Book Title: Agam 38 Jiyakappo Panchamam Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स पू. आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः ३८/१) जीयकप्पो-पंचमं छेयसत्तं मुनि दीपरत्नसागर Date : //2012 Jain Aagam Online Series-38 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८/१ गंथाणुक्कमो कमंको विसय गाहा अणुक्कमो पिढेको १-४ १-४ ५-७ ५-७ मंगलं-आइ आलोयणा-पायच्छित्तं पडिक्कमण पायच्छित्तं तदुभय-पायच्छित्तं विवेकार्ह-पायच्छित्तं ८-१२ ४ TC १३-१५ १६-१७ १७ १८-२२ १८-२२ २३-७३ २३-७३ ७४-७९ ७४-७९ काउस्सग्ग-पायच्छित्तं तव-पायच्छित्तं पडिसेवणा-पायच्छित्तं छेय-पायच्छित्तं मूल-पायच्छित्तं पारांचिय-पायच्छित्तं उवसंहारो ८०-८२ ८०-८२ ८३-८६ ८३-८६ ८७-१०२ ८९-१०२ १०३ १०३ दीपरत्नसागर संशोधितः] [1] [३८/१-जीयकप्पो ] Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालब्रहमचारी श्री नेमिनाथाय नमः ३८/१ जीयकप्पो - पंचमं छेयसुत्तं कय-पयवण-प्पणामो वोच्छं पच्छित्तदानं संखेवं । जयव्ववहार-गयं जीयस्स विसोहणं परमं ।। संवर - विनिज्जराओ मोक्खस्स पहो तवो पहो तासिं । तवसो य पहाणंगं पच्छित्तं जं च नाणस्स || सारो चरणं तस्स वि नेव्वाणं चरण- सोहणत्थं च । पच्छित्तं तेण तयं नेयं मोक्खत्थिणाऽवस्सं । तं दसविहमालोयण पडिकमणोभय विवेग वोस्सग्गे । तव छेय-मूल- अणवट्ठया य पारंचिए चेव ।। करणिज्जा जे जोगा तेसुवउत्तस्स निरइयारस्स । छउमत्थस्स विसोही जइणो आलोयणा भणिया ।। आहाराइ-ग्गहणे तह बहिया निग्गमेसुनेगे । उच्चार- विहारावणि- चेइय- जइ- वंदनाईसु ।। जं चऽन्नंकरणिज्जं जइणो हत्थ-सय- बाहिरायरियं । अवियडियम्मि असुद्धो आलोएंतो तयं सुद्धो || कारण-विणिग्गयस्स य स गणाओ पर गणागयस्स वि य । उवसंपया - विहारे आलोयण- निरइयारस्स || गुत्ती-समिइ-पमाए गुरुणो आसायणा विनय भंगे । इच्छाईणमकरणे लहुस मुसा S-II [१०] अविहीइ कास-जंभिय-खुय-वायासंकिलिट्ठ-कम् । कंदप्प- हास- विगहा- कसाय- विसयानुसंगेसु || || [११] खलियस्स य सव्वत्थ वि हिंसमनावज्जओ जयंतस्स । सहसाऽनाभोगेण वा मिच्छाकारो पडिक्कमणं || [१२] आभोगेण वि तनुएसु नेह-भय- सोग - बाउसाईसु । कंदप्प- हास- विगहाईएसु नेयं पडिक्कमणं [१३] संभम भयाउरावइ- सहसा Sनाभोऽणप्प - वसओ वा । सव्व- वयाईयारे तदुभय मा संकिए चेव [१४] दुच्चिंतिय-दुब्भासिय दुच्चेट्ठिय- एवमाइयं बहुसो उवउत्तो वि न जाणइ जं देवसियाइ- अइयारं [१५] सव्वेसु वि बीय-पए दंसण - नाण- चरणावराहेसु आउत्तस्स तदुभयं सहसक्काराइणा चेव [2] [१] [२] [३] [४] [५] [६] [७] [८] [९] [दीपरत्नसागर संशोधितः] नमो नमो निम्मलदंसणस्स ॐ ह्रीं नमो पवयणस्स I || [३८/१-जीयकप्पो] Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-१६ [१६] पिंडोवहि-सेज्जाई गहियं क जोगिणोवउत्तेण । पच्छा नायमसुद्धं सुद्धो विहिणा विगिचंतो [१७] कालऽद्धाणाइच्छिय- अनुग्गयत्थमिय- गहियमसढो उ । कारण-गहि-उव्वरियं भत्ताइ-विगिंचियं सुद्धो ।। [१८] गमनागमन-विहारे सुयम्मि सावज्ज-सुविणयाईसु नावा-नइ-संतारे पायच्छित्तं विउस्सग्गो ।। [१९] भत्ते पाने सयनासने य अरिहंत-समण-सेज्जासु उच्चारे पासवणे पणवीसं हॉति ऊसासा || [२०] हत्थ-सय-बाहिराओ गमना ऽऽगमनाइएस पणवीसं । पाणिवहाई-सुविणे सयमट्ठसयं चउत्थम्मि ।। [२१] देसिय-राइय-पक्खिय- चाउम्मास-वरिसेसु परिमाणे सयमद्धं तिन्नि सया पंच-सयऽइत्तरसहस्सं ।। [२२] उद्देस-समद्देसे सत्तावीसं अणण्ण वणियाए । अट्ठेव य ऊसासा पट्ठवण-पडिक्कमणमाई ।। [२३] उद्देसऽज्झयण-सुयक्खधंगेस् कमसी पमाइस्स । कालाइक्कमणाइसु नाणायाराइयारेसु ।। निव्विगइय- पुरिमड्ढेगभत्त- आयंबिलं चनागाढे पुरिमाई खमणंतं आगाढे एवमत्थे वि ।। सामन्नं पुण सुत्ते मयमायामं चउत्थमत्थम्मि अप्पत्ताऽपत्ताऽवत्त- वायणुद्देसणाइसु य ।। कालाविसज्जणाइसु मंडलि-वसुहा ऽपमज्जणाइसु य । निव्वीइयमकरणे अक्ख-निसेज्जा अभत्तहो ।। [२७] आगाढानागाढम्मि सव्व-भंगे य देस-भंगे य जोगे छट्ठ-चउत्थं चउत्थमायंबिलं कमसो || संकाइएसु देसे खमणं मिच्छोवबूहणाइसु य पुरिमाई खमणंतं भिक्खु-प्पभिईण व चउण्हं ।। [२९] एवं चिय पत्तेयं उववूहाईणमकरणे जइणं आयामंतं निव्वीइगाइ पासत्थ-सड्ढेसु ।। परिवाराइ-निमित्तं ममत्त-परिपालणाइ वच्छल्ले साहम्मिओ त्ति संजम-हेउं वा सव्वहिं सुद्धो ।। [३१] एगिदियाण घट्टणमगाढ- गाढ- परियावणुद्दवणे निव्वीयं परिमड्ढं आसणमायामगं कमसो ।। [३२] पुरिमाई खमणंतं अनंत-विगलिंदियाण पत्तेयं पंचिंदियम्मि एगासणाइ कल्लाणय महेगं ।। [दीपरत्नसागर संशोधितः] [3] [३८/१-जीयकप्पो ] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-३३ - - - - [३३] मोसाइसु मेहुण-वज्जिएसु दव्वाइ-वत्थु-भिन्नेसु । हीने मज्झुक्कोसे आसणमायाम-खमणाइं ।।। [३४] लेवाडय-परिवासे अभत्तट्ठो सक्क-सन्निहीए य इयराए छट्ठ-भत्तं अट्ठमगं सेस-निसिभत्ते ।। [३५] उद्देसिय-चरिम-तिगे कम्मे पासंड-स-घर-मीसे य बायर-पाहुडियाए सपच्चवायाहडे लोभे ।। [३६] अइरं अनंत-निक्खित्त-पिहिय-साहरिय-मीसयाईसु । संजोग-स-इंगाले दुविह-निमित्ते य खमणं तु ।। [३७] कम्मुद्देसिय-मीसे धायाइ-पगासणाइएसुं च पुर-पच्छ-कम्म-कुच्छिय- संसत्तालित-कर-भत्ते ।। अरं परित्त-निक्खित्त- पिहिय-साहरिय-मीसयाईसु । अइमाण-धूम-कारण विवज्जए विहिय मायाम ।। अज्झोयर-कड-पूइय- माया नंते परंपरगए य । मीसानंतानंतरगया इए चे गमासणयं ।। [४०] ओह-विभागुद्देसोवगरण- पूईय- ठविय- पागडिए लोउत्तर-परियट्टिय- पमिच्च-पर भावकीए य ।। [४१] सग्गामाहड-दद्दर- जहन्नमालोहडोझरे पढमे सहम-तिगिच्छा-संथव- तिग-मक्खिय-दायगो वहए ।। पत्तेय-परंपर-ठविय- पिहिय-मीसे अनंतराईसु पुरिमड्ढं संकाए जं संकइ तं समावज्जे ।। इत्तर-ठविए सुहमे ससणिद्ध-ससरक्ख-भक्खिए चेव । मीस-परंपर-ठवियाइएसु बीएसु याविगई ।। सहसाऽनाभोगेणव जेसु पडिक्कमणमभिहियं तेसु आभोगओत्ति बहुसो- अइप्पमाणे य निव्विगई ।। धावण-डेवण-संघरिस- गमण-किड्डा-कुहावणाईसु उक्कुट्ठि-गीय-छेलिय- जीवरुयाईस् य चउत्थं ।। [४६] तिविहोवहिणो विच्चय- विस्सारिय उपेहियानिवेयणए । निव्वीय-परिममेगासणाइ सव्वम्मि चायामं ।। हारिय-धो-उग्गमिया निवेयणा दिन्न-भोग-दानेसु आसन-आयाम-चउत्थगाइ सव्वम्मि छटुं तु ।। [४८] मुहनंतय-रयहरणे फिडिए निव्वीययं चउत्थं च नासिय-हारविए वा जीएण चउत्थ-छट्ठाई ।। [४९] कालऽद्धाणाईए निव्विइयं खमणमेव परिभोगे अविहि-विगिचणियाए भत्ताईणं तु पुरिमड्ढं ।। [दीपरत्नसागर संशोधितः] [4] [३८/१-जीयकप्पो ] [४७] हारियो - - - Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-५० - । - - - - - - - - [५०] पाणस्सासंवरणे भूमि-ति गापेहणे य निव्विगई सव्वस्सासंवरणे अगहन-भंगे य पुरिमड्ढं ।। [५१] एयं चिय सामन्नं तवपडिमा ऽभिग्गहाइयाणं पि निव्वीयगाइ पक्खिय- पुरिसाइ-विभागओ नेयं ।। फिडिए सयमुस्सारिय-भग्गे वेगाइ वंदणुस्सग्गे निव्वीइय-पुरिमेगासणाइ सव्वेसु चायामं ।। अकएसु य पुरिमासन-आयामं सव्वसो चउत्थं तु पुव्वमपेहिय-थंडिल-निसि-वोसिरणे दिया सुवणे ।। [५४] कोहे बहुदेवसिए आसव- कक्कोलगाइएसुं च लसुणाइस् परिमड्ढं तन्नाई-बन्ध-म्यणे य ।। अझुसिर-तणेसु निव्वीइयं तु सेस-पणएसु पुरिमड्ढं अप्पडिलेहिय-पणए आसणयं तस-वहे जं च ।। ठवणमनापुच्छाए निव्विसओ विरिय-गृहणाए य जीएणेक्कासणयं सेसय-मायासु खमणं तु || [५७] दप्पेणं पंचिंदिय-वोरमणे संकिलिट्ठ-कम्मे य दीहऽद्धानासेवी गिलाण-कप्पावसाणे य ।। सव्वोवहि-कप्पम्मि य पुरिमत्ता पेहणे य चरिमाए चाउम्मासे वरिसे य सोहणं पंच-कल्लाणं ।। [५९] छेयाइमसद्दहओ मिउणो परियाय-गव्वियस्स वि य छेयाईए वि तवो जीएण गणाहिवइणो य ।। [६०] जं जं न भणियमिहई तस्सावत्तीए दान-संखेवं भिन्नाइया य वोच्छं छम्मासंताय जीएणं ।। [६१] भिन्नो अविसिट्ठो च्चिय मासो चउरो य छच्च लह-गरुया निव्विय गाई अङ्कम-भत्तंतं दानमेएसिं ।। [६२] इय सव्वावत्तीओ तवसो नाउं जह-कम्म समए जीएण देज्ज निव्वीइगाइ-दानं जहाभिहियं ।। सव्वं चिय पायं सामन्नओ विनिद्दिद्वं दानं विभागओ पुण दव्वाइ-विसेसियं जाण ।। [६४] दव्वं खेत्तं कालं भावं पुरिस-पडिसेवणाओ य नाउमियं चिय देज्जा तम्मत्तं हीनमहियं वा ।। [६५] आहाराई दव्वं बलियं सुलहं च नाउमहियं पि देज्जा हि दुब्बलं दुल्लहं च नाऊण हीनं पि ।। [६६] लुक्खं सीयल-साहारणं च खेत्तमहियं पि सीयम्मि लुक्खम्मि हीनतरयं एवं काले वि तिविहम्मि || - - - - - - - - [दीपरत्नसागर संशोधितः] [5] [३८/१-जीयकप्पो ] Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-६७ - - - - _ [७३] - - [१७] गिम्ह-सिसिर-वासासं देज्ज ऽहम-दसम-बारसंताई । नाउं विहिणा नवविह-स्यववहारोवएसेणं ।। [६८] हट्ठ-गिलाणा भावम्मि-देज्ज हट्ठस्स न 3 गिलाणस्स जावइयं वा विसहइ तं देज्ज सहेज्ज वा कालं ।। [६९] पुरिसा गीया ऽगीया सहाऽसहा तह सढाऽसढा केई परिणामाऽपरिणामा अइपरिणामा य वत्थूणं ।। तह धिइ-संघयणोभय-संपन्ना तदुभएण हीना य आय-परोभय-नोभय-तरगा तह अन्नतरगा य ।। [७१] कप्पट्ठियादओ वि य चउरो जे सेयरा समक्खाया सावेक्खेयर-भेयादओ वि जे ताण पुरिसाणं ।। [७२] जो जह-सत्तो-बहुत्तर-गुणो व तस्साहियं पि देज्जाहि । हीनस्स हीनतरगं झोसेज्ज व सव्व-हीनस्स ।। एत्थ पुण बहुतरां भिक्खुणो त्ति अकयकरणाणभिगया य । जंतेण जीयमहम-भत्तंतं निव्वियाईयं ।। [७४] आउट्टियाइ दप्प-प्पमाय- कप्पेहि वा निसेवेज्जा दव्वं खेत्तं कालं भावं वा सेवओ परिसो ।। जं जीय-दानमुत्तं एयं पायं पमायसहियस्स एत्तो च्चिय ठाणंतरमेगं वड्ढेज्ज दप्पवओ || [७६] आउट्टियाइ ठाणंतरं च सट्ठाणमेव वा देज्जा कप्पेण पडिक्कमणं तदुभयमहवा विनिद्दिढ़ ।। आलोयण-कालम्मि वि संकेस-विसोहि-भावओ नाउं हीनं वा अहियं वा तम्मत्तं वा वि देज्जाहि ।। [७८] इति दव्वाइ-बहु-गुणे गुरु-सेवाए य बहुतरं देज्जा हीनतरे हीनतरं हीनतरे जाव झोस त्ति ।। [७९] झोसिज्जइ सुबहु पि हु जीएण ऽन्नं तवारिहं वहओ । वेयावच्चकरस्स य दिज्जइ सानुग्गहतरं वा ।। [८०] तव-गविओ तवस्स य असमत्थो तवमसद्दहन्तो य तवसा य जो न दम्मइ अइपरिणाम-प्पसंगी य ।। सुबहुत्तर-गुण-भंसी छेयावत्तिसु पसज्जमाणो य पासत्थाई जो वि य जईण पडितप्पिओ बहसो ।। [८२] उक्कोसं तव-भूमि समईओ सावसेस-चरणो य छेयं पणगाईयं पावइ जा धरइ परियाओ ।। [८३] आउट्टियाइ पंचिंदिय-धाए मेहणे य दप्पेणं सेसेसुक्कोसाभिक्ख- सेवणाईस् तीसं पि || [दीपरत्नसागर संशोधितः] [३८/१-जीयकप्पो ] - - - - - - - [6] Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-८४ - - - - - - _ । - - [८४] तव-गव्वियाइएसु य मूलुत्तर-दोस-वइयर-गएसु दंसण-चरित्तवन्ते चियत्त-किच्चे य सेहे य ।। [८५] अच्चन्तोसन्नेसु य परलिंग-द्गे य मूलकम्मे य भिक्खुम्मि य विहिय-तवेऽणवट्ठ-पारंचियं पत्ते ।। [८६] छेएण उ परियाए ऽणवट्ठ-पारंचियावसाणे य मूलं मूलावत्तिसु बहुसो य पसज्जओ भणियं ।। उक्कोसं बहुसो वा पउट्ठ-चित्तो वि तेणियं कुणइ पहरइ जो य स-पक्खे निरवेक्खो घोर-परिणामो || [८८] अहिसेओ सव्वेसु वि बहुसो पारंचियावराहेसु अणवठ्ठप्पावत्तिसु पसज्जमाणो अनेगासु ।। कीरइ अणवठ्ठप्पो सो लिंग-क्खेत्त-कालओ-तवओ लिंगेण दव्व-भावे भणिओ पव्वावणाऽणरिहो ।। अप्पडिविरओ-सन्नो न भाव-लिंगारिहो ऽणवठ्ठप्पो जो जत्थ जेण दूसइ पडिसिद्धो तत्थ सो खेत्ते ।। [९१] जत्तियमित्तं कालं तवसा उ जहन्नएण छम्मासा । संवच्छरमुक्कोसं आसायइ जो जिणाईणं ।। वासं बारस वासा पडिसेवी कारणेण सव्वो वि थोवं थोवतरं वा वहेज्ज मुंचेज्ज वा सव्वं ।। वंदइ न य वंदिज्जइ परिहार-तवं सुदुच्चरं चरइ संवासो से कप्पइ नालवणाईणि सेसाणि ।। तित्थयर-पवयण-सुयं आयरियं गणहरं महिड्ढियं आसायंत्तो बहुसो आभिनिवेसेण पारंची ।। जो य स-लिंगे दुट्ठो कसाय-विसए हिं राय-वहगो य रायग्गमहिसि-पडिसेवओ य बहसो पगासो य ।। थीणद्धि-महादोसो अन्नो ऽन्नासेवणापसत्तो य चरिमट्ठाणावत्तिसु बहुसो य पसज्जए जो 3 ।। सो कीरइ पारंची लिंगओ- खेत्त-कालओ-तवओ य संपागड-पडिसेवी लिंगाओ थीणगिद्धी य ।। वसहि-निवेसण-वाडग- साहि-निओग-पुर-देस-रज्जाओ खेत्ताओ पारंची कुल-गण-संघालयाओ वा ।। [९९] जत्थुप्पन्नो दोसो उप्पज्जिस्सइ य जत्थ नाऊणं तत्तो तत्तो कीरइ खेत्ताओ खेत्त-पारंची ।। [१००] जत्तिय-मत्तं कालं तवसा पारंचीयस्स उ स एव कालो दु-विगप्पस्स वि अणवठ्ठप्पस्स जोऽभिहिओ || [दीपरत्नसागर संशोधितः] [7] - - - - - - - - [३८/१-जीयकप्पो ] Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-१०० [101] एगागी खेत्त-बहिं कुणइ तवं सु-विउलं महासत्तो अवलोयणमायरिओ पइ-दिनमेगो कुणइ तस्स / / [102] अणवठ्ठप्पो तवसा तव-पारंची य दो वि वोच्छिन्ना चोद्दस-पुव्वधरम्मी धरंति सेसा उ जा तित्थं / / [103] इय एस जीयकप्पो समासओ सविहियानुकम्पाए कहिओ देवोऽयं पुण पत्ते सुपरिच्छिय-गुणम्मि || मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादितश्च “जीयकप्पो छेयसुत्तं सम्मत्तं" जीयकप्पो पंचमं छेयसुत्तं सम्मत्तं दीपरत्नसागर संशोधितः] 181 [३८/१-जीयकप्पो ]