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हवे चैत्यवन्दन करतुं तेनि विधि.
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वर आसने बेसी हाथ जोडी प्रभुजी सामी दृष्टि राखी 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवन्दन करुं इच्छं एम कही 'सकळ कुशळवल्लि' कही जग चिन्तामणि कहेवु. पढो जं किंचि, नमथ्थुणं -, जावन्ति चेइाई, जावन्त केविसाहु, नमोऽर्हत् कही उवसग्गहरं कहेतुं, पछी आजवमखंडा सुधी अर्धा जयवीयराय कहेवा. अहिं सुधि कही पछी उभा थइ स्नात्रीआए कलश हाथमां लइ प्रभुजीना डाबा अंग तरफ उभा रहेवुं पछी विधि करनार विधि भणे.
राग उपरनो.
बप्पन दिक्कुमरी तीहां आवे, प्रभु जन्मोत्सव हेते; प्रभु माताने प्रण मे प्रेमे, सूतिकर्म संकेते. आवे दिकुमरी वायुथी; कचरो करतो दूरे, आठे कुमर ।
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गंधोदकधी, सुगंधी जलने पूरे ॥ १ ॥ आठ कुमारी कलशा धारे, दर्पण आठे धारे; आठकुमारी चामर वींजे, भाव भक्ति अनुसारे. आठ कुमारी पंखा कं
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