Book Title: Prabhavak Acharya Jinharisagarsuri
Author(s): Kantisagar
Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभावक प्राचार्यदेव श्री जिनहरिसागरसूरीश्वर [ ले० मुनिश्री कान्तिसागरजी ] आचार्य पद की महत्ता जैन शासन में आचार्यों का स्थान की तीर्थंकर भगवान् से दूसरे नम्बर पर ही आता है क्योंकि जिस समय भव्यामाओं को मोक्ष मार्ग दिखा कर श्रीतीर्थंकर भगवान् अजरामर पद को प्राप्त हो जाते हैं, उस समय उनके विरहकाल में द्वादशाङ्गी रूप सम्पूर्ण प्रवचन को और जैन संघ के विशिष्ट उत्तरदायित्व को आचार्य देव ही धारण करते हैं । अतएव प्रवचन प्रभावक प्रातःस्मरणीय आचार्य देवों के पुनीत चरित्रों को जानना प्रत्येक आत्महितैषी का कर्तव्य हो जाता है । अत: एक ऐसे ही आचार्यदेव के दिव्य जीवन से परिचय कराया जाता है। जिसकी अतुल कीर्त्ति किरणों से मारवाड का प्रत्येक प्रदेश आज मान है । प्रकाश पूर्व सम्बन्ध श्रीमन्महावीर भगवान् के ६७वें पट्टधर श्रीजिनभक्ति सूरिजी म० के पट्टशिष्य श्रोप्रीतिसागरजी महाराजने वि० की ११वीं शताब्दी में पति समुदाय में बढ़ते हु शिथिलाचार को और प्रभुपूजा विरोधी ढुंढक मत के प्रचार को देखकर वाचनाचार्य श्री अमृतधर्मजी म० और महोपाध्याय श्रीक्षमा कल्याणजी महाराज जो कि आपके शिष्य-प्रशिष्य थे- के साथ श्रीसिद्धाचल तीर्थाधिराज पर क्रियोद्वार किया था । महोपाध्याय श्रीक्षमाकल्याणजी म० की शिष्य परम्परा में परमोपकारी सिद्धान्तदधि गणाधीश्वर श्रीसुखसागरजी महाराज हुए। आपका समुदाय खरतर गच्छीय साधुओं में अधिक प्राचीन एवं सुविस्तृत रूपसे वर्तमान है । श्रीसुखसागरजी महाराज की समुदाय के अधिनायक आबाल ब्रह्मचारी प्रवचन - प्रभावक पूज्य श्रीजिनहरिसागर सूरीश्वरजी महाराज थे । आपका ही पुनीत चरित्र प्रस्तुत लेख में प्रकाशित किया जाता है । कुमार हरिसिंह जोधपुर राज्य के नागोर परगने में प्राकृतिक सौन्दर्य से हराभरा 'रोहिणा' नाम का एक छोटा सा गांव है। वहां खेती- पशुपालन आदि स्वावलम्बी कर्म वाले और युद्धभूमि में दुश्मनों से लोहा लेनेवाले, क्षत्रियोचित गुणों से स्वतन्त्र जीवन वाले जाट वंशीय भुरिया खानदान के लोगों की जमींदारी है । जमींदारों के प्रधान पुरुष - श्रीहनुमन्त सिंहजी की धर्मपत्नी श्रीमती केसर देवी की पवित्र कख से वि० सं० १९४६ के मार्गशीर्ष शुक्ला ७ के दिन दिव्य मुहूर्त में हमारे चरित नायक का जन्म हुआ था । हरि-सूर्य और सिंह के समान तेजोमय भव्य आकृति और महापुरुषों के प्रधान लक्षणों से युक्त अपने सुकुमार को देखकर माता-पिता ने आपका गुणानुरूप नाम 'श्रीहरिविह' रखा था । सफल संयोग अपनी अलौकिक लीलाओं से माता-पितादि परिजनों को आनन्दित करते हुए कुमार हरिसिंह जब करीब ६-७ वर्ष के हुए तब अपने पिता के साथ पूज्य गणाधीश्वर श्री भगवान्सागरजी महाराज जो कि गृहस्थावस्था में आपके चाचा लगते थे - के दर्शन के लिये फलोदी ( मारवाड़) गये । बाल लीला के साथ आपने वंदन करके श्रीगुरुमहाराज की पापहारिणी चरणधूलि को अपने मस्तक में लगाई | श्रीगुरुदेव ने दिव्य-दृष्टि से आप में भावी प्रभाव - --- Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ११ । कता के प्रशस्त चिन्ह पाये। लोक-कल्याण की भावना से तपस्वी श्रीछननसागरजी म० ने अपने पूज्य गणाधीश्वरजी प्रेरित हो गुरु-महाराज ने श्रीहनुमन्तसिंह जी को उपदेश की इस आज्ञा को शिरोधार्य करके, उनको निश्चिन्त बना दिया कि तुम्हारे ५ लड़के हैं। उनमें से इस मध्यम कुमार दिया। गणि श्रीभगवान्सागरजी महाराज आत्मरमण को आप हमें दे दो। क्योंकि यह कुमार बड़ा भारी साधु करते हुए दिव्य लोक को सिधार गये तब संघ में एक दम होगा, और अपने उपदेशों से जैनशासन की महती सेवा शोक छा गया। परंतु गुरुदेव के प्रतिनिधि स्वरूप कुमार करेगा। इसको देने से तुमको भी अपूर्व धर्म-लाभ होगा। हरिसिंह के दीक्षा-महोत्सव ने शोक को मिटा कर अपूर्व गुरुमहाराज की इस पुण्य प्रेरणा से प्रेरित हो वीरहृदयो आनन्द को फैला दिया। श्री संघ के सामने बड़े भारी हनुमन्तसिंहजी ने बड़ो वीरता के साथ अपने प्राण प्यारे समारोह के साथ पू० त० श्री छगनसागरजी महाराज ने पुत्र को धर्म के नाम पर श्रीगुरुमहाराज को भेंट कर दिया। कुमार हरिसिंह को उसी पूर्व निश्चित सुमुहुर्त में भगवती गुरुदेव और कुमार के इस सफल संयोग से 'सोने में सुगन्ध दोक्षा प्रदान कर पूज्य गणाधीश्वर श्री भगवानसागरजी को कहावत चरितार्थ हुई। धन्य गुरु ! धन्य पिता !! महाराज के शिष्य 'श्री हरिसागरजी' नाम से उद्घोषित धन्य कुमार !!! किये। साधुता के अड्कुर चरित नायक के गुरु भाई श्री गुरु महाराज ने अपनी वृद्धावस्था के कारण कुमार गणाधीश्वर पूज्य श्री भगवानसागरजी महाराज की विशेष देखभाल और पठन-पाठन का भार अपने साहब के शिष्य अध्यात्म योगी चैतन्यसागरजी म० उर्फ सहयोगी महातपस्वी श्री छगनसागरजी महाराज को चिदानन्दजी महाराज महोपाध्याय श्री सुमतिसागरजी दिया । पूज्य तपस्वोजो के योग्य अनुशासन में महामहिम महाराज, मुनि श्री धनसागरजी महाराज, मुनि श्री तेजशालिनी मेधावाले कुमार ने साधु क्रिया के सूत्र थोड़े ही सागरजी महाराज, श्री त्रैलोक्यसागरजी महाराज और समय में सीख लिये। पूर्व जन्म के पुण्योदय की प्रबलता हमारे चरितनायक आचार्य श्री जिनहरिसागरसूरीश्वरजी से आठ वर्ष की बाल्प अवस्था में गुरु महाराज की परम महाराज हुए। दया से साधुता के बोज अङ्कुरित हो गये। आदर्श जीवन साधु श्री हरिसागरजी पूज्य श्री छगनसागरजी महाराज की वृद्धावस्था होने कुमार हरिसिंह जब कुछ अधिक साढ़े आठ वर्ष के से और हमारे चरितनायक की बाल अवस्था होने से सं० हुए, तब युवकों का सा जोश, और वृद्धों का सा अनुभव १९५७ से १९६५ तक के चातुर्मास लोहावट और फलोदी रखते थे। गुरु महाराज ने माता पिता को और स्थानीय (मारवाड़) में ही हुए। इस सानुकूल संयोग में ज्ञान-तप (फलोदी) जैन संघ को अनुमति से आपकी दीक्षा का और अवस्था से स्थिविर पद को पाये हुए पूज्य श्री छगनप्रशस्त मुहुर्त १६५७ आषाढ़ कृष्ण ५ के दिन निर्धारित सागरजी महाराज ने आपको संस्कृत व प्राकृत भाषा को किया। अपने आयुष्य की अवधि निकट आ जाने से पढ़ाने के साथ-साथ प्रकरणों का तत्व-ज्ञान और आगमों श्री गुरु महाराज ने श्री संघ से खमत-खामणा करते हुए का मौलिक रहस्य भली प्रकार से समझा दिया। विद्याअन्तिम आज्ञा दो कि 'हरिसिंह को योग्य अवस्था होने पर गुरु को परम दया और आपकी प्रोढ़ प्रज्ञा ने आपके इसे मेरा उतराधिकारी मानना' । संघ के मुखिया महा- व्यक्तित्व को आदर्श और उन्नत बना दिया। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । १३२ । चरितनायक गणाधीश विकट प्रदेशों में भी प्रायः ये लोग ही सुचारु प्रचार कर श्री भगवान्सागरजी महाराज की अन्तिम आज्ञा- रहे हैं। नुसार हमारे चरितनायक को महातपस्वी श्री छगनसागर चरितनायक और प्रतिष्ठाएँ जी महाराज ने सं० १९६६ द्वि० श्रा० शु० ५ को अपने हमारे चरितनायक की अध्यक्षता में कई प्रभु मन्दिरों ५२ वें उपवास की महातपश्चर्या के पुनीत दिन में जोधपुर, की और गुरु मन्दिरों की पुण्य प्रतिष्ठाएँ हुई हैं । सुजानगढ़ फलोदो, तीवरी, जेतारण, पाली आदि अन्यान्य नगरों के में श्रीपनेचंदजी सिंघी के बनाये श्रीपार्श्वनाथ स्वामी के उपस्थित जैन संघ के सामने महा समारोह के साथ लोहावट मन्दिर की, केलु (जोधपुर) में पंचायती श्रीऋषभदेव स्वामी में गणाधीश पद से अलंकृत किया। आपके गणाधीश पद के मन्दिर की, मोहनवाडी (जयपुर) में सेठ श्रीदुलीचंदजी थत साधओं में मख्य श्री त्रैलोक्यसागरजी हमीरमलजी गोलेछा द्वारा विराजमान किये श्रीपार्श्वनाथ महाराज आदि, साध्वियों में श्री दीपश्रीजी आदि, श्रावकों स्वामो की, श्रीसागरमलजी सिरहमलजी संचेती के बनाये में लोहावट के श्रीयुत् गेनमलजी कोचर, फलोदी के श्रीयुत् श्रीनवपद पट्ट की, कोटे में दिवान बाहादुर सेठ केसरीसुजानमलजी गोलेछा-स्व० फूलचंदजी गोलेछा, जोधपुर सिंहजी के, और हाथरस (उ० प्र०) में सेठ बिहारीलाल के स्व० कानमलजी पटवा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। मोहकमचंदजी के बनाये श्रीदादा-गुरु के मन्दिरों की, शान्त दान्त धीर गुण योग्य गणाधीश को पाकर साधु- लोहावट में पंचायती गुरु मन्दिर में गणनायक श्रीसुखसाध्वो-श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ ने अपना अहो- सागरजी महाराज साहब को और ग० श्रीभगवान्सागरजी भाग्य माना। म० एवं श्रोछगनसागरजी म. के मूर्ति चरणों की प्रतिचरितनायक और समुदाय वृद्धि ठाएं उल्लेखनीय है । हमारे चरितनायक गणाधीश्वर श्री हरिसागरजी चरित नायक और उद्यापन महाराज के अनुशासन में करीब सवासो साधु-साध्वियों हमारे चरितनायक की अध्यक्षता में कई धर्मप्रेमी की अभिवृद्धि हुई है। इस समय आपको आज्ञा में करीब श्रीमान् श्रावकों ने अपनी २ तपस्याओं की पूर्णाहूति के दो सौ साधु-साध्वियाँ वर्तमान हैं । साधुओं में कई महात्मा उपलक्ष में बड़े बड़े उद्यापन महोत्सव किये हैं। उनमें आबाल-ब्रह्मचारी, प्रखरवक्ता, महातपस्वी, विद्वान् और फलोदी (मारवाड़) में श्रीरतनलालजी गोलेछा का किया कवि रूप से जैन शासन की सेवा कर रहे हैं। साध्वियों हुआ श्रीनवपदजी का, कोटे में दिवान बहादुर सेठ केसरोके तीन समुदाय ( १-प्रवत्तिनी श्री भावधीजी का, सिंहजी का किया हुआ पोष-दशमी का, जयपुर में सेठ २-प्र० श्री पुण्यश्रीजी का और ३-प्र० श्री सिंहश्रीजी का गोकलचन्दजी पुंगलिया, सेठ हमीरमलजी गोलेछा, सेठ है)। इनमें भी कई आजीवन ब्रह्मचारिणी, विशिष्ट व्याख्यान सागरमलजो सिरहमलजो, सेठ विजयचन्दजी पालेचा, आदि दात्री, महातपस्विनी एवं विदुषी प्रचारिका रूप में जैन के किये हुए ज्ञान पंचमी, नवपदजी और वीसस्थानकजी सिद्धान्तों का प्रचार कर रही हैं । अन्यान्य गच्छीय साधुओं के तीवरी (मारवाड़) में श्रीमती जेठीवाई का किया हुआ के जैसे कच्छ, काठियावाड, गुजरात आदि जैन प्रधान देशों ज्ञान-पंचमी का, और देहलो के लाला केसरचन्दजी बोहरा में आपके साधु-साध्वी प्रचार करते हो हैं परन्तु मारवाड़, के किये हुए ज्ञानपंचमो और नवपद जी के उद्यापन महोत्सव मालवा, मेवाड़, उ. प्र., म. प्र०, आदि अजेन प्रवान विशेष उल्लेखनीय हुए हैं। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १३३ । चरित नायक-और संघ के किसी मताभिनिवेशी मेनेजर के हटाया हुआ 'श्रीखरतर हमारे चरितनायक के पवित्र उपदेश से प्रेरित हो कई वसही' नाम का साइन बोर्ड उसी पेढ़ी के जरिये वापिस भव्यात्माओं ने तारणहार तीर्थों की यात्रा के लिये छरी- लगवाया। वही श्रीखरतर गच्छ की बिखरी हुई शक्तिकों पालक बड़े-बड़े संघ निकाले हैं। उनमें श्रीजेसलमेर महा- संगठित करने के लिये श्रीखरतरगच्छ संघ सम्मेलन का वृहद् तीर्थ के लिए फलोदी से पहली वार सेठ सहसमलजी आयोजन करवाया। बीकानेर में श्रीक्षमाकल्याणजी के गोलेछा द्वारा, और दूसरी बार सेठ सुगनमलजी गोलेछा और जयपुर में पंचायती के प्राचीन हस्तलिखित जैनज्ञान की धर्मपत्नी श्रीमती राधाबाई द्वारा, श्रीबारेजा पार्श्व- भण्डार का जीर्णोद्धार करवाया। कई तीर्थो के-मूर्तियों नाथ तीर्थ के लिये मांगरोल से पहली बार सेठ जमनादास के प्राचीन शिलालेखों का, प्रभावक आचार्यों की कई मोरारजी द्वारा और दूसरी बार सेठ मकनजी कानजी प्राचीन पट्टावलियों का, और पुण्य प्रशस्तियों का वृहत् द्वारा, श्रीअंजारा पार्श्वनाथ तीर्थ के लिये वेरावलसे खरतर- संग्रह आपने तैयार किया है। गच्छ पंचायती द्वारा, तालध्वज महातीर्थ के लिये श्रीपा- चरित नायक और साहित्यिक लीताना से आहोर निवासी सेठ चन्दनमल छोगाजी द्वारा, प्रवृत्ति तीर्थाधिराज श्रीसिद्धाचलजी के लिए अहमदाबाद से सेठ हमारे चरितनायक श्री उववाई सूत्र का सटीक हिन्दी डाह्याभाई द्वारा और देहली से श्री हस्तीनापुर महातीर्थ अनुवाद दादागुरु श्री जिनदत्तसूरिजी महाराज की ऐतिके लिये लाला चांदमलजो घेवरिया की धर्मपत्नी श्रीमती सिक पूजा, महातपस्वी श्री छगनसागर जी महाराज का कपूरीदेवी द्वारा आदि २ छरो-पालते हुए बड़े-बड़े संघ दिव्य जीवनवृत्त, हरि-विलास स्तवनावली के दो भाग, विशेष उल्लेख योग्य हुए हैं। आदि कई ग्रन्थों का नव सर्जन किया है। लोहावट से चरित नायक और संस्थाएं प्रकाशित होनेवाले श्री सुखसागर ज्ञान बिन्दु जिनकी संख्या हमारे चरितनायक के अमोघ उपदेश से कई शहरों इस समय ५० है-आपकी साहित्यक भावना का मधुर में शिक्षालय, पुस्तकालय, मित्रमण्डल आदि कई संस्थाए फल है। इन्हीं ज्ञान बिन्दुओं से सुप्रसिद्ध इतिहास लेखक स्थापित हुई हैं ! पालीताना में श्रीजिनदत्तसूरि ब्रह्मचर्याश्रम पं० लालचन्द भगवानदास गाँधी द्वारा लिखित श्रीजिनप्रभजामनगर में श्रीखरतरगच्छ ज्ञानमन्दिर-जैनशाला, लोहावट सूरिजी म० का ऐतिहासिक जीवनचरित्र, जयानन्द-केवली में जैनमित्रमण्डल, श्रीहरिसागर जैनपुस्तकालय, कलकत्ते में चरित्र,भाव प्रकरण, संबोध-सत्तरी आदि महत्वपूर्ण साहित्य श्रीश्वेताम्बर जैन सेवासंघ-विद्यालय, बालुचर ( मुर्शि- ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है। श्री हिन्दी जैनागम-सुमति दाबाद) में श्रीहरिसागर जैन ज्ञानमन्दिर-जैन पाठशाला प्रकाशन कार्यालय कोटा से प्रकाशित होनेवाले-जैनागम आदि विशिष्ट संस्थाएँ समाजसेवा और जैन संस्कृति का साहित्य के लिये आप श्री के सदुपदेश से भागलपुर के रहीस प्रचार कर रही हैं। रायबहादुर सुखराजजी ने, उनके सुपुत्र बाबू रायकुमार चरित नायक और पुरातत्वरक्षा सिंह जी ने अजोमगंज के राजा विजयसिंह जो की माता हमारे चरित नायक ने श्रीसिद्धाचल तीर्थाधिराज पर श्री सुगनकुमारीजी ने-और कई श्रीमानों ने काफी 'खरतर वसही' के प्राचीन इतिहास की सुरक्षा के निमित्त सहायता पहुँचाई है। आपकी अमूल्य-साहित्यक सम्मति प्रवण्ड आन्दोलन करके श्रीआनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी का स्व. बाबू पूराण वन्दजी नाहर M. A. B.L. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार पुरातत्व विभाग के प्रमुख प्रोफेसर जी० सी० चन्द्रा शीर्ष शुद 14 को विजय मुहुर्त में 'श्रीजिनहरिसागरसूरीसाहब, राय बहादुर वृजमोहन जी व्यास आदि जैन अजैन श्वर जी महाराज की जय' ध्वनि के साथ अभिनन्दन पूर्वक विद्वान बहुत आदर करते रहे हैं / आचार्य पद से आपको सम्मानित किया। चरित्र नायक का विहार उपसंहार हमारे चरित नायक ने अपने 37 वर्ष के लम्बे दोक्षा पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय जैनाचार्य श्रीजिनहरिसागर पर्याय में संयम को साधना, तीर्थो की स्पर्शना और लोक- सूरीश्वरजी महाराज का यह संक्षिप्त चरित्र है। हमारे कल्याण की विशिष्ट भावना से प्रेरित हो काठियावाड़, चरितनायक आचार्यदेव श्री और आपकी आज्ञा को मानने गुजरात, राजपूताना-मारवाड़, मेवाड़, मालवा, यू० पी० वाले लगभग 200 साधु-साध्वियां हैं। एवं आचार्य श्री पंजाब, बिहार, बंगाल आदि प्रदेशों में विहार करके कर्म के शिष्य म० गणाधीश मुनि श्री हेमेन्द्र सागर जी म० वाद, अनेकान्तवाद, अहिंसावाद आदि मुख्य जैन सिद्धान्तों मुनि श्री दर्शनसागरजी म०, मु० श्री तीर्थ सागरजी म०, का प्रचार किया है। आपके हृदयंगम उपदेशों से प्रभावित एवं मुनि श्री कल्याणसागरजी महाराज आदि मुनि महोदय होकर कई बंगाली भाइयों ने आजीवन मत्स्य-मांस और जैन संघ की अभिवृद्धि करते हए अपने आदर्श जीवन के मदिरा का त्याग करके जीवन को आदर्श बनाया है / आप प्रकाश से भव्यात्माओं को प्रकाशित करें। ने तोर्थाधिराज श्री सिद्धाचल-तालध्वज-गिरनार-प्रभास हमारे चरितनायक दो वर्ष तक जेसलमेर में विराजे और पाटन-पोर्तुगीज साम्राज्य के दोवतीर्थ-शंखेश्वर-तारंगा अह- वहाँ प्राचीन भण्डार का निरीक्षण किया। इतना ही नहीं मदाबाद-पाटण-पालनपुर-आबू-देलवाड़ा-राणकपुर-जेसलमेर. पर 5 पंडित और 5 लहिये (लेखक) रखकर गुरुदेव श्री ने लोद्रवा,नाकोड़ा-करेड़ा पार्श्वनाथ-केशरियानाथ-अजमेर-जय- प्राचीन अलभ्य ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ कराई, संशोधनात्मक पुर-देहली-हस्तिनापुर-सौरिपुर-कम्पिलपुर-रत्नपुरी-अयोध्या- कार्यों में विशेष श्रम करने से गुरुदेव का स्वास्थ्य बिगड़ता कानपुर-लखनऊ-बनारस-सिंहपुरी-चन्द्रपुरो-पटना-चम्पापुरी- गया। जेसलमेर से गुरुदेव ने विहार किया, रास्ते में विशेष श्रीसमेतशिखरजी - कलकत्ता - मुर्शिदाबाद-भद्दिलपुर आदि तबीयत बिगड़ने से आचार्य श्री ने फरमाया-मैं अपना अन्तिम तारणहार तीर्थों की यात्राएं की हैं। समय किसी तीर्थ पर व्यतीत करना चाहता हूँ अतः आप चरितनायक का आचार्य पद श्री फलौदी पार्श्वनाथ मेड़तारोड़ पधारे, स्वास्थ्य प्रतिदिन हमारे चरितनायक को 1663 में म० त० श्री छगन- गिरता ही गया, आहार लेना भी बन्द किया और अहम् सागरजी महाराज ने और जोधपुर आदि शहरों के प्रमुख अर्हम ध्वनि लगाते रहे। दो दिन-रात निरन्तर ध्वनि करते जैन संघ ने लोहावट में गणाधीश्वर पूज्य श्री सुखसागरजी रहे, अन्त में जबान बन्द हो गई तब बीकानेर, जोधपुर महाराज के समुदाय के गणाधीश पद से सुचारू रूप से विभू- आदि से बड़े 2 वैद्य, डाक्टर आये किन्तु गुरुदेव श्री ने अपना षित किया था। फिर भी अजीमगंज (मुर्शिदाबाद) के राज आयुष्य सन्निकट जानकर 'अपाणं वोसिरामि' कर दिया। मान्य धर्मप्रेमी जैन संघ ने कलकत्ता, देहली, लखनऊ, संवत् 2006 पोषवदि 8 मङ्गलवार प्रातःकाल सूर्योदय फलोदी आदि नगरों के प्रमुख व्यक्तियों के विशाल जन- के पश्चात् आप श्री सर्व चतुर्विध संघ को विलखता हुआ समूह के बीच महा समारोह के साथ वि०सं० 1962 मार्ग- छोड़कर स्वर्ग पधार गये /