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अनुसंधान-२९
रां.ना.दाण्डेकरजी से संपर्क किया । विश्व के जानेमाने भाषाविद् और प्राकृतजैनविद्या के महारथी डॉ. अमृत माधव घाटगेजी से भी कोल्हापुर में जाकर संपर्क किया । कोश के मुख्य संपादकत्व की जिम्मेदारी स्वीकृत करने के लिए उन्होंने उनको राजी किया। पुणे में संस्था के नजदीक उनके रहने का भी इंतजाम किया। डिक्शनरी का प्रारूप (Scheme) बनाने की जिम्मेदारी उनपर सौंप दी। डॉ. घाटगेजीने छह महीने तक पूरी योजना बनायी, प्रश्नावली बनाकर देशविदेश भेजी, कोश कार्य के लिए १००० प्राकृत जैनिसम संबंधो किताबों का ग्रंथालय तैयार किया और इंटरव्यू लेकर चार असिस्टंट चुने । १ अप्रैल १९८७ में डिक्शनरी के काम का प्रारंभ हुआ।
आज इस महत्त्वाकांक्षी प्रकल्प की प्रेरणाभूत तीनों हस्तियाँ इस दुनियामें नहीं है, फिर भी तीनों के उत्तराधिकारी बडी लगन से इस प्रकल्प को यथाशक्ति आगे बढ़ाने में जुटे हैं ! प्रकल्प का सालभर का खर्चा लगभग दस लाख रूपये हैं। भाण्डारकर संस्था और सन्मति-तीर्थ के अध्यक्ष श्रीमान् अभयजी फिरोदिया खर्च का आधा-आधा हिस्सा उठा रहे हैं। (३) बृहद्-कोश को आवश्यकता और उसका सामान्य स्वरूप :
इस कोश का पूरा. नाम इस प्रकार है
A Comprehensive and Critical Dictionary of Prakrit Languages (with special reference to Jain Literature)
पहले तो यह बात है कि इस प्रकार के नये कोश की क्या आवश्यकता है ? इसके पहले बनी हुई डिक्शनरियाँ क्या काफी नहीं है ? इसके पहले बने हुए कोशों की कमियाँ बताने के बदले इसकी विशेषताएँ कहती हूँ।
(१) इस प्रकार का कोश अंग्रेजी में नहीं बना है। भविष्यकाल में भी बननेकी आशा लगभग नहीं के बराबर है। एक बार कोश अंग्रेजी में बनें तो दुनिया की सभी भाषाओं में रूपांतरित हो सकता है।
(२) इस कोश के आधारभूत ग्रंथ लगभग ५०० हैं। पहले बनी हुई डिक्शनरियोंसे यह व्याप्ति काफी बड़ी है।
(३) इस में सभी जैन और जैनेतर ग्रंथ उपयोग में लाएं हैं, जो प्राकृत भाषामें लिखे हैं । जैन संस्कृत के शब्द यहाँ समाविष्ट नहीं है।
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