Book Title: Agam 36 Chhed  03 Vyavahara Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री व्यवहार सूत्र ॥श्री आगम-गुण-मञ्जूषा॥ ॥श्री.मागम-गुण-४५।।। 11 Sri Agama Guna Manjusa 11 (सचित्र) प्रेरक-संपादक अचलगच्छाधिपति प.पू.आ.भ.स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HOROS555555555555555555555555555 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 555555555555555555555555555QUOTE | ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय | ११ अंगसूत्र के जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है। श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है। द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यत: धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको शत्रुजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती 5 कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है। है। श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान में विद्यमान है । १८० श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त मुख्य विषय रहा है। करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है। श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी मे भी है । कुलमिला के इसके २०० श्लोक है। संग्रहग्रंथ है । एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक ११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया मे उपलब्ध है। धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है। श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र (भगवती सूत्र) :- यह सबसे बडा सूत्र है, इसमे ४२ १२ उपांग सूत्र शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ मे प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान १) श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है । इस मे चंपानगरी किया है। प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुइ है। चारो अनुयोगो कि बाते का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। श्री राजप्रश्नीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है। २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है। कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। १७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको Gorak45555555555555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा G555555555555555555555555555555ory OG5555555555555555555555555555555555555555555555553535959595959OLICE Gan Education Interna rnww.iainelibrary.orp) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %。 %%%%%%85 २) त्रास %%%%%%%%%%% doOKHAR153835555555555555555555345555555555555555555555555ODXOS KAROKKAXXE E EEEE994%953589 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 985555359999999455889 श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है । जीव और अजीव के दश प्रकीर्णक सूत्र बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव ने कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताइ है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पनवणासूत्र के ही पदार्थ है । यह के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है। आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है । इसमे ३६ पदो का वर्णन श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। और मृत्युसुधार ५) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार (१) चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है। २२०० श्लोक है। श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन मे है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है। ६ आरे के स्वरूप है। इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। बताया है। ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। गये उसका वर्णन है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्यकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने । १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है । चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका में समजाया गया है। देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित ई श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे अन्य बातों का वर्णन है। पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली पञ्चक भी कहते है। १०A) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। %%%%% %%% %%%% %% %%%% %%%% %%%%% १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। (GainEducation-international 2010-03 VOON N54555554454549 श्री आगमगुणमजूषा E f54 www.dainelibrary.00) $$# KOR Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听圳坂圳乐乐听听听听的 १०८) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबधित बड़े ग्रंथो का सार है। ३) उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं। श्री नियुक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में ७ है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ नियुक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं । पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताइ हें। ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं। छह छेद सूत्र श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बडे सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रात: एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं : (१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण (१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र (५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है । अति गंभीर केवल आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि असे करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत क उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे * मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है। दो चूलिकाए १) श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रंन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। चार मूल सूत्र श्री दशवकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए रतिवाक्या व, विवित्त चरिया नाम से दी हैं । इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गइ है । अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पड़ती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है। ॥ इति शम्॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं। ) Gain Education International 2010_03 Mora :58498499934555555555; आगमगुणमजूषा-5555555555555555555555555 ) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XOX ¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶KK Introduction 45 Agamas, a short sketch YURALSEA PERLA RADIO Quan Bài 3 Bà Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là 35 3 3 20 It is of the size of around 800 Ślokas. (8) Antagaḍa-daśānga-sutra: It deals mainly with the teaching of the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vṛṣṇi, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akṣobhakumāra, 6 sons of Devaki, Gajasukumara, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Kṛṣṇa, 8 queens like Rukmiņi. It is available of the size of 800 Ślokas. (9) Anuttarovavayi-daśānga-sūtra : It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimāna, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumara and other 9 princes of king Śrenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Apagara, etc. It is of the size of 200 Ślokas. I Eleven Angas: (1) Acărănga-sutra: It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 Ślokas. (2) Suyagaḍānga-sutra: It is also known as Sūtra-Kṛtānga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 Ślokas. (3) Thapanga-sutra: It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 Slokas. (4) Samaväyänga-sutra: This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 slokas. (5) Vyakhyā-prajñapti-sūtra : It is also known as Bhagavati-sūtra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 Ślokas. (6) Jäätädharma-Kathānga-sutra: It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 Ślokas. SEVEN A (7) Upāsaka-daśānga-sutra: It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahāvīra, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct. (10) Praśna-vyākaraṇa-sūtra: It deals mainly with the teaching of the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahavira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to transgression and the self-control. It is of the size of 200 Ślokas. Vipaka-sūtranga-sutra: It consists of 2 parts of learning. The first part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 Ślokas. (11) II Twelve Upangas (1) Uvavayi-sutra: It is a subservient text to the Acaranga-sutra. It deals with the description of Campă city, 12 types of austerity, procession-arrival of Konika's marriage, 700 disciples of the monk Ambaḍa. It is of the size of 1000 slokas. (2) Rayapaseni-sutra: It is a subservient text to Suyagaḍanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 Ślokas. www.jainelibrary Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhible Gamin nh* HIFThe ha EEEEEEEEEEEE开F听听听听听听听听明明Ow (3) Jivābhigama-sutra : It is a subservient text to Thāṇānga-sūtra. It one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişadha. deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambo continent and its areas, etc. and the detailed description of the III Ten Payanna-sutras : veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, (1) Aurapaccakhāņa-sūtra : It deals with the final religious practice etc. published recently are composed on the line of the topics of this and the way of improving (the life so that the) death (may be Sutra and of the Pannavaņa-sutra. It is of the size of 4700 Slokas. improved). Pannavaņā-sutra : It is a subservient text to the Samavāyānga- (2) Bhattaparinna-sutra : It describes (1) three types of Pandita death, sätra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 (2) knowledge, (3) Ingini devotee ślokas. (4) Pādapopagamana, etc. (5) Sürya-prajfapti-sutra and (4) Santhäraga-payannā-sutra : It extols the Samstäraka. Candra-prajñapti-sätra : These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the ** These four payannás can also be learnt and recited by the Jain movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, householders. ** northward and the southward solstices, etc. Each one of these Āgamas are of the size of 2200 Slokas. (5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Jambadvipa-prajñapti-sutra : It mainly deals with the teaching Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the describes what amount of food an individual soul will eat in his life objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners of 100 years, the human life can be justified by way of practising a (ära). It is available in the size of 4500 Slokas. religious life. Nirayávali-pacaka : (6) Candāvijaya-payannā-sūtra : It mainly deals with the religious (8) Nirayávali-sütra : It depicts the war between the grandfather and practice that improves one's death. the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death (7) Devendrathui-payanna-sutra : It presents the hymns to the Lord of king Greñika's 10 sons who attained hell after death. This war is sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpini) (8) Maranasamadhi-payanna-sutra : It describes at length the final age. religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing (9) Kalpāvatamsaka-sutra : It deals with the life-sketches of with death. Kalakumara and other 09 princes of king Sreņika, the life-sketch of (9) Mahäpaccakhāņa-payanna-sutra : It deals specially with what a Padamakumpra and others. monk should practise at the time of death and gives various beneficial (10) Pupphiya-upanga-sutra : It consists of 10 lessons that covers the informations. topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikā, (10) Gaņivijaya-payanna-sūtra : It gives the summary of some treatise Purnabhadra, Manibhadra, Datta, sila, Bala and Aņāddhiya. on astrology (11) Pupphacultya-upanga-sutra : It depicts previous births of the 10 These 10 Payannās are of the size of 2500 ślokas. queens like Sridevi and others. Besides about 22 Payannās are known and even for these above (12) Vahnidaśa-upanga sätra : It contains 10 stories of Yadu king 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra Andhakavrşni, his 10 princes named Samudra and others, the tenth is taken, by some, in place of the Candāvijaya of the 10 Payannās. 明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐手乐乐乐乐乐明與乐乐乐乐乐乐乐乐FFFF乐乐乐明 XOXOFF $ farmark ** F YOX Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *********** IV Six Cheda-sūtras ********** (2) Nisitha-sūtra, (4) Pancakalpa-sutra, YU MUNU AM VIÀO QUN ********¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶ (1) Vyavahara-sutra, (3) Mahānisitha-sutra, (5) Daśāśruta-skandha-sūtra and (6) Bṛhatkalpa-sūtra. These Chedasûtras deal with the rules, exceptions and vows. The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master. V Four Malasitras (1) Daśavaikalika-sutra: It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Cūlikäs called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthulabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahāvideha region and received four Culikās. Here are incorporated two of them. (2) Uttaradhyayana-sutra: It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas. (3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Pifaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. (4) Avasyaka-sutra: It is the most useful Agama for all the four groups 2010 03 of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are (1) Samayika, (2) Caturvimśatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kayotsarga and (6) Paccakhāṇa. VI Two Culikäs (1) Nandi-sütra: It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirthankaras and 11 Gaṇadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Ślokas. (2) Anuyogadvara-sutra: Though it comes last in the serial order of the 45 Agamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion. It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements. It is of the size of 2000 Ślokas. ¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶__¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3ROX સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ » 乐乐乐乐乐乐乐消消乐出乐 ☆纸纸纸与纸纸 આગમ - ૩૭ ચરણાનુયોગમય વ્યવહારસૂત્ર – ૩૭ ક ઉપલબ્ધ મૂલપાઠ સૂત્રસંખ્યા श्री आगमगुणमंजूषा ४९ શક 3 ४ ૫ ૬ ७ ર ૯ ૧૦ ૧૦ ૩૭૩ ૨ ૬ ૭ સૂત્રસંખ્યા ૩૪ ૨૦ ૨૯ ૩૨ ૨૧ २३ ૧૪ ૪૫ ૩૦ २१७ શ્લોક પ્રમાણ GO Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ © ૧- આમાં નિષ્કપટ - સકપટ આલોચનાના પ્રાયશ્ચિત્ત, ગણપ્રદેશ, પશ્ચાત્તાપીને પુનઃ દીક્ષા વગેરે વર્ણન છે. ઉદ્દેશક : ૨ – આમાં રુગ્ણ પરિહાર ૫સ્થિતના દોષ સેવનનું વર્ણન, ગણાવચ્છેદક પદ, પરિહાર્ય કલ્પ અને આહાર-વ્યવહાર, સ્થવિરસેવા વગેરે વાતો છે. સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ ઉદ્દેશક : ૩- આમાં ગણપ્રમુખ, ઉપાધ્યાય-પદ, આચાર્ય-ઉપાધ્યાય- પદ, ગણાવચ્છેદક – પદ, મૈથુનસેવી અને મૃષાવાદી ભિક્ષુને પ્રમુખ વગેરે વિષે ચર્ચા છે. ઉદ્દેશક : ૪ - આમાં વિહાર અને વર્ષાવાસ સંબંધી મર્યાદાઓ, સંઘ સંમેલન, વિવિધ પ્રાયશ્ચિત્તો, વિનયભક્તિ, વંદન વ્યવહાર વગેરેનું વર્ણન છે. ઉદ્દેશક : ૫ – આમાં નિગ્રંથીઓની વિહારમર્યાદા, તેમનો વર્ષાવાસ, સંઘસંમેલન, પ્રમુખપઠ, વૈયાવૃત્ય-સેવા, સર્પ-દંશ ચિકિત્સા વગેરેનું વર્ણન છે. ઉદ્દેરાક : ૬ – આમાં મોવિજય અને ગવેષણા, આચાર્ય અને ઉપાધ્યાયના પાંચ તેમજ ગણાવચ્છેદકના બે અતિરાયો, અલ્પદ્યુત-બહુશ્રુત, પ્રાયશ્ચિત્ત સૂત્ર વગેરેનું વર્ણન છે. ઉદ્દેશક : 9 - આમાં અન્ય ગણના નિય – નિગ્રંથીઓનો સમાવેશ તથા સંબંધ- વિચ્છેદ, દીક્ષા, વિહાર, ક્ષમાયાચના, સ્વાધ્યાય, તથા વાચના આપવી, સાધ્વીને આચાર્યઉપાધ્યાય- પદ, મૃત શરીરનો વિધિ, રાજ્યપરિવર્તન પ્રસંગે નવા રાજાની આજ્ઞા લેવી વગેરે બાબતો છે. ઉદ્દેશક : ૮ - આમાં વસતિ-નિવાસ, શય્યા-સંસ્તારક, સ્થવિરોના ઉપકરણ, ખોવાયેલા- ભૂલાયેલા ઉપકરણો પાછા આપવા, આહાર-પરિભોગૈષણા વગેરે વાતો છે. ઉદ્દેશક : ૯ – આમાં ગૃહસ્વામીના ગ્રાહ્ય-અગ્રાહ્ય આહાર,સપ્ત-સમમિકા ભિક્ષુ-પ્રતિમા, ત્રણ પ્રકારના અભિગ્રહ વગેરે વિષયો છે. ઉદ્દેશક : ૧૦ – આમાં ભિક્ષુપ્રતિમા, પાંચ પ્રકારના વ્યવહાર, શ્રમણ- પરીક્ષા, આચાર્ય તેમજ શિષ્યની ચતુર્થંગી, ત્રણ-ત્રણ પ્રકારના સ્થવિરો અને શિષ્યો, આગમોનો અધ્યયન-કાળ, વૈયાવૃત્યના ૧૦ પ્રકાર અને તેનું ફળ જણાવીને આ સૂત્રનો ઉપસંહાર કરવામાં આવ્યો છે. 2 श्री आगमगुणमंजूषा ५० 乐乐卐 五五五五五五五卐6749呎 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OC乐乐乐听听听听听听听听听 555555555555555555555555555555 555555OTIOR ROROF155555555555559 (३७) ववहार छेयसुत्त (४) उ.१ [१] %%% %% %%%%%% %% सिरि उसहदेव सामिस्स णमो। सिरि गोडी - जिराउला - सव्वोदयपासणाहाणं णमो। नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ महइ महावीर वद्धमाण सामिस्स। सिरि गोयम - सोहम्माइ सव्व गणहराणं णमो। सिरि सुगुरु - देवाणं णमो। श्रीव्यवहारच्छेदसूत्रम् ज १८२ भाष्ये पीठिकागाथा:, जे भिक्खू मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउञ्चियं आलोएमाणस्स मासियं पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं ३२२॥१॥ जे भिक्खू दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउश्चिय (प्र० यं) आलोएमाणस्स दोमासिय, पलिउंचिययं आलोएमाणस्स तेमासियं ।। जे भिक्खू तेमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउंचिययं आलोएमाणस्स तेमासियं पलिउंचिययं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं ।३। जे भिक्खू चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउंचिययं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं पलिउंचिययं आलोएमाणस्स पंचमासियं ।४। जे भिक्खुपंचमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउंचिययं आलोएमाणस्स पंचमासियं पलिउंचिययं आलोएमाणस्स छम्मासियं, तेण परं पलिउंचिए वा अपलिंउंचिए वा ते चेव छम्मासा '३४३।५। जे भिक्खू बहुसोवि मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउञ्जियं आलोएमाणस्स मासियं पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं ।६। एवं जे भिक्खू बहुसोविदोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउञ्जियं आलोएमाणस्स दोमासियं पलिउञ्चियं आलोएमाणस्स तेमासियं 1७1० बहुसोवितेमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेविऊण आलोएज्जा अपलिउश्चियं आलोएमाणस्स तेमासियं पलिउञिचयं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं।८५० बहुसोवि चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउञ्चियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं पलिउञ्चियं आलोएमाणस्स पञ्चमासियं ।९।० बहुसोवि पञ्चमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउञ्चियं आलोएमाणस्स पञ्चमासियं पलिउश्चियं आलोएमाणस्स छम्मासियं, तेण पर पलिउश्चियं वा अपलिउश्चियं वा ते चेव छम्मासा ।१०। मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पञ्चमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जाई अपिलउञ्चिययं आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पञ्चमासियं वा, पलिउंचिययं आलोएमाणस्स दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा छम्मासियं वा, तेण परं पलिउंचिए वा अपहिचिय ये ते चेय छम्मासा ।११। जे० बहुसोवि मासियं वा दोमासियं वा० छम्मासा "५१०।१२। जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचिययं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा पलिंउंचिययं आलोएमाणस्स पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा छम्मासियं वा, तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ।१३। जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा०।१४।० साइरेगचाउम्मासियं वा ।१५/० पहचमेसिंह ये ।१६।० साइरेगपंचमासियं वा ।१७। एवं चेव भाणियव्वं जा छम्मासा '५३५।१८। जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पुव्विं पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचियं, आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणियं जे एयाए पछवणाए पठ्ठविए निव्विमाणे पडिसेवेइ सेविकसिणे तत्थेव आरूहेयव्वे सिया।१९। एवं बहुसोवि जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा पलिउंचियं आलोएमाणस्स ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं जाव पच्चा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं जाव पलिउंचिए आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणियं आरूहेयव्वं सिया, एवं अपलिउंचिए '६०१।२०॥ जे भिक्खू चाउम्मासियं वा० आलोएज्जा, पलिउचियं आलोएमाणस्स० पलिउंचिए पलिउंचियं, 乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听乐乐 (सौजन्य :- श्रीसोभयंहमा लालS अमलनेर.) Mero+$$$$$$$$$$$55555555| श्री आगमगुणमनूषा - १४५१55555555555555555555555 FOTOR Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGR9555555555555 (३७) ववहार छेयसुत्तं (8) उ. १.२ [] 555555555555xong PAGIR955555555555555555555555555555555555555555555555QoY पलिउंचिए पलिउंचियं आलोएमाणस्स आरूहेयव्वे सिया ।२१। जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि साइरेग० वा० आरूहियव्वे सिया '६२६।२२। बहवे पारिहारिया बहवे अपारिहारिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेइत्तए नो से कप्पइ थेरे अणापुच्छित्ता एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेइत्तए, कप्पड़ ण्हं से थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेइत्तए, थेरा य ण्हं से वियरेज्जा एवं ग्रहं कप्पइ एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेइत्तए, थेरा य ण्हं से नो वियरेज्जा एवं ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेइत्तए, जोणं थेरेहिं अविइण्णं अभिनिसेनं वा अभिनिसीहियं वा चेएइ से सन्तरा छेए वा परिहारे वा '६९३१२३। परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा, थेरा य से सरेज्जा कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं जण्णं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं तण्णं दिसं उवलित्तए, नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए, तंसिं च णं कारणंसि णिठ्ठियंसि परोक्एज्जा ‘वसाहि अज्जो ! एगरायं वा दुरायं वा' एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ एगराओ वा परं वसित्तए, जोणं तत्थ एग० दुरा० परं वसइ से सन्तरा छेए वा परिहारे वा।२४। परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा, थेरा य से नो सरेज्जा, कप्पइ से निव्विसमाणस्स एगराइयाए पडिमाए जण्णं जण्णं दिसं जाव तत्थ एगरायाओ वा दुरायाओ परं वसइ से सन्तरा छेए वा परिहारे वा '७६७।२५। परिहारकप्पट्टिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा थेरा य से सरेज्जा वा नो सरेज्जा वा कप्पइसे निविविसमाणस्स एगराइयाए जाव छेए वा परिहारे वा ।२६। भिक्खू य गणाओ अवक्कम एगल्लविहारपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरिज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चंपि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवठ्ठाएज्जा ।२७। एवं गणावच्छेइए वा ।२८। एवं आयरिए।२९। एवं उवज्झाए।३०। भिक्खू य गणाओ अवक्म पासत्थविहारे विहरेज्जा से य इच्छेज्जा दोच्वंपि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अत्थि याई थ से पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवठ्ठाएज्जा।३१। एवं अहाछन्दो कुसीलो ओसन्नो संसत्तो '८९१।३२। भिक्खू य गणाओ अवक्म परपासंडपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा परलिंगं च गेण्हेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चंपि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नत्थि णं तस्स तप्पत्तियं केइ छेए वा परिहारे वा, नन्नत्थ एगाए आलोयणाए।३३। भिक्खू य गणाओ अवक्कम ओहावेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चंपि तमेव गण उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नत्थि णं तस्स तप्पत्तियं केइ छेए वा परिहारे वा, नन्नत्थ एगाए सेहोवट्ठावणाए '९१४।३४। भिक्खू य अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता इच्छेज्जा आलोएत्तए, जत्थेव अप्पणे आयरियउवज्झाए पासेज्जा कप्पइ से तस्संतिए आलोएत्तए वा पडिक्कमेत्तए वा निन्दित्तए वा गरहित्तए वा विउट्टित्तए वा विसोहित्तए वा अकरणयाएं अब्भउत्तए वा अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवेज्जेत्तए वा, नो चेव अप्पणो आयरियउवज्झाए पासेज्जा जत्थेव संभोइयं साहम्मियं बहुस्सुयं बज्झागमं पासेज्जा तस्संतिए कप्पइ से आलोएत्तए वा जाव पडिवजेत्तए वा, नो चेव णं संभोइयं साहम्मियं बहुस्सुयं बज्झागमं पासेज्जा जत्थेव अन्नसंभोइयं बहुस्सुयं बज्झागमं पासेज्जा कप्पइ से तस्संतिए आलोएत्तए वा जाव पडिवज्जेत्तए वा, नो चेव णं अन्नसंभोइयं० जत्थेव सारूवियं बहुस्सुयं बज्झागमं पासेज्जा कप्पइ से तस्संतिए आलोएत्तए वा०, नो चेव णं सारूवियं बहुस्सुयं बज्झागमं पासेज्जा जत्थेव समणोवासगं पच्छाकडं बहुस्सुयं बज्झागमं पासेज्जा जत्थेव सम्मभावियाइं चेइयाइं पासेज्जा कप्पइ से तस्संतिए आलोएत्तए वा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जित्तए वा, नो चेव णं सम्मभावियाइं चेइयाई पासेज्जा बहिया गामस्स वा जाव संनिवेसस्स वा पाईणाभिमुहेण वा उदीणाभिमुहेण वा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु कप्पइ से एवं वएत्तए-एवइया मे अवराहा एवइक्खुत्तोय अहं अवरद्धो अरहताणं सिद्धाणं अन्तिए आलोएज्जा पडिक्कमेजा निन्देज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जासित्ति बेमि ९७३।३५ ** पढमो उद्देसओ १॥★★★ दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चठ्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, ठवणिज्ज ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं ।१। दो साहम्मिया एगयओ विहरंति दोवि ते अन्नयरं अकिच्चठ्ठाण पडिसेवित्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता अवसेसा निव्विसेज्जा, अह पच्छा सेऽवि निविसेज्जा।। बहवे साहम्मिया अगयओ विहरंति दोविते अन्नयरं अकिचट्ठाणं पडिसेविता आलोएज्जा, ठवणिज्जं 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明贝乐乐中乐乐乐明明明明明C 999999999999श्री आगमगुणमंजूषा - १३५२ 19555555555555555555500RISIOR Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ववहार छेयसुत्तं (४) उ. २, ३ *******¶¶¶¶¶¶¶exte ठवइत्ता कर णिज्जं वेयावडियं । ३ । बहवे साहम्मिया एकायओ विमाणे अन्नयरं अकिचट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता अवसेसा निव्विसेज्जा, अह पच्छा सेऽवि निव्विसेज्जा '५७ |४| परिहारकप्पठ्ठिए भिक्खू गिलायमाणे अन्नयरं अकिच्चठ्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, से य संथरेज्जा ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं, से य नो संघरेज्जा अणुपरिहारिएणं करणिज्जं वेयावडियं, से तं अणुपरिहारिएणं कीरमाणं वेयावडियं साइज्जेज्जा सेव कसिणे तत्थेव आरूहेयव्वे सिया '७२|५| परिहारकप्पलियं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पर तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए, अगिलाए तस्स करणिज्जं यावडियं जाव तओ रोगायङ्काओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पठ्ठवियव्वे सिया । ६ । अणवठ्ठप्पं० पारिञ्चियं भिक्खुं गिलायमाणं जाव पठ्ठवियव्वे सिया, खित्तचित्तं०, दित्तचित्तं०, जक्खाइठ्ठ०, उम्मायपत्तं०, उवसग्गपत्तं०, साहिगरणं०, सपायच्छित्तं०, भत्तपाणपडियाइक्खितं०, अठ्ठजायं भिक्खुं० पठ्ठवियव्वे सिया '२२६१७-१७। अणवठ्ठप्पं भिक्खुं अंगिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवठ्ठावित्तए ।१८। अणवट्ठप्पं भिक्खुं गिहिभूयं कप्पर तस्स गणावच्चेइयस्स उवठ्ठावित्तए । १९ । पारश्चियं भिक्खु अगिहिभूयं नो कप्पर तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावित्तए | २०| पारंचियं भिक्खुं गिहिभूयं कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवठ्ठावित्तए । २१ । अणवठ्ठप्पं भिक्खुं० अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पर तस्स गणावच्छेइयस्स उवठ्ठावित्तए जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया | २२| पारंचियं भिक्खुं अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पड़ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावित्तए जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया '२५८ | २३ | दो साहम्मिया एगयओ विहरन्ति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा 'अहं णं भन्ते ! अमुगेणं साहुणा सद्धिं इमम्मि य इमंमि य कारणम्मि पडिसेवी' से तत्थ पुच्छियव्वे किं पडिसेवी अपडिसेवी ?' से य वएज्जा 'पडिसेवी' परिहारपत्ते, से य वएज्जा 'नो पडिसेवी' नो परिहारपत्ते, जं से पमाणं वयइ से माओवत्तव्वे सिया से किमाहु भन्ते !?, सच्चपइन्ना ववहारा '२७० | २४| भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओहाणुप्पेही गच्छेज्जा, से य आहच्च अणोहाइए, से य इच्छेज्जा दोच्चंपि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, तत्थ णं थेराणं इमेयारूवे विवाए समुप्पज्जित्था 'इमं णं अज्जो ! जाणह किं पडिसेविं अपडिसेविं ?, से य पुच्छियव्वे 'किं पडिसेवी अपडिसेवी ?' से य वएज्जजा 'पडिसेवी' परिहारपत्ते, से य वएज्ना 'नो पडिसेवी' नो परिहारपत्ते, जं से पमाणं वयइ से पमाणओ त्व्वे से किमाहु भन्ते ।१, सच्चपन्ना ववहारा '३१९ १२५ | एगपक्खियस्स भिक्खुस्स कम्पइ आयरियउवज्झायाणं इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वाधारित वा जहा वा तस्स गणस्स पत्तियं सिया '३५५ | २६ । बहवे परिहारिया बहवे अपरिहारिया इच्छेज्जा एगयओ एगमासं वा दुमासं वा तिमासं वा चउमासं वा पंचमासं वा छम्मासं वा वत्थए, ते अन्नमन्नं संभुजन्ति अन्न॑मन्नं तो संभुजन्ति मासं, तओ पच्छा सव्वेवि एगयओ संभुजन्ति '३६४ |२७| परिहारकप्पट्ठियस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ असणं वा० दाउं वा अणुप्पदाउं वा, थेरा य णं वएज्जा इमं ता अज्जो ! तुमं एएसिं देहि वा अणुप्पदेहि वा' एवं से कप्पड़ दावा अणुप्पदा वा, कप्पर से लेवं अणुजाणावेत्तए 'अणुजाणह भन्ते ! लेवाए' एवं से कप्पइ लेवं समासेवेत्तए ३७२ १२८| परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू सएणं पडिग्गहेणं बहिया अप्पणो वेयावडियाए गच्छेज्जा, थेरा य णं वएज्जा- 'पडिग्गाहेहि अज्जो ! अहंपि भोक्खामि वा पाहामि वा' एवं हं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए, तत्थ नो कप्पइ अपरिहारिएणं परिहारियस्स पडिग्गहंसि असणं वा० भोत्तए वा पायए वा, कप्पड़ से संयसि वा पडिग्गहंसि सयंसि वा पलासगंसि सयंसि वा कमढगंसि सयंसि वा खुव्वगंसि सयंसि वा पाणियंसि उधड्ड उद्धड्ड भोत्तए वा पायए वा, एस कप्पे अपरिहारियस्स परिहारियाओ । २९ । परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू थेराणं पडिग्गहेणं बहिया तेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा, थेरा य णं वएज्जा- 'पडिग्गाहेहि अज्जो ! तुमपि पच्छा भोक्खसि वा पाहिसि वा' एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तर, तत्थ नो कप्पड़ परिहारिएणं अपरिहारियस्स पडिग्गहंसि असणं वा० भोत्तए वा पायए वा, कप्पर से सयंसि पडिग्गहंसि वा सयंसि पलासगंसि वा स० क० खं० स० पाणिसि वा उद्घट्टु उद्धट्टु भोत्तए वा पायए वा, एस कप्पे परिहारियस्स अपरिहारियाओत्ति बेमि '३७८' | ३० | बिइओ - उदेसओ २ ॥ ★★ भिक्खू य इच्छेज्ना गणं धारेत्तए भगवं च से अपलिच्छिन्ने एवं नो से कप्पइ गणं धारेत्तए, भगवं च से पलिच्छिन्ने एवं से कप्पइ गणं धारेत्तए '११०।१। भिक्खूय इच्छेज्जा गणं धारेत्तए, नो से कप्पइ थेरे आणापुच्छित्ता गणं धारेत्तए, कप्पइ से थेरे आपुच्छित्ता गणं धारेत्तए, थेरा य से वियरेज्जा एवं से श्री आगमगुणमंजूषा १४५३ ॐ ॐ० [3] Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ववहार छेयसुत्तं (४) उ. ३,४ [४] 650 कप्पइ गणं धारेत्तए, थेरा य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पइ गणं धारेत्तए, जण्णं थेरेहिं अविइण्णं गणं धारेज्जा से सन्तरा छेए वा परिहारे वा, जे ते साहम्मिया उठाए विहरति नत्थि णं तेसिं केइ छए वा परिहारे वा '११६ । २ । तिवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पननत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्ख (क्खु) यायारे अभिन्नायारे असबलायारे असंकिलिडायारचरित्ते बहुस्सुए बज्झागमे जहन्नेणं आयारपकप्पधरे कप्पर आयरिउवज्झायत्ताए उद्दित्तिए | ३ | सच्चेपणं से तिवासपरियाए समणे निग्गंधे नो आयारकुसले जाव संकिलिठ्ठायारचरित्ते अप्पसुए अप्पागमे नो कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दित्तिए |४| एवं पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले जाव असंकिलिठ्ठायारचरिते बहुस्सुये बज्झागमे जहनेणं दसाकप्पववहारधरे कप्प आयरियउवज्झायत्ताए पवत्ति० उद्दिसित्तए । ५। सच्चेव णं से पञ्चवासपरियाए समणे निग्गांथे नो आयारकुसले जाव अप्पसुए अप्पागमे नो कप्पड़ आयरियउवज्झायत्ताए पव० उद्दिसित्तए । ६ । अठ्ठवासपरियाए समणे निग्गन्थे कप्पड़ आयारकुसले० जहन्त्रेणं ठाणसमवायधरे कप्पड़ से आयरियत्ताए उवज्झायत्ताए पवत्तित्ता रत्ताए गणित्ताए गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसिंत्तए । ७ सच्चेव णं से अठ्ठावासपरियाए समणे निग्गन्थे नो आयारकुसले० नो कप्पइ आयरियत्ताए जाव गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए '१८२ १८ | निरूद्धपरियाए समणे निग्गन्थे कप्पर तद्दिवसं आयरियउवज्झायत्तए उद्दिसित्तए, से किमाहु भंते !?, अत्थि णं णं तारुवाणि कुलाई कडाणि पत्तियाणि थेजाणि वेसासियाणि संमयाणि सम्मुइकराणि अणुमयाणि बहुमयाणि भवन्ति, तेहिं कडेहिं तेहिं पत्तिएहिं तेहिं थेज्जेहिं तेहिं सासिएहिं तेहिं संमएहिं तेहिं सम्मुइकरेहिं जं से निरूद्धपरियाए समणे निग्गन्थे कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए तद्दिवसं |९| निरूद्धतिवासपरियाए समणे निग्गन्थे कप्पइ आयारियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए समुच्छेयकप्पंसि, तस्स णं आयारपकप्पस्स देसे अवट्ठिए अहिज्जिए भवइ सेसे 'अहिज्जिस्सामि' त्ति अहिज्जेज्जा, एवं से कप्पड़ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए, से य 'अहिज्जिस्सामि' त्ति नो अहिज्जेज्जा एवं से नो कप्पर आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए ‘२१६’।१०। निग्गन्थस्स णं नवडहरतरूणस्स आयरियउवज्झाए वीसुंभेज्जा, नो से कप्पइ अणायरियउवज्झायस्स होत्तए, कप्पर से पुव्विं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं, से किमाहु भंते !?, दुसंगहिए समणे निग्गंथे, तं०-आयरिएणं उवज्झाएणं य । ११ । निग्गन्धीए णं नवडहरतरूणियाए आयरियउवज्झाए पवत्तिणीय विसुंभेज्जा, नो से कप्पइ अणायरियउवज्झाइयाए अपवत्तिणीयाए होत्तए, कप्पड़ से पुव्विं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं० तओ पच्छा पवत्तिणि०, से किमाहु भंते !?, तिसंगहिया समणी निग्गन्थी, तं०-आयरिएणं उवज्झाएणं पवत्तिणीए य '२३५ | १२ | भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा तिण्टि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा, तीहिं संवच्छरेहिं विइक्कन्हं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्टियंसि ठियस्स उवसन्तस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेयइत्तं वा उद्दिसित्तए वा दारेत्तए वा '२५१'।१३। गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दित्तिए वा धारेत्तए वा । १४ । गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा तिण्णि संवच्छराणि० गणावच्छेइयत्तं० धारेत्तए वा । १५ । एवं आयरिए उवज्झाए० (२४३) वि दो आलावगा '२५६।१६-१७। भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओहायइ तिण्णि संवच्छराणि० धारेत्तए वा । १८ । एवं गणावच्छेययत्तं अनिक्खिवित्ता ओहाएज्जा जावज्जीवाए, निक्खिवित्ता तिण्णि संवच्छराई० ।१९-२०। एवं आयरिए उवज्झाए वि '२७५ १२१-२२ भिक्खू य बहुस्सुए बज्झागमे बहुसो बहुआगाढानागढेसु कारणेसु माइमुसावाई असुई पावजीवी जावज्जीवाए तस्स तपप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेययत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ।२३। एवं गणावच्छेइएवि० धारेत्तए वा । २४। आयरियउवज्झाए वि | २५ | बहवे भिक्खुणो बहुस्सुया बज्झागमा बहुसो० जीवाए तेसिं तप्पत्तियं न कप्पइ जाव उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा । २६ । एवं गणावच्छेइयावि, धारेत्तए वा । २७। एवं आयरियउवज्झायावि, धारेत्तए वा । २८ । बहवे भिक्खुणो बहवे गणावच्छेइया बहवे आयरियउवज्झाया बहुस्सुया बज्झागमा बहुसो० आयरियत्तं वा उवज्झायत्तं वा पवत्तित्तं वा थेरत्तं वा गणधरत्तं वा गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा‘३६९’।२९★★★ ॥ तइओ उद्देसओ ३॥ ★★★ नो कप्पइ आयरियउवज्झायस्स एगाणियस्स हेमन्तगिम्हासु चरित्तए । १ । कप्पर आयरियउवज्झायस्स श्री आगमगुणमंजूषा - १४५४ 2298 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Gio555555555555555 (३७) ववहार छेयसुन (४) 3.४ [१] $$$$%%%%%%% %% अप्पबीयस्स हेमन्तगिम्हासु चरित्तए।रानो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पबीयस्स हेमन्तगिम्हासु चरित्तए।३। कप्पइगणावच्छेइस्स अप्पतइयस्स हेमन्तगिम्हासु चरित्तए ।४। नो कप्पइ आयरियउवज्झायस्स अप्पबिइयस्स वासासासं वत्थए ।५। कप्पइ आयरियउवज्झायस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए ।६। नो कप्पइ गणावच्छेझ्यस्स अप्पतइय्स वासावासं वत्थए।७। कप्पड़ गणावच्छेइयस्स अप्पचउत्थस्स वासावासं वत्थए '६५१८1 से गामंसि वा नगरंसि वा जाव संनिवेसंसि वा बहूणं आयरियउवज्झायाणं अप्पबिइयाणं बहूणं गणावच्छेइयाणं अप्पतझ्याणं कप्पइ हेमन्तगिम्हासु चरित्तए अन्नमन्नं निस्साए।९। से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा बहूर्ण आयरिय उवज्जायाणं अय्यतइयाणं बहूणं गणावच्छेइयाणं अप्पचउत्थाणं कप्पइ वासावासं चरित्तए अन्नमन्नं निस्साए '१६२।१०। गामाणुगामं दूइज्जमाणे भिक्खू जं पुरओ कटु विहरेज्जा से आहच्च वीसुम्भेज्जा अत्थि या इत्थ अन्ने केई उवसंपज्जणारिहे (कप्पइ) से उवसंपज्जियव्वे सिया, नत्थि याइत्थ अन्ने केइ ॥ उवसंपज्जणारिहे अप्पणो कप्पए असमत्ते कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं जण्णं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं तण्णं दिसं उवलित्तए, नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से कारणपत्तियं वत्थए, तंसिंचणं कारणंसि निट्ठियंसि परोवइज्जा-वसाहि अज्जो ! एगरायं वा दुरायं वा, एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो कप्पइ एगरायाओ वा दुरायाओ वा पर वत्थए, जे तत्थ एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वसइ से संतरा छेए वा परिहारे वा।१११ वासावासं पज्जोसविए भिक्खू० छेए वा परिहारे वा '२६२।१२। आयरियउवज्झाए गिलायमाणे अन्नयरं वएज्जा-ममंसिणं कालगयंसि समाणंसि अयं समुक्कसियव्वे, सेय समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे, से य नो समुक्कसणारिहे नो समुक्कसियव्वे, अत्थि या इत्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से समुक्कसियव्वे, नत्थि या इत्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से चेव. समुक्कसियव्वे, संसिं च णं समुक्किठ्ठसि परो वएज्जा- 'दुस्समुक्किट्ठ ते अजो!, निक्खिवाहि, तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा, जे तं साहम्मिया अहाकप्पेणं ना अब्भुढेति सव्वेसिंतेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा २९०११३ आयरियउवज्झाए ओहायमाणे० ओहावियंसि० अयं समुक्कसियव्वे जाव सव्वेसिंतेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा '३०३।१४। आयरियउवज्झाए सरमाणे परं चउरायपंचरायाओ कप्पागं भिक्खु नो उवट्ठावेइ, कप्पाइ अत्थि याई से केइ माणणिज्जे कप्पाए, नत्थि याई से केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थि याई से केइ माणणिज्जे कप्पाए से संतरा छेए वा परिहारे वा ।१५। आयरियउवज्झाए असरमाणे परं चउरायाओ वा पंचरायाओ कप्पागं० छेळ सर परिहारे वा ।१६। आयरिवउवज्झए सरमाणे वा असरमाणे वा परं दसरायकप्पाओ कप्पागं भिक्खुंनो उवट्ठावेइ, कप्पाए अत्थियाइं से केइछेए वा परिहारे वा, नत्थियाइं से केइ माणणिज्जे कप्पए संवच्छरं तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा० ३३५।१७। भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म अन्न गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, तं चे केई साहम्मिया पासित्ता वएजा ‘कं ज्जो ! उवसंपज्जित्ताणंविहरसि ?, जे तत्थ सव्वराइणिए तं वएज्जा, अहं भंते ! कस्स कप्पाए ?, जे तत्थ बहुसुए तं वएज्जा, जं वा से भगवं वक्खइ तस्स आणाउववायवयणनिद्देसे चिठ्ठिस्सामि '३४६।१८। बहवे साहम्मिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिचारियं चरित्तए, नो ण्हं कप्पइ थेरे अणापुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चरित्तए, कप्पइण्ह थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चरित्तए, थेरा य से वियरेज्जा एवण्हं कप्पइ एगतओ अभिनिचारियं चरित्तए, थेरायण्हं वियरेज्जा एवं ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिचारयं चरित्तए, जे तत्थ थेरेहिं अविइण्णे एगयओ अभिनिचारियं चरंति से संतरा छेए वा परिहारे वा।१९। चरियापविद्वे भिक्खू जाव चउरायपञ्चरायाओ थेरे पासेज्जा सच्चेव आलोयणा सच्चेव पडिक्कमणा सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुन्नवणा चिट्ठइ, अहालन्दमवि ओग्गहे।२०। चरियापविढे ' भिक्खू परं चउरायपञ्चरायाओ थेणे पासेज्जा पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणे छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा, भिक्खुभावस्स अठ्ठाए दोच्चंपिओग्गहे अणुन्नवेयव्वे सिया, कप्पति से एवं वदित्तए-अणुजाणह भंते ! मिओग्गहं अहालन्दं धुवं नितियं निच्छइयं जं वेउट्टियं, तओ पच्छा कायसंफासं २१। चरियानियट्टे भिक्खु) कायसंफासं '४४७' ।२२-२३। दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, तं०-सेहे य राइणिए य, तत्थ सेहतराए पलिच्छिन्ने रायरिण अपलिच्छिन्ने, तत्थ सेहतराएणं राइणीए उवसंपजियव्वे, भिक्खोववायं च दलयइ कप्पागं ।२४। दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, तं०-सेहे य राइणिए य, तत्थ राइणिए पलिच्छिन्ने सेहतराए . . ... . . . .. ..-.-ATTHAL 2०५५ LELES E A5555555555555555SOORK PanEducation International 2010-03 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TAG055 555555555 (३७) ववहार छेयसुत्तं (४) उ. ४,५ [६] 555555555555550xom OR95555555555555555555555555555555555555555555555OLOR अपलिच्छिन्ने, इच्छा राइणिए सेहतरागं उवसंपज्जेजा इच्छा नो उवसंपज्जेज्जा, इच्छा भिक्खोववायं दलयइ कप्पागं, इच्छा नो दलयइ कप्पागं '४६०।२५। दो भिक्खुणो एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अन्नमन्नस्स उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पइ ण्हं आहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ।२६। एवं दो गणावच्छेइया ।२७। दो आयरियउवज्झाया।२८। बहवे भिक्खुणो० विहरित्तए।२९। बहवे गणावच्छेइया ।३०। एवं बहवे आयरियउवज्झाया।३१। बवे भिक्खुणो बहवे गणावच्छेइया बहवे आयरियउवज्झाया नो ण्ह० कप्पइ विहरित्तए '५७४ | ३२|| चउत्थो उद्देसओ ४|| नो कप्पइ पवत्तिणीए अप्पबिझ्याए हेमन्तगिम्हासु चारए।११ कप्पइ पवत्तिणीए अप्पतइयाए हेमन्तगिम्हासु चारए।रानो कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पतइयाए हेमन्तगिम्हासु चारए।३। कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पचउत्थीए हेमन्तगिम्हासुचारए।४। नो कप्पइ पवत्तिणीए अप्पतइयाए वासावासं वत्थए।५। कप्पइ पवत्तिणीए अप्पचउत्थीए वासावासं वत्थए।६।नो कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पचत्थीए वासावासं वत्थए।७। कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पपंचमीए वासावासं वत्थए ।८। से गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा बहूणं पवत्तिणीणं प्पतइयाणं बहूणं गणावच्छेइणीणं अप्पचउत्थीणं कप्पइ हेमन्तगिम्हासु चारए अन्नमन्नं निसाए।९। से गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा बहूणं पवत्तिणीणं अप्पचउत्थीणं बहूणं गणावच्छेइणीणं अप्पपञ्चमीणं कप्पइ वासावासं वत्थए अन्नमन्नं निसाए।१०। गामाणुगाम दुइज्जमाणी निग्गन्थी यजं पुरओ काउं विहरेज्जा सा य आहच्च वीसुंभेज्जा अत्थि या इत्थ काइ अन्ना उवसंपज्जणारिहा तीसेय अप्पणो कप्पाए असमत्ता एवं से कप्पइ एगराइयाए पडिमाए जण्णं जण्णं दिसं अन्नाओ साहम्मिणीओ विहरंति तण्णं तण्णं दिसं० छेए वा परिहारे वा।११। वासावासं पज्जोसविया निग्गन्थी पुरओ काउं विहरेज्जा सा य आहच्च वीसुंभेज्जा अत्थि या इत्थ काइ अन्ना उवसंपज्जणारिहा सा उवसंपज्जियव्वा जाव छेए परिहारे वा ।१२। पवत्तिणी य गिलायमाणी अन्नयरं वएज्जा 'मए णं अज्जो ! कालगयाए समाणीए है इयं समुक्कसियव्वा' सा य समुक्कसणारिहा सा समुक्कसियव्वा सिया, साय नोसमुक्कसणारिहा नो समुक्कसियव्वा सिया, अत्थि या इत्थ काइ अण्णा समुक्कसणारिहा सा समुक्कसियव्वा, नत्थि या इत्थ काई अण्णा समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा, तंसिं च णं समुक्किट्ठसि परा वएज्जा-दुस्समुक्किट्ठ ते अज्जो 'निक्खिवाहि, तीसे णिक्खेवमाणीए णत्थि केइ छेए व परिहारे वा, तंजाओ साहम्मिणीओ अहाकप्पेणं नो उवट्ठायंति तासिं सव्वासिंतप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा ।१३। पवत्तिणी य ओहायमाणी एगयरं वएज्जा-ममंसि णं अज्जो ! ओहाइयंसि एसा समुक्कसियव्वा, समुक्कसणारिहा सा समक्कसियव्वा सिया, सा य नो० छेए वा परिहारे वाम ९।१४। निग्गन्थस्स नवडहरतरूणगस्स आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिन्भटेसिया, से य पुच्छियव्वे- 'केण ते कारणेणं अज्जो! आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिन्भटे?, किं आबाहेणं उदाहु पमाएणं ?, से य वएज्जा-'नो आबाहेणं, पमाएणं', जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा, सेय वएज्जा- 'आबाहेणं, नो पमाएणं', से य 'संठवेस्सामीति' संठवेज्जा, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा, से य संठवेस्सामीति नो संठवेज्जा एवं से नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ।१५. निग्गन्थीए णं नवडहरतरूणियाए आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भटे सिया, सा य पुञ्छियव्वा- 'केण ते कारणेणं अज्जो ! आयारपकप्पे नाम अज्झयणे०', किं आबाहेणं पमाएणं ?, सा य वएज्जा- 'नो आबाहेणं, पमाएणं', जावज्जीवाए तीसे तप्पत्तियं नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्चेइणियत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा, से य वएज्जा- 'आबाहेणं, नोपमाएणं', साय संठवेस्सामीति संठवेज्जा एवं से कप्पइ पवत्तिणीत्तं वा गणावच्छेइणियत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा, साय संठवेस्सामीति नो संठवेज्जा एवं से नो कप्पइ पवत्तिणीत्तं वा गणावच्छेइणियत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ।१६। थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्टे सिया, कप्पइ तेसिं संठवेन्ताण वा असंठवेन्ताण वा आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ।१७। थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भठे सिया, कप्पइ तेसिं संनिसण्णाण वा तुयट्टाण वा उत्ताणयाण वापासिल्लयाण वा आयारपकप्पे नामं अज्झयणे दोच्चंपितच्वंपिपडिच्छित्तए वा पडिसारित्तएवा'४४।१८। जे निग्गन्थाय निग्गन्थीओय संभोइया सिया, नोण्हं कप्पइ तासिं अन्नमन्नस्स अंतिए आलोएत्तए, अत्थि या इत्थ केइ आलोयणारिहे --or-Dangeromentice- 050555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १४५६15555555555555555555555FOTOR C明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听明明明明明明明明乐乐乐听听听听听听听听听听听C On Education International 2010_03 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ववहार छेयसुत्तं (४) उ. ५,६ कप्पड़ से तेसिं अंतिए आलोएत्तए, नत्थि या इत्थ केइ आलोयणारिहे एवं पहं कप्पइ अन्नमन्नस्स अंतिए आलोएत्तए '७५ | १९| जे निग्गन्था य निग्न्थीओ संभोइया सिया नो तेसिं कप्पइ अन्नमन्नस्संतिए वेयावडियं करेत्तए, अत्थि या इत्थ केइ वेयावच्चकरे कप्पइ ण्हं तेणं वेयावच्चं करावेत्तए, नत्थि याइ हं इत्थ केइ वेयावच्चकरे एवं ण्हं कप्पइ अन्नमन्नेणं वेयावच्चं करावेत्तए '९० | २० | निग्गन्थं च णं राओ वा वियाले वा दीहपट्टे लूसेज्जा, इत्थी वा पुरिसस्स आमज्जेज्जा पुरिसो वा इत्थीए आमज्जेज्जा, एवं से कप्पर, एवं से चिठ्ठइ, परिहारं च से न पाउणइ, एस कप्पे थेरकप्पियाणं, एवं से नो कप्पइ, एवं से नो चिट्ठइ, परिहारं च पाउणइ, एस कप्पे ज़िणकप्पियाणंति बेमि '१४३ । २१★★ || पंचमो उद्देसो ५ ॥ ★★ भिक्खू य इच्छेज्जा नायविहिं एत्तए, नो से कप्पर थेरे अणापुच्छित्ता नायविहिं एत्तए, कप्पर से थेरे आपुच्छित्ता नायविहिं एत्तए, थेरा य से वियरेज्जा एवं से कप्पइ नायविहिं एत्तए थेरा य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पर नायविहिं एत्तए, जं तत्थ थेरेहिं अविइण्णे नायविहिं एइ से सन्तरा छेए वा परिहारे वा, नो से कप्पर अप्पसुयस्स अप्पागमस्स एगाणियस्स नायविहिं एत्तए, कप्पर से जे जत्थ बहुस्सुए बज्झागमे तेण सद्धिं नायविहिं एत्तए, तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउते भिलिंगसूवे कप्पर से चाउलोदणे पडिग्गाहेत्तए नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिग्गाहेत्तर, तत्थ पु० पु० भिलिंगसुवे पच्छा० चाउ० कप्पर से मिलिं० पडि० नो से कप्पइ चाउ० पडि० तत्थ से पुव्वागमणेणं दोवि पुव्वाउत्ताइं कप्पइ से दोवि पहिग्गाहेत्तळ, तत्थ से पुव्वा० दोवि पच्छा० नो से क० दोवि पडि० जे से तत्थ पुव्वा० पुव्वाउत्ते से कप्पइ पडि० जे से तत्थ पुव्वा० पच्छा० नो से कप्प पडग्गाहित्तए '७२' |१| आयरियउवज्झायस्स गणंसि पंच अइसेसा पं० तं० आयरियउवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए निगिज्झिय २ पप्फोडेमाणे वा मज्जेमाणे वा नाइक्कमइ, आयरियउवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चारं वा पासवणं वा विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नाइक्कमइ, आयरियउवज्झाए पभू इच्छा वेयावडियं करेज्जा इच्छा नो करेज्जा, आयरियउवज्झाए अंतो उवस्सयस्स (उवरए) एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नाइक्कमइ, आयरियउवज्झाए बाहिं उवस्सस्स एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नाइक्कमइ |२| गणावच्छेइयस्स णं गणंसि दो अइसेसा पं तं०- पणावच्छेइए अंतो उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नाइक्कमइ, गणावच्छेइए बाहिं उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नो अइक्कमइ ' २६१ | ३| से गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए एनिक्खमणपवेसाए नो कप्पइ बहुणं अगडसुयाणं एगयओ वत्थए, अतिथ याइ ण्हं केइ आयरपकप्पधरे नत्थि याइ ण्हं केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थि याइ पहं केइ आरारपकप्पधरे सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा |४| से गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमणपवेसणाए नो कप्पर बहूणं अडसुयाणं एगयओ वत्थए, अत्थि याइ ण्हं केइ आयारपकप्पधरे जे तप्पत्तियं रयणि संवसइ नत्थि या इत्थं केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थि या इत्थ hs आयारपकप्पधरे जे तप्पत्तियं रयणि संवसइ सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा '२९८ | ५ | से गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमणपवेसणाए नो कप्पइ बहुसुयस्स बज्झागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए, किमंग पुण अप्पसुयस्स अप्पागमस्स भिक्खु | ६| से गामंसि वा जाव संणिवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए अभिनिक्खमणपवेसाए कप्पइ बहुस्सुयस्स बज्झागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए दुहओ कालं भिक्खुभावं डिजागरमाणस्स '३५७ |७| जत्थ एए बहवे इत्थीओ अ पुरिसा अ पण्हायन्ति तत्थ से समणे निग्गंथे अन्नयरंसि अचित्तंसि सोयंसि सुक्कपोग्गले निग्धाएमाणे हत्थकम्मपडिसेवणपत्ते आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं०, निग्घाएमाणे मेहुणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठ्ठाणं अ '३६७२।८। नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंधीण वानिग्गंथिं अणगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिठ्ठायारचरितं तस्स ठाणस्स अणालोयावेत्ता अडिक्कम वेत्ता अनिन्दावेत्ता अगरहावेत्ता अविउट्टावेत्ता अविसोहावेत्ता अकरणाए अणब्भुट्ठावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं अपडिवज्जावेत्ता उवट्ठावेत्तए वा संञ्चित्त वा संवत्तिए वा तांसिं इत्तरियं दिस वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा । ९। कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं 1 श्री आगमगुणमंजूषा १४५७ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KOR95555555555555 (३७) बवहार छेयसुत्तं (8) उ. ६,७ [८] 555555555555555OXOY खुयायारं० तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता निन्दावेत्ता गरहावेत्ता विउट्टावेत्ता विसोहावेत्ता अकरणाए अब्भुट्ठावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जावेत्ताउवट्ठावेत्तए वा धारेत्तए वा '३८८।१०। नो कप्पइ० निग्गंथं खुयायारं० अणालोयावेत्ता० उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ।११। कप्पइ० आलोयावेत्ता० उद्दिस्सित्तए वा धारित्तए वा ।१२ ।। छठ्ठो उद्देसओ ६॥ *** जे निग्गन्था य निग्गन्थीओ य संभोइया सिया, नो कप्पइ निग्गन्थीणं निग्गन्थे अणापुच्छित्ता निग्गन्थिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिठ्ठायारचरितं तस्स ठाणस्स अणालोयावित्ता० पायच्छित्तं० अपडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुञ्जित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसंवा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ।१। जे निग्गन्था य निग्गन्थीओ य संभोइया सिया, कप्पइ निग्गन्थीणं निग्गन्थे आपुच्छित्ता निग्गन्थिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिठ्ठायारचरितं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता जाव उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारित्तए वा ।। जे निग्गन्था य निग्गन्थीओय संभोइया सिया कप्पइ निग्गन्थाणं निग्गन्थीओय आपुच्छित्ता निग्गन्थी अण्णगणाओ आगयं खुयायारंजाव तस्स ठाणस्स आलोयवित्ता पडिक्कमावेत्ता जाव उवठ्ठावित्तए वा संभुञ्जित्तए वा संव० तीसे इत्तरियं० धारेत्तए वा, तं च निग्गन्थीओ इच्छेज्जा सयमेव नियंठाणं जाव उवठ्ठावेत्तए वा संभुञ्जित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसंवा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा '४४।३१ जे निग्गन्था य निग्गन्थीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पच्चक्खं पडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, जत्थेव ते अन्नमन्नं पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा 'अहं णं अज्जो ! तुमाए सद्धिं इमम्मिय २ कारणम्मि पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोगं विसंभोगं करेमि', सेय पडितप्पेज्जा, एवं से नो कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, से य नोपडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पच्चक्कं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोंगं करेत्तए '८६।४। जाओ निग्गन्थीओ वा निग्गन्ता वा संभोइया सिया नो ण्हं कप्पइ निग्गन्थिं पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइय विसंभोगं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, जत्थेव ताओ अप्पणो आयरियउवज्झाए पासेज्जा तत्व एवं वएज्जा 'अहं णं भंते ! अमुगीए अज्जाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोक्खं पाडिएक्कं संभोगं विसंभोगं करेमि' सा य से पडितप्पेज्ना एवं से नो कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, सा य से नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए '९४१५/नो कप्पइ निग्गन्थाणं निग्गन्थिं अप्पणो अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुण्डावेत्तए वा सिक्खावित्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसंवा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।६। कप्पइ निग्गन्थाणं निग्गन्थिं अन्नेसिं अट्ठाए पव्वावेत्तए वा० धारेत्तए वा '११८७ नो कप्पइ निग्गन्थीणं निग्गन्थिं अप्पणो अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा जाव धारित्तए वा।८। कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथिं अट्ठाए पव्वावेत्तए वा जाव धारित्तए वा।९। नो कप्पइ निग्गंथीणं विइकिठ्ठियं दिसंवा अणुदिसंवा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।१०। कप्पइ निग्गंथाणं वि० धा० १४४|११शनो कप्पइ निग्गंथाणं विइकिट्ठाई पाहुडाई विओसवेत्तए।१२। कप्पइ निग्गंथीणं विइकिट्ठाई विओसवेत्तए १७९११३ नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा विइकिट्ठयं कालं सज्झायं उद्दिसित्तए वा करेत्तए वा ।१४। कप्पइ निग्गंथीणं विइकिट्ठए काले सज्झायं करेत्तए निग्गंथनिस्साए '२६४।१५/नो कप्पइ निग्गंथाण वा अप्पणो असज्झाइए सज्झायं करेत्तए।१६। कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सज्झाइए सज्झायं करेत्तए ।१७ नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अप्पणो असज्झाइए सज्झायं करेत्तए, कप्पइ ण्हं अन्नमन्नस्स वायणं दलइत्तए '४०३।१८। तिवासपरियाए समणे निग्गंथे तीसवासपरियायाए समणीए निग्गंथीए कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।१९। पञ्चवासपरियाए समणे निग्थे सट्ठिवासपरियायाए समणीए निग्गंथीए कप्पइ आयरियत्ताए उद्दिसित्तए '४१६।२०। गामाणुगाम दुइज्जमाणे भिक्खू अ आहच्च वीसुम्भेज्जा, तं च सरीरगं केइ साहम्मिया पासेज्जा, कप्पइ से तं सरीरगं मा सागारियमित्तिकटु तं सरीरगं एगते अच्चित्ते बहुफासुए थंडिले पडि० पम० परिठ्ठवेत्तए, अत्थि वा इत्थ केइ साहम्मियसंतिए उवगरणजाए परिहरणारिहे कप्पडणं sovo #### ## 55555 श्री आगमगुणमंजूषा - १४५८f t 555 5 SORR Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..... (३७) ववहार छेयसुत्तं (४) उ. ७,८ [8] ५ सागरकडं गाय दो चंपि ओग्गहं अणुन्नवेत्ता परिहारं परिहरेत्तए '४७२ | २१ | सागारिए उवस्सयं वक्कएणं पउञ्जज्जा, से अवक्कइयं वएज्जा 'इमम्हि य इमम्हि य ओवासे समणा निग्गन्था परिवसंति?, से सागारिए परिहारिए, से य नो वएज्जा, वक्कइए वएज्जा-इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गन्था परिवसन्तु, से सागारिए परिहारिए, दोवि ते वएज्जा अयंसि २ ओवासे समणा निग्गन्था परिवसन्तु, दोवि ते सागारिया परिहारिया | २२| सागारिए उवस्सयं विक्किणेज्जा, से य asia - इमहिय ओवासे समणा निग्गन्था परिवसन्ति, से सागारिए पारिहारिए, से य नो एवं वएज्जा, कइए वएज्जा अयंसि २ ओवासे समणा निग्गन्धा परिवसन्तु, से सागारिए पारिहारिए, दोवि ते वएज्जा- अयंसि २ ओवासे समणा निग्गन्था परिवसन्तु, दोवि सागारिया परिहारिया | २३ | विहवधूया नायकुलवासिणी सावियावि ओग्गहं अणुन्नवेयव्वा सिया किमङ्ग पुण तप्पिया वा भाया वा पुत्ते वा ?, से य दोवि ओग्गहं ओगेण्हियव्वा | २४| पहिएवि ओग्गहं अणुन्नवेयब्वे '५१७।२५। से रज्ज (राय) परियट्टेसु संघडेसु अव्वोगडेसु अव्वोच्छिन्नेसु अपरपरिग्गहिएसु भिक्खुभावस्स अट्ठाए सच्चवे ओग्गहस्स पुब्वाणुन्नवणा चिट्ठइ अहालन्दमविओग्ग हे | २६ | से य रज्जपरियट्ठेसु असंथडेसु पोगडेसु पोच्छिनैसु परपरिग्गहिएसु भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्वंपि ओग्गहे अणुन्नवेयव्वे सिया '५४५१२७ ।। सत्तमो उद्देसओ ७॥ ★★★ गाहा उदु पज्जोसविए, ताए गाहाए ताए पएसाए ताए उवासन्तराए जमिणं सेज्जासंथारगं लभेज्जा तमिणं ममेव सिया, थेरा य से अणुजाणेज्जा तस्सेव सिया, थेरा य से नो अणुजाणेज्जा एवं से कप्पर आहाराइणियाए सेज्जासंथारगं पडिग्गाहेत्तए । १ । से य अहालहुसगं सेज्जासंथारगं गवेसेज्जा, जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिज्झिय जाव एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा अद्धाणं परिवहित्तए, एस मे हेमन्तगिम्हासु भविस्सइ। २। से अहालहुसगं सेज्जासंघारगं गवेसेज्जा, जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिज्झिय जाव एगाहं वा दुयाह वा तियाहं वा अद्धाणं परिवहित्तए एस मे वासावासासु भविस्सइ (२४४)।३। से अहालहुसगं सेज्जा० जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिज्झिय जाव एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा चउयाहं वा पंचयाहं वा दूरमवि अद्धाणं परिवहित्त, एस मे वुड्ढावासासु भविस्सइ '९२ |४| येराणं थेरभूमिपत्ताणं कप्पइ दंडए वा भंडए वा छत्तए वा मत्तए वा लट्ठिया वा भिसिं वा चेलं वा चेलचिलिमिलिया वा चम्मे वा चम्मपलिच्छेयणए वा अविरहिए ओवासे ठवेत्ता गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा पविसित्तए वा निक्खमित्तए वा, कप्पइ से संनियट्टचारिस्स दोच्चंपि ओग्गह अणुन्नवेत्ता परिहरित्तए '९२३ | ५ | नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वापाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं दोच्चपि ओग्गहं वेत्ता बहियानीहरित्तए | ६ | कप्पइ० अणुन्नवेत्ता० । ७ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्धीण वा पडिहारियं वा सागारियसंतियं वा संज्जासंथारगं पच्चप्पिणित्ता दोच्चंपि तमेव ओग्गहं अणणुन्नवेत्ता अहिद्वित्तए । ८ । कप्पइ० अणुन्नवेत्ता० | ९| नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा पुव्वामेव ओग्गहं ओगिण्हित्ता तओ पच्चा अणुन्नवेत्तए |१०| कप्पइ निग्गन्थाण वा निरगन्थीण वा पुव्वामेव ओग्गहं अणुन्नवेत्ता तओ पच्छा ओगिण्हित्तए, अह पुण एवं जाणेज्जा - इह खलु निग्न्याण वा निग्गन्थीण वा नो सुलभे पाडिहारिए सेज्जासंथारएत्तिकट्टु एवं ण्ह कप्पइ पुव्वामेव ओग्गहं ओगिण्हित्ता तओ पच्छा अणुन्नवेत्तए, मा वहउ अज्जो 'विइयं, अणुलो अणुलोमेयव्वे सिया '१५३ | ११ | निग्गन्थस्स णं गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए अणुपविट्ठस्स अहालहुसए उवगरणजाए परिभट्ठे सिया तं च केई साहम्मिया पासेज्जा कप्पइ ण्हं से सागारकडं गहाय जत्थेव ते अन्नमन्नं पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा इमे ते अज्जो ! किं परिन्नाए ?, से य वएज्ज-परिन्नाए, तस्सेव पडिणिज्जाएयवे सिया से य वएज्जा-नो परिन्नाए, तं नो अप्पणा परिभुञ्जेज्जा, नो अन्नेसिं दावए, एगंते बहुफासुए पएसे थण्डिले पडि० पम० परिट्ठवेयव्वे सिया | १२ | निग्गन्धस्स बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा निक्खंतस्स अहालहुसए० परिट्ठवेयव्वे सिया । १३। निग्गन्थस्स ण गामाणुगामं दुइज्नमाणस्स अन्नयरे उवगरणचाए परिभट्ठे सिया तं च केई साहम्मिया पासेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय दूरमवि अद्धाणं परिवहित्तए, जत्थेव अन्नमन्नं पासेज्जा तत्थेव० परिट्ठवेयव्वे सिया '२१० |१४| कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा अइरेगपडिग्गहं अन्नमन्नस्स अट्ठाए दूरमवि अद्धाणं परिवहित्तए वा धारेत्तए वा परिहरित्तए 'सो वा णं धारेस्सइ अहं वाणं धारेस्सामि अन्नो वा णं धारेस्सइ' ना से कप्पइ तं अणापुच्छिय अणामन्तिय अन्नमन्नेसिं दाउं वा अणुप्पयाउं वा, कप्पड़ से तं आपुच्छिय आमन्तिय अन्नमन्नेसिं दाउं चम्मको श्री आगमगणमंजवा १४५९ FEL Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ववहार छेयसुत्तं (४) उ. ८,९ [१०] अप्पा वा '३०७ | १५ | अट्ठकुक्कुडिअण्डगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे निग्गन्थे अप्पाहारे दुवालसकुक्कडिअण्डगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे निन्थे अवड्ढोमोरिया सोलस० दुभागपत्ते चउवीसं० ओमोयरिया तिभागपत्ते सिया एगतीसं० किंचूणोमोयरिया बत्तीसं० पमाणपत्ते, एत्तो एगेणवि कवलेणं ऊण आहारं आहारेमाणे समणे निग्गन्थे नो पकामरसभोइत्ति वत्तव्वं सिया '३३० ॥१६॥ अठ्ठमो उद्देसओ ८॥ ★★★ सागारियस्स आएसे अन्तो वडा भुइ निट्ठिए निसट्ठे पाडिहारिए, तम्हा दावए ने से कप्पइ पडिगाहेत्तए । १ । सागारियस्स आएसे अंतो वगडाए भुञ्जइ निट्ठिए निसट्ठे अपाडिहारिए तम्हा दाव एवं से कप्पर पडिगाहेत्तए |२| सागारियस्स आएसे बाहिं वगडाए भुञ्ज निट्ठिए निसट्ठे पाडिहारिए तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए | ३ | सारियस्स आसे बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्टे अपाडिहारिए तम्हा दावए एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए |४| सारियस्स दासेइ वा पेसेइ वा भयएइ वा भइण्णएइ वा अंतो० पाडि० अंतो० अपाडि० बाहिं पाडि० बाहिं अपाडि० १५-८। सारियस्स नायए सिया सारियस्स एगवगडाए अंतो सागारियस्स एगपयाए सारियं चावजीवइ तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए । ९ । सारियस्स नायए सिया सारियस्स एगवगडाए अंतो सागारियस्स अभिनिपयाए सारियं चोवजीवइ तम्हा दावए, नो से कप्पइ डिगात्तए | १० | सारियस्स नायए सिया सारियस्स एगवगडाए बाहिं सागारियस्स एगपयाए सारियं चोवजीवइ तम्हा दावए नो से कप्पड़ पडिगाहेत्तए । ११ । सारियस नायए सिया सारियस्स एगवगडाए बाहिं सागारियस्स अभिनिपयाए सारियं चावजीवइ तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए | १२| सारियस्स नायए सिया सारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए अंतो सागारियस्स एगपयाए सारियं चोवजीवइ तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए । १३ । सारियस नायए सिया सारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए सागारियस्स अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ तम्हा दावए नो से कप्प पडिगाहेत्तए |१४| सारियस्स नायए सिया सारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवारा एगनिक्खमणपवेसाए बाहिं सागारियस्स एगपयाए सारियं चोवजीवइ तम्हा दावए नो से कप्पड़ पडिगाहेत्तए | १५ | सारियस्स नायए सिया सारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए बाहिं सागारियस्स अभिनिपयाए सारियं चोवजीवs तम्हा दावए नो से कप्पड़ पडिगाहेत्तए '२० | १६ | सारियस्स वक्यसाला साहारणवक्कयपउत्ता तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए |१७| सारियस्स वक्कयसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता तम्हा दावए एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए । १८ । सारियस्स गोलियवाला० बोधियसाला० दोसियसाला० सोत्तियसाला० बोडियाला० गन्धियसाला० एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए । १९-३०। सागारियस्स सोडिंयसाला० । ३१-३२ । सारियस्स ओसहीओ संथडाओ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए ।३३। सारियस्स ओसहीओ असंथडाओ, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए । ३४ । सारियस्स अम्बफला० एवं से कप्पर पडिगाहेत्तए० '७४’१३५-३६। सत्तसत्तमिया णं भिक्खुपडिमा णं एगूणपन्नाए राइदिएहिं एगेणं छन्नउएणं भिक्खासएणठ अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्मं कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए अणुपालिया भवइ |३७| अट्ठअट्ठमिया णं भिक्खुपडिमा णं चउसट्ठीए राइदिएहिं दोहि य अट्ठासीएहिं भिक्खासएहिं अहासुतं अणुपालिया भवइ । ३८ | नवनवमिया णं भिक्खुपडिमा णं एगासीएहिं राईदिएहिं चउहिं य पञ्चत्तरेहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव अणुपालिया भवइ |३९| दसदसमिया णं भिक्खुपडिमा णं एगेणं राइंदियसएणं अद्धछट्ठेहि य भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव भवइ '८५'१४० | दो पडिमाओ पं० तं० खुड्डिया चेव मोयपडिमा महल्लिया चेव मोयपडिमा, खुड्डियण्णं मोयपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पर से पढमसरयकालसमयंसि वा चरिमनिदाहकालसमयंसि वा, बहिया ठाइयव्वा गामस्स वा जाव संनिवेसस्स वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा, भोच्चा आरूभइ चोइसमेणं पारेइ अभोच्चा आरूभइ सोलसमेणं पारेइ, जाए जाए मोर दिया आगच्छइ दिया चेव आइयव्वे, राई आगच्छइ नो आइयव्वे, सपाणे मत्ते आगच्छइ नो आइयव्वे, अपाणे मत्ते आगच्छइ आइयव्वे, एवं सबीए ससिणिद्धे ससरक्खे मत्ते आगच्छइ नो आइयव्वे, अबीए असिणिद्धे असरक्खे मत्ते आगच्छइ आइयव्वे, जाए जाए मोए आइयव्वे तं अप्पं वा बहुए वा, एवं खलु सा खड्डिया मोयपडिमा अहासुत्तं जाव अणुपालिया भवइ । ४१ । महल्लियण्णं मोयपडिमं० पढमसर० जाव पव्वयविदुग्गंसि वा, भोच्चा CONNOR श्री आगमगुणमंजूषा १४६० SOYOK KORO ANS 25 25 25 4555555 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ववहार छेयसुते (४) उ. ९, १० [११] དྷངྒ*དྷནན आरूभइ सोलसमेणं पारेइ, अभोच्चा आरूभइ अट्ठारसमेणं पारेइ, जाए जाए मोए० आइयव्वे० आणाए अणुपालिया भवइ । ४२ । संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स डिग्गधारिस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविठ्ठस्स जावतियं २ अन्तो पडिग्गहंसि उच्चइत्तु दलएज्जा तावइयाओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया, तत्थ से केइ छप्पण वा दूसरण वा वालएण वा अन्तो पडिग्गहंसि उच्चित्ता दलएज्जा सव्वासि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया, तत्थ से बहवे भुञ्जमाणा सव्वे ते सयं सयं पिण्डं साहण्णिय २ अन्तो पडिग्गहंसि उच्चित्ता दलएज्जा सव्वासि णं सा एगा दत्तीति वत्तव्वं सिया ।४३। संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स पाणिपडिग्गहियस्स० जावइयं अन्तो पाणिसि पडिग्गहंसि० वत्तव्वं सिया '११५ । ४४ । तिविहे उवहडे पं० तं०- सुद्धोवहडे फालिओवहडे संसट्ठोवहडे ।४५ । तिविहे ओग्गहिए पं० तं० - जंच ओगिण्हइ जं च साहरइ जं च आसगंसि पक्खिवइ, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु-दुविहे ओग्गहिए पं० तं०-जं च ओगिण्हइ जं च आसगंसि पक्खिवइ ‘१२८’।४६ ★★★॥ नवमो उद्देसओ ९॥ ★★★ दो पडिमाओ पं० तं०- जवमज्झा य चन्दपडिमा वइरमज्झा य चन्दपडिमा, जवमज्झण्णं चन्दपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स मासं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केई उवसग्गा समुप्पज्जति तं०- दिव्वा वा माणुस्सगा वा तिरिक्खजोणिया वा अणुलोमा वा पडिलोमा वा, तत्थाणुलोमा ताव वंदेज्न वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्माणेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा, तत्थ पडिलोमा अन्नयरेणं दंडेण वा अट्टिणा वा जोत्तेण वा वेत्तेण वा कसेण वा काए आउडेज्जा वा ते सव्वे उप्पन्ने सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तिइक्खेज्जा अहियासेज्जा, जवमज्झण्णं चंदपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स सुक्कपक्खस्सं पाडिवए कप्पर एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणस्स, सव्वेहिं दुप्पयचउप्पयाइएहिं आहारकंखीहिं सत्तेहिं पडिणियत्तेहिं अन्नायउञ्छं सुद्धोवहडं, कप्पर से एगस्स भुञ्जमाणस्स पडिगाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं ने पञ्चण्हं नो गुव्विणीए नो बालवत्थाए नो दारगं पेज्नमाणीए, नो से कप्प अंतो एलुयस्स दोवि पाए साहट्टु दलमाणीए पडिगाहित्तए, नो० बाहिं एलुयस्स दोवि पाए साहड दलमाणीए पडिगाहेत्तए, अह पुण एवं जाणेजाज एवं पायं अंत किच्चा एगं पायं बाहिं किच्चा एलुयं विक्खम्भइत्ता, एयाए एसणाए एसमाणे लभेज्जा आहारेज्जा, एयाए एसणाए एसमाणे नो लब्भेज्ना णो आहारेज्जा, बिइयाए से कप्पइ दोण्णि दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए दोण्णि पाणस्स, कप्पइ जाव नो आहारेज्जा, एवं तइयाए तिण्णि जाव पन्नरसीए पन्नरस, बहुलपक्खस्स पाडिवए कप्पंति चोद्दस जाव चोद्दसीए एक्का दत्ती भोयणस्स एक्का पाणगस्स सव्वेहिं दुपयचउप्पय जाव नो आहारेज्जा, अमावासाए से य अभत्तट्ठे भवइ, एवं खलु सा जवमज्झचंदपडिमा अहासुत्तं अहाकप्पं जाव अणुपालिया भवति । १ । वइरमज्झं णं चंदपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स मासं० अहियासेज्जा, वइरमज्झं चंदपडिमं • पडिवन्नस्स अणगारस्स बहुलपक्खस्स पाडिवए कप्पइ पण्णरस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहित्तए पण्णरस पाणगस्स सव्वेहिं दुपयचउप्पय०, बीयाए से कप्पइ चोद्दस, एवं पन्नरसीए एगा दत्ती, पड़िवए से कप्पइ दो दत्तीओ बीयाए तिन्नि जाव चउद्दसीए पण्णरस पुण्णिमाए अभत्तट्ठे भवइ, एवं खलु एसा वइरमज्झचंदपडिमा अहासुतं अहाकप्पं जाव अणुपालिया भवइ '५० |२| पंचविहे ववहारे पं० तं०-आगमे सुए आणा धारणा जीए, तत्थ आगमे सिया आगमेणं ववहारे पट्ठवियव्वे नो, तत् आगमे सिया सुएणं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया, नो से तत्थ सुए जहा से तत्थ आणा सिया आणाए ववहारे पट्टवेयव्वे सिया, नो से तत्थ आणा सिया जहा से तत्थ धारणा सिया धारणाए ववहारे पट्टवेयव्वे सिया, णो से तत्थ धारणा सिया जहा से तत्थ जीए सिया जीएणं ववहारे पट्टवेयव्वे सिया, एएहिं ववहारेहिं ववहारं पवेज्जा, तंजहा- आगमेणं सुएणं आणाए धारणाए जीएणं, जहा २ आगमे सुए आणा धारणा जीए तहा २ ववहारं पट्ठविज्जा, से किमाहु भन्ते !?, आगमबलिया समणा निग्गन्था, इच्चेइयं पंचविहं ववहारं जया २ जहिं २ जहा २ तहिं २ अणिस्सिओस्सियं ववहारं ववहरमाणे समणे निग्गन्थे आणाए आराहए भवति '७१५।३। चत्तारि पुरिसज्जाया पं० तं०- अट्टकरे नाम एगे नो माणकरे माणकरे नामं एगे नो अट्टकरे एगे अट्ठकरेवि माणकरेवि एगे नो अट्ठकरे एगे नो अट्ठकरे नो माणकरे '७२९ |४| चत्तारि पुरिसज्जाया पं० तं०-गणट्ठकरे नाम एगे नो माणकरे माणकरे नामं एगे नो गणट्ठकरे एगे गणट्टकरेवि माणकरेवि एगे नो गणठ्ठकरे नो माणकरे '७३३'|५| चत्तारि पुरिसज्जाया पं० तं०- गणसंगहकरे नामं एगे नो माणकरे माणकरे नामं एगे नो गणसंगहकरे एगे गणसंगहकरेवि माणकरेवि एगे नो श्री आगमगुणमंजूषा १४६१ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RoH05555555555555555 (37) ववहार छेयसुत्तं (4) उ. 10 [1] 5555555FQUOg र गणसंगहकरे नो माणकरे '735 / 6 / चत्तारि पुरिसज्जाया पं० तं०-गणसोहकरे नाम एगे नो माणकरे माणकरे नाम एगे नो गणसोहकरे एगे गणसोहकरेवि जमाणकरेवि एगेनो गणसोहकरे नो माणकरे।७। चत्तारि पुरिसज्जाया पं० तं०-गणसोहिकरे नाम एगेनो माणकरे माणकरे नाम एगेनो गणसोहिकरे एगे गणसोहिकरेवि माणकरेविएगे नो माणकरे '739 / 8 / चत्तारि पुरिसज्जाया पं० तं०-रूवं नामेगे जहइनो धम्मं धम्मं नामेगे जहइ नो रूवं एगे रूवंपिजहइ धम्मपि जहइ एगे नो रूवं जहइ नो धम्म जहइ '743 / 9 / चत्तारि पुरिसज्जाया पं० तं०-धम्मं नामेगे जहइ नो गणसंठिइं गणसंठिई नामेगे जहइ नो धम्म एगे गणसंठइंपि जहइ धम्मपि जहइ एगेनों गणसंठिइं जहइ नो धम्मं जहइ '747 / 10 / चत्तारि पुरिसज्जाया पं० तं०- पियधम्मे नामेगे नो दढधम्मे दढधम्मे नामगे नो पियधम्मे एगे पियधम्मेवि दढधम्मेवि एगेनो पियधम्मे नो दढधम्मे 751 / 11 / चत्तारि आयरिया पं० २०-पव्वावणायरिए नामेगेनो उवट्ठावणायरिए उवट्ठावणायरिए नामेगेनो पव्वावणायरिए एगे पव्वावणायरिएवि उवट्ठावणायरिएविएगे नो पव्वावणायरिए नो उवट्ठावणायरिए, धम्मायरिए '756 / 12 / चत्तारि आयरिया पं० तं०-उद्देसणायरिए नामेगेणो वायणायरिए वायणायरिए नामेगे नो उद्देसणायरिए एगे उद्देसणायरिएवि वायणायरिएवि एगे नो उद्देसणायरिए नो वायणायरिए, धम्मायरिए 757 / 13 / चत्तारि अंतेवासी पं० २०-पव्वावणअंतेवासी णामेगे णो उवट्ठावणअंतेवासी उवट्ठावणांतेवासी णामेगे णो पव्वावणअंतेवासी एगे पव्वा० उवट्ठा० एगे नो पव्वा० नो उव०, धम्मअंतेवासी / 14 / चत्तारि अंतेवासी पं० तं०- उद्देसणन्तेवासी नामेगे नो वायणन्तेवासी वायणन्तेवासी नामेगे नो उद्देसणन्तेवासी एगे उद्देसणन्तेवासीवि ॐ वायणन्तेवासीवि एगे नो उद्दसणन्तेवासी नो वायणन्तेवासी, धम्मन्तेवासी '759 / 15 / तओ थेरभूमीओ पं० २०-जाइथेरे सुयथेरे परियायथेरे, सट्ठिवासजायए र समणे निग्गन्थे जाइथेरे ठाणसमवायधरे समणे निग्गन्थे सुयथेरे वीसवासपरियाए समणे निग्गन्थे परियायथेरे '764 / 16 / तओ सेहभूमीओ पं० तं०-सत्तराइंदिया चाउम्मासिया छम्मासिया, छम्मासिया उक्कोसिया चाउम्मासिया मज्झिमिया सत्तराइन्दिया जहन्निया '807 / 17 नो कप्पइ निग्गन्ताण वा निग्गन्थीण वा खुड्डगं वा खुड्डियं वा ऊणट्ठवासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभुञ्जित्तए वा / 18 / कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा खुड्डगं वा खुड्डियं वा साइरेगट्ठवासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभुञ्जित्तए वा '814|19| नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा अव्वञ्जणजायस्स आयारपकप्पे नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए।२०। कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा खड्डगस्स वा खुड्डियाए वा वाणजायस्स आयारपकप्पे नाम अज्झयणे उद्दिसित्तए'८१७।२१। तिवासपरियायस्ससमणस्स निग्गन्थस्स कप्पइ आयारपकप्पे नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए / 22 / चउवासपरियागस्स समणस्स निग्गन्थस्स कप्पइ सूयगडे नाम अङ्गे उद्दिसित्तए / 23 / पञ्चवासपरियायस्स समणस्स निग्गन्थस्स कप्पइ दसाकप्पववहारा णाम अज्झयणं उद्दिसित्तए / 24 / अट्ठवासपरियायस्स समणस्स निग्गन्थस्स ठाणसमवाए नामं अङ्गे उद्दिसित्तए।२५। दसवासपरिया० कप्पइ वियाहे नामं अङ्गे उद्दिसित्तए।२६। एक्कारसवासपरिया० कप्पइ खुड्डिया विमाणपविभत्ती महल्लियविमाणपविभती अमचूलिया वग्ग (ग) चूलिया वियाहचूलिया नाम अज्झयणे उद्दिसित्तए।२७। बारसवासपरिया० कप्पइ अरूणोववाए गरूलोववाए धरणोववाए वेसमणोववाए वेलंधरोववाए नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए।२८। तेरसवासपरिया० कप्पइ उट्ठाणसुए समट्ठाणसुए देवदिववाए नागपरियावणि (लि) या नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए 129/ चोद्दसवासपरिया० कप्पइ सुमिणभावणा नाम अज्झयणे उद्दिसित्तए / 30 / पन्नरसवासपरिया० कप्पइ चारणभावणा नाम अज्झयणे उद्दिसित्तए / 31 / सोलसवासपरिया० कप्पइतेयनिसगं०।३श सत्तरसवासपरिया० आसीविसभावणा नाम अज्झयणे उद्दिसित्तए।३३।अट्ठारसवासपरिया० कप्पइ दिट्ठीविसभावणा नामं अज्झयणे०१३४१ एगूणवीसइवासपरिया० कप्पइ दिट्ठिवाए नामं अङ्गे उद्दिसित्तए।३५/ वीसवासपरियाए समणे निग्गन्थे सव्वसुयाणुवाई भवइ'८३८।३६ दसविहे वेयावच्चे पं० 20- आयरियवेयावच्चे उवज्जायवेयावच्चे थेरवेयावच्चे तवस्सिवेयावच्चे सेहवेयावच्चे गिलाणवेयावच्चे साहम्मियवेयावच्चे कुलवेयावच्चे गणवेयावच्चे सङ्गवेयावच्चे, आयरियवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गन्थे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ० सङ्घवेयावच्चं करेमाणे समणे निम्गन्थे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ '857 / 37|| दसमो उद्देसो 10|| श्रीव्यवहारच्छेदसूत्रं 3 OGC%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听5C C明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听埃垢于IC國 MOR श्री आगमगुणमजूषा - 1462 // 55555555555555 #OOK