Book Title: Prakrut Angreji Bruhad Kosh ka Nirman Author(s): Nalini Joshi Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229561/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश्व के समूचे जैनियों के लिए ललामभूत प्रकल्प : प्राकृत- अंग्रेजी बृहद् कोष का निर्माण ( १ ) लेख का प्रयोजन : ५ जनवरी २००४ के दिन भाण्डारकर प्राच्य विद्या संस्था में जो विध्वंसकारी घटना घटी, उसकी तीव्र प्रतिक्रियाएँ देश-विदेश में उमड उठी । पूज्य आचार्यश्री पुण्यविजयजी भाण्डारकर संस्था के एक प्रभावी फाउण्डरमेम्बर तथा डॉ. रा. ग. भाण्डारकरजी के निजी दोस्त भी थे। जैनविद्या के क्षेत्र में अनुसन्धान का काम करनेवाले सभी जैन स्कॉलर्स तथा विद्वान साधुवर्ग पाण्डुलिपियों के (manuscripts, हस्तलिखित) सन्दर्भ में लगभग एक सदी से भाण्डारकर संस्था के सम्पर्क में रह चुके हैं। पूज्य श्री विजयशीलचन्द्रसूरीश्वरजी अपने विहार के दौरान कम से कम ३-४ बार तो संस्था में पधार चुके हैं। मार्च २००४ में भी पुणे वास्तव्यमें आपने संस्था के सम्पर्क किया। संस्था के हालात देखकर गौडी पार्श्वनाथ मन्दिर ट्रस्ट को प्रेरित करके एक लक्ष रूपयों की धनराशि देकर भरसक सहायता की। आगे भी सहायता दिलवाने का इन्तजाम किया 1 भाण्डारकरके प्राकृत- अंग्रेजी बृहद् - कोशकार्य में महाराजसाहब को अपूर्व दिलचस्पी थी । आपने खुद पधारकर पूरे दो घंटे तक डिक्शनरी के शब्दसंग्रह (Scriptorium) और अर्था निर्धारण पद्धति के बारे में बारीकियोंसे तहकीकात की । सब सिस्टिम जानकर आप तहेदिल से प्रसन्न हुए। पूरे भारतवासियों को जानकारी मिलने के लिए आपने मुझको प्रेरणा दी। उसीके फलस्वरूप यह दीर्घलेख लिख रही हूँ । ( २ ) डिक्शनरी की परियोजना और आरम्भ : समूचे प्राचीन जैन ग्रंथों को समाविष्ट करनेवाला बृहद् -कोश (Comprehensive dictionary) निर्माण करने की मूल परियोजना, भारत के मशहूर उद्योगपति स्व. श्री नवलमलजी फिरोदिया की थी । उन्होंने सन् १९८६ में 'सन्मति - तीर्थ' नाम का ट्रस्ट स्थापन किया। इस प्रॉजेक्ट के लिए उस में दस लाख रूपयों की राशि जमा की। भाण्डारकर संस्था के उस समयके सेक्रेटरी डॉ. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 92 अनुसंधान-२९ रां.ना.दाण्डेकरजी से संपर्क किया । विश्व के जानेमाने भाषाविद् और प्राकृतजैनविद्या के महारथी डॉ. अमृत माधव घाटगेजी से भी कोल्हापुर में जाकर संपर्क किया । कोश के मुख्य संपादकत्व की जिम्मेदारी स्वीकृत करने के लिए उन्होंने उनको राजी किया। पुणे में संस्था के नजदीक उनके रहने का भी इंतजाम किया। डिक्शनरी का प्रारूप (Scheme) बनाने की जिम्मेदारी उनपर सौंप दी। डॉ. घाटगेजीने छह महीने तक पूरी योजना बनायी, प्रश्नावली बनाकर देशविदेश भेजी, कोश कार्य के लिए १००० प्राकृत जैनिसम संबंधो किताबों का ग्रंथालय तैयार किया और इंटरव्यू लेकर चार असिस्टंट चुने । १ अप्रैल १९८७ में डिक्शनरी के काम का प्रारंभ हुआ। आज इस महत्त्वाकांक्षी प्रकल्प की प्रेरणाभूत तीनों हस्तियाँ इस दुनियामें नहीं है, फिर भी तीनों के उत्तराधिकारी बडी लगन से इस प्रकल्प को यथाशक्ति आगे बढ़ाने में जुटे हैं ! प्रकल्प का सालभर का खर्चा लगभग दस लाख रूपये हैं। भाण्डारकर संस्था और सन्मति-तीर्थ के अध्यक्ष श्रीमान् अभयजी फिरोदिया खर्च का आधा-आधा हिस्सा उठा रहे हैं। (३) बृहद्-कोश को आवश्यकता और उसका सामान्य स्वरूप : इस कोश का पूरा. नाम इस प्रकार है A Comprehensive and Critical Dictionary of Prakrit Languages (with special reference to Jain Literature) पहले तो यह बात है कि इस प्रकार के नये कोश की क्या आवश्यकता है ? इसके पहले बनी हुई डिक्शनरियाँ क्या काफी नहीं है ? इसके पहले बने हुए कोशों की कमियाँ बताने के बदले इसकी विशेषताएँ कहती हूँ। (१) इस प्रकार का कोश अंग्रेजी में नहीं बना है। भविष्यकाल में भी बननेकी आशा लगभग नहीं के बराबर है। एक बार कोश अंग्रेजी में बनें तो दुनिया की सभी भाषाओं में रूपांतरित हो सकता है। (२) इस कोश के आधारभूत ग्रंथ लगभग ५०० हैं। पहले बनी हुई डिक्शनरियोंसे यह व्याप्ति काफी बड़ी है। (३) इस में सभी जैन और जैनेतर ग्रंथ उपयोग में लाएं हैं, जो प्राकृत भाषामें लिखे हैं । जैन संस्कृत के शब्द यहाँ समाविष्ट नहीं है। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ August-2004 (४) 'प्राकृत' यह नाम बिलकुल सर्वसाधारण है। इस कोशमें सात प्रकार की प्राकृत भाषाओं का समावेश किया है । अर्धमागधी, जैन माहाराष्ट्री, जैन शौरसेनी, माहाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी और अपभ्रंश । माहाराष्ट्री, शौरसेनी और मागधी इन भाषाओं में जैनेतर साहित्य और नाटकीय प्राकृत साहित्य लिखा हुआ है। ताकी ४ भाषाओं में समूचा प्राचीन जैन साहित्य पाया जाता है। प्राय: श्वेतांबर प्राकृत साहित्य अर्धमागधी और जैन माहाराष्ट्री में है। दिगंबर आचार्यों ने तात्त्विक ग्रंथो के लिए जैन शौरसेनी और चरित ग्रंथो के लिए अपभ्रंश भाषा अपनायी है। (५) इस कोश में भाषाओं का इतिहास और कालक्रम ध्यान में रखा है। (६) डिक्शनरी प्रॉजेक्ट शुरू होनेपर पहले पाँच सालतक शब्दों का चयन करके पाँच लाख शब्दपट्टिकाएँ (word-slips) तैयार की । वे सब अकारानुक्रम से (Alphabetically) लगाकर शब्दसंग्रह (Scriptorium) पूरा किया है। पाच साल के बाद एडिटिंग का काम शुरु हुआ । अबतक शब्दकोष के १००० पृष्ठ तैयार हुए है। 'अ' से शुरु होनेवाले सभी शब्द १००० पृष्ठोंमें अंकित है। (४) कोश-कार्य की प्रगति और वेग बढ़ानेकी योजना : हर साल लगभग १०० पृष्ठ तैयार होते हैं (इसका मतलब हर साल २५,००० शब्द अर्थ और अवतरण (meaning with citations) सहित अंकित किये जाते हैं। हर साल १०० पृष्ठोंका एक लघुखंड (Fasicule) तैयार होता है। ३ या ४ साल बाद लघुखंड एकत्रित करके खंड (Volume) बनता है। फिलहाल तीसरे व्हॉल्यूम का तीसरा फॅसिक्यूल बन रहा है। 'आ' से शुरू होनेवाले सभी शब्द एक साल में पूरे हो जाएंगे। श्रीमान अभयजी फिरोदिया डिक्शनरी का और एक युनिट बनाना चाहते हैं। उस यनिट का ट्रेनिंग शरू हआ है। अगर उस यूनिट का काम स्वतंत्ररूप से चले तो डिक्शनरी का वेग डेढ गुना हो जाएगा। मतलब आनेवाले २० साल में डिक्शनरी पूरी करने की उम्मीद रखते हैं । (५) कोश में शब्द देने का तरीका; एक उदाहरण : प्राकृत शब्द का प्राथमिक रूप प्रथम बोल्ड टाइपमें देते हैं । उसके बाद कोष्ठक में सोपसर्ग शब्द तोडकर प्रथम प्राकृत के अनुसार रोमनायझेशन करके देते हैं। इसके बाद उसके नजदीक के संस्कृत शब्द का रोमनायझेशन देते हैं। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 94 अनुसंधान-२९ कोष्ठक समाप्त करके उसका निश्चित व्याकरण देते हैं। पहले शब्द के अर्थ अलग अलग करके अवतरण सहित देते हैं । अवतरण में भाषाक्रम (linguistic order) और कालकम (Chronology) ध्यान में रखते हैं। एक उदाहरण प्रस्तुत करती हूं। {अणुसट्ठि (anu-satthiPage #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ August-2004 95 (8) बृहद्-कोश में काम करनेवाले रीसर्च स्कॉलर्स (1) प्रो. आर.पी.पोद्दार (मुख्य संपादक) (सन्मति-तीर्थ) (2) डॉ. नलिनी जोशी (सहायक संपादक) (भाण्डारकर) (3) डॉ. कमलकुमार जैन (सहायक संपादक) (भाण्डारकर) (4) डॉ. मीनाक्षी कोडणीकर (सहायक संपादक) (भाण्डारकर) (5) प्रो.जी.बी.पनसुले (असोसिएट एडिटर) (भाण्डारकर) (6) डॉ. ललिता मराठे (ज्यूनियर) (सन्मति-तीर्थ) (9) अत्यंत जटिल तथा बौद्धिक कसौटी का कार्य : __अनेक देशी-विदेशी विद्वान तथा अनुसंधानात्मक कार्य के प्रति लगाव रखनेवाले साधु-साध्वियों ने इस कोशकार्य के जटिलता की तथा अर्थानिर्धारण के कार्य में निहित बौद्धिक आह्वान की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। यह कार्य इसी तरह आखिरतक अच्छी तरहसे संपन्न होने की शुभकामनाएं भी दी है। (१०)भाण्डारकर संस्था में कोशकार्य के लिए अलग धनराशि की आवश्यकता : सन्मति-तीर्थ ट्रस्ट इस कोशकार्य के लिए प्रतिवर्ष 5 लाख रूपयोंका धनराशि खर्च कर रहा है। भाण्डारकर संस्था के द्वारा प्रतिवर्ष 5 लाख रूपयों की व्यवस्था की जाती है। यह संस्था प्राय: समाजके द्वारा प्रदान किये हुए धनराशि पर ही चलती है। आजतक के इतिहास से यह सिद्ध हुआ है कि इस संस्था के द्वारा अंगीकृत कार्य कितना भी विशाल हो, समूचे समाजने अपने आर्थिक सहयोग से वह संपन्न कराने में सदैव सहायता की है। पूरे विश्व के जैनियों के लिए इस लेख द्वारा मैं आवाहन करती हूँ कि पूरे जिनवाणी के एक-एक शब्दार्थनिर्धारण से बननेवाले इस बृहद्-कोश के लिए आप भाण्डारकर प्राच्य विद्या संशोधन मंदिर की दिलोजान से सहायता करें ! जय जिनेन्द्र ! जय भारत ! डॉ. नलिनी जोशी सहायक संपादक, प्राकृत डिक्शनरी प्रॉजेक्ट, भाण्डारकर प्राच्य विद्या संस्था पुणे-४ (महाराष्ट्र)