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________________ । १३२ । चरितनायक गणाधीश विकट प्रदेशों में भी प्रायः ये लोग ही सुचारु प्रचार कर श्री भगवान्सागरजी महाराज की अन्तिम आज्ञा- रहे हैं। नुसार हमारे चरितनायक को महातपस्वी श्री छगनसागर चरितनायक और प्रतिष्ठाएँ जी महाराज ने सं० १९६६ द्वि० श्रा० शु० ५ को अपने हमारे चरितनायक की अध्यक्षता में कई प्रभु मन्दिरों ५२ वें उपवास की महातपश्चर्या के पुनीत दिन में जोधपुर, की और गुरु मन्दिरों की पुण्य प्रतिष्ठाएँ हुई हैं । सुजानगढ़ फलोदो, तीवरी, जेतारण, पाली आदि अन्यान्य नगरों के में श्रीपनेचंदजी सिंघी के बनाये श्रीपार्श्वनाथ स्वामी के उपस्थित जैन संघ के सामने महा समारोह के साथ लोहावट मन्दिर की, केलु (जोधपुर) में पंचायती श्रीऋषभदेव स्वामी में गणाधीश पद से अलंकृत किया। आपके गणाधीश पद के मन्दिर की, मोहनवाडी (जयपुर) में सेठ श्रीदुलीचंदजी थत साधओं में मख्य श्री त्रैलोक्यसागरजी हमीरमलजी गोलेछा द्वारा विराजमान किये श्रीपार्श्वनाथ महाराज आदि, साध्वियों में श्री दीपश्रीजी आदि, श्रावकों स्वामो की, श्रीसागरमलजी सिरहमलजी संचेती के बनाये में लोहावट के श्रीयुत् गेनमलजी कोचर, फलोदी के श्रीयुत् श्रीनवपद पट्ट की, कोटे में दिवान बाहादुर सेठ केसरीसुजानमलजी गोलेछा-स्व० फूलचंदजी गोलेछा, जोधपुर सिंहजी के, और हाथरस (उ० प्र०) में सेठ बिहारीलाल के स्व० कानमलजी पटवा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। मोहकमचंदजी के बनाये श्रीदादा-गुरु के मन्दिरों की, शान्त दान्त धीर गुण योग्य गणाधीश को पाकर साधु- लोहावट में पंचायती गुरु मन्दिर में गणनायक श्रीसुखसाध्वो-श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ ने अपना अहो- सागरजी महाराज साहब को और ग० श्रीभगवान्सागरजी भाग्य माना। म० एवं श्रोछगनसागरजी म. के मूर्ति चरणों की प्रतिचरितनायक और समुदाय वृद्धि ठाएं उल्लेखनीय है । हमारे चरितनायक गणाधीश्वर श्री हरिसागरजी चरित नायक और उद्यापन महाराज के अनुशासन में करीब सवासो साधु-साध्वियों हमारे चरितनायक की अध्यक्षता में कई धर्मप्रेमी की अभिवृद्धि हुई है। इस समय आपको आज्ञा में करीब श्रीमान् श्रावकों ने अपनी २ तपस्याओं की पूर्णाहूति के दो सौ साधु-साध्वियाँ वर्तमान हैं । साधुओं में कई महात्मा उपलक्ष में बड़े बड़े उद्यापन महोत्सव किये हैं। उनमें आबाल-ब्रह्मचारी, प्रखरवक्ता, महातपस्वी, विद्वान् और फलोदी (मारवाड़) में श्रीरतनलालजी गोलेछा का किया कवि रूप से जैन शासन की सेवा कर रहे हैं। साध्वियों हुआ श्रीनवपदजी का, कोटे में दिवान बहादुर सेठ केसरोके तीन समुदाय ( १-प्रवत्तिनी श्री भावधीजी का, सिंहजी का किया हुआ पोष-दशमी का, जयपुर में सेठ २-प्र० श्री पुण्यश्रीजी का और ३-प्र० श्री सिंहश्रीजी का गोकलचन्दजी पुंगलिया, सेठ हमीरमलजी गोलेछा, सेठ है)। इनमें भी कई आजीवन ब्रह्मचारिणी, विशिष्ट व्याख्यान सागरमलजो सिरहमलजो, सेठ विजयचन्दजी पालेचा, आदि दात्री, महातपस्विनी एवं विदुषी प्रचारिका रूप में जैन के किये हुए ज्ञान पंचमी, नवपदजी और वीसस्थानकजी सिद्धान्तों का प्रचार कर रही हैं । अन्यान्य गच्छीय साधुओं के तीवरी (मारवाड़) में श्रीमती जेठीवाई का किया हुआ के जैसे कच्छ, काठियावाड, गुजरात आदि जैन प्रधान देशों ज्ञान-पंचमी का, और देहलो के लाला केसरचन्दजी बोहरा में आपके साधु-साध्वी प्रचार करते हो हैं परन्तु मारवाड़, के किये हुए ज्ञानपंचमो और नवपद जी के उद्यापन महोत्सव मालवा, मेवाड़, उ. प्र., म. प्र०, आदि अजेन प्रवान विशेष उल्लेखनीय हुए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211387
Book TitlePrabhavak Acharya Jinharisagarsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherZ_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf
Publication Year1971
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size554 KB
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