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वा. मेरुनन्दनगणि - विरचित 'गौतम स्वामि - छन्दांसि' (एक उत्तरकालीन अपभ्रंश रचना)
- सं. पं. शीलचन्द्रविजय गणि वाचक मेरुनन्दन कृत गौतमस्वामीनी छंदोबद्ध रासकृति अहीं प्रस्तुत छे. तेनी भाषा उत्तरकालीन अपभ्रंश छे. २२ कडीओमां पथरायेली कृतिनी प्रस्तावना बांधतां प्रथम दोहामां कवि कहे छे तेम, आ कृतिमा ८ छंद, १० दूहा, १ षट्पदछप्पय अने २ अडिल्ला छंद छे. तेनुं वर्गीकरण आ प्रमाणे छ :
प्रारंभ कडी दूहा छंदमां छे. ते प्रस्तावना रूप होईने गणतरीमा न लेतां कडी ३ थी १२ - एम १० दूहा छे. २ तथा १३ ए बे चतुष्पदी अडिल्ला छे. १४ थी २१ - ए ८ छंद छे. ज्यारे छेल्ली -२२मी कडी ते छप्पय छे. जेने 'छन्द' नाम आप्यु छे ते चरण दीठ २९ मात्रानो कवित छंद छे. छप्पय बे घटकनो बनेलो छ : वस्तुवदनक (प्रत्येक चरणमा २४मात्रा) + कर्पूर (प्रत्येक चरणमा १५+१३ मात्रा).
रचना अप्रगट छे. सरल तथा रोचक छे, गौतमस्वामीने लक्ष्यमा राखीने थयेली गुर्जर-अपभ्रंश रचनाओ अतिअल्प मळे छे, ते दृष्टिए आ कृतिनुं मूल्य वधारे गणाय. संभवतः १६मा शतकनी लखायेली एक प्रतिना आधारे आ छंदकृति संपादित करवामां आवी छे. कृतिगत अंको वारंवार बदलाता होवाथीं - एकसूत्रता जाळववाना आशयथी आरंभे सळंग पद्य क्रमांको लखी उमेर्यां छे. प्रांते कठिन लागे तेवा शब्दोनो कोश मूक्यो छे.
श्रीमेरुनन्दन-विरचितानि
श्रीगौतमस्वामि-च्छन्दांसि ॥ अट्ठ छंद दस दूहडा छपदु अडिल्ला दुन्नि । जे निसुणई गोयमतणा ते परिवरीयइं पुन्नि मंगल-कमल-विलास-दिणिदह, पढमसीसु पहु वीरजिणिदह । सयल-संघ-मण-वंछिय-दायकु, वन्निसु सिरिगोयमु गणनायकु
॥१॥
॥२॥
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नायक त्रिहुं भुवणहतणा जोयई जासु पसाउ । इक्क जीह किम वत्रियइ सो गोयमु गणराउ
तहवि सु गणहरु संधुणवि पामिसु निम्मल बुद्धि । जसु सामिय नामग्गहणि फुरई अचिंतिय सिद्धि
होइ सु नरु कविचक्कवइ, लच्छि - सरस्सइ - कंतु । जो आराहइ इक्क-मणि इंद्रभूति भगवंतु
सिरि-गोयम - गणहरु जयउ बहुविहलद्धिसमिद्ध । सयल - सूरि- चूडा - रयणु जिणसासणि सुपसिद्ध
कज्जारंभिर्हि जे भविय गोयमु चित्ति धरंति । ते गलहत्थिय दुरियभरु दुत्तरु झत्ति तरंति सिरिगोयमगुरु -पय- कमलु हियइ - सरोवरि जाहं । बालक जिम रंगिहिं रमई नवनिहि अंगणि ताहं
जे गुणियण नियर्माणि धरई अहनिसि गोयम- झाणु 1 ते रायहं मंदिर लहइं सिरि सोहगु संमाणु ॥
प्रह उवि भाविहिं भणई जे गोयम-गुरु- नामु । ते धणु भोयणु पंगुरणु पामई मण- अभिरामु
इणि भवि परभवि भवियजण पामिय सुक्ख-सयाई । भवसायरु लीलई तरइं गोयम - पाय पसाइं
गोयमसामिउ मई थुणिउ इम गरुयउ गुणवंतु । संघ - मरु-नंदण - वणिहिं सुरतरु जिम जयवंतु
सिरि- गोयम - गणितिम जिणसासणि सोहइ जिम निसि चंदु | वर - गुब्बर- गामि मगह - महि- मंडलि बंभ-वंस आनंदु ||
॥३॥
1811
॥५॥
॥६॥
॥७॥
||८||
९॥
||१२ दूहा || ता ।
सुरतरु जिम जयवंतु महावणि, सुरभंडारि जेम चिंतामणि । दिणमणि जिम सोहइ गयणंगणि, तिम जिणसासणि सिरि-गोयम-गणि ॥१३॥
||१०||
।।११।।
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॥१४॥
॥१५॥
॥१६॥
पहुवी-सुह-कुच्छि कंति-कुल-पिच्छल निम्मल-रयण-समाणु । भूदेव-देव-वसुभूइ-सुनंदणु चउदस-विज्जा-जाणु जो जन्नु करंतउ पिक्खि तुरंतउ गयणंगणि सुरसत्थु । सव्वन्नवाइ-रोसारुणु चल्लिउभडु उप्पाडवि हत्थु ।। विम्हियमणु समवसरणि पडिबोहिय मिलिय-सुरासुर-इंदि । सो पंचसयहं सउं दिक्खिउ गोयमु गणहरु वीरजिणिदि जो कंचण-कमल-विमल-कोमल-तणु सत्त-हत्थ-सुपमाणु । तिहुयण-जण-वयण-नयण-मण-मोहण-लवणिम-रूव-निहाणु ॥ जिणि बिहुं उपवासिहि नितु पारंतइ लद्धिय-लबधि अपार । सो अगनिभूति-बंधवु गुरुगोयमु मनि समरउं सविचार जो कामकुंभ-सुरधेणु-सुद्धम-सुरमणि दाणि पहाणु । जिणि अप्प-कन्हइ अणहूंतउं अप्पिउ घण-जण-केवल-नाणु ।। जिणि निय-गुरु-निवड-नेहि अवगन्निय केवल-सिरि-वर-नारि । तसु गोयमसामि-समउ गुरुभत्तिहिं कवणु भणउं संसारि जो नियबलि जिण चउवीसइ वंदइ चरमसरीरी इत्थ । इय जिणदेसण सुरवयणि सुणेविणु फलु अट्ठावय-तित्थ ॥ आलंबवि सहसकिरण-कर-तंतुय चडियउ गिरि कैलासि । अच्चब्भुय-चरिउ रहिउ सो गणहरु इक रयणि तिणि वासि भरहेसर-चक्काहिव-निम्पिय निय-निय-वन्न-पमाणि । जिण वंदिय वलतइ खीर-खंड-घिय-भोयणु इच्छ-पमाणि !! अंगुट्ठउ ठविय पनरसइ तावस कारिय इक्कई ठामि । अखीण-महाणसि-लद्धि-समिद्धउ जयउ सु गोयमसामि परवाइय-मयगल-माण-मडप्फर-मोडण-केसरिराउ । सिरि-वायभूइ-गणहारि-सहोयरु सचराचरि विक्खाउ ।। जो केवलकज्जि करतउ आडउ गुरुअग्गइ जिम बाल । तिणि कत्तिय-मास-अमावसि परणीय केवल लच्छि विसाल
॥१७॥
॥१८॥
॥१९॥
॥२०॥
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रोहणागिरि रयण, गयणि तारायणु, सायरि जल-कण - संख । जो मुणइ वियक्खणु सो वि न सक्कइ जसु गुण भणिउ असंख ॥ सो सिद्ध-बुद्ध सिरि-गोयमसामिउ संपत्तउ सिवरज्जि । मइ वनिउ किं पि मेरुनंदण थिर निय-मण-वंछिय-कज्जि निय-मण-वंछिय-कज्जि नमई जसु सुर-नर- किंनर इंद-चंद - नार्गिद - असुर- विज्जाहर- मुणिवर ।
उच्छव मंगल रिद्धि विद्धि जसु नामि पयासई रोग- सोग दोहग्ग-दुरिय दूरंतरि नासई ॥
सो वीरसीसु सूरीसवरु महिम-गरिम-गुणि मेरुगुरु । सिरि गोयमगणहरु जयउ चिरु सयलसंघ कल्याण करु ||२२||
इति श्री गौतमस्वामिच्छंदांसि ॥
- X ---
॥२१॥
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"गौतमस्वामिच्छंदांसि " गत कठिन शब्दो
पुण्यथी परिवरे, वधे
गण (गच्छ, मुनिसमुदाय) ना नायक
गणराज - गणना राजा
गणधर (तीर्थंकरना मुख्य शिष्य)
कांत प्रिय
१/४ परवरीय पुत्रि
२/४ गणनायकु
३/४
गणराउ
४/१ गणहरु
कंतु
५/२
६/२ लद्धिसमिद्ध
७/ १
कज्जारंभिर्हि
७/१
७/३
७/३
७/४
भविय
गलहत्थिय
दुरियभरु
दुत्तरु
झत्ति
७/४
९ / २
१० / ३
११ / २
१४/३ पिच्छल
१५/१ जन्नु
१५/१ सुरसत्थु
१५/३ सव्वन्नवाइ
१५/४ उप्पाडवि
१७/३ समवसरण
१६ / १
१६ / ३
झाणु
पंगुरणु
सुक्खसयाई
सत्तहत्थ सुपमाणु
पारंतइ
लब्धि- समृद्ध; (लब्धि - विशिष्ट शक्ति)
कार्यारंभे
भव्य (-जन)
गळे झालीने काढी भूकीने
दुरित वृन्द
दुस्तर
शीघ्र
ध्यान
पांगरण - कपडा वगेरे सौख्यशत- सेंकडो सुखो
सुंवाळु, लीसुं, चमकतुं
यज्ञ
सुरसार्थ - देवोनो समूह सर्वज्ञवादी (पोताने सर्वज्ञ मानतो )
ऊंचो करीने
तीर्थंकरनी धर्मसभा
समवसरण
सात हाथ ऊंची कायावाळा
पारणा करतां
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________________ 16/3 लद्धिय 17/3 निवड 18/1 चरमसरीरी 18/2 अट्ठावयतित्थ 18/3 कर-तंतुय 18/4 अच्चब्भुयचरिउ 18/4 वासि 19/1 चकाहिवनिम्मिय 19/1 वन-पमाणि 20/1 परवाइय-मयगल 20/1 मडप्फर 20/1 आडउ 20/4 केवललच्छि 21/3 सिवरज्जि [61 प्राप्त करी निबिड जेनो अंतिम जन्म छे ते; हवे पछी अजन्मा अष्टापदतीर्थ (सूर्य-) किरणरू पी दोरी अति-अद्भुत चरित्र वाळा निवास माटे चक्रवर्तीए निर्मेल वर्ण (रंग) प्रमाणे परवादी रूप हाथी गर्व, दर्प हठ केवलज्ञाननी लक्ष्मी शिव(मोक्ष)नुं राज्य -X