाथी For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृषभने केशर सिंह, लक्ष्मी पुष्पनी माला, चन्द्र रवि ध्वज कलश मनोहर, सरोवर पूर्ण विमाना सागर रत्नन राशी अग्नि-, निर्धूम चौद निहाळे, चौदे स्वप्ननो अर्थ सुणीने, आनंदजीवन गाळे, ॥ ४॥ सिद्धारथराजाना हुकमे, जोषीओ त्यां आ. व्या, पुर बाहिर सुरम्य सभामां, अर्थविचारे फाव्या, ज्योतिषिओ भेगा थश्ने, बोले साची वाणी; तीर्थकर वा चक्रवर्ती तुज, पुत्र थशे गुणखाणी. ॥५॥ राजा राणी अति हरखायां, ज्योतिषी संतोष्या; दानादिकथी धर्मिलोको, याचकने संतोष्या; भारतमा सह घरघर लोको, जाणी आनन्द पाया, त्रिशलामाता गर्भने पोषे, धरे निरोगी काया. ॥ ६ ॥ चैत्रशुदि तेरशना दिवसे, मध्यरात्री थइ जाता; सर्व दिशाओ उज्वल शान्ति, आनन्दवाळी सुहातां; नवमहिनाने साडासात ज, दिवस पूरा थातां; त्रिशलामाताए प्रभु जनभ्या, त्रिलोके थर शाता. ॥७॥ भारतदेशे घरघर मंगल, घरघर हर्ष वधार, सिद्धारथराजा मन आनन्द, प्रगट्यो विश्व न माय. ॥८॥ शुन लग्ने जनम्या प्रभु, त्रणभुवन उद्योत; नारकी पण आनन्दीया, जेनी अनंत ज्योत. ॥ ९ ॥ wwermeri For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir C हवे चैत्यवन्दन करतुं तेनि विधि. , वर आसने बेसी हाथ जोडी प्रभुजी सामी दृष्टि राखी 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवन्दन करुं इच्छं एम कही 'सकळ कुशळवल्लि' कही जग चिन्तामणि कहेवु. पढो जं किंचि, नमथ्थुणं -, जावन्ति चेइाई, जावन्त केविसाहु, नमोऽर्हत् कही उवसग्गहरं कहेतुं, पछी आजवमखंडा सुधी अर्धा जयवीयराय कहेवा. अहिं सुधि कही पछी उभा थइ स्नात्रीआए कलश हाथमां लइ प्रभुजीना डाबा अंग तरफ उभा रहेवुं पछी विधि करनार विधि भणे. राग उपरनो. बप्पन दिक्कुमरी तीहां आवे, प्रभु जन्मोत्सव हेते; प्रभु माताने प्रण मे प्रेमे, सूतिकर्म संकेते. आवे दिकुमरी वायुथी; कचरो करतो दूरे, आठे कुमर । a गंधोदकधी, सुगंधी जलने पूरे ॥ १ ॥ आठ कुमारी कलशा धारे, दर्पण आठे धारे; आठकुमारी चामर वींजे, भाव भक्ति अनुसारे. आठ कुमारी पंखा कं For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० रती, रक्षा करती चारे; चार दोपकने धारे प्रेमे, निज आतमने तारे. ॥२॥ कदलीनां घर करी मनोहर, बाल प्रजुनं लावे; पवित्र कर्मने करवा माटे, जल कलशे न्हवरावे; जलपुष्पे आभरणे पूजी, प्रभु शरीर शणगारे; प्रभुना करमा राखडी बांधी, (वधावी नाडाबडी मूकवी; ) जय जय शब्दोच्चारे. ॥३॥ माता पासे प्रभुने भूकी, निज निज स्थानक जावे, इंद्रासन ते वखते कंपे, महापुण्य सद्भावे; अवधि ज्ञाने इंद्रे जाण्यो, प्रभुजन्म सुखकारी; सुघोषा आदि घंटाओ, वगडावे जयकारी. ॥ ४ ॥ पालक नाम विमानमां बेसी, इन्द्र बहु परिवारे; अन्य वि. मानने वाहन बेसी, निज ऋद्धि अनुसारे; अन्य सुरोने देवीओ आवे, प्रभुने देखी वंदे; प्रभु अने प्रभु मात वधावी, इंद्र वदे गुण छंदे. ॥५॥ (फूल तथा केसरवाळाचो वायी वधाववा.) जय जय माता जगमां जय जय, जय जय शब्दो बोले; त्हारो बालक जगतीर्थकर, को नहि तेना तोले प्रतिबिंब मातानी पासे, मूकी प्रभु कर लीधार पंचरूप इंद्रे For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ निज कीधां, जावे कारज सिद्धयां ॥ ६ ॥ मेरु उपर पांडुक वनमां, शिला सिंहासन ठावे; सौधर्मेन्द्रे खोळा मांहि, प्रभु धर्या शुभ भावे; चोसठ इन्द्रो, भाव धरीने, याव्या त्यां उल्लासे; निज निज शक्ति ऋद्धि भावे, इंद्रो पूर्ण विकासे ॥ ७ ॥ अच्युतेंद्रे औषधि तीर्थनीमाटी जल मंगाव्यां; श्रवजातिना कलश जरीने, इंद्रो न्हवराव्या, फूल चंगेरी थाळ रकेबी, उपकारणो बहु जाति; प्रभुनी जक्ति करतां विध विध, निर्मल करता छाति ॥ ८ ॥ भुवनपति ने व्यंतर ज्योतिष, वैमानिक बहुदेवा; अच्युतपतिनी आज्ञा पामी, करता बहुविध सेवा; एकक्रोड ने साठलाख सहु, कलशानो अभिषेक, अढीसे अभिषेक सहु मळी, सुर नहि चूके विवेक ॥। ९ ॥ (थोडो जळ अभिषेक करवो) इशान इन्द्रे करमां लीधा, प्रजुनी भक्ति कीधी; सौधर्मेन्द्रे पंचरूप करी, भक्ति करी प्रसिद्धि; (संपूर्ण जळनो अभिषेक करवो.) पुष्पादिकथी प्रभु वधाव्या, आनंदना कल्लोले मंगलदीवो आरति करीने, सुरवर जय जय बोले ॥ १० ॥ अनेक वाजत्रोने For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ वजावे, अनेक नाच नाचे, प्रभुनो जन्मोत्सव करीने, सर्व सुरासुर राचे, करमां धारण करीने प्रभुने, त्रिशला माता पासे, इन्द्रादिक यावीने बोले, पूरण हर्षोल्लासे ॥११॥ पुत्र तमाशे प्रभु अमारो सर्व विश्व आधार; तुज कुखे प्रभु जन्म्यामाटे, विश्वमात निर्धार; पंच धाव सोंप प्रभु क्रीडा, -करवा माटे बेश; बत्रीश कोटि रत्नादिकनी; वृष्टि करे हरे क्लेश. ॥१२॥ ( फूल केशवाळा चोखा, नाडाबनी विगरे प्रभु सन्मुख उबाळं.) इंद्रादिक प्रभु वांदि पूजो, नन्दीश्वरमां जावे; अष्टान्हिकामहोत्सव करीने, आनंद मंगल पावे; निज निज कल्प सधावे सुरवर, दीक्षोत्सव अनिलाषे; केवलज्ञान महोत्सव इच्छा, राखी हर्ष विकासे. ||१३|| प्रभु जन्मोत्सव जारतदेशे, भक्ते कीधो जावे; घर घर आनंद मंगल वर्तो, स्नात्र महोत्सवदावे; सकल संघां शांति वर्तो, इति उपद्रव शामो; स्नात्र महोत्सव सुणनाराने, गानारा सुख पामो. ॥ १४ ॥ परब्रह्ममहावीरप्रतापे, रोग टळो सहुजाति; दुष्ट देवना टळो उपद्रव, व्हेम टळो बहुजाति; गाम For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३ नगर पुरदेशमा शांति, वर्तो प्रभुप्रतापे; आधि व्याधि संकट टळतां, प्रभु महावीरजापे. ॥ १५ ॥ सर्व जात्मा शान्ति वतों, धर्मी बनो नरनारी, दोषो क्षय पामो भक्तिथी. जनो बनो नपकारी; झघडा युद्धो उपशम थाओ, वृष्टि थशो मनमानी; पुण्यकर्म वधशो जगमांहि, वधशो शक्ति मझानी. ॥ १६ ॥ तपगच्चहीरविजयसूरिजगगुरु,-पट्टपरंपराधारी; पूज्यगुरुर विसागर प्रगट्या, सर्वोपमजयकारी; शान्तिदायकसुखसागरगुरु, घरघरमंगलकारी; बुद्धिसागरसूरि आशो, शान्ति लहो नरनारी ॥ १७ ॥ फूल तथा केशरवाळा चोखाथ प्रभुने वधाववा. पनी सिंहासनमाथी प्रभुजी तथा सिद्धचक्रजीने लइ चोखा पाणीथी पखाळ करी त्रण अंगलुहणां करी केशर (चंदन)थी पूजा करी फूल चढाववां अने सिंहासन मध्येनी रकेबीमांधी पाणी काढी नांखी धोइ साफ करी फरी केशरना स्वस्तिक करी पधरा ववा. आरती मंगळदोवो प्रगटावी बन्ने नामाछडी For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बांधी एक रकेवीमा मूकी कंकुना बाटा नाखी चौ. खाथी वधाववा, रकेवीमां सोपारी तथा एक पैसो मूकी रकेबो वच्चे राखो स्नात्रियाने सन्मुख बेसामवो. रकेवीनी एक बाजु सात माटोनी कांकरी तथा सात मीठानी कांकरो लइ एक मीगनी कांकरी अने एक माटीनी कांकरी ए रोते दरेक ढगलीमा मूको सात ढगलीओ करवो. पनी बीजी तरफ जळनी कुंडी राखवी. स्नात्रियाने उजापगे बेसाडो डाबा हाथ उपर जमणो हाथ रखावी विधि नणावनार माणल स्नात्रियाना हाथमां दरेक वखते एक मीगनी अने एक माटीनी कांकरी यापी ते साथे हथेलीमां चोखा पाणीना कलशमांथो थोडं पाणी आपे अने आरती मंगल दीवानी रकेबी फरतुं खूण उतरावे. तेनी विगत. बुण उतारो जिनवर अंगे, निर्मल जलधारा मनरंगे. ॥ लुण ॥ १ ॥ जिम जिम तडतम लुण ज फूटे, तिमतिम अशुभ कर्म बंध त्रुटे. ॥ लुण ॥२॥ नयन सलुणां श्री जिनजिनां, अनुपमरूपदयारस For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीनां. ॥ लुणा ॥ ३ ॥ रूप सलुणुं जिनजिनुं दीसे, लाज्यु लुण ते जलमा पेसे. ॥ लुण ॥ ४॥त्रण प्रदक्षिणा देश जलधारा, जल निखेवीए लुण उदारा ॥ लुण ॥ ५॥ जे (जन उपर दूमणो प्राणी, ते एम थाजो लुण ज्युं पाणी. ॥ बुण ॥६॥ अगर कृष्नागरु कुंदरू सुगंधे, धूप करीजे विविध प्रबंधे. ॥ लुण ॥ ७॥ एम सात वखत लूण उतारवू पछी आरती उतारवी, आरती. जय जय वीर जिनेश्वरदेवा, सुरनर इन्द्र लहे सेवमेवा, बार गुणे गुणवंता प्यारा, त्रण भुवनना छो आधारा. जय जय.॥१॥चोत्रीश अतिशय गुणगणधारी, पांत्रीशवाणी गुणे जयकारी. जय जय. ॥२॥ त्रिशलानंदन शिवसुखकारी, सिद्धारथ कुलशोभाकारो॥ जय जय. ॥३॥ द्रव्यभावथी आरति करीए, मंगलमाला सहेजे वरोए. जय जय. ॥४॥बुद्धिसागर प्रमुगुण लेवा, संघचतुर्विध करे नित्य सेवा. ॥ जय. ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पलो प्रभुजी न देखे तेवी रोते परखे जइने अगर प्रभुजीना अने स्नात्रीया वच्चे अंतर पडदो राखो स्नात्रीयाना जमणा अंगुठा उपर कंकुनो चां. डलो कराववो. पळो मंगलदोवो उतारवो. मंगलदोवो उतारतां कपुर लावेला होय ते सळगावो रकेबोमां मूकी मंगलदीवो उतारवो. मंगलदीवो. मंगलदीवो मंगलकारी, करीये जिन आगल जयकारो, अरिहंत मंगल पहेलं जाणो. बोजु सिद्ध मंगल मन आणो. ॥१॥ साधु मंगल त्रोनुं लहाए, सद्गुण पामो शिवपुर वहीए.॥मं०॥२॥धर्म मंगल चोथु सुखकारी, चार मंगलनो छे बलिहारी. ॥ मं० ॥३॥ जावमंगल हेते चित्त धारी, मंगलदीप करे नरनारी. ॥ मं०॥४॥ बुद्धिसागर आनंदकारी, संघ चतुविध शोभाकारी, ॥५॥ इति स्नात्रपूजा समाप्त For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भजनसंग्रह भाग ९ छपाइ बहार पडयो छे. मुरीश्वरजीनी आभ्यंतरभावनाना प्रतिबिंबरूपरसथी छलाछलसुंदर पद्योथी भरपूर आ पुस्तक खरेखर गुजरातना काव्य भंडोळमां अगत्यनो उमेरो करे छे, ते जाणीने खरेखर दरेक गुजरातीने आनंदन थशे. आ संग्रहमां वैराग्य, अध्यात्म ज्ञानचारित्र तथा नीतिना तरंगो छलकाता होवाथी जगत्मां तेनो प्रचार एकदम थकानी जरुर छे. वळी तेओए जैनजगत्ने हालनी मंदावस्थामांथी जागृत करवा सार अने लोकोने कर्तव्यपरायण करवासारु जुदा जुदा पात्रोद्वारा अनेक विषयो चर्ची जैनजगत्ने तद्दन नवी ढबे कर्तव्यदिशानी मार्ग जणान्यो छे. जेथी जैन जगत् खरेखर पनिशील बनी जश. अने जैनजगत् खरेखर वखतसरनी कार्यपणाठेकारूप मार्गमां विचरशे. हालनी स्वराज्य अने स्वदेशनी अध्यात्मिक भावनाने पण आ ग्रंथमां योग्य स्थान मळ्यु छे, एटलंज नहि पण बाह्य स्वराज्य अने बाह्यस्वदेशनी साथे आभ्यंतर स्वराज्य अने आभ्यंतर स्वदेश के सर्वविश्वजनोनुं परमादर्शध्येय छे, अनेक गृढतत्वोथी भरपूर तथा ज्ञाति अने धर्मना भेदभावरहित दरेकने समान उपयोगी आ पुस्तक छे. एक वार वांच्याथी हाथमांथी मूकवानुं मन थशे नहीं. सुंदर पाकुं वाइन्डींग पृष्ठ ५८० किंमत रु.१-८-० पोस्टेज अलग. For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मज्ञानथी भरपूर. भजनसंग्रह भाग १० जेओए सूरीश्वरजीना पहेलाना भजनसंग्रहना भागो वांच्या हशे तेओ तो आ ग्रंथने तरतज संग्रही लेशे. सूरीश्वरना काव्यरसनी धारानुं पान करवानी आ तक गुमावशो नहि. अनेक अध्यात्मज्ञान तथा वैराग्यनी खुमारी प्रगटावनारा तथा मस्त फकीरी दशाना अनुभव करावनारा जूदा जूदा स्वरूपना भजनोनो आ खजानो खरेखर ते तेना रूपनो एक अनोखोज वाचकोने मालुम पडशे. आ मंडळ तरफथी प्रगट थता दरेक ग्रंथो एटलाबधा सस्ता होय छे के आर्यु अमूल्य वांचन आटली सस्ती कीमते मळतुं गुमावq ए खरेखर एक अमूल्य तक गुमाववा जेवू थशे. दरकने सम्खु उपरोपी सुंदर पार्क वाइन्डींग पृष्ठ २०० किंमत रु. १-०-० पोस्टेज अलार पत्र सदुपदेश भाग २ गुरुवर्ये पोताना परिचयी तथा भक्तजनो उपर प्रसंगानुसार शुद्धहृदय पूर्वक लखेला पत्रोनो आ बीजो भाग मनोरंजक दळदार संग्रह दरेक मनुष्यने पोतानी जींदगीमां मुक्तिनी प्राप्ति माटे खरेखर एक मार्गदर्शक भोमीओ थइ पडशे. अधिकारी परत्वे लखायेला तेमना सुंदर विचारो अनुभवना खजानारूप खरेखर छे. एक नकल खरीदी अनुभव करो. सुंदर पाकुंबाइन्डींग सर्वमनुष्यने सरखा उपयोगी अध्यात्मतत्त्वज्ञानमय वाचनथी भरपूर. पृष्ठ ५७५ किंमत रु.१-८-० पोस्टेज अलग, For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only