Book Title: Agam 30B Chanda Vezzayam Sattamam Painnayam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003760/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पू. आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो 30/2 चंदावेज्झय-सत्तमं पईण्णगसुत्तं मुनि दीपरत्नसागर Date: / /2012 Jain Aagam Online Series 30/1 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गंथाणक्कमो गाहा 1-3 4-21 22-36 37-53 अणुक्कम 1-3 4-21 22-36 37-53 कम विसय 1 मंगलं-दार निरुवणं / विनयगुण-दारं आयरिय-दारं | सीस-दारं | विनय-निग्गह-दारं | नाण-गण-दारं चरण-गुण-दारं | मरण-गुण-दारं | उपसंहार पिट्ठको 03- -- 03-04 04-05 05-06 06-07 07-08 08-09 09-12 12 54-71 Gms or 54-71 72-99 72-99 100-116 117-172 174-175 100-116 117-172 174-175 दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 2 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30/2 __चंदावेज्झयं पइण्णयं [1] जगमत्ययत्थयाणं विगसियवरनाण-दंसणधराणं / नाणुज्जोयगराणं लोगम्मि नमो जिनवराणं / / [7 इणमो सुणह महत्थं निस्संदं मोक्खमग्गसुत्तस्स | विगहनियत्तियचित्ता सोऊण य मा पमाइत्था / / [3] विनयं आयरियगुणे सीसगुणे विणयनिग्गहगुणे य | नाणगुणे चरणगुणे मरणगुणे एत्थ वोच्छामि || [4] जो परिभवइ मणूसो आयरियं जत्थ सिक्खए विज्जं / तस्स गहिया वि विज्जा दुःक्खेण वि अप्फला होइ / / [1] थद्धो विणयविहूणो न लभइ कित्तिं जसं च लोगम्मि | जो परिभवं करेई गुरूण गरुयाए कम्माणं / / [6] सव्वत्थ लभेज्ज नरो विस्संभं सच्चयं च कित्तिं च / जो गुरुजणोवइलै विज्जं विणएण गेण्हेज्ज || [7] अविणीयस्स पणस्सइ जइ वि न नस्सइ न नज्जइं गुणेहिं विज्जा सुसिक्खिया वि हु गुरुपरिभवबुद्धिदोसेणं / / [8] विज्जा मणुसरियव्वा न दुव्विणीयस्स होइ दायव्वा | [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 3 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिभवइ दुव्विणीओ तं विज्जं तं च आयरियं / / [9] विज्जं परिभवमाणो आयरियाणं गुणेऽपयासिंतो / रिसिघायगाण लोयं वच्चइ मिच्छत्तसंजुतो / / [10] विज्जा वि होइ विलिया गहिया पुरिसेणऽभागधेज्जेण / सुकुलकुलवालिया विव असरिसपरिसं पइं पता / / सिक्खाहि ताव विनयं किं ते विज्जाइ दुव्विणीयस्स | दुस्सिक्खिओ हु विनओ सुलभा विज्जा विणीयस्स / / [11] [12] [13] [14] [15] [16] विज्जं सिक्खह विज्जं गुणेह गहियं च मा पमाएह / गहिय-गणिया ह विज्जा परलोयसुहावहा होइ / / विनएण सिक्खियाणं विज्जाणं परिसमत्तसुत्ताणं / सक्का फलमणुभुतुं गुरुजणतुट्ठोवइट्ठाणं / / दुल्लहया आयरिया विज्जाणं दायगा समत्ताणं / ववगयचउक्कसाया दुल्लहया सिक्खगा सीसा / / पव्वइयस्स गिहिस्स व विनयं चेव कुसला पसंसति / न हु पावइ अविणीओ कित्तिं च जसं च लोगम्मि जाणंता वि य विनयं केई कम्माणुमायदोसेणं / नेच्छंति पउंजिता अभिभूया एग-दोसेहिं / / अभणंतस्स वि कस्स वि पहरइ कित्ती जसो य लोगम्मि / पुरिसस्स महिलियाए विनीयविनयस्स दंतस्स / / देंति फलं विज्जाओ पुरिसाणं भागधेज्जपरियाणं / न हु भागधेज्जपरिविज्जयस्स विज्जा फलं देति / / विज्जं परिभवमाणो आयरियाणं गुणेऽपयासिंतो / रिसिघायगाण लोयं वज्जइ मिच्छत्तसंजुत्तो / / न हु सुलहा आयरिया विज्जाणं दायगा समत्ताणं / [17] [18] [19] [20] [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 4 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] उज्जुय अपरितंता न हु सुलहा सिक्खगा सीसा | विनयस्स गुणविसेसा एए मए वण्णिया समासेणं न / आयरियाणं च गुणे एगमणा मे निसामेह / / वोच्छं आयरियगुणे अनेगगुणसयसहस्सधारीणं / ववहारदेसगाणं सुयरयणसुसत्थवाहाणं / / पुढवी विव सव्वसहं मेरु व्व अकंपिरं ठियं धम्मे / चंदं व सोमलेसं तं आयरियं पसंसंति / / अपरिस्साविं आलोयणारिहं हेउ-कारणविहन्नुं / गंभीरं दुद्धरिसं तं आयरियं पसंसति / / कालन्नू देसन्नू समयन्नू अतुरियं असंभंतं / अनुवत्तयं अमायं तं आयरियं पसंसंति / / लोइय-वेइय-सामाइएसु सत्थेसु जस्स वक्खेवो / ससमय-परसमयविऊ तं आयारियं पसंसति / / बारसहि वि अंगेहिं सामाइयमाइपुव्वनिब्बद्ध / लद्धढं गहियद्रं तं आयरियं पसंसति / / आयरियसहस्साइं लहइ य जीवो भवेहिं बहुएहिं / कम्मेसु य सिप्पेसु य अन्नेसु य धम्मचरणेसु / / जे पुण जिनोवइठे निणंथे पवयणम्मि आयरिया / संसार-मोक्खमग्गस्स देसगा तेऽत्थ आयरिया / / जह दीवा दीवसयं पइप्पए सो य दिप्पए दीवो / दीवसमा आयरिया दिप्पंति परं च दीवेति / / धन्ना आयरियाणं निच्चं आइच्च-चंदभूयाणं / संसारमहण्णवतरयाण पाए पणिवयंति / / इहलोइयं च कित्तिं लभंति आयरियभत्तिराएणं / देवगई सुविसुद्धं धम्मे य अनुत्तरं बोहिं / / देवा वि देवलोए निच्चं दिव्वोहिणा वियाणित्ता / आयारियाण सरंता आसण-सयणाणि मुच्चंति / / [28] [29] [30] [31] [32] [33] [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 5 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] देवा वि देवलोए निग्गंथं पवयणं अनुसरंता / अच्छरगणमज्झगया आयरिए वंदया एंति / / छट्ठऽट्ठम-दसम-दुवालसेहिं भत्तेहिं उववसंता वि | अकरेंता गुरुवयणं ते होंति अनंतसंसारी || एए अन्ने य बहू आयरियाणं गुणा अपरिमेज्जा | सीसाण गुणविसेसे केइ समासेण वोच्छामि / / नीयाविति विणीयं ममत्तमं गुणवियाणयं सुयणं / आयरियमइवियाणिं सीसं कुसला पसंसति / / सीयसहं उण्हसहं वायसहं खुह-पिवास-अरइसहं / पुढवी विव सव्वसहं सीसं कुसला पसंसति / / लाभेसु अलाभेसु य अविवन्नो जस्स होइ मुहकण्णो / अप्पिच्छं संतुळं सीसं कुसला पसंसंति || छव्विहविणयविहन्नू अज्जविओ सो हु वुच्चइ विणीओ | इड्ढीगारवरहियं सीसं कुसला पसंसंति / / दसविहवेयावच्चम्मि उज्जुयं उज्जयं च सज्जाए | सव्वावासगजुतं सीसं कुसला पसंसति / / आयरियवण्णवाइं गणसेविं कित्तिवद्धणं धीरं / धीधणियबद्धकच्छं सीसं कुसला पसंसति / / हंतूण सव्वमाणं सीसो होऊणं ताव सिक्खाहि / सीसस्स हॉति सीसा न होंति सीसा असीसस्स / / वयणाइं सुकड्डयाइं पणयनिसिट्ठाइं विसाहियव्वाइं / सीसेणाऽऽयरियाणं नीसेसं मग्गमाणेणं / / जाइ-कुल-रूव-जोव्वण-बल-विरिय-समत्तसत्तसंपन्नं / मिउ मद्दवाइमपिसुणमसढमथद्धं अलोभं च / / पडिपुन्नपाणि-पायं अनुलोमं निद्ध-उवचियसरीरं / गंभीर-तुंगनासं उदारदिट्ठं विसालच्छं / / जिनसासणमनुरतं गुरुजणमुहपिच्छरं च धीरं च / [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 6 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [48] [49] [50] [51] [2] [54] सद्धागुणपरिपुन्नं विकारविरयं विनयमूलं / / कालन्नू देसन्नू समयन्नू सील-रूव-विणयन्नू / लोह-भय-मोहरहियं जियनिद-परीसहं चेव / / जइ वि सुयनाणकुसलो होइ नहरो हेउ-कारणविहन्नू / अविणीयं गारवियं न तं सुयहरा पसंसंति / / सीसं सुइमनुरत्तं निच्चं विणओवयारसंपन्नं / वाएज्ज व गुणजुतं पवयणसोहाकरं धीरं / / एतो जो परिहीणो गुणेहिं गुणसयनओववेएहिं / पुतं पि न वाएज्जा किं पुण सीसं गुणविहूणं / / एसा सीसपरिक्खा कहिया निउणेत्थ सत्थउवेइट्ठा / सीसो परिक्खयव्वो पारतं मग्गमाणेणं / / सीसाणं गुणकित्ती एसा मे वण्णिया समासेणं / विनयस्स निग्गहगुणे ओहियहियया निसामेह / / विनओ मोक्खदारं विनयं मा हू कयाइ छड्ढेज्जा | अप्पसुओ वि हु पुरिसो विणएण खवेइ कम्माइं / / जो अविणीयं विणएण जिणइ सीलेण जिणइ निस्सीलं / सो जिणइ तिण्णि लोए पावमपावेण सो जिणइ / / जइ वि सुयनाणकुसलो होइ नरो हेउ-कारणविहन्नू / अविणीयं गारवियं न तं स्यहरा पसंसति / / सुबहुस्सुयं पि पुरिसं पुरिसा अप्पस्सुयं ति ठावेंति / गुणहीण विनयहीणं चरित्तजोगेणं पासत्यं / / तव-नियम-सीलकलियं उज्जुत्तं नाण-दंसण-चरिते / अप्पस्सुयं पि पुरिसं बहुस्सुयपयम्मि ठावेंति / / सम्मत्तम्मि य नाणं आयत्तं दंसणं चरित्तम्मि / खंतिबलाओ य तवो, नियमविसेसो य विणयाओ / / सव्वे य तवविसेसा नियमविसेसा य गुणविसेसा य / नत्थि हु विणओ जेसिं मोक्खफलं निरत्ययं तेसि || [55] [56] [57] [58] [59] [60] [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 7 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] पुव्विं परूविओ जिणवरेहिं विनओ अनंतनाणीहिं / सव्वासु कम्मभूमिसु निच्चं चिय मोक्खमग्गम्मि || जो विनओ तं नाणं जं नाणं सो उ वुच्चई विनओ / विणएणं लहइ नाणं नाणेण विजाणई विनयं / / सव्वो चरितसारो विणयम्मि पढिओ मणूसाणं / न ह विनयविप्पहीणं निग्गंथरिसी पसंसंति / / सुबहुस्सुओ वि जो खलु अविणीओ मंदसद्ध-संवेगो / नाराहेइ चरित्तं चरित्तभट्ठो भमइ जीवो / / थोवेण वि संतुट्ठो सुएण जो विनयकरणसंजुत्तो / पंचमहव्वयजुत्तो गुत्तो आराहओ होइ / / बहुयं पि सुयमहीयं किं काही विनयविप्पहीणस्स | अंधस्स जह पलिता दीवसयसहस्सकोडी वि / / विणयस्स गुणविसेसा एए मए वण्णिया समासेणं / नाणस्स गुणविसेसा ओहियकण्णा निसामेह / / न हु सुक्का नाउं जे नाणं जिणदेसियं महाविसयं / ते धन्ना जे पुरिसा नाणी य चरित्तमंता य / / सक्का सुएण नाउं उड्ढं च अहं च तिरियलोयं च | ससुराऽसुरं समणुयं सगरुल-भुयगं सगंधव्वं / / जाणंति बंध-मोक्खं जीवाऽजीवे य पुन्न-पावे य / आसव संवर निज्जर तो किर नाणं चरणहेउं / / नायाणं दोसाणं विवज्जणा सेवणा गुणाणं च / धम्मस्स साहणाइं दोन्नि वि किर नाणसिद्धाइं / / नाणी वि अवटुंतो गुणेसु दोसे य ते अवज्जिंतो | दोसाणं च न मुच्चइ तेसिं न वि ते गुणे लहइ / / नाणेण विणा करणं करणेण विणा न तारयं नाणं / भवसंसारसमुदं नाणी करणठिओ तरइ / / अस्संजमेण बद्धं अत्राणेण य भवेहिं बहएहिं / [68] [70] [71] [72] [73] [74] [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 8 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] कम्ममलं सुभमसुभं करणेण दढो धुणइ नाणी / / सत्येण विणा जोहो जोहेण विणा य जारिसं सत्थं / नाणेण विणा करणं करणेण विणा तहा नाणं / / नादंसणिस्स नाणं न वि अन्नाणिस्स होति करणगुणा / अगुणस्स नत्थि मोक्खो नत्थि अमुत्तस्स नेव्वाणं / / जं नाणं तं करणं जं करणं पवयणस्स सो सारो | जो पवयणस्स सारो सो परमत्थो ति नायव्वो / / परमत्थगहियसारा बंधं मोक्खं च ते वियाणंता | नाऊण बंध-मोक्खं खवेत्ति पोराणयं कम्मं / / नाणेण होड़ करणं करणं नाणेण फासियं होड / दोण्हं पि समाओगे होइ विसोही चरित्तस्स / / नाणं पगासगं सोहओ तवो संजमो य गुत्तिकरो / तिण्हं पि समाओगे मोक्खो जिनसासणे भणिओ / / किं एतो लट्ठयरं अच्छेरतरं च सुंदरतरं च | चंदमिव सव्वलोगा बहुस्सुयमुहं पलोएंति / / चंदाओ नीइ जोण्हा बहुस्सुयमुहाओ नीइ जिनवयणं / जं सोऊण मणूसा तरंति संसारकंतारं / / सूई जहा ससुत्ता न नस्सई कयवरम्मि पडिया वि | जीवो तहा ससुत्तो न नस्सइ गओ वि संसारे || सूई जहा असुत्ता नासइ सुते अदिस्समाणम्मि | जीवो तहा असुत्तो नासइ मिच्छत्तसंजुतो / / परमत्थम्मि सुदिढे अविणढेसु तव-संजमगुणेसु / लब्भइ गई विसिट्ठा सरीरसारे विणढे वि / / जह आगमेव वेज्जो जाणइ वाहिं चिगिच्छिउँ निउणो / तह आगमेण नाणी जाणइ सोहिं चरित्तस्स / / जह आगमेणं हीणो वेज्जो वाहिस्स न मुणइ तिगिच्छं / तह आगमपरिहीणो चरित्तसोहिं न याणाइ / / [82] [83] [84] [85] [86] [87] दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 9 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] तम्हा तित्थयरपरूवियम्मि नाणम्मि अत्थजुत्तम्मि | उज्जोओ कायव्वो नरेण मोक्खाभिकामेण / / बारसविहम्मि वि तवे सब्भिंतर-बाहिरे जिणक्खाए / न वि अत्थि न वि य होही सज्झायसमं तवोकम्मं / / मेहा होज्ज न होज्ज व जं मेहा उवसमेण कम्माणं / उज्जोओ कायव्वो नाणं अभिकंखमाणेणं / / कम्मसंखेज्जभवं खवेइ अनुसमयमेवे आउत्तो / बहुभवसंचियय पि हु सज्झाएणं खणे खवइ / / सतिरिय-सुराऽसुरनरो सकिन्नर-महोरगो सगंधव्वो / सव्वो छउमत्थजणो पडिपुच्छड़ केवलिं लोए / / एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं वच्चए नरोऽमिक्खं / तं तस्स होइ नाणं जेण विरागत्तणमुवेइ / / एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं वीयरागमग्गम्मि / वच्चइ नरो अभिक्खं तं मरणंते न मोत्तव्वं / / एक्कम्मि विजम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए / सो तेण मोहजालं खवेइ अज्झप्पजोगेणं / / न हु मरणम्मि उवग्गे सक्का बारसविहो सुयखंधो / सव्वो अनुचिंतेउं धणियं पि समत्थवित्तेणं / / तम्हा एक्कं पि पयं चिंतंतो तम्मि देस-कालम्मि / आराहणोयउत्तो जिणेहि आराहगो भणिओ / / आराहणोवउत्तो सम्म काऊण सुविहिओ कालं / उक्कोसं तिण्णि भवे गंतूण लभेज्ज निव्वाणं / / नाणस्स गुणविसेसा केइ मए वण्णिया समासेणं / चरणस्स गुणविसेसा ओहियहियया निसामेह / / ते धन्ना जे धम्मं चरिउं जिनदेसियं पयत्तेणं / गिहपासबंधणाओ उम्मुक्का सव्वभावेणं / / भावेण अनन्जमणा जे जिनवयणं सया अनुचरंति / [95] [96] [97] [98] [99] [100 [101] [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 10 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [104] ते मरणम्मि उवग्गे न विसीयंती गुणसमिद्धा / / [102] सीयंति ते मणूसा सामण्णं दुल्लहं पि लक्ष्णं / जदोहऽप्पा न निउत्तो दुक्खविमोक्खम्मि मग्गंम्मि / / [103] दुक्खाण ते मणूसा पारं गच्छंति जे य दढधीया / भावेण अनन्नमणा पारत्तहियं गवेसंति / / मग्गंती परमसुहं ते पुरिसा जे खवंति उज्जुत्ता / कोहं मानं मायं लोभं अरनइं दुगुंठं च / / [105] लळूण विमाणुस्सं सुदुल्लहं जे पुणो विराहेति / ते भिन्नपोयसंजत्तिगा व पच्छा दुही होति / / [106] लळूण वि सामण्णं पुरिसा जोगेहिं जे न हायति / ते लद्धपोयसंजतिगा व पच्छा न सोयंती / / [107] न हु सुलहं माणुस्सं लक्षूण वि होइ दुल्लहा बोही / बोहीए वि य लंभे सामण्णं दुल्लहं होइ / / [108] सामण्णस्स वि लंभे नामाभिगमो उ दुल्लहो हवइ / नाणम्मि वि आगमिए चरित्तसोही हवइ दुक्खं / / [109] अत्थि पुण केइ पुरिसा सम्मत्तं नियमसो पसंसंति / केई चरित्तसोहिं नाणं च तहा पसंसति / / [110] सम्मत्त-चरिताणं दोण्ह पि समागयाण संताणं / किं तत्थ गेण्हियव्वं पुरिसेणं बुद्धिमंतेणं / / सम्मत्तं अचरित्तस्स हवइ जह कण्ह-सेणियाणं तु / जे पुण चरत्तमंता तेसिं नियमेण सम्मतं / / [112] भट्टेण चरित्ताओ सुट्ठयरं दंसणं गहेयव्वं / सिज्झंति चरणरहिया दंसणरहिया न सिज्झंति / / [113] उक्कोसचरित्तो वि य पडेइ मिच्छत्तभावओ कोइ / किं पुण सम्मदिट्ठी सरागधम्मम्मि वटतो / / [114] अविरहिया जस्स मई पंचहिं समिईहिं तिहिं वि गुत्तीहिं / न य कुणइ राग दोसे तस्स चरितं हवइ सुद्धं / / [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 11 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [115] तम्हा तेसु पवत्तह कज्जेसु य उज्जमं पयत्तेणं / सम्मत्तम्मि चरिते नाणम्मि य मा पमाएह / / [116] चरणस्स गुणविसेसा एए मए वण्णिया समासेणं / मरणस्स गुणविसेसा अवहियहियया निसामेह / / [117] जह व अनियमियतुरगे अयाणमाणो नरो समारूढो / इच्छेज्ज पराणीयं अइगंतुं जो अकयजोगो || [118] सो पुरिसो सो तुरगो पुव्विं अनियमियकरणजोएण / द?ण पराणीयं मज्जंती दो वि संगामे / / [119] एयमकारिजोगो पुरिसो मरणे उठिए संते / न भवइ परीसहसहो अंगेसु परीसहनिवाए / / [120] पुट्विं कारियजोगो समाहिकामो य मरणकालम्मि | भवइ य परीसहसहो विसयसुहनिवारिओ अप्पा / / [121] पुट्विं कयपरिकम्मो पुरिसो मरणे उठिए संते / छिंदइ परीसहमिणं निच्छायपरसुप्पहारेणं / [122] दाहिंति इंदियाइं पुव्वमकारियपइन्नचारिस्स | अकयपरिकम्म जीवो मुज्झइ आराहणाकाले / / [123] आगमसंजुत्तस्स वि इंदियरसलोलुयं पइट्ठस्स / जइ वि मरणे समाही हवेज्ज न वि होज्ज बहुयाणं / / [124] असमत्तसुओ वि मुणी पुव् िसुकयपरिकम्मपरिहत्थो / संजम-मरणपइन्नं सुहंमव्वहिओ समाणेइ / / [125] इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपरव्वसविउत्तो / अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले / / [126] न चएइ किंचि काउं पुट्विं सुकयपरिकम्मबलियस्स | खोहं परीसहचमू धीबलविणिवारिया मरणे / / [127] पुव्विं कारियजोगो अणियाणो ईहिऊणमइकुसलो / सव्वत्थ अपडिबद्धो सकज्जजोगं समाणेइ / / [128] उप्पीलिया सरासण गहियाउहचावनिच्छियमईओ | [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 12 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] विंधइ चंदगवेज्झं झायंतो अप्पणो सिक्खं / / जइ वि करेइ पमायं थेवं पि य अन्नचित्तदोसेणं / तह विय कयसंघाणो चंदगवेज्झं न विंधेइ / / तम्हा चंदगवेज्झस्स कारणा अप्पामाइणा निच्चं / अविरहियगुणो अप्पा कायव्वो मोक्खमग्गम्मि / / सम्मत्तलद्धबुद्धिस्स चरिमसमयम्मि वट्टमाणस्स आलोइय-निंदिय-गरहियस्स मरणं हवइ सुद्धं / / जे मे जाणंति जिना अवराहे नाण-दंसण-चरिते / ते सव्वे आलोए उठिओ सव्वभावेणं / / जो दोन्नि जीवसहिया रुंभइ संसारबंधणा पावा | रागं दोसं च तहा सो मरणे होइ कयजोगो / / जो तिण्णि जीवसहिया दंडा मण-वयण-कायगुतीओ | नाणंकुसेण गिण्हइ सो मरणे होइ कय जोगो || जो चत्तारि कसाए घोरे ससरीसंभवे निच्चं / जिनगरहिए निरंभइ जो मरणे होइ कयजोगो / / जो पंच इंदियाइं सन्नाणी विसयसंपलित्ताइं / नाणंकुसेण गिण्हइ सो मरणे होइ कयजोगी / / छज्जीवकायहियओ सत्तमयट्ठाण नविरहओ साह / एगंतमद्दवमओ सो मरणे होइ कयजोगो / / जेण जिया अट्ठमया गुत्तो चिय नवहिं बंभगुत्तीहिं / आउत्तो दसकज्जे सो मरणे होइ कयजोगो / / आसायणाविरहिओ आराहिंतो सुदुल्लहं मोक्खं / सुक्कज्झाणाभिमुहो सो मरणे होइ कयजोगो / / जो विसहइ बावीसं परीसहा दुस्सहा उवस्सग्गा / सुन्ने व आउले वा सो मरणे होइ कयजोगो / / धन्नाणं तु कसाया जगडिज्जंता वि परकसाएहिं / निच्छंति समुठेउं सुनिविट्ठो पंगुलो चेव / / [136] [137] [138] [139] [140] [141] [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 13 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [142] सामण्णमनुचरंतस्स कसाया जस्स उक्कडा होति / मन्नामि उच्छुपुप्फ य निप्फलं तस्स सामण्णं / / [143] जं अज्जियं चरितं देसूणाए वि पुव्वकोडीए / तं पि कसाइयमेतो नासेइ नरो मुहुतेण / / [144] जं अज्जियं च कम्मं अनंतकालं पमायदोसेणं / तं निहयराग-दोसो खवेइ पुव्वाण कोडीए || [145] जइ उवसंतकसाओ लहइ अनंतं पुणो वि पडिवायं / किह सक्का वीसरिउं थोवे वि कसायसेसम्मि || [146] खीणेसु जाण खेमं जियं जिएसु अमयं अभिहएसु / नढेसु याविणटुं सोक्खं च जओ कसायाणं / / [147] धन्ना निच्चमरागा जिनवयणरया नियत्तिकसाया / निस्संगनिम्ममत्ता विहरंति जहिच्छिया साहू / / धन्ना अविरहियगुणा विहरंती मोक्खमग्गमल्लीणा | इह य परत्थ य लोए जीविय-मरणे अपडिबद्धा / / [149] मिच्छत्तं दमिऊणं सम्मत्तम्मि धणियं अहीगारो / कायव्वो बुद्धिमया मरणसमुग्घायकालम्मि / / [150] हंदि धणियं पि धीरा पच्छा मरणे उठिए संते / मरणसमग्घाएणं अवसा निजंति मिच्छत्तं / / / [151] तो पुव्वं तु मइमया आलोयण निंदणा गुरुसगासे / कायव्वा अनुपुट्विं पव्वज्जाईओ जं सरइ / / [152] ताहे जं देज्ज गुरू पायच्छित्तं जहारिहं जस्स / इच्छामि ति मणिज्जा अहमवि नित्यारिओ तुब्भे / / [153] परमत्थओ मुणीणं अवराओ नेव होइ कायव्वो / छलियस्स पमाएणं पडिच्छत्तमवस्स कायव्वं / / [154] पच्छित्तेणं विसोही पमायबलस्स होइ जीवस्स | तेण तयंकुसमयं चरियव्वं चरणक्खट्ठा || [155] न वि सुज्झंति ससल्ला जह भणियं सव्वभायदंसीहिं / [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 14 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मरण-पुणब्भवरहिया आलोयण-निंदणा साहू / / [156] एक्कं ससल्लमरणं मरिऊण महब्भयम्मि संसारे / पुणरदि भमंति जीवा जम्मण-मरणाइं बहुयाइं / / [157] पंचसमिओ तिगुत्तो सुचिरं कालं मुणी विहरिऊणं / मरणे विराहयतो धम्ममणाराहओ भणिओ / / [158] बहुमोहो विहरित्ता पच्छिमकालम्मि संवुडो सो उ / आराहणोवउत्तो जिणेहिं आराहओ भणिओ / / [159] तो सव्वाभावसुद्धो आराहणमइमुहो विसंमंतो / संयारं पडिवन्नो इमं च हियणए चिंतेज्जा / / [160] एगो मे सासओ अप्पा नाण-दंसणसंजुओ / सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा / / [161] एक्को हं नत्थि मे कोई नत्थि वा कस्सई अहं / न तं पेक्खामि जस्साहं न तं पेक्खामि जो महं / / [162] देवत्त माणुसत्तं तिरिक्खजोणिं तहेव नरयं च / पत्तो अनंतखुत्तो पुट्विं अन्नाणदोसेणं / / [163] ___ न य संतोसं पत्तो सएहिं कप्पेहिं दुक्खमूलेहिं / न य लद्धा परिसुद्धा बुद्धी सम्मत्तसंजुत्ता / / [164] सुचिरं पि ते मणूसा भमंति संसारसायरे दुग्गे | जे ह करेति पमायं दुक्खविमोक्खम्मि धम्मम्मि / / [165] दुक्खाण ते मणूसा पारं गच्छंति जे दढधिईया | पुव्वपुरिसामुचिण्णं जिणवयणपहं न मुंचंति || [166] मग्गंति परमसोक्खं ते पुरिसा जे खवंति उज्जुत्ता / कोहं मानं मायं लोभं तह राग-दोसं च / / [167] न वि माया न वि य पिया न बंधवा न वि पियाइं मित्ताई पुरिसस्स मरणकाले न होंति आलंबणं किंचि / / [168] न हिरण्ण-सुवण्णं वा दासी दासं च जाण जुग्गं च | [दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सूत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 15 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरिसस्स मरणकाले न होति आलंबणं किंचि / / [169] आसबलं हत्थिबलं जोहबलं धणुबलं रहबलं च / पुरिसस्स मरणकाले न होति आलंबणं किंचि / / [170] एवं आराहेंतो जिणोवइठें समाहिमरणं तु / उद्धरियभावसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो || [171] जाणंतेण वि जइणा वयाइयारस्स सोहणोवायं / परसक्खिया विसोही काव्वा भावसल्लस्स / / [172] जह सुकुसलो वि वेज्जो अन्नस्स कहेइ अप्पणो वाहिं / सो से करइ तिगिच्छं साहू वि तहा गुरुसगासे / / [173] इत्थ समप्पइ इणमो पव्वज्जा मरणकालसमयम्मि | जो हु न मुज्झइ मरणे साहू आराहओ भणिओ / / [174] विनयं आयरियगुणे सीसगुणे विणयनिग्गहगुणे य / नाणगुणे चरणगुणे मरणगुण विहिं च सोऊणं / / [175] तह धत्तह काउं जे जह मुच्चइ गब्भवासवसहीणं / मरण पुणब्भव-जम्मण-दोग्गइविमिवायगमणाणं / / 30/2 'चंदावेज्झयं सत्तमं पइण्णयं समत्तं मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादितश्च चंदावेज्झयं समत्तं दीपरत्नसागर-संशोधितः ..... 'आगम सत्र 302 चंदावेज्झयं' Page 16 दीपरत्नसागर-संशो