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शाकाहारी आहारों से ऊर्जा डा० मधु ए० जैन, एम० डी० प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, बमनी (मडला)
___ अहिंसा-प्रधान जैनधर्म के अनुसार, हमारा आध्यात्मिक विकास कुछ नतिक आचरण और प्रवृत्तियों पर ही आधारित है। हमारा जीवन आहार के बिना अधिक दिनों तक नहीं चल सकता और आहार भी हमारी अनेक प्रवृत्तिमनोवृत्ति को प्रभावित करने वाला घटक है, फलतः इसके सम्बन्ध में जनों ने शाकाहार का प्रवर्तन एवं संवर्धन किया है। आज का वैज्ञानिक जगत भी इस विचार को प्रयोगिक समर्थन दे रहा है। यह प्रसन्नता की बात है कि इस साक्ष्य से शाकाहार की व्यापकता बढ़ रही है । इससे इस सम्बन्ध में अनेक भ्रान्तियां भी दूर हो रही हैं। १. आहार के कार्य और गुणवता
___मनुष्य को आहार की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है : (i) शरीर के आधारभूत कार्य (ii) शरीर की भौतिक और विशिष्ट गतिशील क्रियायें (iii) शरीर कोशिकाओं का विकास, संरक्षण, पुनर्जनन (iv) शरीर-क्रियातन्त्र का नियमन (v) रोग-प्रतीकार क्षमता। आहार शरीरतन्त्र में होनेवाली अनेक रासायनिक क्रियाओं के माध्यम से उपरोक्त क्रियाओं को संपन्न करने के लिये समुचित ऊर्जा प्रदान करता है। यह ऊर्जा किलोकैलोरी ( किकै० ) में व्यक्त की जाती है। यह पाया गया है कि सामान्य स्थिति में आधारभूत क्रियाओं के लिये ०.८ किक०/किग्रा-शरीर भार/ .. घंटे की ऊर्जा आवश्यक होती है। यह विश्रान्ति तथा निद्रा के समय के लिये सही है। शारीरिक क्रियाओं में १.२ किकै०/किग्रा घंटे की दर से अतिरिक्त ऊर्जा आवश्यक होती है। विशिष्ट गतिशील क्रियाओं में भी लगभग ७% अतिरिक्त ऊर्जा चाहिये। इस प्रकार, पचपन किलो भार एवं १.६ वर्गमीटर क्षेत्रफल वाले सामान्य भारतीय के लिये दैनिक ऊर्जा की औसत आवश्यकता निम्न होगी :
(अ) निद्रा, ८ घंटे ( आधारी) : ५५४०८४८: ३५२०० के. (ब) अन्य क्रियायें, १६ घंटे : ५५४(०.८+१२) १६ : १७६०=०० के०
२११२.०० १४८-००
(स) विशिष्ट गतिशील क्रिया
२२६०3०० इस परिकलन में जलवायु, शरीर-संघटन, आकार, वय, लिंग या अन्य कारणों से १०% परिवर्तन हो सकता है। ऊर्जा की यह आवश्यकता ३५-५५ वर्ष की उम्र में प्रति दस वर्ष में ५% कम हो जाती है। उत्तरवर्ती उम्र में यह १०% प्रति दस वर्ष कम होती है।' आदर्श आहार वह है जो न केवल उपरोक्त ऊजी की पूर्ति करे, अपि उसमें वे आवश्यक तत्व भी समुचित मात्रा में होने चाहिये जो हमारे जीवन को स्वस्थ, उत्साहपूर्ण एवं विकासी बनाते हैं । आहार का यह कार्य उसके शरीर-क्रियात्मक कार्य का प्रतीक है। इसके अतिरिक्त, आहार के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कार्य भी होते हैं।
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२८० पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड
२. विभिन्न आहार तंत्रों का तुलनात्मक मूल्यांकन
यह देखा गया है कि गुणात्मक रूप से तथा परिमाणात्मक रूप से शरीर-तंत्र के लिये उपरोक्त कार्य किसी भी एक आहार पदार्थ से संपन्न नहीं हो सकते। इसलिये हमें अनेक खाद्य पदार्थों की आवश्यकता होती है जो हमें समुचित पोषक तत्व एवं ऊर्जा प्रदान कर सकें। इसलिये आहार-शास्त्रियों ने संतुलित आहार के लिये सात मूल खाद्य पदार्थ ज्ञात किये हैं : कार्बोहाइड्रेट ( अन्न ), वसाय, दुग्ध-दुग्ध उत्पाद, प्रोटीन (दाल), कन्दमूल, पत्तेदार शाकें एवं फल ( खनिज एवं विटामिन)। इसमें से अन्तिम तीन शरीर तंत्र की क्रियाविधि के नियमन एवं संरक्षण का काम करते हैं। ये ऊर्जा की नगण्य पूर्ति ही करते हैं। लेकिन किसी मो संतुलित या आदर्श आहार के लिये ये अनिवार्य घटक हैं। इन खाद्यों की आपूर्ति प्राकृतिक, परिष्कृत या नव-विकसित आहारों पर निर्भर करती है । ये शाकाहारी और अ-शाकाहारीदोनों स्रोतों से प्राप्त हो सकते हैं। यह विश्व के विभिन्न भागों में विद्यमान भौगोलिक एवं कृषि-सुविधा की परिस्थितियों पर निर्मित आहार-रुचियों पर निर्भर करता है। पश्चिम ने अपने आहार-पदार्थों को पूर्ति के लिये मिश्र-स्रोत अपनाये हैं। पर मारत प्रमुखतः शाकाहारी है। फिर भी, इसके ७१% निवासियों को हम आदर्श शाकाहारी नहीं कह सकते क्योंकि वे वर्ष में अनेक बार अंडे एवं मांसाहार का उपयोग करते हैं। पश्चिम को शाकाहार के विरुद्ध अनेक शिकायतें हैं। जिनका समर्थन अनेक भारतीय विद्वानों ने भी किया है ( उन्होंने समुचित शोध एवं वैज्ञानिक विचारणा की होगी, इसमें सन्देह है ) इससे नयी पीढ़ी में अ-शाकाहार की प्रवृत्ति बढ़ी है। इसी कारण शाकाहार को सही परिभाषा का भी प्रश्न उपस्थित हुआ। भारतीय परम्परा में 'वैगन' समिति की अतिवादी मान्यता अव्यावहारिक मानी जाती है, इसमें दुग्ध-अंड-शाकाहार तथा दुग्ध-अंड-विहीन शाकाहार के बदले दुग्ध पूर्ण शाकाहार को मान्यता दी जाती है। इसके अनुसार, शाकाहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जिनके प्राप्त करने में या तैयार करने में किसी भी स्तर पर किसी के जीवन को कोई कष्ट न हो या किसी का जीवन समाप्त न हो। इस परिभाषा में दूध और उसके उत्पाद समाहित हो जाते हैं, पर अंडे आदि नहीं।
बीसवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में, पश्चिम ने गैर-शाकाहारी आहार तन्त्र को उत्तम माना। लेकिन अब यह दग्ध-शाकाहारबाद को वैज्ञानिक आधार पर स्वीकृत कर रहा है। ब्रिटेन, अमेरिका. कनाडा तथा अन्य एशियाई देशों में अब शाकाहार के सुरक्षित लामों के प्रति लोग आश्वस्त हो रहे हैं। वे इस ओर न केवल आर्थिक या धार्मिक दृष्टि से ही आकृष्ट हो रहे हैं, अपितु वे इसे स्वास्थ्य, पर्यावरण, अहिंसा एवं सुरुचि का भी प्रतीक मानते हैं। ट्रेपिस्ट मोंक्स, सेवेन्थ डे एडवेन्टिस्ट क्रिश्चियन्स, जेन माइक्रोवायोटिक्स, अनेक देशों के केरिस्ट और जी० बी० शा के समान अनेक व्यक्तियों और समूहों ने इस भारतीय परम्परा को स्वीकार किया है। अब यह भली मांति स्वीकार किया जाता है कि शाकाहार आर्थिक, ऊर्जात्मक एवं खाद्यघटकों को दृष्टि से सारणी १ को सूचनानुसार उत्तम होता है। यह सही है कि वैज्ञानिक आहार शास्त्र के विकास के प्रारम्भिक दिनों में शाकाहार में B, एवं दो आवश्यक ऐमिनो-अम्लों की अपूर्णता का बोध हुआ था, पर इन्हें आहारों में सोया दूध, मूंगफली-चूर्ण, दूध उत्पाद तथा पत्तेदार शाकों के अनिवार्य समाहरण द्वारा पूरी तरह से दूर किया जा चुका है। अनेक अन्य तथाकथित शाकाहार की कमियां उसके लाभों को ही प्रकट करती हैं (सारणी)। वस्तुतः इन लाभों के कारण ही पश्चिम अब शाकाहार की ओर अधिकाधिक आकृष्ट हो रहा है । यही स्थिति भारत के युवा वर्ग की भी सम्भावित है। ३. शरीर की ऊर्जकीय एवं पोषक तत्वों की आवश्यकतायें
___सांख्यिकीय आधार पर औसत भारतीय के लिये, एफ० ए० ओ० तथा डल्लू० एच० ओ० के १९६४ के विवरण के विपर्यास में, दैनिक रूप से २२४० के०७ ऊर्जा की आवश्यकता है। अनेक प्रकार की समर्थक विवेचना देते हुए डा० दांडेकर, रथ, आचार्य और सुखात्मे ने भी इस मत का समर्थन किया है। यह ५५ किग्रा० औसत भार वाले भारतीय
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शाकाहारी आहारों से ऊर्जा २८१
सारणी १. दुग्ध-शाकाहार तथा अ-शाकाहार तंत्रों को तुलना
अ-शाकाहार तंत्र
शाकाहार तंत्र
१.
कल
कैलोरी २. वसा-मान ३. प्रोटीन
४. कोलस्टेरोल अन्तर्गम ५. रेशे ६. विटमीन एवं ऐमीनो अम्ल
उच्च कैलोरी क्षमता उच्च वसीय उच्च प्रोटीन उच्च पचनीयता उच्च जैविकमान नेट प्रोटीन उपयोग : ७५-९५ अधिक नहीं B,२, ट्रिप्टोफेन, भीथियोनीन व राइबोफ्लोबिन पर्याप्त मात्रा में संतृप्त अम्लों की मात्रा अधिक पर्याप्त संभावित सीमित
निम्न पर उपयुक्त कैलोरी निम्न वसीय निम्न प्रोटीन समुचित पचनीयता मध्यम जैविकमान ने प्रो० उ०:५०-६५ सामान्यतः नहीं पर्याप्त मात्रा इनकी मात्रा अपर्याप्त, पर पूरक/ प्रबलित खाद्यों द्वारा पूरित असंतृप्त अम्लों की मात्रा अधिक पर्याप्त पर कुछ अतिरिक्त लेना आवश्यक वस्तुतः असंभव असीमित
७. वसीय अम्ल ८. विटमीन C ९. विषाक्तता १०. विविधता
सामान्य स्वास्थ्य प्रभाव (१) भार वृद्धि, मोटापा (२) हृदय रोग-संवेदन (३) रक्त चाप (४) कोलोन कसर (५) ओस्ट योपेरोसिस (६) नशेवाजी ( व्यसन )
पर प्रभाव (७) दीर्घ जीविता (८) जोवन धारा
(९) मधुमेह १२. उत्पादन मूल्य १३. औसत कैलोरी
वितरण का प्रतिशत
पर्याप्त पर्याप्त संदेदनशील उच्च संवेदनशील संवेदनशील नगण्य
२०% कम, मोटापाहीनता नगण्य नियंत्रित करता है। असंभव असंभव व्यसन को कम करता है
प्रभावित होती है जटिल नियंत्रण कठिन शाकाहार की तुलना में ३-१० गुना ।
बढ़ती है सरल और स्वस्थ रेशों के कारण संभव बहुत कम
७२
G6
कार्बोहाइड्रेट वसाय प्रोटीन शाके २५% अधिक (i) प्रोटीन कैलोरी मंहगी (ii) शाक-कैलोरी मंहगी
संतुलित आहार का मूल्य १५. कैलोरी मूल्य
२५% कम दोनों ही ३-3 मंहगी
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२८२ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड के किये ०.८ ग्राम प्रोटीन, १.२५ ग्राम वसा तथा ६५ ग्राम कार्बीहाइड्रेट प्रति किग्रा० शरीर-मार के आधार पर परिकलित भी किया जा सकता है। विशेष प्रकरणों में अतिरिक्त ऊर्जा आवश्यक होती है। कैलोरियों के अतिरिक्त, आहार को आवश्यक पोषक तत्वों की भी समुचित मात्रा में पूर्ति करनी चाहिये । इनकी दैनिक आवश्यकतायें सारणी २ में दो गई हैं।
यह स्पष्ट है कि शाकाहार से शरीर को ऊर्जा और पोषण- दोनों ही समुचित मात्रा में मिलते हैं। फिर भी, यह पाया गया है कि आय के उच्च होने पर लोग प्रोटीन और वसायें अधिक खाने लगते हैं। ग्रामीण जनता का आहार ऊर्जा की दृष्टि से समुचित होता है जब कि शहरी जन खनिज और विटामिनों की दृष्टि से पूर्ण आहार लेता है। संतुलित आहार पोषण-विज्ञान के समुचित ज्ञान और उसके अर्थशास्त्र की जानकारी के अभाव में यह असन्तुलन रहता है। ४. संतुलित शाकाहारी भोजनों के लिये सुझाव
अनेक पूर्वी और पाश्चात्य विद्वानों ने विभिन्न समूहों के लिये सन्तुलित और मितव्ययी शाकाहारी भोजनों के सुझाव के लिये प्रयोग किये हैं। इनमें से दो सारणी ३ में दिये गये हैं। यह स्पष्ट है कि भा० चिकित्सा अनु० परिषद्
सारणी २. कसोरी और पोषक पदार्थों को न्यूनतम वैनिक आवश्यकता कैलोरी/पोषक न्यूनतम आवश्यकता
स्रोत १. कैलोरी
२२४०
आधारभूत सात खाद्य २. प्रोटीन
५५ ग्राम
दाल, सेम; ०.८ ग्रा/किग्रा. ३. कार्बोहाइड्रेट
३५८ ग्राम
अन्न, कंदमूल; ६.५ ग्रा/किग्रा. ४. वसा
६९ ग्राम
घी, तल; १.२५ ग्रा./किग्रा. ५. नमक, सोडि. क्लोराइड
५.४-६.२ ग्राम
वाह्य और अंतःस्त्रोत ६. कैल्सियम
०.८ ग्राम
अन्न, दूध, फली ७. फास्फोरस
०.८ ग्राम
अन्न, दूध, फली ८. पोटेशियम
२.० ग्राम
मटर, सेम ९. आयरन, लोहा
०.०१८ ग्राम
पत्तेदार शाक १०. कापर, तांबा
०.००२-०.००५० ग्राम
सेम, ईस्ट, चाय, फल्ली ११.जिंक
०.०१५ ग्राम
काली मिर्च, कंद १२. मँगेनीज
०.००४ ग्राम
पूर्ण अन्न, फली १३. मैगनीसियम
०.३-०.४ ग्राम
चाय, काफी, पूर्णअन्न १४. कोबाल्ट, बी-१२
०.००१-०.००३ ग्राम
आलू, अन्न, दूध १५. आयोडीन
०.१०-०.१५ ग्राम
आयोडीनित नमक १६. फ्लुओरीन
०.००३-०.०३ ग्राम
दूध, सेम, चाय निष्कर्ष १७. सल्फर, गंधक
दाल, फली १८. मोलिवडीनम
अन्न, काले रंग की शाके १६. क्रोमियम
सूक्ष्म मात्रा
यीस्ट, पूर्ण अन्न २०. सेलीनियम
अन्न, फली २१. निकेल, टिन, सिलिकन तथा वैनेडियम
कार्य अज्ञात
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३६०
शाकाहारी आहारों से ऊर्जा २८३ सारणी ३. प्रौढ़ों के लिये प्रस्तावित दुग्ध-शाकाहारी आहार भा० चि० अ० ५०, १९८०
पार्क और गोपालन परिमाण कं०
परिमाण के० मूल्य १३४० १.२०
४००
१६०० ०.२० ४० १६० ०.३०
०.५०
०.५० __०.१०
०.१५ ७५ २५ ०.२० ७५ ७५ ०.१५
३० १५ ०.१५ १५० ९५ ०.७५ २०० १२० १.००
३१५ ०.७५ ८७० ग्राम २६६५ ० ३.८९ १०६५ २०५० के० ४.६०
आहार, जाति १. अन्न, ग्राम २. चीनी, गुड़ ३. दाल ४. मूंगसली ५. पर्तदाल शाक ६. अन्य शाक ७. कन्दमूल ८. फल ९. दूध १०.धी तेल ११. योग
|
*:::33.
०.१५
०१०
|
8
३५
२%
४%
७%
सारणी ४. विभिन्न प्रस्तावित भोजनों में ऊर्जा वितरण आहार, जाति
सैद्धान्तिक, सारणी २ भा० चि० अ० ५० पार्क|गोपालन जैन १. कार्बोहाइड्रेट
६३% ६५% ६०% २. वसायें
२८% १५% १७% १४.५% ३. प्रोटीन
८% ६%
२०% ४. शाक/फल आदि द्वारा १९८० में प्रस्तावित आहार ऊर्जात्मक दृष्टि से ठीक है पर इसमें परम्परागत शाकाहार की अपूर्णता के पूरक के रूप में फल और फलियां समाहित नहीं हैं। सारणी ४ से यह भी स्पष्ट है कि इसका ऊर्जा-वितरण भी संतोष जनक नहीं है।
इसमें खनिज भी कम हैं। पार्क ने गोपालन'' का अनुसरण कर इन दोनों ही दिशाओं में सुधार किया है। इस लेखक ने भी सारणी ५ में एक आहार योजना सुझाई है। यह न केवल मितव्ययो ही है, अपितु यह आहार के सभी घटकों की सन्तोषजनक रूप से पूर्ति करती है। यह आधारभूत सात घटकों को पूर्ण मितव्ययिता के रूप में समाहित करती है। यदि इसमें १०% श्रम व्यय भी जोड़ा जावे, तब भी यह मितव्ययी रहेगी। इस योजना का पूर्ण विश्लेषण सारणी ५ में दिया गया है। यह स्पष्ट है कि शाकाहारी खाद्य पूर्णतः पोषक होते हैं । विशेष आवश्यकता के अनुरूप इसके अन्न और फलियों की मात्रा में परिवर्तित कर इसे संवर्वित किया जा सकता है ।
दुग्ध-शाकाहारी भोजन से ऊर्जा और पोषक तत्वों को पर्याप्त पूर्ति का तथ्य अब निर्विवाद प्रमाणित हो चुका है। फिर मो, पूर्व और पश्चिम इस आहार-तन्त्र को और भी प्रबलित करने का प्रयत्न कर रहे हैं। वे सोयाबीन,
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२८५ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
सारणी ५ : औसत भारतीय के लिये दुग्ध-शाकाहारी आहार का विवरण* : एक प्रायोजना क्र. आहार घटक मात्रा कैलोरी मूल्य कार्बो० प्रोटीन वसा रेशे खनिज Ca, P mg. Fe, था. रीबो० निया० विटा० वि० (ग्राम)
mg. mg.
A C अ. कार्बोहाइड्रेट १. पूर्ण गेहूँ का आटा ३०० १०५० ०६० २१० ३७ ५.१ ५७ ८१ १५० ११६५ ३५ ८७ १५ १३ ८७ २. चावल
५० १८० ०.२० ३५ ३२ ०२ ०१ ०४ ५ ८६ १६ ०.२१ ०.१६ ३५ २ ३. गुड़/चीनी
३० १२० ०२० ३० - - - - १०० २५ - - - - ४. कन्दमूल ( आलू) ५० ५० ०.१० १२ ०.८५ ०५ ०५ ०३ ५ २० ०३५ ००५ ०.०५ ०६ १२ ९
४३०g १.१० ब. प्रोटीन
६० २४० ०४० ३० २२३ ०९ ०.७५ १८ ३६ १५० २९ ०२३ ० १० १-५ ६६ - ६. दूध
२०० १२० १.०० १० ८६ १७.५ - १.६ ४२० २६० ०.४ ०.०८ ०.२००२० ३२० १ ७. मूंगफली
२५ १२५ ०.२५ ७ ७ १०.० ७५ ०.६ ३०० १४० २५ ०५ ०.१७ २२ १५ . २८५g
४८५ १.६५ स. वसा/तेल ८. घी/तेल
२५ २२५ ०.५० द. खनिज/विटामिन
९. पत्तेदार शाक १०० ५० ०१६ ३.० २० ०.७ ०६ १७ १०० ३५ ८० ०३५ ०.२६ ० ५० ३५०० ४० १०. अन्य शाक
५० २५ ०.१६ १.८ ०९ ०५ ०३ ०.६ १. १८ ०५ ०.०४ ०.०१ ०.२० १९२ १६ ११. फल
३० २० ०.१५ ४.३ ०.२ ०७ ०३ ०.१ ३ ३५ ०.३३ - -- - - १ १२. मसाले
१० ३० ०.१० २.१ १.४ १.६ ३.२ ०.४५ ६३ ३९ १.८ ०.०२ ०.०३ .१ ९५ .
१९०g १२५ १०५ योग
९३०g २२३५ ४.३० ३४५.२ ८३.५ ६१.१७१ १.४० १५.६५११९२ १९३८५६८१८८८.१६ २४८ २१ ४२८९ ६७ द. दैनिक न्यूनतम आवश्यकता २२४० - ३५८ ५५ ६९ - - १००० १००० ३० २ १५ १६३००० ४०
* इस सारणी में खनिजों की मात्रा मिलीग्रामों में व विभिन्न विटमिनों की मात्रा अन्तर्राष्ट्रीय इकाइयों में दी गई है।
[खण्ड
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शाकाहारी आहारों से ऊर्जा २८५ सारणी ६. शाकाहारी एवं मांसाहारी खाद्य-घटकों के कैलोरी-मूल्य प्रति पैसा
खाद्य घटक
मांसाहारी
शाकाहारी गोपालन भा.चि.प. १२५ पैसा १३४ ३२५ २.४ ४.५० ४०० ३.०० २.०
१. कार्बोहाइड्रेट २. प्रोटीन ३. वसा ४. फल/शाक
जैन १२७
२., ४५० २२०
राब अमेरिका १३७ २२ २०१८
मक्का, यीस्ट, काई, अल्फाल्फा आदि के समान गैर-परम्परागत शाकाहारी स्रोतों से नये-नये खाद्यों का विकास कर " रहे हैं।' शासन स्वयं भी इस ओर ध्यान दे रहा है और उसकी एजेन्सियों ने भी अनेक बहु-उद्देश्यीय सस्ते खाद्यों का विकास किया है। उन्होंने मूंगफली, मक्का, चना और सोयाबीन के आटे तथा दुग्ध-चूर्ण से उच्च प्रोटीनी पीईएम खाद्य तैयार किया है। मक्का, सोर्घम एवं विनोले के आटे से मध्य अमेरिका में इनकेप्रिना नामक खाद्य विकसित किया गया है। इनकी सुस्वादुता उत्साहवर्धक पाई गई है। इन खाद्यों का ऊर्जामान एवं प्रोटीनमान पर्याप्त उच्च होता है। विभिन्न देशों में स्कूली भोजन या मध्याह्न भोजन के समय इन्हें दिया जा रहा है। यही नहीं, आहारशास्त्री तो पेट्रोलियमस्रोतों से १:३ ब्यूटेन डायोल तथा २.३ डाइमेथिल हैप्रानोइक अम्ल के समान ६ कै०/ग्राम के समान सान्द्रित ऊर्जा वाले कार्वोहाइड्रेट-प्रतिस्थापी खाद्यों के विकास की दिशा में काम कर रहे हैं। इस प्रकार, वे कृषि पर आधारित खाधों पर निर्भरता को कम करने के प्रयत्न में लगे हैं। आज के अन्तरिक्ष-युग में ऐसे सान्द्रित-ऊर्जा के खाद्यों की महती आवश्यकता है ।१२
दुग्क-शाकाहारी खाद्यों के सम्बन्ध में उपरोक्त तथ्य एवं विकास जैनों की इस धारणा को बल देते हैं कि शाकाहार न केवक एक धार्मिक विश्वास है अपितु यह स्वस्थ, सुखी एवं दीर्घजीवन के लिये तुलनात्मकतः सरल एवं वैज्ञानिकतः समर्थ आहार तन्त्र है। इसके प्रचार हेतु आयोजित होने वाले अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों की लोकप्रियता भी इस तथ्य का प्रमाण है।
५. कैलोरीमान का अर्थशास और आहार-मानों में प्रबलन
किसी भा आहार के ऊर्जामानों के विकास का अर्थ उससे उत्पन्न कैलोरियों के अर्थशास्त्र से सम्बन्धित है । खाद्यों की प्रत्येक कोटि से प्राप्त होने वाली कैलोरी का विशिष्ट मूल्य होता है। सारणी ४ से स्पष्ट है कि हमारे आहार का लगभग २/३ कैलोरीमान कार्बोहाइड्रेटी खाद्यों से प्राप्त होता है। ये सस्ते होते हैं, इसलिये इन्हें "निस्सार कैलोरी समूह' कहते हैं । उपरोक्त प्रस्तावित भोजनों के मूल्य विश्लेषण से स्पष्ट है कि कार्बोहाइड्रेटी कैलोरियां एक पैसे में १२-१३ तक प्राप्त होती हैं। इसके विपर्यास में, प्रोटीन एवं शाकों से प्राप्त कैलोरी लगभग छह गुनी मंहगी होती है२-२.४ २०/पसा । वसीय कैलोरी तिगुनी मंहगी पड़ती है-४ के०/पैसा । इस कैलोरी-मूल्य से ज्ञात होता है कि यदि हमें आहार की कैलोरी बढ़ाना है, तो अन्न अधिक खाना चाहिये । इसी प्रकार, यदि हमें मोटापा कम करना है, तो हमें अन्न कम और प्रोटीन अधिक खाना चाहिये । इस दृष्टि से मांसाहारी प्रोटीन की कैलोरी बहुत मंहगी है। यही बात इस कोटि की शाक कैलोरी की है ।'3 इसीलिये मांसाहारी भोजन, शाकाहारी भोजन से मंहगा होता है। यह देखा गया है कि शाकाहारी प्रोटीन, मांसाहारी प्रोटीन की तुलना में १/२-१/३ सस्ता होता है। इस प्रकार भोजन का मूल्य इसके प्रोटीन पर निर्भर करता है। अमेरिकी वैज्ञानिकों का भी यही निष्कर्य है लेकिन वहाँ वसीय कैलोरी कुछ सस्ती
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________________ 286 पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड पड़ती हैं।'४, 15 कैलोरियों के इस अर्थशास्त्र से हमें अपने आहार के प्रोटोन और ऊर्जामानों को उन्नत करने में सहायता मिल सकती है। आजकल शाकाहारी खाद्यों की अधिकतम उपयोगिता के लिये मार/मूल्य के अनुपात में मितव्ययिता की ओर अधिकाधिक ध्यान दिया जा रहा है। इससे शाकाहार को तो प्रोत्साहन मिलेगा ही, अहिंसाधर्म का भो घोष होगा। निर्देश 1. विल्सन डी० एवा आदि; प्रिंसिपल्स आव न्यूट्रीशन, जॉन वाइली, न्यूयार्क, 1966, p. 200-122 2. फ्लैक हेरीता; इन्द्रोडक्शन टू न्यूट्रीशन, मैकमिलन, न्यूयार्क, 1976, पेज 19 3. राव, ह्वो० के० आर० बी० फुड, न्यूट्रीशन ऐंड पोवर्टी इन इंडिया, विकास, दिल्ली, 1982, p. 146 4. (a) देखिये, निर्देश 2, पेज 421-26; (b) आलिम, मेरियन; साइंस आव न्यूट्रीशन, मैकमिलन, न्यूयार्क, 1977, पेज 92-98 5. गोपालन, सी०; न्यूट्रीटिव वेल्यूज आव इण्डियन फुड्स ( हिन्दो), चण्डीगढ़, 1974 6. देखिये, निर्देश 4 पेज 92-93 7. देखिये, निर्देश 3, पेज 138 8. वही, पेज 204 9. पार्क, जे० ई० और पार्क, के०; टेक्स्ट बुक आव पी० एस० एम०, मानोत, जबलपुर, 1987 10. देखिये, निर्देश 5, पेज 140 11. देखिये, निर्देश 4, पेज 284-86 12. देखिये, निर्देश 1, पेज 497-502 13. देखिये, निर्देश 2, पेज 447 14. देखिये, निर्देश 2, पेज 443 15. किंडर, फाया; मोल मैनेजमेन्ट, मैकमिलन, न्यूयार्क, 1973, पेज 39