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रोहणागिरि रयण, गयणि तारायणु, सायरि जल-कण - संख । जो मुणइ वियक्खणु सो वि न सक्कइ जसु गुण भणिउ असंख ॥ सो सिद्ध-बुद्ध सिरि-गोयमसामिउ संपत्तउ सिवरज्जि । मइ वनिउ किं पि मेरुनंदण थिर निय-मण-वंछिय-कज्जि निय-मण-वंछिय-कज्जि नमई जसु सुर-नर- किंनर इंद-चंद - नार्गिद - असुर- विज्जाहर- मुणिवर ।
उच्छव मंगल रिद्धि विद्धि जसु नामि पयासई रोग- सोग दोहग्ग-दुरिय दूरंतरि नासई ॥
सो वीरसीसु सूरीसवरु महिम-गरिम-गुणि मेरुगुरु । सिरि गोयमगणहरु जयउ चिरु सयलसंघ कल्याण करु ||२२||
इति श्री गौतमस्वामिच्छंदांसि ॥
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