________________
August-2004
(४) 'प्राकृत' यह नाम बिलकुल सर्वसाधारण है। इस कोशमें सात प्रकार की प्राकृत भाषाओं का समावेश किया है । अर्धमागधी, जैन माहाराष्ट्री, जैन शौरसेनी, माहाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी और अपभ्रंश । माहाराष्ट्री, शौरसेनी और मागधी इन भाषाओं में जैनेतर साहित्य और नाटकीय प्राकृत साहित्य लिखा हुआ है। ताकी ४ भाषाओं में समूचा प्राचीन जैन साहित्य पाया जाता है। प्राय: श्वेतांबर प्राकृत साहित्य अर्धमागधी और जैन माहाराष्ट्री में है। दिगंबर आचार्यों ने तात्त्विक ग्रंथो के लिए जैन शौरसेनी और चरित ग्रंथो के लिए अपभ्रंश भाषा अपनायी है।
(५) इस कोश में भाषाओं का इतिहास और कालक्रम ध्यान में रखा है।
(६) डिक्शनरी प्रॉजेक्ट शुरू होनेपर पहले पाँच सालतक शब्दों का चयन करके पाँच लाख शब्दपट्टिकाएँ (word-slips) तैयार की । वे सब अकारानुक्रम से (Alphabetically) लगाकर शब्दसंग्रह (Scriptorium) पूरा किया है। पाच साल के बाद एडिटिंग का काम शुरु हुआ । अबतक शब्दकोष के १००० पृष्ठ तैयार हुए है। 'अ' से शुरु होनेवाले सभी शब्द १००० पृष्ठोंमें अंकित है। (४) कोश-कार्य की प्रगति और वेग बढ़ानेकी योजना :
हर साल लगभग १०० पृष्ठ तैयार होते हैं (इसका मतलब हर साल २५,००० शब्द अर्थ और अवतरण (meaning with citations) सहित अंकित किये जाते हैं। हर साल १०० पृष्ठोंका एक लघुखंड (Fasicule) तैयार होता है। ३ या ४ साल बाद लघुखंड एकत्रित करके खंड (Volume) बनता है। फिलहाल तीसरे व्हॉल्यूम का तीसरा फॅसिक्यूल बन रहा है। 'आ' से शुरू होनेवाले सभी शब्द एक साल में पूरे हो जाएंगे।
श्रीमान अभयजी फिरोदिया डिक्शनरी का और एक युनिट बनाना चाहते हैं। उस यनिट का ट्रेनिंग शरू हआ है। अगर उस यूनिट का काम स्वतंत्ररूप से चले तो डिक्शनरी का वेग डेढ गुना हो जाएगा। मतलब आनेवाले २० साल में डिक्शनरी पूरी करने की उम्मीद रखते हैं । (५) कोश में शब्द देने का तरीका; एक उदाहरण :
प्राकृत शब्द का प्राथमिक रूप प्रथम बोल्ड टाइपमें देते हैं । उसके बाद कोष्ठक में सोपसर्ग शब्द तोडकर प्रथम प्राकृत के अनुसार रोमनायझेशन करके देते हैं। इसके बाद उसके नजदीक के संस्कृत शब्द का रोमनायझेशन देते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org