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'श्रीहीरविजयसूरि'ना चार प्राकृत स्वाध्याय'
भूमिका
१६मा शतकना महान जैनाचार्य अकबरप्रतिबोधक जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरिना गुणकीर्तनरूप, प्राकृतगाथानिबद्ध चार स्वाध्याय अत्रे प्रस्तुत छे. चारे अप्रसिद्ध छे, अने प्रायः दरेकनी एकेक प्रति ज प्राप्त थाय छे- थई छे.
-सं. पं. शीलचन्द्रविजय
प्रथम स्वाध्याय, तेनी अन्तिम पंदरमी गाथा उपरथी, प्रसिद्ध उपाध्याय " श्री धर्मसागरजी " नी रचना होवानुं मानी शकाय आमां द्रव्यपूजा करतां भावपूजानुं मूल्य - महत्त्व अधिक होवा अंगे सैद्धांतिक - तार्किक संक्षिप्त चर्चा करवा द्वारा आचार्यनी स्तुति थई छे.
द्वितीय अने तृतीय स्वाध्याय जाणीता कवि मुनि गणि पद्मसागरजीए रच्या छे. आ कर्ता पण आचार्य श्रीना शिष्यवृन्दमां ज अने समकालीन हता. प्रथम रचनामां पोताने वाचक धर्मसागर - शिष्य (गा. १०) तरीके नोंधे छे, छतां पुष्पिकामां तेमनो स्पष्ट नाम-निर्देश छे ज. ज्यारे बीजी रचनामा प्रथम गाथामां 'धर्मसागरजी'ने शब्दगुंफनमां संभारीने अंतिम गाथामां 'मुणि पउम' तरीके पोताने उल्लेखे छे. पुष्पिकामां तो नाम स्पष्ट छे ज. बन्नेमां आलंकारिक गुणगान छे.
चोथो स्वाध्याय हीरविजयसूरि - शिष्य विजयचन्द्रविबुधे रच्यो होवानुं (गा. ४०) जणाय छे. चारेमां आ सौथी मोटो -४१ गाथाओ प्रमाण, तथा ऐतिहासिक हकीकतोनो समावेश धरावतो स्वाध्याय छे. १ थी ७ गाथामां जन्मादिनी तथा सूरिपदप्राप्तिनी विगतोनुं स्थूल वर्णन छे. ८मां गुणकीर्तन छे. ९मां गंधारबंदरे चातुर्मासनो उल्लेख, १० मां गुणगान, ११मां अकबरना निमंत्रणनो निर्देश, १२ थी २२मां विहारक्रम अने फतेपुरे पदार्पण सुधीनी विगतोनो निर्देश: एमां 'सरोतरा'ने 'सुरतरुनगर' अने 'सीरोही' ने 'शिवपुरी' तरीके उल्लेखेल छे, ते ध्यानार्ह छे. गा. २३ मां अकबर - मिलन, तथा २४ थी ३२मां शाहने प्रतिबोधनी हकीकतो दर्शावी छे, जेमां क्रमशः सरोवर ( डामर) मां मच्छीमारीनिषेध ( २५-२६), गोवधप्रतिबंध (२६) पर्युषणामां अमारिघोषणा (२७), जगद्गुरु बिरुदार्पण, बंदिमोक्ष तथा पक्षीगणने अभयदान (२८),
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पर्युषणाने अनुलक्षीने १२ दिनहुँ कायमी फरमान (३०), पोते प्रतिमास ७ दिवस मांसाहारनो त्याग (३२) इत्यादि प्रतिपादन छे. गा. ३१मां शाहे प्रतिमास्थापना कर्यानी वात छे, तेनो अर्थ श्रावको द्वारा (गा. ३४) थती प्रतिष्ठामां शाहनी संमति होय, एटलो ज थई शके. गा. ३२मां दर्शावेली ७ दिन-प्रतिमास-मांसाहार-त्यागनी वात प्रतीतिकर एटला माटे जणाय छे के अल-बदायुनी तथा विन्सेन्ट स्मिथ जेवा इतिहासकारोए नोंध्युं छे के शाहे वर्षमां ६ मास माटे मांसाहार वर्जेलो. (जुओ 'सूरीश्वर अने सम्राट' प्रका. जैन ग्रन्थ प्रकाशन समिति, खंभात, ई. १९९४ पुनर्मुद्रण, पृ. १३८ थी); आनी भूमिका हीरविजयसूरिनी प्रारंभिक मुलाकातोमां सर्जाई होय ते बनवाजोग छे. ७ दिन मांसत्यागनी आ वात, आ रीते, मात्र आ स्वाध्यायकारे ज निर्देशी छे; अन्यत्र नथी. शेष गाथाओमां केटलांक धर्माकार्योनी अछडती नोंध तथा गुणवर्णन छे.
आमां प्रथमनी बे रचनाओनी प्रतिओ वडोदराना श्री आत्मारामजी जैन ज्ञानमंदिरना श्री प्रवर्तक कान्तिविजयजी शास्त्रसंग्रह (क्र. २७९१ तथा क्र. २८५८)नी छे, अने पाछली बे कृतिओनी प्रतिओ अमदावादना श्री ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरनी छे. उपयोगार्थे झेरोक्ष नकल आपवा बदल ते संस्थाओना कार्यवाहकोनो ऋणस्वीकार कर छु.
श्री हीरविजयसूरि स्वाध्यायः ॥
॥१॥
श्रीगुरुभ्यो नमः । पणमिअ वीरजिणं(णि)दं थुणामि सिरिहीरविजयसूरिंदं । कुमयतमोहदिणंदं (गिदं) वयणामयपुण्णिमाचंदं पंचायारविआरं पवयणसिरिसुंदरीइ उरहारं । नाणद्धिलद्धपारं मुत्तिपुरिपवेसवरदारं पंचमहव्वयसुरगिरि - भारुव्वहणम्मि अहिणवो वसहो । निस्सेससूरिचूडामणी जिणपणीअजलमीणो
॥२॥
॥३॥
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॥४॥
॥६॥
॥८॥
॥९॥
णणु दव्वथया अहिओ भावथओ संथुओ अ समयम्मि । ता होउ असामइअं अलं खु पासायपमुहेहि सच्चं पुण सामइअं अहिअं अंसेण सव्वहा नेव । रययापव्वयपुंजा गुंजा-कणयं जहा अहिअं
||५|| अहवा देवभवाओ मणुअभवो उत्तमो . उ अंसेणं । तेणेव य देवभवो मणुअभवे उत्तमो भणिओ जो पुण जइ(ई)ण भावत्थओ अ सो सव्वविरइसब्भावो । सव्वप्पयारपउरो असेसवव्वत्थयापउरो
॥७॥ जह कणगकूडलंकिअ-- वेअड्ढो सव्वओ स रययमओ । कंचणगिरितुल्लत्तं नो पावइ कहवि तुंगो वि सावयभावथओ पुण मुणिदव्वथउव्व होइ अप्पयरो । अविवक्खाए दुन्नवि कमेण दुण्हं पहापहिआ दीवो दिणयरअणुओ ससिणेही गुत्तठाणि गेहमणि(णी) । जगचक्खू पुण सूरो णेहंजणवज्जिओ वि भवे एवं जो उवएसं सपुव्वपक्खाइपेरणापुव्वं । दाउण य समणधम्मे उज्जुत्तं (त्ते) कुणइ धम्मिजि(ज)णे ॥११॥ दुब्बलया मुणिधम्मे जइ तेसिं सावयाण धम्मेवि । जं जं जस्स य जुग्गं आगमरीईइ उवदिसइ
॥१२॥ कप्पटु(दु)म-कामकुंभ-प्पमुहा पहुपायसेवणं पत्ता । लंछ (?)णमिसेण छलणा महिमोवाओवलंभट्ठा
॥१३॥ विणयाभावा अज्ज वि अपूरिअमणोरहा य पयमूले । चिट्ठति जस्स तस्स य पयसेवा होउ मह सहला ॥१४|| एवं सिरिहीरविजय-गुरुमुहदहजम्मभारई गंगा । पावहर-धम्मसायर-संगइआ जयउ जणपुज्जा
॥१५॥ इति समग्रमुद्गलाधिपतिनिजभुजयुगलबलविदलितवैरिराजराजितति पातसाह श्रीअकबर-प्रदत्त-प्रसिद्ध त्रिजगत् (द)गुरुबिरुद सकलसूरिराजराजि राजिचूडामणीयमान श्री श्री श्री हीरविजयसूरीश्वरस्वाध्यायः ।।
॥१०॥
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॥१॥
॥२॥
॥३॥
॥४॥
मुनिपद्मसागर कृतः श्री हीरविजयसूरिस्वाध्यायः ॥
(२) नमिउं सिरिसिरिभवणं सिरिवीरं वीरनाहनयपायं । थोसामि जुत्तिजुत्तं सूरिवरं हीरविजयगुरुं जयप-हि असत्तो गुणगणवित्थारकित्तिसंवुत्तो । जं दटुं भवखुत्तो जणो वि मुक्खं सुहं पत्तो जह नियबाहुजुएणं तरेइ नो को वि सागरं इत्थ । तह य तुह दक्खसंघो गुणचक्कं भासिउं न पहू उड्टुं गच्छइ विहु ते कित्तिभरो देवदेववयणेणं । किं अत्थि अत्थ चित्तं अत्थि पुणो ते जणसमत्ते असमत्थो किर सहिउं गओ मिगाणं वि हूग्गसुपयावं । अडवीए घोराए ण दीसए ओ थु (धु?) वं इत्थ गयमाणो वि समाणो अक्खरकामो वि देव ! जिअकामो । अवि पुण ससुओ विसुओ विचित्त चित्तंधरो सि तं सत्तक्खरनाममंतं गुणेइ जो भत्तिनिब्भरमणो अ । सत्त भया पुण विलयं जंति तस्सेव य खणेणं जह सद्दाओ विहुणो मिगाण दीवा विमुत्तवरपाणा । जह गहनक्खत्ताणं तेयाई सूररच्छीइ तुह हीरविजयनाम-मंतेणं वयणसिद्धि वयणेसु । गुणणाओ साहूणं दिनाओ उत्तिभवणतं वायग-सुधम्मसायर-गुरुस्स सीसेण संथुओ सूरी । दितु किर सिद्धिसिद्धं सुक्खं सिरिहीरविजयगुरू
॥५॥
॥६॥
॥७॥
॥८॥
॥९॥
॥१०॥
इतिश्री हीरविजयसूरि स्वाध्यायः पूर्ण ॥मु० पद्मसागर कृतिः ॥
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श्री हीरविजयसूरि स्वाध्यायः ॥
||१||
॥२॥
॥॥३॥
॥४||
इह विमल धम्मसायर-हिमकरकिरणोवमं महावीरं । नमिऊण हीरविजयं विणये विणयेण थुत्तपहं तुह हीरविजय ! सुर-सुकित्तिकमला जणदणं मिलिउं । जागे माचरमज्झं पत्ता कविपोअमारू ढा तुह कितिदिव्वकमला जई वि नुम थलोअसेणीहिं । रमइ तहावि बुहेहिं प्पसस्सचरिआ समक्खाया तुह कित्ति दिव्वगंगा-तरंगसंबिंदुआ समुच्छलिआ । जाणे गगणे ते खलु तार-कलावा इमे संति मुणिव ! तुह कित्तिगंगा विणिम्मिआ वेहसा जणालीणं । जाणे पुव्वसमज्जिअ-पावपणासाय लोयतिए देव ! तुह कित्तिगंगा-सलिलं सवणेण पीअमित्तं पि । सयलिदिआण तित्ति जणइ छुहाणासणं भई सूरिवरकित्तिगंगा-मज्झं जे किड्डयंति सप्पुरिसा । तज्जलउज्जलदेहा हवंति ते नो पुणो समला सयलसुहकित्तिगंगा साहव (?) तुह मेरुउव्व भूमिअले । विट्ठउ सुखरलब्दे-प्पकाम कीला सुहा सुभगा मुणिपउमबोहदिणयर-सरिससरूवस्स हीरविजयम्स । थुत्तपहपडियलोओ गच्छइ तुरिअं हि मुक्खपुरं
॥५॥
॥६॥
||७||
||८॥
॥९॥
इति श्रीहीरविजयसूरि स्वाध्यायः पद्मसागरगणिकृतः ॥
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श्री हीरविजयसूरि स्वाध्यायः ॥
( ४ )
पणमिअ जिणवरवसहं सयलगुणालंकिअं विगयमोहं । सिरिहीरजयसूरिं थोसामि विसिद्बभत्तीए
पल्हायणम्मि नयरे कूंरो नामेण वसई सिट्टिपहू ! तस्स सुघरणी नाथी तीए जायं तणयरयणं चिंतामणिरयणनिहं सेवापरसयलमणुअदुक्खहरं । नीसेसलोअपुज्जं निद्दोसं परमसुहहेडं
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॥१॥
सिरिविजयदानसूरी - सरवरहत्थम्मि जेण चारितं । गहिअं पट्टणनयरे विवेगजुत्तम्मि सुहदिवसे नीसेससत्थणिगण - सुअभूसणभूसिओ विउलबुद्धी । गणिविबुहवायणाणं पयाण जुग्गो विगयतिन्हो सूरीससुपयजुग्गो जाओ विनाणसीलसंपन्नो । तह नारय - सीरोहीनयरे वायग- मुणीसपर्यं संठविअं सुहृदिवसे सउत्सवपुव्वयं (सउत्सवं ? ) जस्स विक्खायं । बांलिंदू वडूमाणो सव्वकलाहिं जयउ सो जे (जो ?)
॥६॥
॥७॥
जिणसासणगयणतलं पयासयंतो अ धरणिविहरतो । पच्चक्खसूरसरिसो अन्नाणतमीतमोहरणो
गंधारबंदिरम्मि संपत्तो सुहृदिणे जगपईवो । ऊसवपुव्वमणिसं संघेण समं सपरिवारो उज्जलचित्तो अवितहवयणो आरुग्गकायसंपन्नो । जणवरवयणं सच्चं उप्पालाइ तित्थनाहव्व
चउमासाअणु (साओ) पच्छा अकब्बरेणावि भूमिनाहेणं । आकारिओ मुणिदो बहुमाणेणं परमतोसा सुहदिवसे सुहसउणो उगविहारो कओ अ जेणावि । विहरतो कणिआपुर-वडलापुर (रि) आगओ हरिसा तत्थ य सुहवजुवइहिं मुत्ताहलमंडलेहि सारेहि । वद्धाविओ अ पढमं तहेव सामंतजुवईहि
॥२॥
॥३॥
11811
॥५॥
11211
॥९॥
॥१०॥
॥११॥
॥१२॥
॥१३॥
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तत्तो अकमिपुरम्मि साहिबखानेन पूइओ सम्मं । चउरंगिणिसेणाहि विभूसिएणं सुहे दिवसे
तत्तो विस्सलनगरे वरमहिसाणे अ दिव्वपासाये । तत्तो पट्टणनयरे विमाणतुल्ले समोसरणे सिरिविजयसेनसूरि-प्पमुहो संघो पि नमइ बहुभावा । तत्तो सिद्धपुरम्म संपत्ती सुहसुहं परमो तत्तो सुरतस्त्रयरे जिणिदपासायसोहणे सवयं । तत्थ य पल्लीवइणा अज्जुणसहसाभिहाणेणं भत्तिबहुमाणपव्वं संघविओ पूइओ मुणिगइंदो । सुरताणभूमिनाहो अभिवंद सिवपुरीनयरे तत्तो सादडिनयरे वायगसिरिसेहरो ससिरविव्व । काणविजयनामा सो मिलिओ बहुदिणेणा वि तत्तो अ मेडतक्खे सांगानेरम्मि पवरतयरम्मि । विहरंतो संपत्तो सुरिंदतुल्लो समिड्डीहिं एवं अणुक्कणं भूवइसामंतमंतिसिट्ठीहिं । मिगयामिसाइभक्खण- वज्जणपुव्वं च संघविओ तत्तो फत्तेपुरम्म जिणिदपासायपवरहत्थिम्मि । सुरवइभवणसरिच्छे सुहदिवसे तत्थ संपत्तो तत्थ य इंदसरिच्छो अक्कबरो भूवई विगयसत्तू । भत्तिबहुमाणपव्वं अभिवंदइ सुद्धसङ्घव्व नियविमलदेसणाए भूमिपालो वि रंजिओ जेणं । साहिअकब्बरनामा पररायगइंद-गयसत्तू तत्तो तेणं पढमं रंजियहियएण सायरसमाणं । पउमायरं झसाई - जीवेहिं समाउलं निच्वं धीवरगणापवेसो तेसिं जीवाणमभयदाणं च । गोरासिअभयदानं दिनं पुव्वं समागमणा तेणं अमारिपडहो सययं निग्धोसिओ अनि देसे । सव्वसुपव्वसिरम्मि मउडे पज्जूसणापव्वे
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॥१४॥
॥१५॥
॥१६॥
॥१७॥
॥ १८॥
॥१९॥
॥२०॥
॥२१॥
॥२२॥
॥२३॥
॥२४॥
॥२५॥
॥२६॥
॥२७॥
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________________ // 28 // // 29 // ||30 // // 31 // // 32 // // 33 // जगगुरुबिरूदं दिन्नं बंदिअमोक्खो कओ अ तेणावि / सारसजीवसमूहे विसेसओ अभयदाणं च गुज्जरदेसो तत्थ य पल्हायणनाम पुरवरं अत्थि / (?) मालव-लाहूरमरुत्थली विमले गोड-सुलताणे / दिल्लीमंडलपमुहे देसे निग्घोसिओ पडहो आसुरं पु(फु)रमाणं दिन्नं जीवस्स रक्खणं परमं / बारसदिणाणि निययं विमले पज्जूसणापव्वे झल्लरि-भेरि-नफेरी-दुंदुहिनिग्घोसपुव्वयं तेणं / जिणमंदरिम्मि पडिमा-संठवणं तेण कारविअं आमिसभक्खणचाओ सत्त दिणाणीह मासमज्झम्मि / जस्स पभावेण कओ खेमकरो सो गुरू जयउ उच्छवपुव्वं जेणं कया पइट्ठा जिणस्स पडिमाणं / भूवइसक्खं दिक्खा दिना संविग्गसड्डस्स अह थानसिंहमंती कारेइ जिणस्स सुंदरपइटुं / हयरासि-मुद्दिआई-दाणं दिन्नं पमोएणं मग्गणजणस्स दिन्नं गयदाणं जस्स सावरणावि / पुणरवि लक्खपसाओ कओ अ एगस्स गीअस्स वायगपयं च दिन्नं सेवापरसंतिचंदविबुहस्स / रनो अकब्बरस य समत्थआउज्जनिग्रोसे तह मेडताभिहाणे नागपुरे तह य सूरतिप्पमुहे / नयरे धनविजयेणं जिणगेहे ठाविआ पडिमा सयलभयाणं च हरे कंचणवन्नो विसुद्धविनाणो / सइंसणेण कलिओ सोभागी कन्हजणउव्व पज्जुन्नरूवकंतो खंतो दंतो पसस्सगुणनिलओ / एरावणगइकंतो सुधम्मझाणट्ठिओ भयवं सिरिहीरविजयसूरि-सीसवरो विजयचंदविबुहेसो / सिद्धबलसोमकित्ती जिअविज्जासुरगुरू (?)तस्स एवं भत्तिभरेणं सीसेणं संथुयो गयकलंको / सिरिहीरविजयसूरी जुगपवरो परमसुहहेऊ // 34 // // 35 // // 36 // // 37 // // 38 // // 39 // // 40 // // 41 // टि, 1. पंक्तिरियमप्रस्तुताऽपि प्रतौ यथा तथाऽत्रापि लिखितास्ति // [55]