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गाहा-८४
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[८४] तव-गव्वियाइएसु य मूलुत्तर-दोस-वइयर-गएसु
दंसण-चरित्तवन्ते चियत्त-किच्चे य सेहे य ।। [८५] अच्चन्तोसन्नेसु य परलिंग-द्गे य मूलकम्मे य
भिक्खुम्मि य विहिय-तवेऽणवट्ठ-पारंचियं पत्ते ।। [८६] छेएण उ परियाए ऽणवट्ठ-पारंचियावसाणे य
मूलं मूलावत्तिसु बहुसो य पसज्जओ भणियं ।। उक्कोसं बहुसो वा पउट्ठ-चित्तो वि तेणियं कुणइ
पहरइ जो य स-पक्खे निरवेक्खो घोर-परिणामो || [८८] अहिसेओ सव्वेसु वि बहुसो पारंचियावराहेसु
अणवठ्ठप्पावत्तिसु पसज्जमाणो अनेगासु ।। कीरइ अणवठ्ठप्पो सो लिंग-क्खेत्त-कालओ-तवओ लिंगेण दव्व-भावे भणिओ पव्वावणाऽणरिहो ।। अप्पडिविरओ-सन्नो न भाव-लिंगारिहो ऽणवठ्ठप्पो
जो जत्थ जेण दूसइ पडिसिद्धो तत्थ सो खेत्ते ।। [९१] जत्तियमित्तं कालं तवसा उ जहन्नएण छम्मासा ।
संवच्छरमुक्कोसं आसायइ जो जिणाईणं ।। वासं बारस वासा पडिसेवी कारणेण सव्वो वि थोवं थोवतरं वा वहेज्ज मुंचेज्ज वा सव्वं ।। वंदइ न य वंदिज्जइ परिहार-तवं सुदुच्चरं चरइ संवासो से कप्पइ नालवणाईणि सेसाणि ।। तित्थयर-पवयण-सुयं आयरियं गणहरं महिड्ढियं आसायंत्तो बहुसो आभिनिवेसेण पारंची ।। जो य स-लिंगे दुट्ठो कसाय-विसए हिं राय-वहगो य रायग्गमहिसि-पडिसेवओ य बहसो पगासो य ।। थीणद्धि-महादोसो अन्नो ऽन्नासेवणापसत्तो य चरिमट्ठाणावत्तिसु बहुसो य पसज्जए जो 3 ।। सो कीरइ पारंची लिंगओ- खेत्त-कालओ-तवओ य संपागड-पडिसेवी लिंगाओ थीणगिद्धी य ।। वसहि-निवेसण-वाडग- साहि-निओग-पुर-देस-रज्जाओ
खेत्ताओ पारंची कुल-गण-संघालयाओ वा ।। [९९] जत्थुप्पन्नो दोसो उप्पज्जिस्सइ य जत्थ नाऊणं
तत्तो तत्तो कीरइ खेत्ताओ खेत्त-पारंची ।। [१००] जत्तिय-मत्तं कालं तवसा पारंचीयस्स उ स एव
कालो दु-विगप्पस्स वि अणवठ्ठप्पस्स जोऽभिहिओ || [दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३८/१-जीयकप्पो ]
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