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पहुवी-सुह-कुच्छि कंति-कुल-पिच्छल निम्मल-रयण-समाणु । भूदेव-देव-वसुभूइ-सुनंदणु चउदस-विज्जा-जाणु जो जन्नु करंतउ पिक्खि तुरंतउ गयणंगणि सुरसत्थु । सव्वन्नवाइ-रोसारुणु चल्लिउभडु उप्पाडवि हत्थु ।। विम्हियमणु समवसरणि पडिबोहिय मिलिय-सुरासुर-इंदि । सो पंचसयहं सउं दिक्खिउ गोयमु गणहरु वीरजिणिदि जो कंचण-कमल-विमल-कोमल-तणु सत्त-हत्थ-सुपमाणु । तिहुयण-जण-वयण-नयण-मण-मोहण-लवणिम-रूव-निहाणु ॥ जिणि बिहुं उपवासिहि नितु पारंतइ लद्धिय-लबधि अपार । सो अगनिभूति-बंधवु गुरुगोयमु मनि समरउं सविचार जो कामकुंभ-सुरधेणु-सुद्धम-सुरमणि दाणि पहाणु । जिणि अप्प-कन्हइ अणहूंतउं अप्पिउ घण-जण-केवल-नाणु ।। जिणि निय-गुरु-निवड-नेहि अवगन्निय केवल-सिरि-वर-नारि । तसु गोयमसामि-समउ गुरुभत्तिहिं कवणु भणउं संसारि जो नियबलि जिण चउवीसइ वंदइ चरमसरीरी इत्थ । इय जिणदेसण सुरवयणि सुणेविणु फलु अट्ठावय-तित्थ ॥ आलंबवि सहसकिरण-कर-तंतुय चडियउ गिरि कैलासि । अच्चब्भुय-चरिउ रहिउ सो गणहरु इक रयणि तिणि वासि भरहेसर-चक्काहिव-निम्पिय निय-निय-वन्न-पमाणि । जिण वंदिय वलतइ खीर-खंड-घिय-भोयणु इच्छ-पमाणि !! अंगुट्ठउ ठविय पनरसइ तावस कारिय इक्कई ठामि । अखीण-महाणसि-लद्धि-समिद्धउ जयउ सु गोयमसामि परवाइय-मयगल-माण-मडप्फर-मोडण-केसरिराउ । सिरि-वायभूइ-गणहारि-सहोयरु सचराचरि विक्खाउ ।। जो केवलकज्जि करतउ आडउ गुरुअग्गइ जिम बाल । तिणि कत्तिय-मास-अमावसि परणीय केवल लच्छि विसाल
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