Book Title: Patan na Chaitya Sambandhi be Aprakat Krutio
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून - २०१२ पाटणना चैत्यसम्बन्धी बे अप्रगट कृतिओ - मुनिसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयौ पाटण अने जिनमन्दिरो : अणहिल्ल नामना भरवाडे बताडेला लाखाराम नामना स्थानमां जैन श्रेष्ठी चांपानी सहायथी शीलगुणसूरिजीए वि.सं. ८०२मां एक नगरनी स्थापना करी. जेनुं नाम 'अणहिल्लपुरपत्तन' एम राखवामां आव्यु. क्रमे करी ए नगर गुजरातनुं पाटनगर बन्यु. आ ज संवत्मां वनराज चावडाए त्यां सौ प्रथम पार्श्वनाथ भगवाननुं जिनालय बनाव्युं. त्यार पछी तो मूळराजवसति, विमलवसति, मुञ्जालवसति, शान्तूवसति इत्यादि अनेक जिनालयो बन्धायां. सं. १३५३ थी १३५६ना समयमां मुस्लिम बादशाह अल्लाउद्दीनना सेनापति मलिक काफरना हाथे पाटणनो नाश थयो त्यारे आमांनां घणां जिनमन्दिरो पण नाश पाम्यां. ढण्ढेरवाडो : 'थिरापद्रीयदेशमां कोई ग्रामे चैत्यमां जिनबिम्बनी प्रतिष्ठा मांडी. त्यां दिन-दिन प्रति अमारि ढंढेरो फेरवाव्यो. तदा लोको ते कुटुम्बनुं नाम ढण्ढेर एहवू पाड्यु. ते ढण्ढेर कुटुम्बना खोना झांझण प्रमुखे अणहिल्लपुरपाटणमां वास पूर्यो. पाटक वसाव्यु. ने ते ढण्ढेरवाडक कहेवायो.' आ मुजबनी नोंध मुनि समुद्रघोषना सन्दर्भमां पूर्णिमागच्छपट्टावलीमां मळे छे. (जै.गु.कविओ भा. ९. पृ. १८०) पूनमियागच्छ अने तेना बे आचार्यो : चन्द्रगच्छना चन्द्रप्रभसूरिए विधिपक्षनुं मण्डन करी चौदसने बदले पूनमना पाखी करवानी अने प्रतिष्ठा विगेरे सावध कार्यो गृहस्थने योग्य होई साधु तेमां न जाय तेवी प्ररूपणा करी चन्द्रगच्छथी जुदो पोतानो स्वतन्त्र पूनमियागच्छ शरु को. आ ज गच्छनी परम्परामां विद्याप्रभसूरिनी पाटे ललितप्रभसूरिजी नामना प्रभावक आचार्य थया. ते ललितप्रभसूरिजीनी त्रीजी पाटे भावप्रभसूरि थया. जेओ समर्थ विद्वान हता. प्रतिमाशतक-लघुटीका, ज्योतिर्विदाभरण-सुखबोधिका टीका, हरिबल मच्छीनो रास, अम्बडरास इत्यादि Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ अनुसन्धान-५९ अनेक ग्रन्थोनी तेमणे रचना करी. वीरा श्रेष्ठी अने तेनो परिवार : श्रीमाळी वंशना वीरा श्रेष्ठी पूनमिया गच्छना मुख्य श्रावक हता. मूळ भिन्नमालना वतनी तेओ ज्यारे पाटण आव्या त्यारे वीरवाडामां तेमणे जे वीरपरमात्मानो प्रासाद पूर्वे बनावराव्यो हतो ते वीरपरमात्मानी प्रतिमा पाटण (ढण्डेरवाडा)मां स्थापित करी. वीरानां अन्य सुकृतोनी विशेष नोंध अनुसन्धान५मां अज्ञात कवि कर्तृक साहवीरा सुकृतवर्णननी प्रशस्ति-चउपई लेखमां जोवी. वीराश्रावकनी चोथी पेढीए तेजसी श्रावक थयो. तेणे पण शामळा पार्श्वनाथनी प्रतिष्ठा, पित्तळना सहस्रकूट, आचार्यपद प्रदान महोत्सवादि घणां सुकृतो कर्यां. वीरानी वंशावली : दोशी अदा (भार्या भोळाई) वीरा (प्र.भा. रंगाइ, द्वि.भा. रूपा) टोकर (पनोती) शिवजी(भा.चंगा) वीरबाई रवजी चांपा(पुत्री) जेठी(पुत्री) फूला(पुत्री) (पुत्री) (भा.गंगाइ) मनजी थानसिंह समरसिंह विजयसिंह इंद्राणी (पुत्री) मरघा (पुत्री) रतनी (पुत्री) सुरजी मेघजी सोमजी अबजी पकली (भा.सहजबाई) (पुत्री) जयतसी (भा. रामबाई) तेजसी (प्र.भा. देवबाई, द्वि. भा. राधाकृष्णा) गुलाब पूंजी मलूक लहिरकी (पुत्री) (पुत्री) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून - २०१२ केसर अने तेनी पुत्री जोइती तथा शिवचंद अने सारंग : प्रथम कृतिमा उल्लेखित आ स्त्रीओ कोण छे तेनी नोंध काव्यमां के वीरानी वंशावलीमां कशी ज मळती नथी. शिवचंद अने सारंगनो पण बीजी कृति सिवाय क्यांय उल्लेख मळतो नथी. प्रथम कृतिसार : आ कृतिनां शरुआतनां पद्योमां कविए शामळ पार्श्वनाथनी स्तुति करी छे. पाटणना ढण्ढेरवाडामां दोशी वीराए बनावेला ऊंचा चैत्यमा पूर्वे कुमारपाळ महाराजाना देरासरमां जे शामळपार्श्वनाथप्रभुनुं बिम्ब हतुं ते बिम्बनी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय ललितप्रभसूरि पासे करावी हती ते वात कवि पांचमा अने छठ्ठा श्लोकमां करे छे. विषमकाळमां म्लेच्छोथी भय पामी समयज्ञ पुरुषोए ते शामळपार्श्वनाथप्रभुनु बिम्ब उत्थाप्युं हतुं तेथी ते बिम्बनी पुनः प्रतिष्ठा वीराना ज वंशज दोशी तेजसीए भावप्रभसूरिजीनी तेमज सकल सङ्घनी साथे सं. १७७८ मां श्रावणमासनी चोथना सोमवारे कर्यानी नोंध अन्त्य त्रण पद्योमांथी मळे छे. द्वितीय कृतिसार : गुरुभगवंतना उपदेशथी कुमारपाळ महाराजाना देरासरनी चौमुख प्रतिमामांथी एक शामल पार्श्वनाथप्रभुनी प्रतिष्ठा दोशी वीराए जिनालय बनावी करी तेवी नोंध कवि प्रथम काव्यमां करे छे. अहीं चौमुखजीनो शब्दार्थ चार प्रतिमा, तो बाकीनी त्रण प्रतिमा अंगे शोध करवी घटे. बीजा कवितमां ढण्ढेरवाडाना वीर प्रभुना जिनालयनी नोंध करी छे. आठबीडोत्तरै नो सन्दर्भ बराबर समजातो नथी. ढण्ढेरवाडाना कलिकुण्डस्वामीना प्रासादना उद्धारनी सामान्य नोंध त्रीजा कवित्तमां छे. चोथा कवित्तमां वीराना सात चैत्यनी तेमज सं. १७७४ मां तेजसीए करावेल पित्तलमय सहस्रकूटनी (१०२४ भगवान) महत्त्वपूर्ण नोंध छे. 'कुंभारीइ' शब्द कुम्भारिया पाडा माटे वपरायो छे. छेल्ला कवित्तमां कविए कुम्भारिया पाडाना आदिनाथप्रभुना नवा चैत्यनी प्रतिष्ठानो संवत् (१६५६) तेमज प्रतिष्ठापकना कुटुम्बनो सामान्य परिचय आप्यो छे. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ अनुसन्धान-५९ अमीचंद (भा. जसीमति?) ऋषभदास अमीचंदनी वंशावळी | अमीचंदनी आ वंशावली | अनुसन्धान-५मां शाहवीरा| सुकृत प्रशस्ति चौपाईने अन्ते मळे छे. शांतिदास सामलासकल अमर लखो सुन्दर | प्रस्तुत बन्ने कृतिनी प्रतोनी झेरोक्ष पाटण हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानभण्डारना हस्तलिखित सङ्ग्रहमांथी मळी छे. ते आपवा बदल भण्डारना व्यवस्थापकश्रीनो खूबखूब आभार. एँ नमः (१) ॥ श्री बृहच्छ्यामलपार्श्वनाथस्तुत्यष्टकम् ॥ अहँ नमः ॥ श्रीः ॥ श्रीमत्कान्तिकलापमङ्गललसल्लब्ध्यैकलीलाऽऽलयः सेव्यः पार्श्वजिनेश्वरो विजयते सच्छ्यामलाख्यो महान् । हैमैर्हारि-विभूषणैश्च कुसुमैः सम्पूजितः सुन्दरैवृक्षौघैरहमञ्जनाग(गि)रिरयं मन्ये विचित्रोद्भवैः ॥१॥ प्रोद्यद्दीपकमालिकाप्रतिमिदं पार्श्वप्रभोराननं तेजःपुञ्जविराजमानमनघं दृष्ट्वेति शङ्कां दधे । चञ्चच्चञ्चलितं नभोदपटलं नव्यप्रभाभूषितं किं वा काञ्चनभूधरैरभिनवैः कालोदधी(धा)वुद्गतम् ॥२॥ सज्जात्यादिसुमोत्करैर्धवलभैर्गात्रं प्रभोरचितं, शुद्धं सूर्यसुताजलप्रभसमं संलक्ष्यते सज्जनैः । एतत् किं गगनं दिवाऽपि यदहो ! ताराश्रितं भास्वरं, किं वा नूतनपुण्डरीककलितो गम्भीरनीराशयः ॥३॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून - २०१२ वक्त्रेणाशु जितो विधुर्विधुरितः खेटोऽभवत्खेदतः, कार्यं सन्दधदन्तरेव सकले लोके कलङ्की ततः । नेत्राभ्यां कमलोत्करोऽपि च जितो यातो जले भीतितः, किं ते नौमि नवीनपुण्यवपुषः सर्वं हि सत्प्रभावम् (?) ॥४॥ श्रीमत्पत्तनपत्तने प्रवरके ढण्ढेरके पाटके, गच्छे स्वच्छगुणान्विते सदयने श्रीपू(पौ)णिमीयाभिधे । पूज्यश्रीललितादिमप्रभगुरोः पादाम्बुजोपासकः प्राप्तः श्रेष्ठिपदं प्रभाकरसमो वीराह्वयो वीर्यवान् ॥५॥ चैत्ये दौष्यकमुख्यकेन विधिना तेनोच्चकैः कारिते, बिम्बं पार्श्वजिनेश्वरस्य सुखदं श्रीश्यामलाख्यं महत् । सार्धं श्राद्धजनैर्महोत्सवभृतं संस्थापितं चा(सा)ऽऽदरं, यत् पूर्वं हि कुमारपालनृपतेश्चैत्यस्य बिम्बं त्विदम् ॥६॥ श्रीश्रीमालविशालवंशकमले जातो मरालोपमः, श्रीवीराह्वयसन्ततौ दिनमणिर्यस्तेजसीश्रेष्ठिराट् । श्रीभावप्रभसूरिणा स्वगुरुणा सङ्घः समं चाधुना चैत्ये तेन महाजनाधिपतिना संस्थापितः श्रीप्रभुः ॥७॥ विषमकलियुगेऽस्मिन् म्लेच्छतो भीतिमाप्य, परमसमयविद्भिः पूर्वमुत्तारितं यत् । पुनरपि जिनबिम्बं स्थापितं चैत्यगर्भ, वसुतुरगतुरङ्गोर्वीप्रमाणेऽत्र वर्षे ॥८॥ (१७७८) निहितनभसि मासे चन्द्रवारे चतुर्थ्यां, विमलतरविलग्ने श्राविका केसराख्या । विहितजिनपभक्ति|इती तत्सुता श्रीरिव कथयति भद्रं सूरिभावप्रभाख्यः ॥१॥ ॥ इति श्रीमद् बृहच्छ्यामलपार्श्वनाथस्तुत्यष्टकमिति ॥ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ( २ ) ॥ पत्तनस्थ जिनालय कवित्त ( ? ) ॥ अनुसन्धान- ५९ कुमारपालभूपाल दयाल जैनें जिनधर्मको मर्म जगायो, तिनकै देहरै चुमुखै च्यार मोटे जिनराय सुगुरु सुनायो, तिनकै मांहुको बिंब एह एक दोसी वीरै तस चैत्य निंपायो, भावप्रभ कहै सेवो हो भवियन सामलो पास ए पुंनै पायो. १ ढंढेर कुटंब साह वीरो जैंनें वीरवाडा नाम गाम बसाया, उत्तंग मंडप चैत्य निपाय तिहां जिन वीरका बिंब सोहाया, आठ-बीडोत्तरै पत्तन ढंढेरवाडै सोऊ बिंब आनिं बिठाया, भावप्रभ कहै पूरन भाव, श्रीमहावीर तना गुन गाया. २ कलिकुंड पास जिणंदकी मूरति, देखतै मेरी आंखि ठरै है, काल अनादि मिथ्यातर्थै पावत, पापकी पीर सो दूर टरै है, शिवचंद सारंग सार सेवार्थै, स्वामिको चैत्य उद्धारक है, भावप्रभ कहै पास महिमा जगि, रोग-सोग विषवेग हरे है. ३ पुनमगच्छ प्रभावक श्रावक सेठ वीरै सात चैत्य कराये, तिनके वंशमे दोसी तेजसी पित्तलमें सहस्सकोटी भराये, एक हजार उपरि चोवीश जिनेसर बिंब संख्या सवि थाये, भावप्रभसूरीश प्रतिष्ठित [ सत्तरचुमोत्तरि जेष्ठ सुहाये]* यात्र करत सवि पाप पलाये. ४ सोनी अमीचंद चंद जसीमति आदि जिनंदको चैत्य कीनो, कुंभारीइ दुखवारीइ थानकै संवत सोल छप्पन्नै नवीनो, वैशाखी सुदि दसमी योगै, वचन सुनी ललितप्रभसूरिनो, भावप्रभ कहै धन मानव जैनैं सुमारगे धन खरचीनो. ५ * आ पंक्ति कवि पाठांतरमां रची होय तेम लागे छे. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून - 2012 इन्दनन्दि गुरुस्वाध्याय तथा भास -- मुनिसुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयौ अहँ नमः एँ नमः प्रथमकृतिसारांश 'सज्झाय' ए प्राकृत शब्दनो गुजराती पर्याय एटले ज स्वाध्याय. प्रस्तुत कृति 'गुरुस्वाध्याय' ए नामनी ऐतिहासिक कृति छे. कृतिनां शरुआतनां पद्योमां कवि वीरप्रभुना प्रथम पट्टधर सुधर्मास्वामीथी पोताना प्रगुरु श्री इन्द्रनन्दिसूरिसुधीना आचार्योनी स्तुति करे छे. त्यार पछी 13 मी गाथाथी कविए इन्द्रनन्दिसूरिजीना जीवनचरित्रविषयक जन्म, दीक्षा, पदप्रदान, प्रतिष्ठादि प्रसङ्गोनुं रोचक शैलीमा वर्णन कर्यु छे. अन्त्य पद्योमा गुरुनी उपमा- अने पोतानी परम्परानुं वर्णन करी काव्य पूर्ण कर्यु छे. इन्द्रनन्दिसूरिनुं चरित्र : (प्रथम कृतिने आधारे) मरुधर (मारवाड) देशना पुरपाटणमां चम्पकशाह नामे व्यवहारीनी सीतादेवी नामे पत्नीनी कुखे सं. 1418 ना मागसर सुद ७ना दिवसे तेमनो जन्म थयो. जन्म महोत्सव करी तेमनुं देवराज ए प्रमाणे नाम करायुं. धर्मनी भावना वाळा तेमने सं. 1508 मां उदयनन्दिसूरिए ‘इन्द्रनन्दि' ए नाम आपी दीक्षित करी अभ्यासने माटे रत्नशेखरसूरिनी समयशाखामां थयेला मोटा तार्किक रत्नमण्डनसूरिना शिष्य सोमजयसूरि पासे अभ्यासार्थे मोकल्या. विद्याभ्यासनी तेमज चारित्रनी परिणतिवाळा मुनि इन्द्रनन्दिने सं. १५३०मां सिद्धपुरमां श्रीसोमजयसूरिए पोताना हाथे गणिपद आप्यु. सं. १५४१मां अमदावादना साणंद तथा सोनी अंबपता हरिचंदे पूज्यश्रीनी निश्रामां तीर्थनगरी इडरनो संघ काढ्यो. त्यां पूज्यश्रीए युगादिदेवने जुहारी गच्छनायक लक्ष्मीसागरसूरिने वन्दना करी. अहींथी संघपति हरिचंदे संघ काढ्यो. गच्छनायक लक्ष्मीसागरसूरि पण परिवार सहित पधार्या. विविध प्रकारना नाट्यादि खेलोथी अने दानादिथी शोभता ते अवसरे पूज्य इन्द्रनन्दि गणिने गणधर (आचार्य)पद अपायुं.